लोहड़ी का त्यौहार उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध त्योहार है। यह त्यौहार मकर सक्रांति से 1 दिन पहले मनाया जाता है। मकर सक्रांति के पहले दिन शाम के समय इस त्यौहार का पूरा उल्लास रहता है। रात में खुले स्थान में परिवार, दोस्त, यार या सामूहिक तौर पर मिलकर आग जलाकर इस त्योहार को मनाते हैं।
लोहड़ी दरअसल पंजाबी और हरियाणवी लोगों का एक प्रमुख पर्व है यह त्योहार सर्दी के मौसम के जाने का और बसंत ऋतु के आगमन का संकेत भी माना जाता है। लोहड़ी का यह त्यौहार पंजाब, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, और इसके आसपास के क्षेत्रों में धूमधाम से मनाया जाता है। और आधुनिक युग में दो यह त्योहार केवल हरियाणा, पंजाब, दिल्ली ही नहीं बल्कि बंगाल, उड़ीसा जैसे क्षेत्रों में भी मनाया जाने लगा है। यह त्योहार मकर सक्रांति से 1 दिन पहले यानी हर साल 13 जनवरी के दिन मनाया जाता है। इस त्यौहार के उत्पत्ति से जुड़ी कई मान्यताएं प्रचलित है।
लोहड़ी का त्योहार कैसे मनाया जाता है
लोहड़ी के त्यौहार के दिन आंगन में पंजाबी लोग, लकड़िया और उपलों को ढेर बनाकर अग्नि जलाते हैं और इस अग्नि में रवि की नई फसलों को अर्पित की जाती है। इस दौरान फसलें काटकर घर में आना शुरू होते हैं इसीलिए इस त्यौहार को मनाया जाता है। जिस तरह मकर सक्रांति ग्रामीण क्षेत्रों में खेती के उपलक्ष में मनाई जाती है उसी तरह पंजाबी लोगों के लिए लोहरी भी खेती के उपलक्ष के लिए ही मनाई जाती जाने वाली एक पावन त्यौहार है। लोहरी के पवित्र अग्नि में फसल को अर्पित करने के पीछे कहा जाता है कि इससे सभी देवी देवताओं को फसलों का भोग लगता है। इसीलिए सभी लोग पवित्र अग्नि में चारों तरफ घूम कर गाने गाकर और नाच कर अग्नि में अनाज डालते हैं। ऐसा करके भगवान सूर्य देव और अग्नि माता को आभार प्रकट किया जाता है। और भगवान से प्रार्थना की जाती है कि उनकी फसल पर भगवान अपनी विशेष कृपया करें, ताकि उनकी फसल अच्छी हो।
के पर्व पर पंजाबी लोग पहले अग्नि जलाकर पूजा पाठ कर लेते हैं उसके बाद अपने सारे रिश्तेदार दोस्त आस-पड़ोस के लोगों को जान पहचान के सभी लोगों को मूंगफली, रेवरिया और तील इत्यादि बांटते हैं। इस दिन किसी तरह का उपवास या व्रत नहीं किया जाता है बस ईस दिन केवल खान-पान, नाच गाने के साथ इस त्यौहार को मनाया जाता है। ईस दिन कई प्रमुख जगहों पर पंजाबी के प्रसिद्ध गीत

सुंदर मुंदरिए जाकर उत्सव को मनाया जाता है। इस दिन के तैयारी करने के लिए पंजाबी बच्चे कुछ दिन पहले से ही लोहरी माई के नाम पर चंदा लेते हैं। जिनसे लकड़ी और गोबर के उपले मंगाए जाते हैं और सामूहिक तौर पर मुहल्ले भर में यह त्यौहार मनाया जाता है। वैसे तो लोहड़ी के त्यौहार से कई कथाएं प्रचलित हैं जिस कारण लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है। लोहरी त्यौहार के अवसर पर विवाहित पुत्रियों को मां के घर से कुछ सामान भेजा जाता है जिसे “त्यौहार” कहा जाता है। त्यौहार के समान में वस्त्र, मिठाई, खाने वाले रेवड़ी, लावा इत्यादि होते हैं। लोहड़ी के त्यौहार में बहुत सारि मस्ती भी होती है शहर के शरारती लड़के दूसरे मोहल्ले से जाकर लोहड़ी की जलती हुई लकड़ी लाकर अपने