Tuesday, September 26, 2023
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जानिए छठी मईया के महिमा के बारे में: क्यों मनाया जाता है छठ का पावन महापर्व और कौन हैं छठी मईया।

छठ का पर्व शास्त्रों से अलग जनसामान्य द्वारा अपने रीति-रिवाजों के रंगों से बनाई गई उपासना क्या पद्धति है। जिसके केंद्र में वेद, पुराण जैसे धर्म ग्रंथ ना होकर किसान और ग्रामीण जीवन है। कहा जाता है कि जो कोई भी यह पर्व करना चाहता है तो उसे धन जोड़ने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। क्योंकि इस पर्व की मान्यता यह है कि अगर कोई पर्व करना चाहे तो भगवान सूर्यदेव व छठी मईया व्रत को करने के लिए सारा सामान खुद जू देते हैं।

भारत में छठ सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है पहली बार चैत्र के महीने में और दूसरी बार कार्तिक महीने में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ कहा जाता है व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। पारिवारिक सुख-समृद्धी और मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए स्त्री और पुरुष समान रूप से इस पर्व को करते हैं।   

छठ व्रत के सम्बन्ध में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं

वैसे तो छठ महापर्व से जुड़ी कई कथाए प्रचलित है। छठ पूजा दिवाली से 6 दिन बाद किया जाने पीछे कहा जाता है कि भगवान श्री राम, माता सीता और भाई लक्ष्मण, जब 14 साल के वनवास को पूरा करके घर लौटे थे तब उन्होंने यह व्रत किया था।

पुराणों के अनुसार कहा जाता है कि महाभारत के कर्ण जो कि सूर्य पुत्र थे वे भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वे घंटों पानी में खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य देते थे इसीलिए वे महान योद्धा बने थे जिन्हें कोई हरा नहीं पाता था।

पौराणिक मान्यता के अनुसार राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी संतान प्राप्ति ना होने पर बहुत दुखी थे। तब महा ऋषि कश्यप ने उन्हें एक यज्ञ करने को कहा तब उन्होंने याद किया। तब महर्षि कश्यप ने यज्ञ कराकर उनकी राजा प्रियव्रत पत्नी मालिनी को यज्ञ के लिए बनाई गई खीर खाने को दीए जीसके प्रभाव से उन्हें पुत्र प्राप्त तो हुआ लेकिन दुख की बात यह है कि जन्म लेने वाला पुत्र मृत पैदा हुआ। राजा प्रियव्रत इस बात से इतने दुखी हुए कि वह पुत्र को श्मशान लेकर गए तब खुद के प्राण त्यागने लगे उसी वक्त ब्रह्मा जी की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और बोली की सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजन अगर आप मेरी पूजा करेंगे तो आपकी मनोकामना अवश्य पूरी होगी। राजा ने पूर्ण श्रद्धा से देवी षष्ठी का व्रत किया व्रत के कुछ दिन बाद ही उन्हें एक सुंदर व सुशील पुत्र प्राप्त हुआ इसके बाद से ही छठ पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाई जाती है। राजा ने जब यह छठ का महापर्व किया तब वह शुक्ल षष्ठी का दिन था इसीलिए तब से आज तक शुक्ल षष्ठी के दिन यह पर्व मनाया जाता है।

जानिए छठ मईया के महिमा के बारे में: क्यों मनाया जाता है छठ का पावन महापर्व और कौन हैं छठी मईया।

यह भी कहा जाता है कि पांडवों के स्वास्थ्य, धन संपत्ति और राज्य पुनर्प्राप्ति के लिए माता द्रोपदी ने भी छठ का महापर्व किया था। जब पांडव अपना सारा राजपाट जुवे में हार गए थे तब श्री कृष्ण द्वारा बताये जाने पर द्रौपदी ने छठ का व्रत किया था। जिससे पांडवों की हारी हुई संपत्ति उन्हें वापस मिल गई। माना जाता है की देव माता अदिति ने छठ पूजा किया था। एक पौराणिक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम यानि देवता और असुरो की लड़ाई में असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में छठी मैया की आराधना की थी। तब उनकी अराधना से प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी। कहा जाता है कि उसी समय से षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ पर्व का चलन भी शुरू हो गया।  

क्यों कहा जाता है छठ के व्रत को महापर्व

इस व्रत करने के नियम काफी कठिन होते हैं, इस पर्व को करने के नियम भी काफी कठोर होते हैं। इसीलिए इस पर्व को महापर्व का नाम दिया गया है। मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि छठी मईया और सूर्य देवता का संबंध भाई बहन का है छठी प्रकृति की देवी है छठ पूजा में प्रकृति के गुरु सूर्य देव की उपासना की जाती है। यह पर्व प्रकृति की देवी छठी मईया का है इसीलिए इसमें खासकर प्रकृति की पूजा की जाती है जैसे कि इसमें चढ़ने वाले फल फूल हर सामग्री प्राकृतिक होते हैं इस पूजा का महत्व इतना ज्यादा होता है की इस पूजा में चढ़ने वाले हर सामग्री पूजनीय होते हैं। इस पर्व में वायु, धरती, नदी, जल इत्यादि प्रकृति से जुड़े हर महत्वम् चीजों की पूजा की जाती है।

