हम दिवाली कहे या दीपावली, इसका मतलब एक ही होता है और इसे दीपोत्सव भी कहा जाता है। दरअसल दीपावली शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के 2 शब्दों के मिलने से हुई है, दीप और अवली। दीप अर्थात दिया और अवली का मतलब होता है लाइन या श्रृंखला। इन दोनों के मिश्रण से दीपावली शब्द की उत्पत्ति हुई है। दीपावली शरद ऋतु में हर वर्ष मनाई जाने वाली एक प्राचीन हिंदू त्योहार है। यह त्यौहार क्रोकरी कैलेंडर(Crockery calendar) के अनुसार October के महीने में या फिर November के महीने में पड़ता है, जो कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। यह भारत का सबसे बड़ा और अत्यधिक महत्वपूर्ण त्योहार होता है जिसका अर्थ अंधकार पर प्रकाश के विजय(Victory) को दर्शाता है।
दीवाली क्यों मनाते हैं: कुछ खास वजह
दीवाली एक ऐसा त्योहार है, जिसका सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण से काफी अधिक महत्व होता है। इस त्यौहार को सिख, बौद्ध और जैन इत्यादि सभी धर्म के लोग मनाते हैं। हालांकि इस त्योहार को मनाने के पीछे अलग-अलग वजहे होती हैं और अलग-अलग वजह से अलग-अलग धर्मों के लोग दीवाली का त्योहार मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रुप में मनाते हैं तो वहीं सिख समुदाय के लोग इसे बंदी छोड़ दिवस के रुप में मनाते हैं और हमारे हिंदू धर्म के अनुसार यह माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा पुरुषोत्तम राम अपने 14 वर्ष का वनवास को खत्म होने के बाद घर लौटे थे। इसी कारण इस दिन पूरे अयोध्या में आनंद की लहरें गूंज उठी थ और प्रभु श्री राम जी के स्वागत में अयोध्या वासियों ने पूरे अयोध्या में घी का दीपक जलाया था। कार्तिक मास की अमावस्या की काली अंधेरी रात में दिए कि रोशनी से पूरा अयोध्या जगमगा उठा और तब से आज तक हर साल हर भारतीय यह त्योहार बड़े ही उल्लास के साथ मनाते आ रहे हैं। यह त्यौहार एक बात हो दर्शाती है कि हमेशा बुराई पर अच्छाई की जीत होती है और हमेशा सत्य ही जीतता है और झूठ का नाश होता है। हम यह भी कह सकते हैं कि दीपावली स्वच्छता और प्रकाश का पर्व होता है

दीपावली का त्यौहार कैसे मानते हैं
जब दीपावली का त्यौहार आने वाला होता है तो लोग अपने घरों और अपने व्यवसाय संस्थानों की सफाई करवा लेते हैं और दीपावली की तैयारियों में जुट जाते हैं। दीपावली से पहले पहले लोग अपने घरों की मरम्मद करवा लेते हैं, हर घर, मोहल्ला, बाजार, दुकान, गली सब साफ सुथरा नजर आने लगता है।
यही नहीं दिवाली का अवसर, नेपाल और भारत में सबसे बड़ा शॉपिंग का सीजन होता है। इस दौरान लोग नई गाड़ी, सोने और चांदी के आभूषण, घर, कपड़े और भी बहुत सी चीजें खरीदते हैं अपने परिवार वालो के लिए उपहार, रसोई में काम आने वाली चीज़े जैसे कि बर्तन, किसी तरह की मशीन इत्यादि खरीदते हैं। लोग अपने परिवार और सदस्यों के साथ खुशी मनाते हुए मिठाई खाते हैं और एक दूसरे को खिलाते हैं। अपने परिजन को उपहार के साथ मिठाइयां देते हैं। दिवाली के अवसर पर घर के फर्श, दरवाजे और आंगन में रंगोली बनाई जाती है जिसमें सुंदर सुंदर छवि होती है और रात को रंगोली में दिए जलाए जाते है। इस दिन रात होते ही चारो ओर पटागो की गूंज सुनाई देने लगती है।
