Friday, December 8, 2023
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वाराणसी कहे, काशी कहे या बनारस कहे यह एक ऐसी जगह है जहां आने वाले हर पर्यटक यहीं का हो जाता है।

काशी धर्म, कला, सभ्यता, संस्कृति का शहर है। तो वही पंचांग के अनुसार वैशाख पूर्णिमा, बुद्ध पूर्णिमा और चंद्रग्रहण के योग को मिलाकर काशी का नाम वाराणसी किया गया है। साल 1956 में 24 मई के दिन प्रशासनिक तौर पर वाराणसी नाम को स्वीकार किया गया था। काशी के महान विद्वानों का यह कहना है कि वाराणसी नाम बहुत ही पुराना नाम है यह इतना ही पुराना नाम है कि इसका जिक्र मत्स्य पुराण में भी मिलता है।

वाराणसी के कुछ बुनियादी तथ्यों की बात करें तो यह गंगा नदी के तट पर बसने वाला बहुत पुराना शहर है। वाराणसी को बनारस कहां जाता है और बनारस को ही काशी भी कहा जाता है और यह बहुत बड़ा धार्मिक शहर माना जाता है। इस शहर में हिंदू, जैन और बौद्ध तीनों धर्म बहुत ही प्रचलित है। भाषा की बात करें तो वाराणसी की मुख्य भाषा वाराणसी और भोजपुरी है। यही नहीं वाराणसी शहर भारत का एक मुख्य औद्योगिक केंद्र के रूप में भी जाना जाता है। इस लिए भी वाराणसी काफी प्रचलित है कि गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश इसी शहर में दिया था। साथ ही इसीलिए भी प्रचलित है क्योंकि इसी शहर में अकबर ने दो बड़े मंदिर बनाए थे विष्णु और शिवा की याद में और वाराणसी उत्तर भारत का सांस्कृतिक केंद्र भी रहा है।

वाराणसी के ऐतिहासिक तथ्य

ऐतिहासिक तथ्य की बात करें तो इस शहर से काफी ज्यादा ऐतिहासिक तथ्य जुड़े हुए हैं। कहा जाता है कि वाराणसी की स्थापना भगवान शिव ने की की थी तो वही महाभारत के पांडव भी सीता की खोज करते हुए इस शहर में पहुंचे थे। तो वहीं इसी शहर में बौद्ध धर्म की स्थापना भी हुई थी, इसी शहर में गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म की स्थापना की और भक्ति काल में के कई मुख्य लोगों का जन्म वाराणसी में ही हुआ था। महाशिवरात्रि के समय गुरु नानक इस शहर में आकर सिख धर्म फैलाए थे।

वाराणसी का पुराना शहर गंगा तीरे का लगभग चौथाई भाग है। जो भीड़ भाड़ वाली चिकनी गलियों और किनारों से सटी हुई है और छोटी बरी असंख्य दुकानों व हिंदू मंदिर से फरा हुआ है। यह संस्कृति से परिपूर्ण पुराना शहर विदेशी पर्यटकों के लिए वर्षों से लोकप्रिय और आकर्षक बना हुआ है। वाराणसी के मुख्य आवासीय क्षेत्र घाटों से दूर स्थित है। यह विस्तृत खुले हुए और अपेक्षाकृत कम प्रदूषण वाले हैं।

वाराणसी कहे, काशी कहे या बनारस कहे यह एक ऐसी जगह है जहां आने वाले हर पर्यटक यहीं का हो जाता है।

वाराणसी या काशी को हिंदू धर्म में सबसे पवित्रतम नगर माना जाता है। यहां हर साल 10 लाख से भी अधिक तीर्थयात्री अलग-अलग जगहों से यात्रा करके आते हैं। यहां का प्रमुख आकर्षक है काशी विश्वनाथ मंदिर, जिसमें भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से सबसे प्रमुख शिवलिंग मौजूद है। हिंदू मान्यता के अनुसार गंगा नदी सब लोगो के पाप मार्जन करती है। यह भी कहा जाता है की काशी में मृत्यु सौभाग्य से ही मिलती है और यदि मिल जाए तो आत्मा पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्ति करती है। 51 शक्तिपीठों में से एक विशालाक्षी मंदिर यहाी स्थित है, जहां भगवती सती के कान की मणि कर्णिका गिर गयी थी वही स्थान मणिकर्णिका घाट के निकट स्थित है। हिंदू धर्म में शाक्त मत के लोग देवी गंगा को भी शक्ति का ही अवतार मानते हैं। जगदगुरू आदि शंकराचार्य ने हिंदू धर्म पर अपनी टीका यहीं आकर लिखी थी, जिसके परिणाम स्वरूप हिंदू पुनर्जागरण हुआ। काशी में वैष्णव और शैव संप्रदाय के लोग हमेशा ही धार्मिक सौहार्द से रहते आए हैं। 

