15 दिसंबर से खरमास लग रहा है जिस कारण इस महीने में सभी प्रकार के मांगलिक कार्यों पर रोक होगा। क्योंकि इस दिन सूर्य ग्रह धनु राशि में प्रवेश करेंगे जो 1 महीने तक इसी राशि में ही स्थित रहेंगे। यह खरमास 14 जनवरी साल 2021 को समाप्त होगा।
खरमास का महत्व
खरमास का महत्व पौराणिक शास्त्रों में बताया गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य देव एक राशि में 1 महीने तक रहते हैं और इसके बाद राशि परिवर्तन करते हैं। जिसे सक्रांति कहां जाता है। जिससे जिस भी राशि में सूर्य जाते हैं उसी राशि के नाम से सक्रांति जानी जाती है, ऐसे ही जब सूर्य देव धनु राशि में प्रवेश करते हैं तब खरमास लगता है। खरमास में सभी तरह के शुभ कार्य वर्जित होता है।
खरमास में किए जाने वाले काम
खरमास के महीने में सुबह जल्दी उठकर स्नान करके सूर्य देव की उपासना करनी चाहिए। माना जाता है कि खरमास में दान, पुण करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। इसलिए इस महीने गरीब और जरूरतमंद लोगों को मदद करनी चाहिए, भूखे को खाना खिलाना चाहिए। जितना संभव हो सके समर्थ अनुसार गरीबों में कंबल बांटने चाहिए। खरमास में गौ पूजन करने का और गौ संवर्धन करने का भी बहुत महत्व होता है। कहा जाता है कि खरमास महीने में गौ पूजन करने से भगवान श्री कृष्ण का आशीर्वाद मिलता है, घर में सुख समृद्धि की आगमन होती है। कहा जाता है कि खरमास महीने में सूर्य देवता का पूजा करना बहुत फलदाई होता है। साथ ही पूरे खरमास में व्यक्ति को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके भगवान विष्णु को केसर युक्त दूध से स्नान कराकर पूजा करनी चाहिए और “ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः” मंत्र का जाप करना चाहिए। खरमास महीने में तुलसी और पीपल के पेड़ की पूजा करना भी बहुत शुभ होता है। राम भगवान सूर्य को जल देकर इनकी भी पूजा करनी चाहिए इस महीने खरमास में सुबह उठकर तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें लाल चंदन, लाल फूल, अक्षत मिलाकर सूर्य देव को जल अर्पित करनी चाहिए। इसके अलावा खरमास में विष्णु पुराण, रामचरितमानस, भगवत गीता, सुंदरकांड जैसे धार्मिक ग्रंथो का पाठ करने से भी शुभ फल की प्राप्ति होती है। खरमास के दिनों में पवित्र नदी में स्नान करने से रोग मुक्ति जीवन प्राप्त होता है। कहा जाता है कि खरमास में परने वाली एकादशी व्रत करने से समस्त प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है।
खरमास में यह सब शुभ कार्य करना वर्जित होते हैं
विवाह चर्चा, द्विरागमन, यगोपवित, विवाह या दूसरे हवन कर्मकांड, सगाई, बड़ी पूजा, उद्यापन, किसी पूजा का आरंभ, गोद भराई, गृह प्रवेश, नई बहू का आगमन, गृह निर्माण, नए घर की खरीदारी, कोई नई वस्तु जैसे घर, गाड़ी नहीं खरीदी जाती। नए व्यापार का आरंभ करना भी इस महीने में शुभ नहीं होता है। खरमास महीने में किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य नहीं किए जाते ऐसा करने से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति संकट में आ जाती है। यह भी कहां जाता है ईस महीने शुरू किए गया कारोबार भी बीच में ही टूट जाते हैं, उसमें सफलता नहीं मिलती। खरमास लगने पर बच्चे का मुंडन करना भी वर्जित होता है। पांच लगने पर बच्चे का मुंडन करवाने पर बच्चे की तबीयत खराब हो सकती है।
क्या है खरमास व मकर सक्रांति
सूर्य का किसी भी राशि में प्रवेश करना सक्रांति कहलाता है। खरमास की अवधि 14 जनवरी 2021 को समाप्त होगी। इसके बाद मकर संक्रांति शुरू होने के साथ ही खरमास का समापन होगा और सभी प्रकार के मांगलिक कार्य शुरू होंगे। मकर संक्रांति को खिचड़ी भी कहा जाता है। मकर संक्रांति की हिंदू धर्म में काफी महिमा बताई गई है। क्योंकि मकर संक्रांति की शुरुआत से ही रुके हुए सभी मांगलिक कार्य जैसे शादी- विवाह, मुंडन, सगाई, गृहप्रवेश आदि फिर से शुरू हो जाते हैं। शास्त्रों में ऐश्वर्या, धर्म, श्री, ज्ञान और वैराग्य को भग कहा जाता है और इन से युक्त होकर ही भगवान बना है। यही कारण है कि पौष मास के भग नामक सूर्य साक्षात परब्रह्मा का ही स्वरूप माने जाते हैं। कहा जाता है की खरवास महीने में भगवान भास्कर 5 प्रकार के रौशनी के धरती के लोगो को सर्दी से राहत देते हैं। इसका वर्णन रक्त के समान होता है।