छठ का पर्व एक कठिन तपस्या की तरह होता है। छठ व्रत अधिकतम महिलाओं के द्वारा ही किया जाता है हालांकि पुरुष भी इस व्रत को करते हैं। इस व्रत में अन्य, जल को त्याग करने के साथ-साथ 4 दिनों तक इस व्रत में व्रतधारी को हर एक सुखद चीज़ का त्याग करना होता है। छठ महापर्व के दौरान एक कमरा खाली किया जाता है जिसमें व्रत की सामग्री रखी जाती है और व्रत को किया जाता है। उसी कमरे में व्रतधारी फर्श पर एक कंबल या चादर ओढ़कर खरना के दिन से रात बिताती है। इस व्रत को महिलाएं साड़ी पहनकर करती है और पुरुष धोती पहनकर करते हैं। सुबह को पर को करने के लिए मैं बिना पहना हुआ नए कपड़ों की जरूरत होती है। घर में अगर किसी की मृत्यु हो जाती है तो 1 साल तक यहां पर्व नहीं मनाया जाता है।

हिंदू धर्म के सारे देवताओं में सूर्य एक ऐसे देवता हैं जिन्हें मूर्त रूप में देखा जा सकता है। छठ महापर्व में सूर्य के अंतिम किरण यानि डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर डूबते रूप में सूर्य को नमन किया जाता हैं। फिर प्रातः काल सुबह सूर्य की पहली किरण यानी कि उगते किरण की पूजा की जाती है।

छठ सूर्योपासना का पर्व

भारत में सूर्योपासना “ऋग्वेद” काल से ही चलता आ रहा हैं। सूर्यदेव की उपासना की चर्चा “विष्णु पुराण, भागवत पुराण, ब्रह्म वैवर्त पुराण” इत्यादि में विस्तार से की गई है। मध्यकाल तक छठ सूर्योपासना के पर्व के रूप में व्यवस्थित हो गया जो अब तक चलता रहा है।

देवता के रूप

सृष्टि और पालन शक्ति के कारण सूर्य की उपासना सभ्यता के विकास के साथ अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग रूप में प्रारंभ हो गई लेकिन पहली बार देवता के रूप में सूर्य की वंदना का उल्लेख “ऋग्वेद” में मिलता है। इसके बाद अन्य सभी वेदों के साथ उपनिषद इत्यादि वैदिक ग्रंथों में इसकी चर्चा प्रमुख है।

उत्तर वैदिक काल के अंतिम कालखंड में सूर्य देव के मानवीय रूप की कल्पना होने लगी। इस कालांतर में सूर्य की मूर्ति पूजा का रूप देखा गया। पौराणिक काल के आते-आते सूर्य पूजा का प्रचलन और अधिक हो गया अनेक जगहों पर सूर्य देव के मंदिर भी बनाए गए।

पौराणिक काल में सूर्य देव आरोग्य देवता के रूप में माने जाने लगे।

पौराणिक काल में सूर्य को आरोग्य देवता भी माना जाने लगा था सूर्य की किरणों में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पाई गई है। ऋषि मुनियों ने अपने अनुसंधान के क्रम से किसी खास दिन इसका प्रभाव विशेष पाया था। और इसी लिए इस दिन छठ पर्व किया गया जिसके बाद से आज तक यह पर्व होता चला आया है। कहा जाता है कि भगवान कृष्ण के पुत्र शाम्ब को कुष्ठ रोग हो गया था इस रोग से मुक्ति पाने के लिए विशेष रूप से सूर्य देव की पूजा व उनकी उपासना की गई थी जिसके लिए शाक्य दीप से ब्राह्मणों को बुलाया गया था।

हमारी तरफ से आप सभी को छठ महापर्व की हार्दिक शुभकामनाए

Jhuma Ray
Jhuma Ray
नमस्कार! मेरा नाम Jhuma Ray है। Writting मेरी Hobby या शौक नही, बल्कि मेरा जुनून है । नए नए विषयों पर Research करना और बेहतर से बेहतर जानकारियां निकालकर, उन्हों शब्दों से सजाना मुझे पसंद है। कृपया, आप लोग मेरे Articles को पढ़े और कोई भी सवाल या सुझाव हो तो निसंकोच मुझसे संपर्क करें। मैं अपने Readers के साथ एक खास रिश्ता बनाना चाहती हूँ। आशा है, आप लोग इसमें मेरा पूरा साथ देंगे।
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