वाराणसी बौद्ध धर्मों के पवित्रतम स्थलों में से एक है और गौतम बुद्ध से संबंधित 4 तीर्थ स्थलों में से भी एक है। शेष तीन कुशीनगर, बोध गया और लुंबिनी है। वाराणसी के मुख्य शहर से हटकर ही सारनाथ है, जहां भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन दिया था इसमें उन्होंने बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों का वर्णन किया था। अशोक- पुर्व स्तूपों में से कुछ ही शेष हैं जिनमें से एक धामेक स्तूप यही अब भी खड़ा है। हालांकि अब उसके मात्र आधारशिला के अवशेष ही शेष है। इसके अलावा यहां चौखंडी स्तूप भी स्थित है जहां बुद्ध अपने प्रथम शिष्यो से मिले थे, वहां एकअष्टभुजी मीनार बनाई गई थी।

हिंदुओं और बौद्धों के अलावा जैन धर्मावलंबियों के लिए भी वाराणसी एक पवित्र स्थान है। यहां 23 वे तीर्थकर श्री पार्श्वनाथ का जन्म स्थान माना जाता है साथ इस जगह पर इस्लाम संस्कृति ने भी अपना काफ़ी प्रभाव डाला है।

वाराणसी के गंगा घाट

बनारस में 100 से भी अधिक घाट है और कई घाट मराठा साम्राज्य के अधीन काल में भी बताए थे। लेकिन वर्तमान में वाराणसी के संरक्षको में मराठा, सिंधिया, होल्कर, पेशवा और भोंसले परिवार रहे हैं। अधिकतर घाट स्नान व अंत्येष्टि घाट है और कई घाट किसी कथा इत्यादि से जुड़े हुए हैं जैसे मणिकर्णिका घाट, जबकि कुछ घाट निजी स्वामित्व के भी हैं। पूर्व काशी नरेश का शिवाला घाट और कालीघाट निजी संपदा है।

अस्सी घाट, गंगा महल घाट, रीवा घाट, तुलसी घाट, भदैनी घाट, जानकी घाट, माता आनंदमयी घाट, जैन घाट, पंचकोट घाट, प्रभु घाट, चेत सिंह घाट, अखाड़ा घाट, निरंजनी घाट, निर्वाणी घाट, शिवाला घाट, गुलरिया घाट, दण्डी घाट, हनुमान घाट, प्राचीन हनुमान घाट, मैसूर घाट, हरिश्चंद्र घाट, लाली घाट, विजयानरम घाट, केदार घाट, चौकी घाट, क्षेमेश्वर घाट, मानसरोवर घाट, नारद घाट, राजा घाट, गंगा महल घाट, पाण्डेय घाट, दिगपतिया घाट, चौसट्टी घाट, राणा महल घाट, दरभंगा घाट, मुंशी घाट, अहिल्याबाई घाट, प्रयाग घाट, दशाश्वमेघ घाट, राजेंद्र प्रसाद घाट, मानमंदिर घाट, त्रिपुरा भैरवी घाट, मीरघाट घाट, ललिता घाट, मणिकर्णिका घाट, सिंघिया घाट, संकठा घाट, गंगा महल घाट, भोंसले घाट, गणेश घाट, रामघाट घाट, जटार घाट, ग्वालियर घाट, बालाजी घाट, पंचगंगा घाट, दुर्गा घाट, ब्रह्मा घाट, बूंदी परकोटा घाट, शीतला घाट, लाल घाट, गाय घाट, बद्री नारायण घाट,  त्रिलोचन घाट, नंदेश्वर घाट, तेलिया घाट, नया घाट, प्रह्मलाद घाट, रानी घाट, भैंसासुर घाट, राजघाट, आदिकेशव या वरुणा संगम घाट l

वाराणसी की कला और संस्कृति की बात करें तो बनारस कला, संस्कृति और साहित्य की तरफ से भी परिपूर्ण जगह है। इस नगर में ही बड़े बड़े कला प्रेमी, इतिहासकार, महान भारतीय लेखक और विचारक पैदा हुए हैं। कबीर दास, तुलसीदास जैसे बड़े कवि जिन्होंने यहां से ही रामचरितमानस लिखी थी। आधुनिक काल के जयशंकर प्रसाद, मुंशी प्रेमचंद्र, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, जगन्नाथ प्रसाद रत्नाकर, हजारी प्रसाद जैसे कई बड़े-बड़े साहित्य से परिपूर्ण व्यक्तियों वाराणसी से ही अपने कला की शुरुआत किए हैं।