मोहल्ले की लोहड़ी में डाल देते हैं। ऐसा करना लोहरी व्याहना कहलाता है। इसमें कई लोगों में छीना झपटी भी होने लगती है। आजकल तो महंगाई के कारण पर्याप्त लकड़ी और उपले के अभाव में दुकानों के बाहर पड़ी लकड़ी आदि लोग उठा कर लोहड़ी के त्यौहार में जलाकर लोहड़ी मना लेते हैं। त्यौहार के पहले से बालक, बालिकाए बाजार दुकानों में मोह माया यानी “महामाई” जिसे लोहरी का दूसरा नाम भी कहा गया है, इस नाम से चंदा यानी कि पैसा मांग कर लकड़ी और रेवड़ी खरीद के सामूहिक तौर पर लोहड़ी का आयोजन करते हैं।
लोहड़ी का पर्व क्यों मनाते हैं
एक प्रचलित कथा के अनुसार मकर सक्रांति के दिन संत ने भगवान श्री कृष्ण को मारने के लिए लोहिता नाम की राक्षसी को गोकुल भेजा था। फिर बालकृष्ण ने खेलते खेलते ही उस लोहिता नामक राक्षसी का वध कर दिया और उसी घटना को लोहड़ी के पर्व से लोग जानने लगे। पंजाब पंजाब के क्षेत्र में लोग लोहड़ी पर्व के पीछे इस कथा को जानते हैं और इसलिए इस त्यौहार से इस कथा को जुड़ा हुआ मानते हैं।
एक दूसरे कथा के अनुसार लोहरी में आग जलाने की परंपरा से भगवान शिव और पार्वती माता भी जुड़ी हुई है। यह भी कहा जाता है कि जब राजा दक्ष ने अपनी बेटी सती और भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया और जब माता सती ने अपने पिता के घर जाकर देखा कि वहां उनके पति का अपमान हो रहा था यह देख माता सति उसी यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग देती है। उसकी बाद राजा दक्ष ने अपनी बेटी के योगाग्नि दहन की याद में अग्नि जलाई थी। सिंधी समाज में मकर संक्रांत के एक दिन पहले लाल लोही नाम का एक पर्व मनाया जाता है। पंजाबी लोग लोहड़ी के त्यौहार से दुल्ला भट्टी की कहानी को भी जुड़ा हुआ मानते हैं।
दरअसल दुल्ला भट्टी मुगल शासक अकबर के समय में पंजाब में रहता था। उस दौरान लड़कियों को अमीर लोगों की गुलामी करने के लिए उन्हें बेच दिया जाता था। दुल्ला भट्टी ने गुलाम लड़कियों को छुड़वा कर उनका विवाह हिंदू लड़कों से करवाया दिया था और इसी कारण से पंजाबी लोग लोहड़ी के दिन पवित्र अग्नि जलाकर लोहरी का यह पर्व मनाते हैं।
इस तरह पौराणिक ने कहानियों के वजह से परंपराएं बनी, परंपराओं से त्यौहार बने और आज तक पंजाबी समाज में मशहूर लोहड़ी का यह त्यौहार बहुत ही श्रद्धा व मान्यताओं के साथ मनाया जाता है। यह त्यौहार फिल्म, टीवी सीरियल में भी काफी ज्यादा मशहूर है। पंजाबी लोगों के इस त्यौहार को अब हर क्षेत्र के लोग जानने लगे हैं और पंजाबी समाज के साथ मिलकर मनाने भी लगे। हमारे जाती के हिसाब से त्यौहार भले ही अलग-अलग हो, लेकिन सबके भगवान तो एक ही होते हैं। जाति अलग होती है लेकिन मन की भावनाएं तो एक ही होते हैं। इसीलिए हर एक त्यौहार हर व्यक्ति का होता है और अब तो दूसरे जाति के लोग भी इस त्यौहार को बहुत ही मान्यता के साथ मनाने लगे हैं।
साल 2021 में लोहड़ी का त्यौहार आने में ज्यादा समय नहीं बचा है इसीलिए आप सभी को पहले से ही लोहड़ी त्यौहार की हार्दिक शुभकामनाएं। हमें उम्मीद है इस त्यौहार के बारे में जानकर आपको खुशी हुई होगी। अगर आपको लोहरी त्यौहार की यह जानकारी पसंद आई तो इसे लाइक करें और अपने सभी दोस्तों के साथ शेयर करें।