Tuesday, September 26, 2023
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जानिए दुनिया के सबसे बड़े चोर के बारे में: जानिए नटवरलाल के बारे में, जिन्होंने लालकिला, संसद भवन और ताजमहल तक को बेच दिया।

आज हम आपको एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बताएंगे जिसे अगर मौका मिलता तो वह इस दुनिया के सात अजूबों को भी बेच देता। उसमें एक ऐसी कला थी जिसे अगर वह सही काम में लगाया होता तो आज दुनिया में उसका एक अलग ही मुकाम होता। आज हम आपको नटवरलाल के बारे में बताएंगे।

नटवरलाल कौन था 

नटवरलाल का जन्म सन 1912 में बिहार के सिवान जिले में जीरादेई गांव में हुआ था। इनका पूरा नाम मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव था। लेकिन उसने नटवरलाल के नाम से बहुत ठगी कामो को अंजाम दिये थे। इसीलिए उनको नटवरलाल के नाम से जाना जाता है और इसीलिए ये नटवरलाल के नाम से ही मशहूर हो गए यह। वह ऐसे ठगी व्यक्ति थे जिस पर मुहावरा बन गया था। अगर कोई ठगी करने की कोशिश करता या मजाक भी करता तो लोग उसकी तुलना नटवरलाल से करने लगते थे। आज हम आपको नटवरलाल ने जो जो किया है, कैसे किया है, उन सब कारनामों के बारे में बताएंगे।

नटवरलाल के कारनामें

एक बार की बात है जब पड़ोस के एक गांव में राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद आए थे। उस समय नटवरलाल को राजेंद्र प्रसाद से मिलने का मौका मिला और तब नटवरलाल ने अपनी कला यानी कि नकली साइन करने की खूबी को उनके सामने भी प्रदर्शन किया। उसने राष्ट्रपति के हूबहू हस्ताक्षर करके सब लोगों को हैरान कर दिया और तब डॉ राजेंद्र प्रसाद नटवरलाल से काफी ज्यादा प्रभावित हुए। नटवरलाल ने उन्हें कहा कि अगर आप एक बार कहे तो मैं विदेशीयो को उनका कर्जा वापस कर उन्हें भारत का कर्जदार बना सकता हूं। तब डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने उसे समझाया और साथ चलने को कहा और उन्होंने नौकरी दिलवाने की भी बात कही। लेकिन नटवरलाल को नौकरी कहां करनी थी वह उसे तो अपनी मनमर्जी करनी थी।

भले ही नटवरलाल मैट्रिक फेल किया था लेकिन फिर भी उसने मेहनत किए और डिग्री हासिल की। नटवरलाल ने वकालत की पढ़ाई की थी लेकिन उसको वकालसी में मन ही नहीं लगा क्योंकि वह कुछ और ही बनना चाहते थे। और फिर उसने चोरी का रास्ता चुना। उसकी सबसे पहली चोरी ₹4000 रूपए की थी जो कि उसने अपने पड़ोसी से किया था। उसने अपने पड़ोसी के नकली साइन लेकर उसके बैंक खाते से यह 4000 रूपए निकलवाया था। और तभी उसे एहसास हुआ कि वह चाहे तो किसी के जाली दस्तखत कर सकता है और इस बात के पता चलते ही उसने इस हुनर का बखूबी इस्तेमाल किया। नटवरलाल को ज्यादा इंग्लिश नहीं आती थी लेकिन फिर भी जितनी आती थी वह उसके काम के लिए काफी थी। शायद उसे ज्यादा अंग्रेजी आती तो उसके कहनिया आज विदेशों में भी फेमस होते। जब पड़ोसी ने जाकर बैंक मैनेजर से खबर की तो जवाब में बैंक मैनेजर ने बताया कि जो लड़का पहले पैसे लेने आया था उसी ने फिर से पैसे निकाले हैं और तभी परोसी समझ गया कि यह मिथिलेश का ही काम है। और इसके बाद नटवरलाल घर से भाग गया। घर से भागकर वह कोलकाता पहुंचा कोलकाता में वह पढ़ाई करता था और एक सेठ के बेटे को ट्यूशन भी देता था। एक बार उसे पैसों की जरूरत पड़ी तो उसने सेठ से कुछ पैसे मांगे तो सेठ ने उसे पैसे देने से इनकार कर दिया। और तब नटवर को सेठ पर बहुत गुस्सा आया। और उसने सोचा कि वह सेठ को सबक सिखाएगा। उसने सेठ को साढे चार लाख का चूना लगाकर कलकत्ता से भी भाग निकला।

