इस दुनिया में जन्म लेने वाले हर इंसान को एक न एक दिन जरूर मरना ही होता है। यह जीवन का वह कड़वा सच है जो हर कोई भली भांति जानता है। यह विधि का विधान ही है की मौत से ना कोई बच पाया है और ना कभी बच सकता है। पहले और बाद में हर किसी को एक न एक दिन मरना ही होता है। कुछ लोग पहले मर जाते हैं, तो कुछ लोग समय पर आकर के मृत्यु को प्राप्त होते हैं। लेकिन मृत्यु प्राप्त तो होती ही है दुनिया में जन्म लेने वाले हर एक प्राणी की मृत्यु निश्चित होती है।
मृत्यु कोई शब्द नहीं है हिंदू धर्म के महाभारत ग्रंथ के अनुसार कहा जाता है कि मृत्यु एक परम पवित्र मंगलकारी देवी है। सरल भाषा में कहा जाए तो किसी भी जीवात्मा यानी कि प्राणी के जीवन के अंत को ही मृत्यु कहा जाता है। सामान्य तौर पर मृत्यु वृद्धावस्था, लालच, मोह, रोग, कुपोषण के परिणाम स्वरूप प्राप्ति होती है। मुख्य रूप से मृत्यु के 101 स्वरूप होते हैं उनमें से 8 को मुख्य प्रकार के बताए गए हैं। जिनमें बुढ़ापा, रोग, दुर्घटना, अकस्मती आघात, चिंता और लालच मृत्यु के मुख रूप होते हैं।
मरने के बाद क्या होता है
कोई व्यक्ति जैसे ही अपना शरीर छोड़ता है तो सबसे पहले उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा जाता है। उस समय उसे कुछ भी अनुभव नहीं होता। मरने वाले व्यक्ति को कुछ समय तक कुछ आवाजें सुनाई देती है कुछ दृश्य दिखाई देते हैं जैसे कि वह कोई सपना देख रहा हो। और फिर धीरे-धीरे वे गहरी शांति में खो जाता है जैसे कोई कोमा में जा रहा हो। इस समय कुछ लोग अनंत काल के लिए खो जाते हैं तो कुछ लोग इस अवस्था में किसी दूसरे से गर्भ में जन्म ले लेते हैं। कहा जाता है कि प्रकृति मरने वाले व्यक्ति के भाव विचार और जागरण की अवस्था अनुसार घर भी उपलब्ध करा देती है। जिसकी जैसी योग्यता होती है वह वैसी ही सुगति या दुर्गति प्राप्त करता है। कहते हैं कि मरने वाले व्यक्ति को उसके मरने की खबर पहले से ही हो जाती है। ऐसा व्यक्ति तब तक जन्म नहीं ले पाता है जब तक उसकी इस जन्म की स्मृतियों का नाश नहीं हो जाता। लेकिन जो व्यक्ति बहुत ज्यादा स्मृतिवान, जागृत या ध्यानी होता है उसके लिए दूसरा जन्म लेने में कठिनाइयां खड़ी हो जाती है। क्योंकि प्राकृतिक अनुसार दूसरे जन्म के लिए बेहोश और स्मृतिहीन रहना जरूरी होता है।

मृत्यु के बाद तीन तरह की गति होती है, सामान्य गति, सद्गति, और दुर्गति तामसिक आचरण व कर्मो से दुर्गति की प्राप्ति होती है। अर्थात इसकी कोई गारंटी नहीं है कि व्यक्ति कब कहां और कैसे योनि में जन्म ले। यह चेतना में डिमोशन जैसा होता है। लेकिन कभी-कभी व्यक्ति की किस्मत भी काम कर जाती है। क्योंकि प्रकृति में किसी प्रकार का नियम काम नहीं करता है। कभी-कभी मृत व्यक्ति की योग्यता भी असफलता के द्वार खोल देती है और अयोग्य व्यक्ति अगर अच्छी चाहत, सकारात्मक विचारों वाला हो तो उसे सद्गति की प्राप्ति होती है। प्रकृति को जागरण समर्पण और संकल्प चाहिए होता है।
शिव पुराण के अनुसार मृत्यु क्या है