लेकिन सबसे महत्वपूर्ण, दीवाली के अवसर पर धन और समृद्धि की देवी माता लक्ष्मी के साथ अन्य कई देवताओं की पूजा भी की जाती है। दीपावली के दिन रात को आतिशबाजी से पूरा आसमान जगमगा उठता है। घर में दिए जलाकर चारों ओर प्रकाश करने के बाद लोग आसमान में बम-पटाखे छोड़कर आतिशबाजी का आनंद लेते हुए पूरा आसमान को जगमगा देते हैं।
दीपावली का इतिहास
प्राचीन काल से ही भारत में दिवाली का त्योहार, हिंदू कैलेंडर(Calendar) के अनुसार कार्तिक महीने में गर्मी के फसल के बाद के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। पद्मपुराण और स्कंद पुराण में दिवाली का उल्लेख है। स्कन्द पुराण में दीप को सूर्य(Sun) के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाला माना गया है। सूर्य, जो जीवन के लिए प्रकाश और ऊर्जा के स्रोत है और हिंदू कैलेंडर(Hindu Calender)के अनुसार जो कार्तिक महीने में अपनी स्थिति बदलते हैं। तो वहीं कुछ क्षेत्रों में दिवाली के पर्व को यम और नचिकेता के कथा के साथ भी जोड़ा जाता है।
7वी शताब्दी के संस्कृत नाटक में राजा हर्ष ने इसे दीपप्रतिपादुत्सव कहां है। जिसमें दीप जलाए जाते हैं और नव वर-वधू को उपहार दिए जाते हैं। 9वी शताब्दी में राजशेखर ने ‘काव्यमीमांसा’ में इसे दीपमालिका कहा है जिसमें घर की पुताई की जाती है और रात मे दीप जलाकर घर, सड़क व बाजारों को सजाया जाता है। तो वही फारसी यात्री व इतिहासकार अल बेरूनी ने भारत पर अपने 11वी सदी के संस्मरण में दिवाली को कार्तिक महीने में नए चंद्रमा के दिन पर मनाए जाने वाला हिन्दुओं का त्यौहार कहां है।
दीपावली का खास महत्व
दिवाली एक ऐसा त्योहार है, जिसके कई अलग-अलग महत्व हैं। आध्यात्मिक महत्व की ओर से देखे तो दिवाली बुराई पर अच्छाई, अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान, निराशा के ऊपर आशा को दर्शाती है यानी कि दिवाली पूर्ण रूप से बुराई पर अच्छाई के जीत का त्यौहार होता है।
प्राचीन हिंदू ग्रंथ में यह बताया गया है कि जब भगवान राम, उनकी पत्नी सीता और उनके भाई लक्ष्मण पूरे 14 साल का वनवास खत्म होने के बाद अयोध्या पहुंचे तो उस खुशी में चारों ओर दीपावली मनाई गई। वही प्राचीन हिंदू महाकाव्य महाभारत के अनुसार यह बताया गया है कि 12 वर्षों के वनवास और 1 वर्ष के अज्ञातवास के बाद जब पांडवों की वापसी हुई तब दिवाली का त्योहार मनाया गया था। तभी से पांडवो की वापसी के प्रतीक के रूप में हर वर्ष यह त्योहार मनाया जाता है
तो कही कही, हिंदू लोग भगवान विष्णु की पत्नी माता लक्ष्मी जो धन-समृद्धि की देवी है, इनकी पूजा करके दीपावली मनाते हैं। दीपावली का पांच दिवसीय महोत्सव देवताओं और राक्षसों द्वारा किये गए दूध के लौकिक सागर के मंथन से पैदा हुई माता लक्ष्मी के जन्म दिवस से शुरू होता है। कहा जाता है की दीपावली की रात ही माता लक्ष्मी ने अपने पति के रुप में भगवान विष्णु जी को चुना और फिर उनसे शादी की। यह माना जाता है कि इस दिन माता लक्ष्मी प्रसन्न रहती है और जो लोग इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा करते है, वे आने वाले वर्ष से मानसिक, शारीरिक व आर्थिक दुखों से सुखी हो जाते हैं।