नटवरलाल को नौकरी करने का मन बिल्कुल भी नहीं था। क्योंकि उसने एक नई दुनिया देख ली थी। नकली साइन करना तो उसके बाएं हाथ का खेल था और यही उसकी ताकत भी बन गई। नकली साइन करने के अलावा भी उसे फराटे दार अंग्रेजी बोलना और भेश बदलना भी काफी आता था। इन गुनों में से अगर किसी के पास ऐसा एक भी गुण होता है तो वह उसकी ताकत बन जाती है लेकिन नटवरलाल के पास तो यह सारे गुण थे। और साथ ही आत्मविश्वास से अखबारों के माध्यम से दुनियाभर के घटनाओं को पढ़ता और जानता भी रहता था। 

एक समय की बात है जब नारायण दत्त तिवारी केंद्र में वित्त मंत्री थे और प्रधानमंत्री थे राजीव गांधी। उस समय नटवरलाल ने एक घड़ी के दुकानदार को ठगा था वह घड़ी की दुकान जो दिल्ली के दिल में स्थित कनाट प्लेस के सुरेंद्र शर्मा की थी। उसमें नटवरलाल जाता था और खुद को वित्त मंत्री का पीएस यानी की पर्सनल सेक्रेटरी बताता था। वह कहता था कि कल प्रधानमंत्री राजीव गांधी कुछ विदेशी मेहमानों के साथ एक मीटिंग करने वाले हैं और साथ में दावत भी होगी और प्रधानमंत्री चाहते हैं कि वे दावत के बाद सभी मेहमानों को तोहफे में घड़ी देंगे और इसीलिए उन्हें दुकान से 93 घड़ी चाहिए। दुकानदार को तो पहले उस पर विश्वास नहीं था उसे शक हुआ लेकिन जब प्रधानमंत्री का नाम लिया और एक साथ इतने घड़ी बेचने की लालच हुई तो वह खुद को रोक नहीं पाया। फिर उसने भरोसा कर लिया और अगले दिन वह आदमी घड़ी लेने दुकान पर पहुंच गया। उसने दुकानदार को कहा कि वह 93 घड़ी पैक कर दे दुकानदार घड़ी पैक करके एक स्टाफ को उसके साथ भेज दिए। नटवरलाल अपने साथ नॉर्थ ब्लॉक जहां प्रधानमंत्री से लेकर बड़े-बड़े लोगो के ऑफिस होते हैं वहां पर ले गया और वहां उसने स्टाफ को भुगतान के तौर पर 32829 का एक बैंक ड्राफ्ट दे दिया। फिर क्या होना था! दो दिन बाद जब दुकानदार ने ड्राफ्ट जमा किया तो बैंक वालों ने बताया कि वह ड्राफ्ट फर्जी है और तब उस दुकानदार को समझ आया कि वह आदमी कोई और नहीं नटवरलाल था।

