दुनिया भर में 2 फरवरी के दिन विश्व आर्द्र भूमि दिवस मनाया जाता है, यह लोगों में वैश्विक जागरूकता को बढ़ावा देता है। आद्र भूमि हमारे ग्रह के लिए आर्द्रभूमि की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में भी जागरूक करता है।
पृथ्वी में जीवो के विकास की एक लंबी कहानी है और यह कहानी हमें यह बताती है की धरती पर केवल हमारा ही अधिकार नहीं है। बल्कि इस पृथ्वी के विभिन्न भागों में विद्यमान रहने वाले करोड़ों प्रजातियों का भी इस धरती पर उतना ही अधिकार है, जितना कि हम लोगों का। नदी, झील, समुद्र, जंगल और पहाड़ में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के जीव-जंतुयों (समुद्र व जैव विविधता) को देखकर हम रोमांचित हो उठते हैं। जल और स्थल दोनों जगहों पर समृद्ध रहने वाले जैव विविधता देखने को मिलती है। तो सोचने वाली बात तो यह है कि जिस जगह पर जलिय और स्थलीय जैव विविधताओ का मिलन होता है वह जैव विविधता की दृष्टि से अपने आप में ही कितना समृद्ध होगा।
दरअसल वेटलैंड यानि आद्र भूमि एक विशिष्ट प्रकार का एक परिस्थितिकिय तंत्र है और जैव विविधता का एक महत्वपूर्ण अंग भी है। जलिय और स्थलिय जैव विविधता का मिलन स्थल होने के साथ ही यहां वन्य प्राणी, वनस्पति व वन्य प्रजाति प्रचुर मात्रा में पाए जाने के कारण ही आद्रभूमि समृद्ध परिस्थितिकी तंत्र है। आजकल के आधुनिक जीवन में मनुष्य को सबसे बड़ा खतरा होता है जलवायु परिवर्तन से और ऐसे में यह जरूरी है कि हम अपने जैव विविधता का संरक्षण करें। साल 2017 में आद्र भूमियों के संरक्षण के लिए वेसलैंड यानी (संरक्षण और प्रबंधन नियम) ने साल 2017 (Wetland Rules,2017) नाम से एक नया वैधानिक ढांचा लाया गया था।
आद्र भूमि (wetland) क्या है —
दलदली या नमी वाली भूमि क्षेत्र को आर्द्रभूमि या वेटलैंड कहा जाता है, आद्र भूमि वैसे क्षेत्र होते हैं जहां पर प्रचुर मात्रा में नमी देखी जाती है। साल 1971 को 2 फरवरी के दिन विभिन्न देशों ने ईरान के रामसर में दुनिया के आद्र भूमि के संरक्षण के लिए एक संधि पर हस्ताक्षर किए थे। इसीलिए इस दीन विश्व आर्द्रभूमि दिवस का आयोजन किया जाता है।
आद्रभूमि के कई लाभ होते है आइए जानते हैं इसके क्या क्या लाभ होते हैं इसके बारे में।
आद्र भूमि क्षेत्र के लाभ —
आद्र भूमि जल को प्रदूषण से मुक्त करता है। आंध्र भूमि वह क्षेत्र है जो साल भर आंशिक रूप से या पुनर रूप से जल से भरा रहता है। भारत में आद्र भूमि ठंडे और शुष्क इलाकों से लेकर मध्य भारत के कटिबंधीय मानसूनी इलाकों और दक्षिण के नामी वाले इलाकों तक फैली हुई है।
आर्द्रभूमि क्यों महत्वपूर्ण है —
* आद्र भूमि को बायोलॉजिकल सुपरमार्केट भी कहा जाता है
आर्द्रभूमि को बायो लॉजिकल सुपरमार्केट भी कहा जाता है। क्योंकि यह विस्तृत भोज्य जाल का निर्माण करते हैं। फूड वेब्स यानि भोज्य लाल में कई खाद्य श्रृंखलाएं शामिल होती है और ऐसा माना जाता है कि फूड वेब्स परिस्थितिक तंत्र में जीवो के खाद्य व्यवहारों का वास्तविक प्रतिनिधित्व करते हैं। एक समृद्ध फूड वेब समृद्ध जैव विविधता का परिचायक भी है और यही कारण है कि इसे बायो लॉजिकल सुपरमार्केट भी कहा जाता है।
* किडनीज ऑफ द लैंडस्केप(Kidneys of The Landscape)
आर्द्रभूमि को किडनीज ऑफ द लैंडस्केप यानि “भू दृश्य के गुर्दे” भी कहा जाता हैं। जिस तरह हमारे शरीर में पानी को शुद्ध करने का कार्य किडनी करता है, उसी तरह आद्रभूमि तंत्र जल चक्र के माध्यम से जल को शुद्ध करता है और प्रदूषणकारी अवयवों को निकालकर पानी को साफ बनाता है। क्योंकि पानी जैसे पदार्थ के अवस्था में बदलाव लाना अपेक्षाकृत आसान होता है।

