हिंदुओं का प्रमुख त्योहारो में से एक है नवरात्रि। नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है नौ राते और इन नौ रातो और नौ दिनों के दौरान माता रानी के नौ रूपों की पूजा की जाती है और दसवां दिन दशहरा होता है। नवरात्रि का त्योहार एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार होता है जिसे पूरे भारतवर्ष में हिंदू लोग बहुत ही उत्साह के साथ मनाते हैं। भले ही अलग-अलग जगहो में अलग-अलग रूप में माता रानी की पूजा होती है।
नवरात्रि त्यौहार को भारत के विभिन्न भागों में अलग-अलग ढंग से अलग-अलग रूप में मनाई जाती है जैसे कि गुजरात में इस त्यौहार को बड़े पैमाने में मनाया जाता है। गुजरात में नवरात्रि के अवसर पर डांडिया और गरबा के रूप में मनाया जाता है जो कि पूरी रात चलता रहता है। यानी की देवी मां के सम्मान में डांडिया समारोह होता है सबसे पहले गरबा आरती की जाती है और उसके बाद दांडिया समारोह होता है।
तो वही नवरात्रि के अवसर पर पश्चिम बंगाल के राज्यों में बंगालियों का मुख्य त्योहार दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। हर जगह बड़े-बड़े पंडाल बनाए जाते हैं जिसमें माता दुर्गा की सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन भारी पूजा होती है और हजारों की तादाद में लोग पंडालों में घूमने जाते हैं जिसकी तैयारी नवरात्रि के पहले दिन से ही लोग शुरू कर देते हैं।
नवरात्रि के अवसर पर देवी के शक्तिपीठ और सिद्ध पीठों पर भारी मेले लगते हैं। इस अवसर पर जगह-जगह से लोग माता के दर्शन करने आते हैं
यह पूजा वैदिक युग से पहले प्रागैतिहासिक काल से ही चला आ रहा है। ऋषि के वैदिक युग के बाद से ही नवरात्रि त्योहार के दौरान की गई भक्ति प्रथाओं में से गायत्री साधना का मुख्य रूप है। माता के नौ रूपों का महत्व जिस तरह अलग-अलग होते हैं उसी तरह देवी के शक्तिपीठों का महत्व भी अलग अलग है। लेकिन माता का स्वरूप एक ही है। कहीं पर जम्मू कटरा के पास वैष्णो देवी बसती हैं, तो कहीं पर माता चामुंडा के रूप में पूजी जाती है। तो वहीं बिलासपुर हिमाचल प्रदेश में नैना देवी के नाम से माता की पूजा की जाती है जिसमें मेले लगते हैं। सहारनपुर में शांकुभरी की पूजा की जाती है वहां भी भारी मेले का आयोजन होता है। और वहीं पश्चिम बंगाल क्षेत्रों में माता की दुर्गा के रूप में पूजा होती है।
नवरात्रि के प्रथम दिन से तृतीय दिन तक की गई पूजा में माता के ऊर्जा और शक्ति की पूजा होती है जब माता हर एक दिन अलग-अलग रूप में विद्यमान रहती है।
नवरात्रि के चौथे दिन छठे दिन लक्ष्मी, समृद्धि और शांति की देवी की पूजा की जाती है। व्यक्ति बुरी प्रवृत्तियों और धन पर विजय प्राप्त कर लेता है और नवरात्रि के पांचवे दिन माता सरस्वती की पूजा होती है।
नवरात्रि के नौवे दिन नवरात्रि का आखिरी दिन होता है यह महानवमी के नाम से प्रसिद्ध है इस दिन कन्या पूजन की जाती है जिसमें 9 कन्याओं की पूजा होती है। जो कन्याएं बाल अवस्था में रहती है यानी कि यौवन के अवस्था तक नहीं पहुंची है उन कन्याओं को दुर्गा का रूप मानकर नव दुर्गा की पूजा की जाती है।
पहले दिन
नवरात्रि के पहले दिन जिस दिन कलश स्थापना की जाती है उस दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है। शैलपुत्री का अर्थ होता है पहाड़ों की पुत्री, शैल का अर्थ होता है हिमालय और पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने वाली। इसी कारन माता शैलपुत्री के रूप में पूजी जाती है और पार्वती के रूप में भगवान शंकर की पत्नी के रूप में भी जानी जाता है इनका वाहन है वृषभ यानी की बेल। इसी कारण इन्हें वृषभारुढा के नाम से भी जाना जाता है। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल होता है और बाएं हाथ में कमल धारण किए हुए रहती है।
दूसरे दिन
दूसरे दिन द्वितीया को ब्रह्मचारिणी माता की पूजा की जाती है इसका अर्थ होता है ब्रह्मचारी। ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में माला और बाएं हाथ में कमंडल होता है। यह बताया जाता है कि मां दुर्गा ने पार्वती के रूप में पर्वतराज के घर पुत्री बनकर जन्म लिया और महर्षि नारद के कहने पर अपने जीवन में महादेव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किए और हजारों वर्ष का कठिन तपस्या के कारण इनका नाम तपस्विनी और ब्रह्मचारिणी परा, इस सब के दौरान इन्होंने कई वर्षों तक निराहार और अत्यंत कठिन तप करके महादेव को प्रसन्न किया। देवी के इसी रूप की पूजा नवरात्र के दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी के रूप में की जाती है।
