उत्तर प्रदेश में काशी यानी कि वाराणसी को भगवान शिव की नगरी भी कहा जाता है। कहा जाता है कि भगवान शिव के त्रिशूल पर पूरी काशी नगरी विराजमान है भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से काशी के विश्वनाथ मंदिर वाराणसी में गंगा नदी के तट पर विद्यामान है।
कहा जाता है कि भगवान भोलेनाथ के त्रिशूल पर यह पूरी काशी टिकी हुई है, जिसे शिव की नगरी भी कहा जाता है। यह बहुत पुरानी मान्यता है और बहुत पुराना कथन भी हो गया है। लेकिन आज भी यह कहा जाता है कि काशी इस पृथ्वी पर नहीं है बल्कि भगवान शिव के त्रिशूल पर विराजमान है। वे जिस तरह अपनी जटा में माँ गंगा को धारण करते हैं इसी तरह अपने त्रिशूल पर काशी को स्थान देते हैं।
ऐसा इसीलिए कहा जाता है क्योंकी भगवान शिव के त्रिशूल और काशी के बीच बहुत निकट का संबंध है। बताया जाता है कि त्रिशूल से भगवान शिव भक्तों को अभय रहने का वरदान देते हैं और इसी से दुष्टों को दंड भी देते हैं।
सावन का महीना आते ही भगवान शिव के दर्शन के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु लोग यहां पर पहुंचते हैं। इस मंदिर के दर्शन को मोक्ष प्रदान भी माना जाता है इस मंदिर के दर्शन करने वालों में आदि शंकराचार्य, संत एकनाथ, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद, गोस्वारमी तुलसीदास जैसे बड़े-बड़े महापुरुष है।
इस मंदिर की मान्यता क्या है
हिंदू धर्म में काशी विश्वनाथ का अत्याधिक महत्व माना जाता है क्योंकी काशी तीनों लोको में न्याय नगरी है। काशी नगरी को तीनों लोकों में न्याय नगरी कहा जाता है जो भगवान शिव के त्रिशूल पर विराजते हैं। माना जाता है कि जिस जगह ज्योतिर्लिंग स्थापित है वह जगह लोप नहीं होती यानी कि जस के तस बनी रहती है। अभी कहा जाता है कि जो श्रद्धालु इस नगरी में आकर भगवान शिव की पूजा अर्चना करते हैं उनको समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।
इतिहास की बात करें तो इस मंदिर का 3,500 वर्षों का लिखित इतिहास है। इस बात की कोई खास जानकारी तो नहीं है कि इस मंदिर को कब निर्माण किया गया था ? लेकिन इसके इतिहास से पता चलता है कि इस पर कई बार हमले किए गए थे। लेकिन जितने बार हमले हुए उतनी ही बार इस मंदिर को निर्माण भी किया गया। कई बार हमले होने व पुनः निर्मित किए जाने के बाद वर्तमान विद्यामान मंदिर का स्वरूप साल 1780 में इंदौर के महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने कराया था।
पौराणिक कथा
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के संबंध में कई पौराणिक कथा प्रचलित है। एक कथा के अनुसार जब भगवान शंकर माता पार्वती से विवाह करके कैलाश पर्वत पर रहने लगे, तब माता पार्वती इस बात से नाराज रहने लगी। फिर उन्होंने अपने मन की इच्छा भगवान शिव के सम्मुख रखते हुए कहा की उन्हें अपना घर चाहिए जहां वह रह सके उन्हें कैलाश पर्वत पर नहीं रहना। और अपनी प्रिया की यह बात सुनकर भगवान शिव कैलाश पर्वत को छोड़कर माता पार्वती के साथ काशी नगरी में आकर रहने लगे। इस तरह काशी नगरी में आने के बाद भगवान शिव और माता पार्वती यहां ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए। तभी तो काशी नगरी में विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग ही भगवान शिव का निवास स्थल बन गया।
यह भी कहां जाता है कि काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग किसी मनुष्य की पूजा अर्चना या तपस्या से प्रकट नहीं हुआ है। बल्कि यहां निराकार परमेश्वर ही साक्षात शिव बनकर विश्वनाथ के रूप में प्रकट हुए हैं।

काशी विश्वनाथ मंदिर हिंदुओं के प्रमुख मंदिरों में से अत्यंत पौराणिक मंदिर है इस मंदिर को स्वर्ण मंदिर भी कहा जाता है। क्योंकि इस मंदिर के शिखर पर स्वर्ण लेपन किए गए हैं यह स्वर्ण लेपन महाराजा रणजीत सिंह ने अपने शासन काल के दौरान करवाया था। शिव मंदिर के अंदर चिकने काले पत्थर से शिवलिंग बनाया गया है। हर साल इस मंदिर में फाल्गुन शुक्ल एकादशी को श्रृंगार उत्सव का आयोजन किया जाता है। काशी में मौजूद इस मंदिर के ठीक बगल में ही ज्ञानवापी नामक मस्जिद भी है।
काशी विश्वनाथ की भव्य आरती
काशी विश्वनाथ मंदिर में हर दिन भव्य आरती का आयोजन किया जाता है। जो कि पूरे विश्वभर में बहुत प्रसिद्ध आरती है यह मंदिर रोजाना 2.30 बजे खुल जाता है। हर दिन इस मंदिर में 5 बार आरती की जाती है सबसे पहले मंदिर में मंगला आरती आयोजित की जाती है। और उसके बाद से 4 बार आरती होती है भक्तों के लिए मंदिरों को सुबह 4:00 बजे से 11:00 बजे तक के लिए खोला जाता है, और फिर आरती होने के पश्चात फिर दोपहर 12:00 बजे से शाम को 7:00 बजे तक दोबारा भक्तजन मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं। शाम 7:00 बजे सप्त ऋषि आरती का समय होता है और फिर इसके बाद रात 9:00 बजे तक श्रद्धालु मंदिर में आ सकते हैं क्योंकि 9:00 बजे मंदिर में भोग आरती की जाती है। इसके बाद श्रद्धालुओं के लिए मंदिर में प्रवेश वर्जित होता है और रात 10:30 बजे शयन आरती का आयोजन किया जाता है और 10:30 बजे शयन आरती के पश्चात मंदिर को 11:00 बजे बंद कर दिया जाता है।
मुक्ति की नगरी
काशी को मुक्ति की नगरी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि काशी में जो देह त्याग करता है उसके कान में भगवान शिव स्वयं मुक्ति का मंत्र बोलते हैं।
भगवान शिव के त्रिशूल पर काशी को धारण करने का मतलब यह है कि, भगवान शिव स्वयं काशी के प्राचीनता व पवित्रता की रक्षा करते हैं। विभिन्न ग्रंथों में भी कहा गया है कि काशी नगरी में भगवान शिव अखंड वास करते हैं यानी की पूरी काशि संपूर्ण विश्व के नाथ बाबा विश्वनाथ की है।
मनुष्य के जीवन में 3 तरह के कष्ट होते हैं दैविक, दैहिक और भौतिक भगवान काशी के कण-कण में भगवान शिव का वास है। शिव के दर्शन करने से मनुष्य के जीवन के यह तीनों ताप दूर होते हैं तथा मनुष्य के जीवन में शीतलता का आगमन होता है। भगवान शिव के त्रिशूल से इन दिनों कष्टो का नाश होता है। इसीलिए कहा जाता है कि काशी शिव के त्रिशूल पर टिकी हुई है इसीलिए इस नगरी को मुक्ति की नगरी भी कहा जाता है।
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