जल चक्र इस धरती पर उपलब्ध जल के एक रूप से दूसरे में परिवर्तन होने और एक भंडार से दूसरे भंडार या एक जगह से दूसरे जगह तक पहुंचने की चक्रीय प्रणाली है। यह जलीय चक्र हमेशा निरंतर रूप से चलता रहता है और स्रोतों को स्वच्छ भी रखता है।इसके अलावा धरती पर इसके अभाव में जीवन असंभव होता है। उपयोगी वनस्पतियों और औषधीय पौधों के उत्पादन में सहायक भी होते हैं। आर्द्र भूमि जंतु ही नहीं पादपों की दृस्टि से भी एक समृद्ध तंत्र है। जहां यूपयोगी वनस्पतियां और औषधीय पौधे भी भरपूर मात्रा में मिलते हैं। यह उपयोगी वनस्पतियों और औषधीय पौधे के उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
* लोगों के आजीविका के लिए भी महत्वपूर्ण है आंध्र भूमि
दुनिया के तमाम बड़ी सभ्यताएं जलीय स्रोतों के पास ही बसती आई है और आज भी आद्र भूमि विश्व में भोजन प्रदान करने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। आद्रभूमि के नजदीक रहने वाले लोगों की जीविका बहुत हद तक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इन पर निर्भर होती है।
* पर्यावरण संरक्षण के लिए भी आद्र भूमि महत्वपूर्ण है
आद्रभूमि ऐसी परिस्थितिकीय तंत्र है जो बाढ़ के दौरान जल के आधिक्य को अवशोषण कर लेती है। इस तरह बाढ़ का पानी झीलो और तालाबों में एकत्रित हो जाती है। जिससे मानव या आवास वाले क्षेत्र जलमग्न होने से बच जाते हैं। इतना ही नहीं “कार्बन अवशोषण” व “भू जल स्तर” में वृद्धि जैसे महत्वपूर्ण भूमिकाओं का निर्वहन करके वेटलैंड्स पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
* आद्रभूमि संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयास
आद्रभूमि कन्वेंशन एक अंतर सरकारी संस्था है, जो आद्रभूमि और उनके संसाधनों के संरक्षण और बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग के लिए राष्ट्रीय कार्य और अंतरराष्ट्रीय सहयोग का ढाँचा बनाते हैं। साल 2015 तक के आंकड़ों के अनुसार अब तक 169 दल रामसर कन्वेंशन के प्रति अपनी सहमति दर्ज करा चुके हैं जिनमें भारत भी एक महत्वपूर्ण स्थान पर है। वर्तमान में 2200 से भी अधिक आद्रभूमि है, जिन्हे अंतरराष्ट्रीय महत्व के आद्रभूमि की रामसर सूची में शामिल किया गया है। और इनका कुल क्षेत्रफल 2.1 मिलियन वर्ग किलोमीटर से भी ज्यादा है।
रामसर कनेक्शन विशेष परिस्थिति तंत्र के साथ काम करने वाली पहली वैश्विक पर्यावरण संधि है। विलुप्त हो रहे हैं आद्रभूमि के संबंध में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ध्यान दिए जाने का आह्वान करने के उद्देश्य से रामसर आर्द्रभूमि कन्वेशन का आयोजन किया गया था। इस कन्वेशन में शामिल होने वाली सरकारे आद्र भूमि को पहुंचे नुकसान और उनके स्तर में आई गिरावट को दूर करने के लिए सहायता प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। रामसर कन्वेशन में यह तय किया गया था कि पर्यावरण संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय विचार विमर्श और सहयोग के ढांचे की जरूरत है।
* आद्र भूमि संरक्षण के लिए किए गए राष्ट्रीय प्रयास
सरकार ने साल 1986 के दौरान संबंधित राज्य सरकारों के सहयोग से राष्ट्रीय आद्र भूमि संरक्षण कार्यक्रम की शुरुआत की थी। इस कार्यक्रम के अंतर्गत पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा 115 आर्द्रभूमि की पहचान की गई। जिसके संरक्षण और प्रबंधन के लिए पहल करने की जरूरत है। इस योजना का उद्देश्य देश में आद्र भूमि के संरक्षण और संपूर्ण उपयोग करना है, ताकि उनमें आ रही गिरावट को रोका जा सके।

दरअसल देश में मौजूद 26 आद्र भूमि को ही संरक्षित किया गया है। लेकिन ऐसे हजारों अदरक भूमि है जो जैविक और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण तो है। लेकिन उनकी कानूनी स्थिति साफ नहीं है हालांकि नए नियमों में स्पष्ट परिभाषा देने का प्रयास किया गया है। आद्रभूमि योजना प्रबंध तथा निगरानी संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क के अंतर्गत आते है। हालांकि अनेक कानून आद्र भूमि को संरक्षित करते हैं। लेकिन परिस्थितिकी के लिए विशेष रूप से कोई कानून नहीं है। उनके लिए सम्मन्वित पहुंच बेहद जरूरी है क्योंकि यह बहु-उद्देशीय उपयोगिता के लिए आम संपत्ति है और इनका संरक्षण एवं प्रबंधन करना सभी की जिम्मेदारी बनती है। वैज्ञानिक जानकारी योजनाकारो को आर्थिक महत्व और लाभ समझाने में मदद करेगी।