सूर्य जब धनु राशि में प्रवेश करता है तो उसे धनु संक्रांति कहते हैं। जब खरमास लगता है यह समय शुभ नहीं होता और यह समय पौष मास का होता है। खरमास को मलमास भी कहा जाता है मान्यता है कि इस महीने सूर्य के रथ को घोड़े नहीं बल्कि गधे खींचते हैं। इससे संबंधित एक पौराणिक कथा भी बहुत प्रचलित है आइए जानते है उस कथा के बारे में।
खरमास महीने की पुरानी कथा
खरमास महीने से पुरानी कथा भी जुड़ी हुई है। पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि सूर्य देव सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर लगातार ब्रह्मांड की परिक्रमा करते हैं। एक बार उनके घोड़े लगातार चलने और विश्राम ना मिलने के कारण थक जाते हैं और भूख प्यास से बहुत व्याकुल हो उठते हैं । तब भगवान सूर्यदेव घोड़ों को एक तालाब के किनारे ले गए। तभी उन्हें यह एहसास हुआ कि अगर रथ रुका तो यह सृष्टि भी रुक जाएगी। तो वहीं उन्होंने देखा कि नदी तालाब के किनारे दो गधे भी मौजूद थे ऐसे में सूर्य देव को एक उपाय सूझा . उन्होंने अपने घोड़ों को आराम देने के लिए रथ में गधों को जोड़ लिया इस स्थिति में सूर्य देव की रथ की गति बहुत धीमी हो गई लेकिन रथ फिर भी रुका नहीं। इसीलिए इस समय सूर्य के तेज काफी कम हो जाते हैं और इस समय चांद भी अपने चरम सीमा पर रहती हैं।
हिंदी पंचांग के अनुसार आज 15 दिसंबर मंगलवार का दिन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि है। आज से खरमास लग रहा है जो कि 1 महीने तक रहेगा और यह मकर सक्रांति को खत्म होगा। इस 1 महीने में शादी, सगाई, मुंडन, घर प्रवेश जैसे सभी मांगलिक कार्य बंद रहेंगे। क्योंकि आज सूर्यदेव धनु राशि में प्रवेश करेंगे जिससे खरमास प्रारंभ हो जाएगी। धनु राशि की यात्रा और पौष मास के सहयोग से देव गुरु के स्वभाव में हर चीज से उग्रता के कारण यह महीना नकारात्मक कार्यों को प्रोत्साहित करता है। इसीलिए इसे कहीं कहीं “दुष्ट माह” भी कहा जाता है। व्यक्ति के आचरण में उग्रता, क्रूरता, स्थिरता और निकृष्टता के कारण इस महीने के मध्य शादी, विवाह, गृह प्रवेश, ग्रीह निर्माण, मुंडन, नामकरण जैसे सभी प्रकार के मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। इसीलिए शास्त्रों में इस महीने का निषेध किया है।
ज्योतिष शास्त्र के मान्यताओं के अनुसार सूर्य देवता अकेले ही 7 ग्रहों के दुष्प्रभावों को नष्ट करने का सामर्थ रखते हैं। दक्षिणायन होने पर सूर्य के आंतरिक बल में कमी देखने को मिलती है और कई अवांछित कामो का सूत्रपात होता है। लेकिन उत्तरायण होते ही सूर्य नारायण सभी ग्रहों के तमाम दोषों का उन्मूलन कर देते हैं। इसीलिए दैविक, दैहिक और सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति पाने के लिए भगवान सूर्य की उपासना असरदार मानी जाती है। हर रोज़ सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके सूर्य की आराधना करनी चाहिए।
खरमास 2020 तिथि
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 15 दिसंबर साल 2020 मंगलवार कोबार को रात 9:00 बजे कर 21 मिनट पर सूर्य धनु राशि में प्रवेश करेंगे। जब खरमास लग जाएगा जो कि 1 महीने तक रहेगा जिसमें कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किए जा सकते। और साल 2021, 14 जनवरी के दिन सुबह 8:00 बजकर 29 मिनट पर सूर्य धनु राशि से निकल जाएंगे।
खरमास में मृत्यु ज्योतिष शास्त्र के अनुसार खरमास महीने का अलग ही महत्व होता है। कहा जाता है कि खरमास में प्राण त्यागने वाले व्यक्ति को नरक भोगना पड़ता है। माना जाता है कि जब खरमास के अंदर अर्जुन ने भीष्म पितामह को धर्म युद्ध में बानो की सैयां से घायल कर दिया था। सैकड़ों बानो से घायल हो जाने के बाद भी भीष्म पितामह ने अपने प्राण नहीं त्याग किया। उनके प्राण नहीं त्यागने का कारण यही था की अगर वह खरमास में अपने प्राण त्यागते तो उनका अगला जन्म हो जाता इसीलिए उन्होंने अर्जुन से एक ऐसा तीर चलाने को कहा जो विद्य होकर तकिए का काम करें। इस तरह भीष्म पितामह पूरे खरमास महीने के अंदर अर्द्धमृत अवस्था में बाणों की शैया पर लेटे हुए थे और जब माघ महीने की मकर सक्रांति आई उसके बाद शुक्ल पक्ष की एकादशी को सूर्य देवता मकर राशि में प्रवेश करते ही भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्याग दिए थे।