वहीं भारत के पूर्वी क्षेत्र पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में लोग माता लक्ष्मी के जगह पर माता काली आराधना करते हैं। यानी कि दिवाली के अवसर अमावस्या के दिन माता काली की भारी पूजा करते हैं। और मथुरा, उत्तर मध्य क्षेत्रो में इसे भगवान कृष्ण से जुड़े त्योहार के रूप में मनाते हैं। कुछ अन्य क्षेत्रों में इस अवसर पर गोवर्धन पूजा के दावत में श्री कृष्ण के लिए 56 या 108 प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है और स्थानीय समुदाय के साथ गोवर्धन भगवान की पूजा की जाती है।
इसके अलावा नेपाली लोगों के लिए दिवाली का यह त्योहार काफी महान होता है। क्योंकि इस दिन से नेपाल संवत में नए वर्ष की शुरुआत होती है।
यानि की दिवाली के अवसर पर दीप जलाने की प्रथा के पीछे अलग-अलग कारण व कहानियां छुपी हुई है। जो लोग राम भक्त हैं वे मानते हैं कि दिवाली वाले दिन अयोध्या के राजा राम लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध करके अयोध्या लौटे थे। तो वहीं कृष्ण भक्ति धारा के लोग यह मानते हैं कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। एक और पौराणिक कथा के अनुसार यह भी कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप धारण करके हिरण्यकश्यप का वध किया था और इसी दिन समुद्र मंथन के पश्चात माता लक्ष्मी और धन्वंतरि प्रकट हुई थी और इसीलिए कहा जाता है कि यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए मनाया जाता है।
जैन धर्मावलंबियों के लोग यह मानते हैं कि दिवाली के दिन उनके 24वे तीर्थंकर महावीर स्वामी को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी और इसी दिन उनके पर प्रथम शिष्य गौतम गणधर को ज्ञान प्राप्त हुआ था। यानी कि जैन समाज में दीपावली महावीर स्वामी के निर्वाण व मोक्ष प्राप्ति दिवस के रूप में मनाया जाता है।

सिखों के लिए भी दीपावली का अलग ही महत्व होता है। सिख धर्मावलंबी के लोग यह मानते हैं कि अमृतसर में 1577 में स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास हुआ था और इसके अलावा सन 1619 में दिवाली के दिन सिखों के छठे गुरु हरगोबिंद सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था। इसी कारण सिख लोग भी अपने खुशी को उत्सव के रूप में मनाने के लिए दिवाली पर घी के दिए जलाते हैं।
दिवाली त्योहार का आर्थिक महत्व भी होता है
पूरे भारत में दीपावली का त्यौहार भले ही अलग-अलग महत्व से अलग-अलग जातियों के बीच मनाया जाता हो लेकिन उसका एक आर्थिक महत्व भी होता है। इस दिन उपभोक्ता खरीद और आर्थिक गतिविधियों के संदर्भ में दिवाली, पश्चिम में मनाने वाले क्रिसमस(Christmas) के बराबर होता है। क्योंकि इस पर्व में नए कपड़े, उपहार, घर के सामान, सोना, चांदी, घर और अन्य कई तरह की खरीदारी की जाती है। इस त्योहार पर खर्च करना और सामान खरीदना शुभ माना जाता है क्योंकि माता लक्ष्मी धन, समृद्धि और निवेश की देवी मानी जाती हैं। दिवाली के समय भारत में हर एक चीज़ की काफी खरीदारी चलती है, साथ ही उपहार, मिठाई, पटाखो व आतिशबाजी से जुड़ी खरीदारी पर भी काफी जोर रहता है।