शिव पुराण के अनुसार मृत्यु को एक अटल सत्य बताया गया है। जिसके आने पर व्यक्ति को कई प्रकार के संकेत दिए जाते हैं जैसे कि व्यक्ति का शरीर पीला पड़ने लगता है। और आंखों में लाल रंग दिखाई देने लगते हैं तो समझ लेना चाहिए कि अब उस व्यक्ति की मृत्यु होने वाली है। अगर किसी व्यक्ति को अग्नि का प्रकाश अच्छे से दिखाई देना बंद हो जाता है और चारों तरफ काला रंग या अंधेरे दीखने लगता है तो मृत्यु उस व्यक्ति के निकट होती है। शास्त्र के मुताबिक जिस व्यक्ति के सर के ऊपर कौआ या गिद्ध आकर बैठ जाए तो उस व्यक्ति की मृत्यु 2 महीने के अंदर होना निश्चित होता है।
आत्मा कभी भी मरता नहीं है लेकिन जब तक आप आपने आत्मभाव में नहीं आ जाते, आपको मृत्यु का डर बना रहेगा। जब मृत्यु के बारे में सभी तथ्य पता चल जाएंगे तो मृत्यु का डर गायब हो जाएगा। सदियों से दुनिया के अलग अलग संस्कृति और सभ्यता में मृत्यु को लेकर एक डर और रहस्य की स्थिति किसी ना किसी स्तर से बनी रहती है। दूसरी तरफ़, पिछली कुछ सदियों से विज्ञान ने मौत से जुड़े रहस्य से पर्दा उठाने की लगातार कोशिश की है और आधुनिक समय में मौत को लेकर कुछ चौकानेवाले नई बातें भी सामने भी आए हैं। मौत के बारे में जानना, समझना कोई अपशकुन नहीं है बल्कि जीवन को और बेहतर से जानने की एक उपाय है।
क्या मौत के बाद भी चेतना मौजूद रहती है
जैसे ही व्यक्ति की मौत होती है तो चेतना का क्या होता है ? यह सदियों से बना हुआ एक ऐसा सवाल है जिसका कोई जवाब नहीं है। लेकिन आधुनिक समय में विज्ञान ने इसका एक जवाब खोजा लिया है। एनवायु मेडिकल सेंटर के शोध निर्देशक डॉ सैम पार्निया ने शोध में पाया कि मौत के बाद भी चेतना बनी रहती है। बिगथिंक की रिपोर्ट के अनुसार डॉक्टर ने बताया कि मस्तिष्क का विचार करने वाले हिस्से सेरेब्रल कॉर्टेक्स में मस्तिष्कीय तरंगे बनी रहती है और क्लीनिकल डेथ के करीब 20 सेकेंड तक यह चेतना बनी रहती है।
मानव शरीर नश्वर है जिसने जन्म लिया है उसे एक दिन इस दुनिया को छोड़कर जाना ही पड़ता है। भले ही कोई मनुष्य 100 वर्ष या उससे भी अधिक दिनों तक जीवित क्यों ना रह ले एक दिन उसे जाना ही पड़ता है। हम सभी भली-भांति जानते हैं कि मृत्यु के बाद शव को अंतिम विदाई कर दी जाती है। ऐसे में आत्मा का क्या होता है यह कोई नहीं समझ पाया है एक बार अपने शरीर को त्यागने के बाद वापस किसी दूसरे शरीर में प्रवृत होना संभव है। लेकिन मौत के बाद यह दुनिया कैसी हो जाती है यह अभी तक एक रहस्य ही बना हुआ है।

शरीर छोड़ने के बाद आत्मा कहां जाती है
गरुड़ पुराण में आत्मा के मरने के बाद होने वाले व्यवहारों की व्याख्या कीया गया है। गरुड़ पुराण के अनुसार जब आत्मा शरीर छोड़ता है तो उसे दो यमदूत लेने आते हैं। व्यक्ति अपने जीवन में जो कर्म करता है यमदूत उसे उसके कर्म के अनुसार अपने साथ ले जाते हैं। अगर मरने वाला व्यक्ति सज्जन है तो उसके प्राण निकलने में कोई पीड़ा नहीं होती। लेकिन अगर वह दुराचारी पापी है तो उसे पीड़ा सहनी पड़ती है। गरुड़ पुराण में उल्लेख मिलता है कि मृत्यु के बाद आत्मा को यमदूत केवल 24 घंटों के लिए ही ले जाते हैं और इन 24 घंटों के दौरान आत्मा दिखाया जाता है कि उसने कितने पाप और कितने पुण्य किए हैं। ईसके बाद आत्मा को फिर उसी घर में छोड़ दिया जाता है जहां उसने शरीर का त्याग किया था। और फिर 13 दिन के उत्तर कार्य तक आत्मा वही रहता है 13 दिन बाद फिर यमलोक की यात्रा करता है।
क्या मौत दर्दनाक होता है