यानी की आद्रभूमि के वैज्ञानिक महत्व के प्रति नीति निर्माताओं को जागरूक बनाना होगा। जहां तक जागरूकता का सवाल है तो आम जनता को भी इस आद्र भूमि के संरक्षण के प्रति जागरूक करने की जरूरत है। नए नियमों की बात करें तो आद्र भूमि किसी विशिष्ट प्रशासनिक अधिकार क्षेत्र के तहत अंकित नहीं है और इस परिस्थितिकी तंत्र के प्रबंधन की प्राथमिक जिम्मेदारी पर्यावरण और वन मंत्रालय के हाथ में रही है। आद्र भूमि के संरक्षण जैसे संवेदनशील मामलों में राज्य की भूमिका और सहभागिता बेहद महत्वपूर्ण है। लेकिन साथ में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इनके संरक्षण से कोई समझौता ना हो।
आद्रभूमि ऐसा भूभाग होता है जहां के पारितंत्र का बड़ा हिस्सा स्थाई रूप से या हर साल किसी मौसम में जल से संतृप्त हो या उस में डूबा रहे। ऐसे क्षेत्र में जलीय पौधों का बाहुल्य भी रहता है और यही आद्रभूमियों को परिभाषित करता है। जैव विविधता की दृष्टि से आद्र भूमियां बेहद संवेदनशील होती है, क्योंकि आद्रभूमि पर कुछ विशेष प्रकार के वनस्पति और वन्य जीव ही उगते हैं और फलने फूलने के लिए अनुकूलित होते हैं।
ईरान के रामसर शहर में साल 1971 में पारित हुए एक अधिनियम के मुताबिक आद्र भूमि ऐसा स्थान है जहां साल में 8 महीने पानी भरा रहता है। रामसर अधिसमय के अंतर्गत वैश्विक स्तर पर वर्तमान साल1929 से भी अधिक आद्र भूमि है। भारत सरकार में शुष्क भूमि को भी रामसर आर्द्रभूमियों के अंतर्गत ही शामिल किया है। वर्तमान हमेशा देश में कुल 37 रामसर आर्द्रभूमियाँ अनुसूचित हुई है। भारत द्वारा साल 2010 में 38 में आद्र भूमियों को शामिल करने के लिए चिन्हित किया गया है।
रामसर आर्द्र भूमि के रजिस्टर मॉन्ट्रेक्स रिकॉर्ड्स के तहत उन आद्रभूमियों को मिलाया जाता है जो खतरे में है या भविष्य में खतरे में आ सकते हैं। इसके अनुसार भारत में राजस्थान के केवलादेव और मणिपुर के लोकटक झील खतरे में रहने वाली आद्रभूमियां है। और उड़ीसा के चिल्का झील को इस रिकॉर्ड से बाहर कर दिया गया है। आर्द्र भूमि संरक्षण और प्रबंधन के अधिनियम 2010 की अधिसूचना जारी की गई है। इस अधिनियम के तहत आद्रभुमियों को कुछ इस प्रकार वर्गों में बांटा गया है।
जैसे कि —
- अंतर्राष्ट्रीय महत्व की आद्र भूमियाँ
- पर्यावरणीय आद्रभूमियाँ, जैसे राष्ट्रीय उद्यान, गरान इत्यादि
- यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल आद्रभूमियाँ
- जो 400 हेक्टेयर से भी अधिक क्षेत्रफल को कवर करती है।
- समुद्र तल से 2400 मीटर से भी अधिक ऊंचाई लेकिन 4 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल .
- ऐसी आद्रभूमियाँ जिनकी पहचान प्राधिकरण ने की हो।
इस अधिनियम के अंतर्गत केंद्रीय आद्रभूमि विनिमायक प्राधिकरण की स्थापना की गई है। प्राधिकरण की स्थापना की गई है इस प्राधिकरण में अप्रत्यक्ष अध्यक्ष के साथ ही कुल 12 सदस्य होंगे। इस अधिनियम के तहत 38 नई आद्रभूमियाँ पहचानी गई है।
विश्व आर्द्र भूमि के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य —
- साल 1971 में ईरान के शहर रामसर में कैस्पियन सागर के तट पर आंध्र भूमि पर एक अभिसमय(Convention on Wetland) को अपनाया गया।
- विश्व आर्द्र भूमि दिवस प्रथम बार 2 फरवरी साल 1997 के दिन रामसर सम्मेलन में 16 वर्ष पूर्ण होने पर मनाया गया था।
- साल 2019 के लिए विश्व आर्द्रभूमि दिवस की थीम रखा गया था “मातृभूमि और जलवायु परिवर्तन” (WetlandsAndClimate Change)
- साल 2020 में आद्र भूमि दिवस का थीम था “आद्रभूमि और जैव विविधता”(Wetlands And Biodiversity)
- उसके बाद साल 2021 में विश्व आर्द्र भूमि दिवस का थीम रखा गया था “आद्रभूमि और जल”(Wetland and And Water)