तीसरे दिन
नवरात्रि के तीसरे दिन तृतीया को माता चंद्रघंटा की पूजा की जाती है जिसका अर्थ होता है चांद की तरह चमकने वाली देवी। चंद्रघंटा माता के मस्तक पर घंटे की आकार का अर्थ है कि जिनके मस्तक पर चंद्रमा विराजमान है और इसी कारण इनका नाम चंद्रघंटा है। चंद्रघंटा माता के 10 हाथ माने गए हैं जो विभिन्न अस्त्र-शस्त्र से भरे हैं। चंद्रघंटा माता की पूजा करने से मन को अलौकिक शांति प्राप्त होती है और और सिर्फ लोक में ही नहीं बल्कि परलोक में भी कल्याण की प्राप्ति होती है।
चौथे दिन
नवरात्रि के चौथे दिन माता कुष्मांडा की पूजा होती है जिसका अर्थ होता है पूरा जगत उनके पैरों में है। यह कहा जाता है कि सृष्टि की उत्पत्ति होने से पहले जब चारों ओर अंधकार था तब मां दुर्गा ने इस इस ब्रह्मांड की रचना की थी और इसी कारण इन्हें कूष्मांडा भी कहा जाता है। कुष्मांडा माता की आठ भुजाएं हैं और यह सिंह पर विराजमान रहती है इनके हाथों में चक्र, गदा, धनुष, कमंडल, कलश, बाण और कमल का फूल विराजमान होते हैं।
पांचवे दिन
पांचवे दिन पंचमी को माता स्कंदमाता की पूजा की जाती है जिसका अर्थ होता है कार्तिक स्वामी की माता। मां के इस रूप के चार भुजाएं हैं इनका वाहन सिंह हैं। क्योंकि यह सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी है और इसीलिए इन के चारों और सूर्य का एक सदृश अलौकिक तेज मंडल दिखाई देता है।
छठे दिन
छठा दिन यानि षष्ठी को कात्यायनी माता की पूजा की जाती है इसका अर्थ होता है कात्यायन आश्रम में जन्म हुई देवी। नवरात्रि के छठे दिन माता कात्यायनी की पूजा का यह महत्व माना जाता है कि इनके उपासना करने से लोगो को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थ की प्राप्ति होती है। क्योंकि इन्होंने कात्या गोत्र के महर्षि कात्यायन के यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया इसीलिए इनका नाम कात्यायनी पड़ा है। इनका रंग स्वर्ण की भांति अत्यंत चमकीला है इनकी चार भुजाएं होती है कात्यायनी देवी का वाहन भी सिंह होते है।
सातवे दिन
सातवें दिन यानि सप्तमी को माता के कालरात्रि रूप की पूजा की जाती है इसका अर्थ होता है काल को नाश करने वाली जो दुर्गा का सातवां स्वरूप है। इनका वर्ण अंधकार की भांति एकदम काला है। इनके बाल भी बिखरे हुए रहते हैं और इनके गले में दिखाई देने वाली माला बिजली की भांति दीप्तमान होती है। कालरात्रि माता असुरिक शक्तियों का विनाश करने वाली मानी जाती है, इनके तीन नेत्र होते हैं और 4 हाथ होते हैं।
आठवे दिन
आठवें दिन यानि अस्टमी को महागौरी की पूजा होती है इसका अर्थ होता है सफेद रंग वाली मां। आठवें दिन माता महागौरी की पूजा अर्चना होती है इनका वर्ण पूरा सफेद होता है। इनके वस्त्र भी सफेद रंग के होते हैं और आभूषण भी यह सफेद रंग के ही धारण करती है। महागौरी माता का वाहन बैल होता है और इनके चार हाथ होते हैं यह माना जाता है कि माता महागौरी ने हजारों सालों तक कठिन तपस्या की थी जिस कारण इनका रंग काला पड़ गया। लेकिन भगवान महादेव ने गंगा के जल से इनका वर्ण फिर से साफ कर दिया।
नौंवे दिन
आखिरी में नौवे दिन नवमी को सिद्धिदात्री माता की पूजा की जाती है जिसका अर्थ होता है सर्व सिद्धि देने वाली इसी तरह माता के नौ रूपों की पूजा अर्चना नवरात्रि के इन 9 दिनों में की जाती है। नवरात्र के नौवें दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना करने से सिद्धि की प्राप्ति होती है। प्राचीन शास्त्रों में अणिमा, महिमा गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्रकाम्या, ईशित्व और वशित्व नामक आठ सिद्धियां बताई गई है और इन आठ सिद्धियों को माता सिद्धिदात्री की पूजा और कृपा से प्राप्त कीया जा सकता है।