प्रमुख धर्मों में मौत की वेदना के बारे में काफी जिक्र किए गए हैं। कुछ धर्मों में बताया जाता है कि मौत के समय बहुत दर्द होता है जितना कि जिंदा व्यक्ति के खाल उतारने जैसा होता है। जिसको कम करने के कई उपाय भी सुझाए गए हैं। शायद ऐसा इस उद्देश्य से कहा गया है कि लोग डर के मारे नैतिक काम करने लगे। नेकी करने के फायदे के रूप में भी बताया गया है कि मरने के बाद नेकी करने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है नेक इंसान को ही जन्नत की प्राप्ति होती है। वैसे इंसान के मौत के समय तकलीफ नहीं होती केवल आनंद ही आनंद प्राप्त होता है।
डॉक्टरों का भी कहना है कि मौत के समय दर्द नहीं होता। लेकिन प्राकृतिक मौत के मामले में ऐसा कहा जा सकता है कि मौत के समय दांत दर्द से भी कम दर्द हो सकता है। इसकी वजह बताई जाती है कि जिंदगी के आखिरी लम्हों में सेंट्रल नर्वस सिस्टम पर दर्द महसूस न होने वाले विषैले जमा हो जाते है, दर्द के अभाव में व्यक्ति अच्छा महसूस करने लगता है। मृत्यु के समय कष्ट होता है, यह बात लोग इसीलिए कहते हैं क्योंकि मरने वाले के चेहरे पर मांस पेशियों के तनाव व उनके चेहरे को देखने से यह अनुभव होता है कि उसे तमाम कष्ट भोगने परे हैं। जिन लोगों के मरने के समय लोगों के चेहरों पर मांसपेशियों में बदलाव दिखाई देते हैं वह मनुष्य के द्वारा मृत्यु के समय भोगी गई कष्ट के दर्दनाक स्थिति नहीं दिखाती बल्कि मरने से पहले उनके मन के डर के कारण चेहरे की ऐसी स्थिति वयान करती है।
अब यह सवाल उठता है कि क्या कोई मौत के बाद लौटकर आता है अगर नहीं आता तो धरती पर के जीवित लोग यह कैसे बता सकते हैं कि भला मौत के बाद क्या होता है। क्या मौत दर्दनाक होती है तो फिर मौत की वेदना हमारे मन में कहां से आई ? इसके जवाब में हम कह सकते हैं कि बचपन में ही यह धारणा हमारे मन में भर दी जाती हैं। हमारे माता पिता, अपने परिजन, समाज हमें अच्छा नागरिक बनाने के लिए बचपन में ही शिक्षा के साथ यह भाव भी हमारे मन में भर देते हैं, कि नेक इंसान बनने से ही स्वर्ग मिलता है। ऐसे इरादे से ही इस तरह की कहानियां सुनाई जाती है इस तरह की शिक्षा पीढ़ी दर पीढ़ी से दी जाती है।

इस संसार में हर एक प्राणी को मृत्यु का भय होता है। उनमें से मनुष्य नामक एक प्राणी सबसे ज्यादा मृत्यु से भय अनुभव करता है जाने कब किस रूप में मृत्यु आकर प्राणी को दबोच ले यह कोई नहीं कह सकता। हमारे धर्म ग्रंथों में इसके भयानक वर्णन किए गए हैं जिसे पढ़कर व्यक्ति की रूह भी कांप जाती है। धर्मग्रंथो में मृत्यु के समय शरीर से प्राण निकलने की प्रक्रिया को बहुत ही भयानक बताई गई है। मृत्यु के कुछ समय बाद ही वैतरणी नदी पार करने में होने वाले कठिनाइयों का वर्णन किया गया है। हमारे धर्म पुराणों में बताया गया है कि व्यक्ति के कर्मों के फल के अनुसार स्वर्ग और नर्क भोगनी पड़ती है। स्वर्ग मिले तो ठीक नहीं तो नर्क जाकर कष्ट भोगनइ का वर्णन किया गया हैं। स्वर्ग नर्क भोगने की अवधि पूरी होने के बाद फिर से किसी मां के गर्भ में 9 महीने उल्टे लटक कर कष्ट भोगने की बात और भी बढ़ा चढ़ाकर लिखी गई है। हालांकि आज तक कोई नहीं बता पाया कि मृत्यु के बाद क्या होता है।
