वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने साल 2021-22 का बजट पेश कर दिया। कोविड19 महामारी के बीच आया “बजट 2021” साफ़ साफ़ इस बात का संकेत दे गया कि ‘स्वस्थ भारत’ और ‘मजबूत बुनियाद’ पर ही देश आगे बढ़ेगा। सरकार ने जिस तरह राजकोषीय घाटे का लक्ष्य निर्धारित किया है उससे यह बात साफ है की अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए खर्च करना ही है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने साल 2021-22 के लिए संसद में आम बजट पेश किया है। कोरोना महामारी के दौरान इस साल के पेश किए संकट मोचक बजट स्वास्थ्य और विनिवेश के लिए बंपर एलान किया गया है। वहीं इस बजट में नौकरीपेशा लोगो के लिए कोई घोषणा नहीं कीया गया है। इसके तहत वह बुजुर्ग जिनकी उम्र 75 साल या उससे ज्यादा है, उनको इनकम टैक्स फाइल करने से राहत दी गई है।
वैश्विक महामारी के दौरान इस बात की उम्मीद की जा रही थी कि स्वास्थ्य क्षेत्र में मोदी सरकार की ओर से कुछ ना कुछ खास देखने को मिलेगा। कोरोना महामारी को देखते हुए मोदी सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए बजट में अच्छी खासी बढ़ोतरी की है साथ ही एक खास स्कीम भी चलाई है। मोदी सरकार ने इस बजट के द्वारा देश के लोगों को आत्मनिर्भर स्वास्थ्य योजना का तोहफा दिया है।
वित्त मंत्री के बजट में ऐसा कोई नया टैक्स नहीं लगाया जिसका निवेशकों, कारोबारियों या करदाताओं पर नकारात्मक असर हो। यही कारन है कि शेयर बाजार भी बम-बम करता नजर आया और निवेशकों की दौलत एक ही दिन में 6.8 लाख करोड़ रुपये बढ़ गई। वित्त मंत्री ने फॉर्म क्रेडिट लिमिट को 16.5 लाख करोड़ रुपये करके किसानों को एक अहम संदेश देने की पहल की। हालांकि, वेतनभोगी करदाताओं का इंतजार 1 साल और बढ़ गया यानी की करदाताओं की जेब पर किसी भी तरह की राहत नहीं दी गई।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने साल 2021-22 के लिए कुल 34,83,236 करोड़ रुपये के व्यय का बजट पेश किया है। यह चालू वित्त वर्ष के संशोधित अनुमान 34,50,305 करोड़ रुपये से थोड़ा ही अधिक है। जीसमें पूंजी व्यय 5,54,236 करोड़ रुपये है, जो साल 2020-21 के संशोधित अनुमान 4,39,163 करोड़ रुपये से कहीं अधिक है। बजट दस्तावेज के अनुसार, राजस्व खाते पर व्यय 29,29,000 करोड़ रुपये अनुमानित है। जबकि साल 2020-21 के संशोधित अनुमान के मुताबिक खर्च 30,111,42 करोड़ रुपये दिखाया गया है।

वित्त मंत्री ने बजट में 6 पिलर्स के नाम, स्वास्थ्य एवं कल्याण, भौतिक व वित्तीय पूंजी, अवसंरचना, आकांक्षी भारत के लिए समावेशी विकास, मानव पूंजी में नवजीवन का संचार करना, नवप्रवर्तन और अनुसंधान एवं विकास और न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन, गिनाए। आयकर दाताओं को बजट में किसी भी प्रकार अहम राहत का एलान नहीं किया गया है। इनकम टैक्स स्लैब में भी किसी प्रकार का बदलाव नहीं किया गया है। हालांकि, वरिष्ठ नागरिक जो 75 साल से अधिक हैं और उनकी पेंशन व जमा से आय है तो उनकी इनकम टैक्स रिटर्न से छूट देने का एलान किया।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2022 में राजकोषीय घाटा जीडीपी(GDP) का 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है, जोकि साल 2021 में 9.5 प्रतिशत रह सकता है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जिस तरह का बजट पेश किया है, वास्तव में उसके लिए बहुत हिम्मत की जरूरत है। असल में यह मजबूत राजनीतिक ताकत और इसे कड़ाई से लागू करने की कड़ी प्रतिबद्धता के कारन ही सफल हो सकता है। ऐसे समय में जब दिल्ली के चारों तरफ किसान बैठे हैं और उन्हें आम जनता का भी बहुत हद तक समर्थन हासिल है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर यह आरोप लग रहे हैं कि वह बड़े बिज़नेस घरानों को देश की संपत्ति बेच रहे हैं। असल में ऐसे समय में सरकार अपने आप को बहुत असहाय महसूस करती है। ज्यादातर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इसी कारण से सरकार आर्थिक सुधारों के मामले में थोड़ी धीमी पड़ सकती है। बहुत से लोगों को हालांकि यह भी याद आता है कि साल 2014 में कड़े विरोध के बाद भी मोदी सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव को अंजाम दे दिया था।
दो बैंकों के निजीकरण और एक बीमा कंपनी में हिस्सेदारी बिक्री जैसे कदम वास्तव में सरकार की मजबूत इच्छाशक्ति की तरफ इशारा करते हैं। मोदी सरकार ने सुधारों की राह पर जो कदम बढ़ाया है, अब वह उसे पीछे हटने के मूड में नहीं है। ट्रेड यूनियन की नाराजगी की फ़िकर ना करते हुए सरकार लगातार निजीकरण की तरफ बढ़ रही है। खास कर ऐसे माहौल में जब सरकार पर चारों तरफ से आरोप लग रहे हैं, ऐसे समय में सुधार के लिए सरकार का ऐसा कदम बढ़ाना वास्तव में सरकार की हिम्मत का ही प्रतीक है। राजकोषीय घाटे के मामले में सरकार ने कुछ अलग कदम उठाके दिखाया है।
सरकार ने अगले 4 साल के लिए राजकोषीय घाटा सीमा से अधिक रहने की आशंका जताई है, लेकिन इस कारण से महंगाई और ब्याज दरों की वृद्धि के कारण ग्रोथ पर प्रभाव पड़ सकता है। मोदी सरकार का उठाया हुवा यह कदम अर्थव्यवस्था के दृस्टि से तभी मददगार साबित हो सकती है, जब राजकोषीय घाटे की अतिरिक्त रकम कैपिटल एक्सपेंडिचर में चली जाए। सरकार को इसे राजस्व खर्च में शामिल नहीं करना चाहिए। अगले साल कैपिटल एक्सपेंडिचर में अच्छी खासी रकम सरकार को काफी मदद करेगी, सरकार को हर साल ऐसा करने की जरूरत पड़ेगी।
असल में सरकार के राजकोषीय घाटे का नया लक्ष्य इस बात पर भी निर्भर करता है कि वह भारत पैट्रोलियम और अन्य पीएसयू के निजीकरण में किस हद तक सफल हो पाती है। अगले वित्त वर्ष की शुरुआत से ही सरकार को इस तरह की कोशिश शुरू कर देनी चाहिए और हर महीने एक कोशिश करनी चाहिए। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट में छुपी हुई सब्सिडी को साफ कर ईमानदार आवंटन की शुरुआत की है। और यही कारण है इस साल राजकोषीय घाटा 9.5% तक भी जा सकता है।