महिला जननांग विकृति (Female Genital Mutilation) एक ऐसा अपराध है जिससे आज के दौर में विश्व की ज्यादातर महिलाएं प्रभावित हैं। यह कुप्रथा और उनकी गरिमा को भी भंग करती है और उनके स्वास्थ्य को बहुत नुकसान पहुंचाती है।
दुनिया भर में हर साल 6 फरवरी को महिला जननांग विकृति के खिलाफ़ शून्य सहनशीलता का अंतरराष्ट्रीय दिवस’ यानि फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन डे (Female Genital Mutilation Day) मनाया जाता है। इसे लेकर यह लक्ष्य रखा गया है कि साल 2030 तक महिला जननांग विकृति की इस कुप्रथा को पूर्ण रूप से ख़त्म किया जाए। वर्तमान में जहां लगभग 20 करोड़ महिलाएं और लड़कियां इस कुप्रथा की शिकार हैं। तो वहीं हर साल करीब 40 लाख के उपर इस कुप्रथा के शिकार होने का खतरा बना हुआ है।
क्यों मनाया जाता है (FGMD)
इस दिन को लड़कियों और महिलाओं के जननांग विकृति पर जागरूकता पैदा करने और इस कुप्रथा को समाप्ति की ओर कैसे ले जाया जाए, ये समझाने के लिए मनाया जाता है। महिला जननांग विकृति (FGM) मानवाधिकार के तहत एक ऐसा अपराध है जिससे विश्व की ज्यादातर महिलाएं और लड़कियां प्रभावित है। यह कुप्रथा उनकी गरिमा को तोड़ती है, उनके सेहत को नुकसान पहुंचाती है।और उन्हें जबरन बेहद दर्द सहने को मजबूर करती है, और इस कुप्रथा के कारण ही कई बार उनकी मृत्यु भी हो जाती है।
विश्व के 92 से भी ज्यादा देशों में यह कुप्रथा देखने को मिलती है।
रोक लगा देने के बावजूद भी फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन विश्व के कई हिस्सों में जारी है। साल 2020 में यूनिसेफ द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक दुनिया में करीब 20 करोड़ लड़कियों और महिलाओं के जननांगों को नुकसान पहुंचाया गया। यह डाटा 31 देशों से मिलाकर तैयार किया गया है। इनमें 27 देश अफ्रीका के साथ ही मालद्वीप, इराक, इंडोनेशिया और यमन देशों से आंकड़ें एकत्र किए गए हैं।
हाल ही में इक्वलिटी नाउ द्वारा जारी कीए गए एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में करीबन 5, लाख से भि ज्यादा लड़कियों और महिलाओं को फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन (एफजीएम) से गुजरना पड़ा या इन पर खतरा बना रहा। ठीक उसी प्रकार यूरोप में 6 हज़ार, ऑस्ट्रेलिया में 5 हज़ार या उससे भी अधिक, जर्मनी में 7 हज़ार, जबकि ब्रिटेन में 1 लाख 37 हज़ार महिलाओं और लड़कियों के जननांगों को विकृत कर दिया गया और 67 हज़ार से अधिक पर इसका खतरा बना हुआ है।
फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन(Female Genital Mutilation Day)
लड़कियों और महिलाओं के जननांगों को विकृत करने की इस कुप्रथा को फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन या एफजीएम(FGM) कहा जाता है। आम बोलचाल की भाषा में इसको महिलाओं का खतना भी कहा जाता हैं। इस प्रणाली में महिला के बाहरी गुप्तांग को काट दिया जाता है। इस प्रकिया से गुजरने वाली लड़कियों को गंभीर दर्द, अत्यधिक रक्तस्राव, संक्रमण, यूरिन यानि करने में समस्या जैसी कई दिक्कतों से गुज़रना पड़ता है। और अभि भी यह प्रथा दुनिया के 92 से भी ज्यादा देशों में जारी है।
फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन का इतिहास
साल 2007 में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) के जरिए एक संयुक्त कार्यक्रम शुरू किया गया था। साल 2012 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने एक प्रस्ताव पारित किया था और 6 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में ‘महिला जननांग विकृति के खिलाफ़ शून्य सहिष्णुता’ के रूप में इस दिन को नामित किया गया था। इस दिन United Nations Population Fund (UNFPA) के द्वारा महिला जननांग विकृति (एफजीएम) से बचे लोगों को समझाने के लिए और एफजीएम को समाप्त करने के लिए ‘ए पीस ऑफ मी’ नामक एक अभियान का आयोजन किया जाता है।