नटवरलाल ने ताजमहल, लाल किला, राष्ट्रपति भवन, सांसद भवन तक को बेच दिया 

आप यह सुनकर चौक जाएंगे वह इतना शातिर था कि उसने तीन बार ताजमहल, दो बार लाल किला और एक एक बार राष्ट्रपति भवन, सांसद भवन तक को बेच दिया था। और यह सब उसके फर्जी सिग्नेचर के कारण और उसके शातिर दिमाग के कारण संभव हो पाया था। राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के फर्जी साइन करके नटवरलाल ने संसद को बेच दिया आप लोग विश्वास नहीं करेंगे जिस समय वह संसद को बेचा था उस समय सारे संसद वहीं मौजूद थे। कहा जाता है कि नटवरलाल के करीब 52 नाम थे जिसमें से एक प्रसिद्ध नाम था नटवरलाल था। तो आइए अब यह जानते हैं कि नटवरलाल इन बड़े-बड़े इमारतों को आखिर कैसे बेचते थे और उन इमारतों को खरीदता कौन था।

नटवरलाल इन सभी इमारतों को सरकारी अफसर बनकर बेचता था और खरीदने वाले विदेशी होते थे। नटवरलाल विदेशियों को पकड़ता था उनको इन इमारतों को बेचने का प्रपोजल देता था और इन इमारतों से जुड़ी संबंधित सभी कागजात भी तैयार करके ही रखता था। यही नहीं सभी कागजो पर सरकारी स्टाम्प होते थे जिसमें ओपन स्पेस, बिल्डिंग एरिया, गार्डन, हॉल, बेसमेंट इत्यादि सब कुछ का ब्योरा होता था और उससे संबंधित अधिकारी के हस्ताक्षर भी होते थे। जो की फर्जी होते थे उन फर्जी हस्ताक्षरो को नटवरलाल करता था जिसे विदेशी ना पहचानते हुए उस पर विश्वास कर लेते थे और डील करने को तैयार हो जाते थे।

नटवरलाल ने किस-किस को चूना लगाया

नटवर लाल ने सिर्फ नेताओं को ही नहीं बल्कि देश के बड़े-बड़े उद्योगपतियों को भी चूना लगाया था। वह कभी समाज सेवक बनता था तो कभी किसी एनजीओ के नाम का इस्तेमाल करता था। वह ऐसे ही कई तरह के बहाने बना बनाकर लोगों को ठगता था। उसने धीरूभाई अंबानी, रतन टाटा, बिरला जैसे नाम का इस्तेमाल किया इतने सारे कारनामे करने के बाद नटवरलाल अब हर दिन अखबारों की सुर्खियां बनने लगा था। हैरत है की जब वह अपना नाम अखबार में देखता था तो उसे बहुत गर्व महसूस होता था, वह बहुत खुश होता था। नटवरलाल ने अपने जीवन में 8 राज्यों में अपने काम को अंजाम दिया है जिनमें से बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, दिल्ली, हैदराबाद, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश इत्यादि था। नटवरलाल का नाम इस तरह महान ठगी के नाम से लोगों में प्रसिद्ध हो रहा था की सारे बिजनेसमैन खासतौर से सचेत होने लगे। रोज के आने वाली न्यूज़ पेपर में हमेशा ही नटवरलाल के ठगी के कारनामे छपते रहते थे।

नटवरलाल की गिरफ्तारी

नटवरलाल की गिरफ्तारी कानपुर में हुआ था जब वह एक ज्वेलर्स के दुकान में कुछ खरीदने गया था। जब वह अपना ठगने का तिगरम लगा ही रहा था की उसी समय दुकानदार को शक हो गया वह समझ गया कि यह नटवरलाल ही है। फिर क्या उसने नटवरलाल को बातों में कुछ देर उलझाकर रखा और पुलिस को फोन लगाया। फिर पुलिस आई और नटवरलाल को गिरफ्तार करके ले गई। इस तरह शातिर नटवरलाल की गिरफ़्तारी हुई थी। पूरे देश में नटवरलाल के किए कारनामो के कारन उस पर 150 से भी ज्यादा मुकदमे दर्ज हुए। उनमें से सिर्फ 9 मुकदमे का फैसला आया और अलग-अलग फैसलों को जोड़कर देखा जाए, तो कुल मिलाकर नटवरलाल को 109 साल की सजा हुई और जिस में से उसे सिर्फ एक ही मामले में बेल हो पाई थी और हर बार वह जेल से भाग गया था। नटवरलाल ने अपने सजा के सिर्फ 20 साल ही जेल में गुजारे थे।