वाराणसी का आर्थिक तथ्य

वाराणसी में पर्यटक वहां का दूसरा पैसा कमाने का जरिया होता है। वाराणसी धार्मिक स्थानों के लिए बहुत ज्यादा प्रसिद्ध होने के कारण यहां पर ज्यादातर लोग धार्मिक स्थलों को देखने के लिए ही आते हैं और उन लोगों में ज्यादातर बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश इत्यादि जगहों से अक्टूबर और मार्च के महीनों में आते हैं।

वाराणसी के प्रसिद्ध स्थल जहां पर लो लोग आना पसंद करते हैं

वाराणसी कहे, काशी कहे या बनारस कहे यह एक ऐसी जगह है जहां आने वाले हर पर्यटक यहीं का हो जाता है।

जनतर-मनतर

इस जगह को 1737 में बनाया गया था, यह जगह वाराणसी के अलावा और भी कई शहरों में है।

रामनगर किला

यह गंगा के पूर्वी तट और तुलसी घाट के सामने बनाया गया है। इसे 18वीं सदी में काशी नरेश राजा बलवंत सिंह द्वारा बनाया गया था और इस किले में कई सारे आँगन भी बना गए हैं।

जैन घाट

कहा जाता है कि वाराणसी भगवान सुपार्श्वनाथ और पार्श्वनाथ का जन्म स्थान है। इस घाट पर तीन जैन मंदिर बनाए गए हैं और जैन महाराजाए इस घाट को अपना बताते थे।

दशाश्वमेध घाट

यह वाराणसी का मुख्य और सबसे पुराना घाट है। कहा जाता है कि ब्रह्मा ने शिवा के लिए इस घाट का निर्माण किया था।

राम लीला का प्रमुख्य त्यौहार 

यह दशहरे का त्यौहार खूब रौनक और तमाशो से भरा होता है। इस अवसर पर रेशमी और ज़री के ब्रोकेड आदि से सुसज्जित भूषा में काशी नरेश की हाथी पर सवारी निकलती है। और पीछे पीछे लंबा जुलूस होता है फिर एक महीना लंबा चलने वाले रामनगर, वाराणसी के रामलीला का उद्घाटन करते हैं। रामलीला में रामचरितमानस के अनुसार भगवान श्री राम के जीवन की लीला का मंचन होता है। यह मंचन काशी नरेश द्वारा प्रायोजित होता है और पुरे 21 दिन तक प्रत्येक शाम को रामनगर में आयोजित होता है। आखिरी दिन इसमें भगवान राम रावण का मर्दन करके युद्ध समाप्त करते हैं और अयोध्या लौटते हैं। फिर महाराजा उदित नारायण सिंह ने रामनगर में इस रामलीला का आरंभ 19वीं शताब्दी के मध्य से किया था।

वाराणसी में घूमने जाने वाले पर्यटको के लिए धार्मिक जगहों में कुछ मंदिर बहुत ही प्रचलित है — काशी विश्वनाथ मंदिर यह शिव जी का मंदिर है। संकट मोचन हनुमान मंदिर यह हनुमान जी का मंदिर है और पार्श्वनाथ जैन मंदिर केवल मंदिर ही नहीं मुस्लिम पर्यटक भी यहां पर मस्जिद में घूमने जाते हैं। वाराणसी में कई प्रसिद्ध मस्जिद भी है — अब्दुल रज़ाक मस्जिद, आलमगिर मस्जिद, बीबी रज़िया मस्जिद, जौखम्बा मस्जिद प्रचलित है।

महाशिवरात्रि के मौके पर धूमधाम से मंदिरों में साज बाज होता है और बहुत धूमधाम से यह त्योहार मनाया जाता है। वहां पर भारी मेले का भी आयोजन होता है जो ध्रुपद मेला के नाम से जाना जाता है यह मेला 5 दिन का होता है जिसमें सैकड़ों लोग दूर-दूर से घूमने आते हैं। वाराणसी में रह रहे लोग 5 दिनों तक गंगा महोत्सव भी मनाते हैं।