नवरात्रि के अवसर पर देवी मां दुर्गा पृथ्वी पर आती है लोग उनकी पूजा उपासना करते हैं और माता भक्तों की साधना भक्ति से प्रसन्न होकर उनको आशीर्वाद देती है। कहा जाता है कि नवरात्रि के अवसर पर माता दुर्गा की साधना भक्ति, पूजा पाठ करने से आम दिनों के मुकाबले पूजा का कई गुना ज्यादा फल मिलता है। नवरात्रि के अवसर पर विवाह जैसे कार्य को छोड़कर सभी तरह के शुभ कार्यों की शुरुआत करना और खरीदारी करना बेहद शुभ माना जाता है यह माना जाता है कि भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले रावण के साथ युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए देवी की साधना दी थी।

नवरात्रि में कलश स्थापना विधि
नवरात्रि पर कलश स्थापना करने के लिए प्रतिमा के सामने थाली में साफ मिट्टी भरकर रखें और उसमें जौ मिला दें और उसी थाली के ऊपर कलश में जल भरकर रख दें। कलश के ऊपर पांच पत्ते वाला आम का पल्लो रखें और फिर ऊपर से ढक्कन में चावल या जौ रखकर कलश को ढक दें और फिर उस चावल के ऊपर पान सुपारी रखे। फिर एक नारियल में एक लाल कपड़ा लपेटकर के कलश पर रखे ढक्कन के ऊपर रख दें। कलश और नारियल में मोली जरूर लपेटे इसके बाद माता की प्रतिमा पर सिंदूर लगाए फिर कलश और आम के पत्तों पर भी सिंदूर का टिका लगाएं इसके बाद माता के सामने अखंड दीप जलाए जो आपको 9 दिनों तक जलाकर ही रखना है। और हर दिन कलश स्थापना किए हुए जौ वाले मिट्टी पर जल का छिड़काव करें और फिर धूप, दीप जलाकर माता के चालीसा का पाठ करके उनकी आरती जरूर करें। इस प्रकार आप आठ दिनो तक माता की पूजा करें। फिर नौवे दिन माता को तरह तरह के पकवान बना कर भोग लगाके पूजा करें और नौ कुँवारी कन्यायों के खुद से पैर धोकर उनको भोजन कराए फिर दक्षिणा देकर उनसे आशीर्वाद लेके उनको अच्छे से विदा करें।
कलश स्थापना करने पर कुछ बातों पर जरूर ध्यान दें जैसे कि
- आपको कोशिश करना है कि आपने जो मिट्टी में जौ डाला है वह ऊपज जाए। वह माता का आशीर्वाद होता है कि आपका व्रत सफल हुआ।
- स्टील के कलश का इस्तेमाल ना करे। पित्तल / कासा या मिट्टी के कलश की स्थापना करें।
- आपको माता के सामने जलाए हुए अखंड दीप को नहीं बुझने देना है।
- कलश स्थापना करते समय ध्यान रखें कि कलश का झुकाव माता की प्रतिमा के दाएं तरफ हो।
- प्रथम दिन कलश स्थापना करने के बाद के दिन से कलश को हिलाना नहीं चाहिए।
- पूजा में आपको लाल चुनरी और लाल कपड़ा का ही इस्तेमाल करना चाहिए।
- अगर आप घर में माता का कलश स्थापना करते हैं तो आपको घर में माता को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए।
नवरात्रि के व्रत करने के दौरान आपको कुछ बातों का ख्याल रखना चाहिए जैसे
- आप अगर नवरात्रि का व्रत कर रहे हैं तो व्रत के दौरान आपको किसी के बारे में बुरा भला नहीं बोलना चाहिए, और ना ही बुरा भला सोचना चाहिए आपको शांत रहकर व्रत का पालन करना चाहिए।
- जीव निर्जीव किसी वस्तु का उपहास नहीं करना चाहिए।
- इन नौ दिनों में आपको किसी तरह का श्रृंगार नहीं करने चाहिए, व्रत के दौरान नाख़ून नहीं काटने चाहिए और पुरुषो को दाढ़ी मुछ नहीं काटने चाहिए।
- आपको दिन के वक्त नहीं सोना चाहिए।
- आप को चमड़े के चप्पल नहीं पहनना चाहिए और घर में भी चमड़े की चप्पल नहीं रखनी चाहिए।
- नवरात्रि के दौरान आपको निम्बू नहीं काटना चाहिए यह बहुत अपशकुन माना जाता है।
- नवरात्रि के दौरान शारीरिक सम्वंध नहीं बनाने चाहिए।
- घर पर आई किसी कन्या को खाली हाथ नहीं जाने देना चाहिए।
- अगर आप नवरात्रि व्रत कर रहे हैं तो इस दौरान आपको कभी भी झूठ नहीं बोलना चाहीए और ना ही किसी के बारे में हिंसा या कपट भाव रखना चाहिए। अगर आप ऐसा करते हैं तो यह बहुत बड़ा पाप माना जाता है।
- आपको किसी को भी पीटना या मारना नहीं चाहिए चाहे वह आपके बच्चे ही क्यों ना हो।
ओम ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च: गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु स्वाहा
ओम गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवा महेश्वर: गुरु साक्षात् परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम: स्वाहा।
ओम शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे, सर्व स्थार्ति हरे देवि नारायणी नमस्तुते।
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