जेल में भी नटवरलाल के कारनामों के दाद दिए गए

यही नहीं नटवरलाल के जेल के कई किस्से भी काफी मशहूर है। एक समय की बात है जब नटवरलाल लखनऊ के जेल में था उस दौरान गांव से उसकी पत्नी की चिट्ठी आती थी। कानून के नियमों के अनुसार जेल में आने वाले और जेल से जाने वाली चिट्ठियां सेंसर्ड होती है यानी कि चिट्ठियों को पहले जेल के अधिकारी पढ़ते हैं और फिर उसे अंदर या बाहर ले जाने की अनुमति होती है। लखनऊ जेल में नटवरलाल के नाम से लगभग 7, 8 चिट्ठीया आई थी लेकिन नटवरलाल ने उनमें से एक भी चिठ्ठी के जवाब नहीं दिया था। चिट्ठी में ज्यादातर पैसे की तंगी और खेती बाड़ी की ना होने की बातें ही लिखी थी। फिर उसके बाद अगली चिठ्ठी आने पर जेलर ने नटवरलाल को चिट्ठी देते हुए कहा कि तुम्हारी पत्नी अब तक इतने सारे चिट्ठी लिखी है पर तुम उसका जवाब क्यों नहीं दे रहे हो। इसे सुनकर नटवरलाल ने कहा कि साहब मैं चिठ्ठी का जवाब देना ही नहीं चाहता था लेकिन अब अगर आप कह रहे हैं तो जवाब दे दूंगा। चिठ्ठी का जवाब देते हुए नटवरलाल ने अपनी पत्नी को खत लिखा और जेल के डाक खाने में दाल दिया।

उसके बाद जब अधिकारी ने नटवरलाल के लिखा हुआ उस चिट्ठी को पड़ा तो उसमें लिखा था कि उसने अपने खेत के एक कोने पर कुछ गहने और पैसे गार कर छुपा रखा हैं हो सके तो वह निकाल लेना और उसी से अपना जीवन बसर करना। यह पढ़कर जेल के अधिकारी के कान खड़े हो गए अधिकारी फौरन ही जेल से लोकल पुलिस स्टेशन पर फोन किया और इस मामले की जानकारी दी फिर लोकल पुलिस जल्दी से खेत में पहुंची और खुदाई करना शुरू कर दी। पुलिस वालो ने लगभग पूरा खेत खोद दिया उसके बाद भी पुलिस को कुछ हाथ नहीं लगा और वह वापस आ गए। अधिकारी बहुत परेशान थे की आखिर नटवरलाल ने चोरी का सामान आखिर कहा छुपाया है। तब अगले ही दिन नटवरलाल ने फिर से एक चिट्ठी लिखा जिसे पढ़ कर सब लोग नटवरलाल के दिमाग को मान गए। उस चिठ्ठी में नटवरलाल ने लिखा था कि जेल में रहकर मैं तुम्हारी इतना ही मदद कर सकता हूं। अब शायद खेत फसल बुआई के लिए तैयार हो गया होगा तो तुम फसल की बुआई कर देना। इस चिठ्ठी को पढ़कर सभी अधिकारी दंग रह गए। भले ही आज यह किस्सा पुरे सोशल मीडिया पर काफी पुराना हो चूका है। लेकिन लखनऊ के जेल में यह अभी भी रिकॉर्डडेट है।