दिवाली के त्योहार का पर्यावरण पर असर
पर्यावरण की दृष्टि से देखें तो दिवाली के अवसर पर परिवेश में कुछ हद तक बुरा असर पड़ता है यानी कि दिवाली के उत्सव पर कोई भी बिना पटाखे जलाए नहीं रह सकता। हर जगह पटाखों की गूंज सुनाई देती है, हर घर से शोर सुनाई देता है जिस कारण परिवेश में शब्द प्रदूषण होता है। साथ ही पटाखो से होने वाले धुंए से वायु प्रदूषण बढ़ता है और वातावरण में नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है। इसीलिए हमें उत्सव मनाते समय कम से कम पटाखे जलाने चाहिए या हो सके तो हमें पटाखे नहीं जलाने चाहिए। क्योंकि इससे सिर्फ परिवेश ही दूषित नहीं होता बल्कि हम लोगों की मेहनत की कमाई भी पटाखों के साथ जल जाती है।
Eco Friendly दीपावली कैसे मनाए: बिना पर्यावरण को नुकसान पहुचाये।
हम दिवाली मनाते हैं क्योंकि दिवाली खुशियों और उत्सव मनाने का त्योहार है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम बिना पटाखे जलाए खुशियां नहीं मना सकते। लेकिन ज्यादातर लोग दिवाली के पहले दिन और दिवाली जाने के बाद तक पटाखे जलाकर परिवेश को प्रदूषित करने के साथ साथ पैसे भी बर्बाद करते हैं यह जो कि बिल्कुल भी सही नहीं है।
Eco friendly दिवाली मनाने के लिए हमें कुछ संकल्प करने होंगे। हम पटाखों की जगह फुलझड़ी से काम चला सकते हैं। क्योंकि पटाखों की हर साल की आदत है तो एक बार में छूटेगी नहीं इसीलिए सिर्फ फुलझड़ी से थोड़ी संतुष्टि हो सकती है। उसके साथ ही फुलझड़ी से आनंद मनाने से ज्यादा पर्यावरण को नुकसान भी नहीं होगा। हम Eco friendly दीपो का इस्तेमाल कर सकते हैं। ताकि
किसी भी तरह से वायु प्रदूषित ना हो। कुछ जगहों पर गोबर से बने डीप का इस्तेमाल करते हैं। यह भी काफी अच्छे होते हैं। गोबर अगर हमारे पास उपलब्ध हो तो हम घर पर भी दीप बना सकते है। इससे कोई भी प्रदूषण नही होगा और इस्तेमाल होने के बाद हम उस गोबर को फिर से दूसरे काम में इस्तेमाल कर सकते हैं।
दीयों में हम सूती के कपड़े का अगर इस्तेमाल करेंगे तो किसी तरह का गलत वायु प्रवाहित नहीं होगा और अगर हम ऑर्गेनिक मिट्टी से बने दीयों में सूती कपड़ा डालकर घी का दीपक जलाते हैं तो पूरा घर भीनी-भीनी खुशबू से महकता रहेगा और स्वच्छ वातावरण स्थापित होगा। एक और गलती जो अक्सर लोग कहते हैं, दीपावली पर लाइटिंग(Lighting) ज्यादा करते हैं। आजकल तो दीये भी बिजली से ही जलते हैं। तो उस तरह के automatic दीये ना खरीद कर हमें मिट्टी के दीये ही जलाने चाहिए और पटाखों का इस्तेमाल जितना हो सके कम करना चाहिए। पर्यावरण को सुरक्षित रखना हम सबकी जिम्मेदारी है और हमे साथ मिलकर इस जिम्मेदारी को निभाना चाहिए।
भले ही यह त्यौहार कई तरह के महत्व को लेकर मनाया जाता हो लेकिन त्यौहार मनाने के लिए सबसे जरूरी जो चीज होती है, वह है श्रद्धा। इस त्यौहार को लोग श्रद्धा के साथ अलग-अलग जगहो पर अलग अलग महत्व के साथ मनाते हैं और इसी कारण यह त्योहार इतना लोकप्रिय और भारी त्योहार होता है। दीपावली की आप सभी को बहुत बहुत शुभकामनाएं।