हमारे धर्म ग्रंथों में मृत्यु के समय जिस दर्द के होने का उल्लेख किया जाता है वह लोगों के नैतिकता को जगाने के लिए होता है। लोगों को नैतिकता के मार्ग पर चलने के लिए दिखाया जाता है। मृत्यु के समय पूरी तरह काल्पनिक भय होता है लेकिन उसमें सच्चाई नहीं होती। असल में मृत्यु एक दर्द रहित क्रिया है जिस प्रकार किसी ऑपरेशन के पहले हमें बहुत डर लगता है लेकिन उस ऑपरेशन के समय एनेस्थीसिया दिए जाने के कारण दर्द का अनुभव हमें नहीं हो पाता। उसी तरह प्रकृति भी मृत्यु के समय हमें दर्द का एहसास नहीं होने देती जिस कारण शरीर को दर्द नहीं हो पाता है और शरीर को छोड़कर जाने में हमारी आत्मा को कष्ट नहीं होता।
एक व्यक्ति को यह समझना जरूरी है कि मृत्यु एक सहज स्वाभाविक क्रिया है। 84 लाख योनियों में भटकता हुआ प्राणी जन्म मृत्यु की घटना को 84 लाख बार भोगता है। प्रकृति भी इस काम में प्राणी की पूरी सहायता करती है इसीलिए मृत्यु से डरने की आवश्यकता नहीं है।
मृत्यु के बाद पुनर्जन्म कैसे होता है
सभी धर्म दर्शन पुनर्जन्म को मानते हैं। यहां तक की आत्मा के अजर अमर अस्तित्व को लेकर मौन रहने वाले बौद्ध और जैन दर्शन भी पुनर्जन्म को निश्चित मानते हैं। फिर से मृत्यु के पश्चात जन्म लेने के तकनीक पर भले ही मतभेद हैं लेकिन दोबारा जन्म की बात को किसी न किसी रूप में सभी मान लेते हैं। एक आत्मा शरीर का त्याग करके किसी दूसरे शरीर में प्रवेश करके नया जन्म लेती है इसीको पुनर्जन्म कहते हैं।
कहा जाता है कि जो लोग स्मृतिवान होते है वह भूत, प्रेत और पीतर योनि में रहते हैं और जो मृत व्यक्ति जागृत होते हैं वे कुछ काल तक अच्छे गर्भ की तलाश करते हैं। लेकिन जो सिर्फ ध्यानी है वह अपनी इच्छा अनुसार कहीं भी और कभी भी जन्म लेने के लिए स्वतंत्र रहते हैं। यह प्राथमिक तौर पर किए गए तीन तरह के विभाजन हैं। मौत के बाद होने वाले कुछ और भी विभाजन है जिनका उल्लेख वेदों में भी मिलता है।
मौत से जुड़े कुछ तथ्य
यशोदि, ईसाई और इस्लाम पुनर्जन्म को नहीं मानते। लेकिन तीनों धर्म के समांतर हिंदू, बौद्ध और जैन तीर्थ पुनर्जन्म को मानते हैं। हमारे भारतवर्ष में ऐसे कई किस्से हैं जिनमें पता चलता है कि जन्म लेने वाले बच्चे का पुनर्जन्म हुआ है। इस संबंध में विज्ञान भी अभी तक खोज कर रहा है लेकिन अभी किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा है कि ऐसा क्यों होता है। हिंदू धर्म पुनर्जन्म में विश्वास करता है इसका मतलब यह है कि मनुष्य की आत्मा मृत्यु और पुनर्जन्म की प्रक्रिया से गुजरती है। मृत्यु के बाद आत्मा एक शरीर को त्याग कर कोई दूसरा शरीर धारण कर लेती है जन्म और हमारा शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है। जैसे कि आकाश, वायु, जल, अग्नि और धरती जिस कर्म में जो लिखे गए हैं उसी में इसके प्राथमिकता भी है।

एक दिन तो हर व्यक्ति को मरना ही है इसीलिए अच्छे कर्म करके मौत को आसानी से स्वीकार कर लेना ही सरल है। कितने ही बड़े-बड़े विचारक हैं जिन्होंने मौत को अच्छा व सहज बताया है। किसी ने कहा है कि मौत सबसे बड़ा वरदान होता है जिसे अंतिम समय के लिए बचा कर रखा जाता है। इसीलिए कहा जाता है कि जीवन को भरपूर जीना चाहिए। क्योंकि आखिरी में मौत तो आना ही है इसीलिए जीवन का आनंद लीजिए जीवन को एक उत्सव की तरह जिया कीजिए।