नटवरलाल का अजीब जवाब

नटवरलाल ने कोर्ट के जज को भी चकित कर दिया अब तक तो नटवरलाल एक प्रचलित नाम हो चुका था। सब उसके कला के सामने फीके थे। ऐसे ही एक जज के सवाल का जवाब नटवरलाल ने जिस तरह दिया वह भी सुनकर खुद जज भी कुछ बोल नहीं पाए। सुनवाई के बाद जब कोर्ट में जज ने कहा कि तुम यह सब कैसे कर कैसे लेते हो तब नटवरलाल ने जवाब देते हुए कहा कि अगर आप मुझे एक रुपए देंगे तो मैं आपको बताऊंगा। फिर जज ने उसे एक रुपए दिए पैसे लेकर नटवरलाल ने कहा मैं ऐसे ही करता हूं मैं चोरी नहीं करता लोगों से पैसे मांगता हूं और लोग मुझे दे देते हैं। मैंने आज तक किसी को धोखा नहीं दिया है यह सुनकर वहां पर मौजूद लोगो में कोई कुछ नहीं बोल पाया।

अब जानते हैं नटवरलाल से मिस्टर नटवरलाल बनने तक का सफर

एक बार की बात है नटवरलाल अपने सारे कारनामों को अंजाम देने के बाद तीन गाड़ियों के काफिले के साथ अपने गांव आया तो वह पूरे गांव वालों के लिए एक बड़े भोज का आयोजन किया। इस भोज में तरह-तरह के पकवान बने और भोज के उपरांत वह सभी को ₹100 रूपए भी दिए फिर नटवरलाल पुरे गांव वालों का चहेता बन गया। फिर दुनिया उसे भले ही कुछ बोले वह अपने पुरे गांव वालों के लिए मिसाल बन गया जिसके बाद से लोग उसे सम्मान से मिस्टर नटवरलाल के नाम से पुकारने लगे।

नटवरलाल कहा गया ?

नटवरलाल को आखिरी बार साल 1996 में दिल्ली स्टेशन पर देखा गया था। जब वह व्हील चेयर पर पुलिसवालों को चकमा देते हुए भाग गया था और उसके बाद से अब तक नटवरलाल को कोई नहीं देख पाया है।

जब नटवरलाल के कारनामे अपने चरम पर था उस वक्त सन 1979 में लेखक निर्देशक राकेश कुमार ने मिस्टर नटवरलाल के नाम से एक फिल्म बनाई थी जिसमें अमिताभ बच्चन ने रोल प्ले किया था। लेकिन उस फिल्म का नाम सिर्फ नटवरलाल के नाम पर था उसके किसी भी करनामों को फिल्म में टच नहीं किया गया था और साल 2005 में आई फिल्म बंटी और बबली में भी ठग के द्वारा ताजमहल के बेचे जाने के गंभीर प्रसंग है। यह फिल्म भी ठगी पर ही आधारित है। जिसमें अभिषेक बच्चन, रानी मुखर्जी मुख्य किरदार में थे। उसके बाद साल 2014 में इमरान हाशमी की एक फिल्म आई जिसका नाम था राजा नटवरलाल और इस फिल्म में नटवरलाल के कारनामों की एक झलक देखी गई थी।

कभी भी इंसान और वक्त की तुलना एक साथ नहीं करनी चाहिए। नटवरलाल जब उस जमाने में ऐसी बुद्धि रखते थे तो सोचिए अगर वह आज के दौर में होता तो वो टेक्नॉलॉजी के माध्यम से क्या कुछ नहीं कर सकता था। हिंदुस्तान में आज तक नटवरलाल जैसा ठग नहीं देखा गया है और ना ही कभी शायद देखा जाएगा। ठगी की दुनिया में नटवरलाल को एकलौता लेजेंटकहा गया है वह अपने गांव वालों के लिए रॉबिनहुड है। साल 2009 में नटवरलाल के फैमिली मेंबर ने कोर्ट में अर्जी दिया कि अब नटवरलाल जिंदा नहीं है इसीलिए उसके साथ जुड़े सारे केस बाद में बंद करा दिए गए।

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Jhuma Ray
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