हिंदू मान्यता के अनुसार तुलसी माता को बहुत पवित्र माना जाता है। और इसीलिए हिंदू धर्म के हर एक घर में तुलसी माता को पाया जाता है। आज हम आपको ईसी बारे में जानकारी देने वाले हैं कि आखिर क्यों हिंदू धर्म में तुलसी माता को पूजनीय बताया गया है। और क्यों हर एक पूजा में तुलसी माता का प्रयोग आवश्यक हो जाता है, खासकर एकादशी के दिन। दरअसल, इसके पीछे एक महान कथा है अगर आप लोग इस कथा के बारे में जान जाएंगे तो आप लोग अवश्य ही तुलसी माता कौन हैं और किस लिए यह हिंदू धर्म में पूजनीय बताई गई है। इस बात को समझ जाएंगे तो आइए जानते हैं कथा के बारे में।
कथा
पौराणिक काल में एक लड़की थी जिसका नाम था वृंदा उसका जन्म एक राक्षस कुल में हुआ था। वृंदा बचपन से ही भगवान विष्णु जी की एक परम भक्त थी बहुत ही प्यार से भगवान की पूजा करती थी। जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया, जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था। वृंदा बहुत ही पतिव्रता स्त्री थी हमेशा अपने पति की सेवा किया करती थी।
एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा अपने स्वामी से कहा की आप युद्ध पर जा रहे हैं आप जब तक युद्ध में रहेगें में पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करुंगी। और जब तक आप वापस नहीं आ जाते मैं अपना संकल्प नही छोडूगीं। उसके बाद जलंधर युद्ध में चले गए और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गई। वृंदा के व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर से जीत नहीं सके। सारे देवता जब हारने लगे तो भगवान विष्णु जी के पास गए। सबने जब भगवान से प्रार्थना कीया तब भगवान कहने लगे कि-वृंदा मेरी परम भक्त है मैं उसके साथ छल नहीं कर सकता। पर देवता बोले – भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब केवल आप ही हमारी मदद कर सकते हैं।
तब भगवान जलंधर का रूप लेकर वृंदा के महल में पहुंचे। जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा,तो वह तुरंत पूजा से उठ गई और उनका चरण छू लिया इतने में जैसे ही वृंदा का संकल्प टूटा तो युद्ध में देवताओं ने जलंधर का सिर काटकर अलग कर दिया। और जलंधर का सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कट कर गिरा हुवा है तो फिर वो सोची की जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?
वृंदा ने पूछा – आप कौन हैं जिसको मैंने स्पर्श किया, तब भगवान अपने रूप में आ गए लेकिन वे कुछ बोल ना सके तब वृंदा सब बात समझ गई। वृंदा को जानकर बहुत दुख हुआ वह कुछ समझ ना सकी। अपने पति का कटा हुआ सिर देख कर और अपने भक्ति को टूटते देख वह अपने परम पूज्य विष्णु देव पर क्रोधित हो गई। वे बिना कुछ सोचे भगवान विष्णु को श्राप दे दिया। उसने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि आप इसी वक्त पत्थर के हो जाएंगे। क्योंकि आपने पत्थर की तरह मेरे विश्वास को छलनी किया है। भगवान उसी समय पत्थर के हो गए। यह देख सभी देवी देवताओं में हाहाकार मच गया। माता लक्ष्मी अपने पति भगवान विष्णु को पत्थर के रूप में देख कर रोने लगी और वृंदा से प्रार्थना करने लगी। वृंदा को यह देखा नहीं गया वह समझ गई कि उसका पति एक राक्षस कुल का था। वह दुखी हुई लेकिन फिर भी भगवान को श्राप से विमोचन कर दिया और अपने पति का कटा हुआ सिर लेकर सती बन गई। जहां वृंदा भस्म हुईं, वहां तुलसी का पौधा उगा। भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा, की ‘हे वृंदा आज से तुम्हारा नाम तुलसी है और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा। जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा। तुम्हारे सतीत्व को देखकर तुम मुझे अब लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो। अब तुम तुलसी के रूप में हमेशा मेरे साथ रहोगी। जो मनुष्य मेरे शालिग्राम रूप के साथ तुलसी का विवाह करेगा उसे इस लोक और परलोक में विपुल यश की प्राप्ती होगी। और मैं कभी बिना तुलसी जी के भोग स्वीकार नहीं करुंगा। तब से तुलसी जी की पूजा सभी करने लगे और कार्तिक महीनें में तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ किया जाता है।

जीस घर में तुलसी माता होती है वहां यम के दूत भी नहीं पहुंच पाते हैं गंगा और नर्मदा के जल में स्नान करना तुलसी माता के पूजन करने के बराबर बताया गया है। इसीलिए हर एक घर में तुलसी माता का होना बहुत जरूरी हैं। कहा जाता है कि मनुष्य कितना भी पापी क्यों ना हो मृत्यु के समय जिस व्यक्ति के मुंह में गंगाजल और तुलसी के पत्ते रखकर निकाले जाते हैं। वह पापों से मुक्ति पाता है और बैकुंठ धाम को प्राप्त करता है। जो व्यक्ति तुलसी की छाया में अपने पितरों का श्राद्ध करता है उसके पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कहा जाता है कि तुलसी माता के पति जो दैत्य जलंधर थे, उन्हीं के भूमि जलंधर जगह के नाम से विख्यात हो गई है। सती वृंदा माता का मंदिर मोहल्ला कोट किशन चंद में स्थित है। कहा जाता है कि इस जगह पर एक प्राचीन गुफा थी जो सीधे हरिद्वार तक जाती थी। जो व्यक्ति सच्चे मन से 40 दिन तक सती माता की पूजा करता है, उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
तुलसी बहुत बड़ी सति है और बहुत पवित्र देवी मानी जाती है। इसीलिए तुलसी माता के लिए कई नियम बनाए गए हैं जैसे कि बिना नहाए तुलसी के पत्ते को नहीं तोड़ना चाहिए।तुलसी माता के पत्ते हम पूजा में प्रयोग करते हैं, लेकिन कहा जाता है कि बिना नहाए तोड़े हुए तुलसी के पत्ते स्वयं भगवान भी स्वीकार नहीं करते। क्योंकि तुलसी माता खुद पवित्रता की देवी हैं इसीलिए उन्हें कभी अपवित्र मन से और अपवित्र शरीर से नहीं छूना चाहिए। तुलसी माता को रविवार के दिन भी नहीं तोड़ा जाता है। इसके अलावा एकादशी के दिन जो कि स्वयं भगवान विष्णु का दिन होता है। इस दिन भी माता तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए। क्योंकि भगवान विष्णु स्वयं माता तुलसी के साथ रहते हैं। एकादशी के अलावा द्वादशी, सक्रांति व संध्या के समय कभी भी तुलसी के पत्ते को भूलकर भी ना तोड़े।
हमें उम्मीद है हमारे द्वारा दी गई माता तुलसी के यह जानकारी आपको अच्छी लगी होगी। अगर आपको यह जानकारी पसंद आई तो इसे लाइक करें और इस आर्टिकल के जरिए अपने सभी दोस्तों को तुलसी माता और भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप के बारे में बताएं।