वाराणसी इन चीज़ो के लिए प्रचलित है 

वाराणसी चंद्रोदय नाम का अखबार वाराणसी में ही छपता है और वाराणसी चित्रकला के प्रख्यात केंद्र के लिए भी जाना जाता है। वाराणसी में लकड़ी के कई सुंदर-सुंदर खिलौने, कांच की चूड़िया, पीतल की चीज़े मिलती है। इसीलिए इस जगह पर दूर-दूर से पर्यटक घूमने आते हैं और यहां की सुंदर-सुंदर चीजें खरीदते हैं। बनारस की बनारसी साड़ी तो पूरे भारत में बहुत ज्यादा फेमस है बनारस केवल घूमने व सुंदर-सुंदर चीजें देखने का ही जगह नहीं है बल्कि खरीदारी के लिए भी यह एक बहुत अच्छी जगह है।

वाराणसी कहे, काशी कहे या बनारस कहे यह एक ऐसी जगह है जहां आने वाले हर पर्यटक यहीं का हो जाता है।

वाराणसी में शिक्षा प्रणाली 

वाराणसी अपने इतिहास में शिक्षा के लिए भी बहुत प्रसिद्ध रहा है, इस शहर को शिक्षा का केंद्र भी कहा जाता है। और वहां की लोगो की बात करें तो वाराणसी में 80% लोग आपको पढ़े-लिखे ही देखने को मिलेंगे। यहां के बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ बहुत ही फेमस विश्वविद्यालय है। सिर्फ पढ़ाई ही नहीं वाराणसी में खेलकूद भी होते हैं वाराणसी में खेल के डिप्लोमा कोर्सेस भी कराए जाते हैं। वाराणसी में बास्केटबॉल, क्रिकेट और हॉकी खेल बहुत ही प्रसिद्ध है। वहां पर ज्यादातर लोग यह खेल खेलते हैं साथ ही वहां पर जिमनास्टिक बहुत प्रसिद्ध है।

काशी यानी वाराणसी को समग्र भारत के एक प्रसिद्ध शहर के रूप में माना जाता है। कहा जाता है कि यह संसार के समस्त दुखों को समाप्त करने वाली मोक्ष नगरी है जहां पर लोग आते हैं तो मोक्ष प्राप्त करते हैं। कहा जाता है यह जगह इस भूमंडल से बाहर अवस्थित है यानी कि इस पृथ्वी पर नहीं है, पौराणिक कारको से भी वाराणसी एक तीर्थ स्थल के रूप में उल्लेख होता आया है। इसीलिए देश तो देश विदेशों से भी लोग हमारे वाराणसी जैसे तीर्थ स्थान को देखने आते हैं।

वाराणसी में यातायात सेवा 

बनारस में ऑटो, रिक्शा यातायात के प्रचलित साधन है। बाहरी क्षेत्रों में नगर बस सेवा में मिनी बसे चलती है, वहां पर गंगा नदी तो प्रचलित है ही जहां गंगा नदी पार करने हेतु छोटी मोटी नावे हमेशा उपलब्ध होते हैं। हजारों की तादात में रोजाना लोग वहां पर घूमने आते हैं गंगा नदी में दर्शन करके नाव से गंगा नदी पार होते हैं। यानि की हमेशा ही वहां पर पर्यटकों के लिए यातायात सेवा उपलब्ध होती हैं।

काशी विदेशी लोगों को इतना पसंद होता है कि उन्हें यहां की संस्कृति भा जाती है और वह इसी संस्कृति के हो कर रह जाते हैं कुछ विदेशी तो काशी में आकर विवाह करते हैं। ऐसा बहुत बार हुआ है कि विदेशी लोग हमारे काशी में आने के बाद यहीं के होकर रह जाते हैं, तो कच विदेशी बार बार काशी में घूमने आते हैं। बनारसी जैसे सुंदर व धार्मिक जगह में हजारों की तादाद में विदेशी लोग आते हैं और हमेशा के लिए यहां के कला, संस्कृति, धर्म, मान्यता, और लोगो से मोहित हो जाते हैं।

Jhuma Ray
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नमस्कार! मेरा नाम Jhuma Ray है। Writting मेरी Hobby या शौक नही, बल्कि मेरा जुनून है । नए नए विषयों पर Research करना और बेहतर से बेहतर जानकारियां निकालकर, उन्हों शब्दों से सजाना मुझे पसंद है। कृपया, आप लोग मेरे Articles को पढ़े और कोई भी सवाल या सुझाव हो तो निसंकोच मुझसे संपर्क करें। मैं अपने Readers के साथ एक खास रिश्ता बनाना चाहती हूँ। आशा है, आप लोग इसमें मेरा पूरा साथ देंगे।
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