महिला जननांग विकृति में के कारण होने वाली समस्याएं
FGM बाहरी महिला जननांग के आंशिक को हटाने या फिर गैर चिकित्सा कारणों से महिला जननांग अंगों पर अन्य छोटो का अभ्यास है। यह ज्यादातर शिशुओं में व 15 साल की उम्र के बीच के लड़कियों पर किया जाता है। यह गंभीर रक्तस्राव, अल्सर, पेशाब करने में समस्या, संक्रमण और बच्चों के जन्म में विभिन्न जटिलताओं और नवजात मृत्यु के जोखिम के साथ ही कई समस्या का कारण बनता है। ऐसे अभ्यास मुख्य तौर से अफ़्रीका के उत्तर पूर्वी, पूर्वी और पश्चिमी भागों में किया जाता है।

महिला जननांग से जुड़ी बीमारियों को लेकर समाज में ज्यादातर चर्चे नहीं होते। इससे जुड़े रोग का ज्यादातर इलाज भी नहीं किए जाते या शर्म के कारण बताया तक नहीं जाता। वहीं घरेलू उपचार से इस रोग का निदान किया जाता है। ऐसे में सटीक उपचार नहीं मिलने के कारण यह लोग और बढ़ जाता है व गंभीर रूप ले लेता है। डॉक्टर का कहना है कि इस मामले में लड़कियों को ज्यादा परेशानी होती है। हालांकि इन सब में मां को ही आगे रहकर लड़कियों के जननांगों से जुड़ी विभिन्न बातों को साझा करके उनके स्वास्थ्य के प्रति दायित्व रखना चाहिए।
टिटनेस होने से मौत भी हो सकती है
स्त्री रोग विशेषज्ञ के मुताबिक इस कुप्रथा के कारण उन्हें जननांग में गंभीर दर्द, जरुरत से ज्यादा रक्तस्राव, झटका, जननांग उत्तक की सूजन, इम्यूनोडिफीसिअंसी, वायरस संक्रमण की समस्या, HIV, यहां तक कि टिटनेस होने के कारण महिलाओं की मौत तक हो जाती है। इसके अलावा बच्चों के अधिकारों का हनन भी होता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने साल 2003 में महिला जननांग विकृति के लिए 0 टॉलरेंस को लेकर 6 फरवरी को उसका अंतरराष्ट्रीय दिवस घोषित किया है। यह कुप्रथा कुछ समुदाय के लोगों में है। इस प्रथा के कारण बालिकाओं व बच्चों के जननांग की चमड़ी को काट देते हैं। हालांकि अब लोगों में जागरूकता के कारण इस प्रथा को समाप्त की गई है, जो आदिवासी व ग्रामीण समाज में चलती थी।
हालांकि अब एक समाज में यह कुप्रथा अभी भी चल रही है जिससे बच्चों में इंफेक्शन व कई तरह के एडीशंस आते हैं। इस बीमारी से पीड़ित 20 से 25 मरीज महीनें में जिला अस्पताल भी पहुंचते हैं।
जनन अंगों को लेकर विश्व भर में कई कुप्रथा है। इस प्रथा के कारण सबसे ज्यादा शिकार छोटे बच्चे और खासकर लड़कियां प्रभावित होते हैं। इस कुप्रथा कंचन नाम से जुड़ी बीमारियां होती है जो आगे चलकर गंभीर रोग में तब्दील हो जाती है। इसमें कई बार मरीज लंबे समय तक दर्द झेलता है और आखिर में उसकी मौत भी हो जाती है।
2020 में महिला जननांग विकृति दिवस का विषय रखा गया था “युवा शक्ति को एकजुट करें” महिला जननांग विकृति मानव अधिकार का एक ऐसा घृणित उल्लंघन है। जिससे विश्व की बहुत महिलाएं और लड़कियां प्रभावित होती है यह दिवस लड़कीयों और महिलाओं के लिए जननांग विकृति पर जागरूकता पैदा करने तथा उन्मूलन को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है।
डब्ल्यूएचओ (WHO)के मुताबिक भी करीब 120 से 140 मिलियन से भी अधिक लड़कियां और महिलाएं महिला जननांग विकृति के कुछ प्रकारों से गुजर गुजरती है। और लक्ष्य रखा गया है कि साल 2030 तक महिला जननांग विकृति को समाप्त करने का लक्ष्य रखा गया है।
जहां इसका प्रचलन है वहां की धार्मिक संस्कृति और परंपराओं में यह शामिल है। इस प्रथा को मानने वाले समुदाय के अनुसार महिलाओं साथ ऐसा करने से उनमें संबंध बनाने की इच्छा कम होती है। इस प्रक्रिया से उनका चाल चलन नहीं बिगड़ता और वे अपने पति के प्रति ज्यादा वफ़ादार होती है। और इसी अजीब सोच के साथ लड़कियों और महिलाओं को इसका शिकार बना दिया जाता है। इसी कारण महिलाएं व लड़कीयां विभिन्न प्रकार की बीमारियों का सामना करती है।