Tuesday, June 6, 2023
Homeहिन्दीजानकारीक्या आप लोग जानते हैं कि एक पिता का गोत्र पुत्री को...

क्या आप लोग जानते हैं कि एक पिता का गोत्र पुत्री को प्राप्त नहीं होता है: ऐसा क्यों? आइए जानते हैं। Chromosome and the Vedic Gotra System: Why only Son Carries the Name of Gotra

एक पिता का गोत्र पुत्री को प्राप्त नहीं होता है। इसे जानने से पहले यह जान लेना आवश्यक है कि एक स्त्री में गुणसूत्र xx पाए जाते हैं और पुरुष में xy गुणसूत्र होते हैं। और इन दोनों स्त्री व पुरुष की संतति में हमने माना कि अगर पुत्र उत्पन्न हुआ जिसमे xy गुणसूत्र है, तो उस पुत्र में y गुणसूत्र पिता से ही आया। यह तो निश्चित है क्योंकि माता में y गुणसूत्र होते ही नहीं है। इसीलिए यह साबित है कि y गुणसूत्र पिता से ही आया है और अगर लड़की हुई तो xx गुणसूत्र की होगी यह गुणसूत्र पुत्री में माता व पिता दोनों से आते हैं।

तो चलिए जानते हैं गुणसूत्रो का गोत्र से संपर्क

 xx  गुणसूत्र मतलब पुत्री के xx गुणसूत्र के जोड़े में एक x गुणसूत्र पिता से आता है और दूसरा x गुणसूत्र पुत्री को माता से प्राप्त हुआ है और इन दोनों गुणसूत्रों के मिलने से एक गांठ की रचना होती हैं, जिसे कहा जाता है Crossover

xy गुणसूत्र यानि की पुत्र, पुत्र में होने वाला y गुणसूत्र सिर्फ पिता से ही आना संभव है। क्योंकि माता में y गुणसूत्र नहीं होता है और दोनों गुणसूत्र समान ना होने के कारण ही पूर्ण Crossover नहीं हो पाता। सिर्फ 5% तक ही होता है और 95% y गुणसूत्र वैसे ही रहता है। तो y गुणसूत्र ही महत्वपूर्ण हुआ। क्योंकि y गुणसूत्र के विषय में हम निश्चित है, कि यह केवल पिता से ही पुत्र में आया है। और गौत्र प्रणाली का एकमात्र उद्देश्य इसी y गुणसूत्र का पता लगाना होता है। जो हजारों लाखों वर्षों पूर्व ही हमारे ऋषि ज्ञानीयों ने जान लिया था।

वैदिक गोत्र प्रणाली और y गुणसूत्र – y Chromosome and the vedic Gotra System

अब तक तो आप यह समझ चुके होंगे कि वैदिक गोत्र प्रणाली गुणसूत्र पर आधारित होती है। यानी कि यह सारी परंपरा y गुणसूत्र को ट्रेस करने का एक माध्यम है। उदाहरण के तौर पर अगर किसी व्यक्ति का गोत्र कश्यप है तो उस व्यक्ति में विद्यमान y गुणसूत्र कश्यप ऋषि से आया है। या उस गुणसूत्र के मूल कश्यप ऋषि है। क्योंकि y गुणसूत्र स्त्री में नहीं होता। इसी कारण विवाह के बाद स्त्रियों को उसके पति के गोत्र से जोड़ा जाता है।

हिंदू संस्कृति में एक ही गोत्र में विवाह वर्जित होने का मुख्य कारण भी यही है कि एक ही गोत्र से होने के कारण उनके पूर्वज एक है। और पुरूष व स्त्री दोनों भाई-बहन हैं।

लेकिन यह ज़रूर थोड़ी अजीब बात है। क्योंकि जिन स्त्री व पुरुष ने एक दूसरे को कभी देखा तक नहीं और दोनों अलग-अलग देशों में जन्म लिए लेकिन सिर्फ एक ही गोत्र में जन्म लेने के कारण वे भाई बहन कैसे हो सकते हैं।

इसका मुख्य कारण यही है कि एक ही गोत्र में होने के वजह से उनके गुणसूत्र में समानता। आज के आनुवंशिक विज्ञान के अनुसार यदि समान गुणसूत्र वाले दो व्यक्तियों में विवाह हो तो उनकी संतति आनुवंशिक विकारों के साथ उत्पन्न होगी।

ऐसे दंपतियों के संतान के विचारधारा, व्यवहार, पसंद इत्यादि में कोई नयापन नहीं देखा जाता है। ऐसे जन्म लिए बच्चों में रचनात्मकता के भाव का अभाव होता है। विज्ञान भी यह बात मानती है कि सगोत्र यानि समान गोत्र में शादी करने पर ज्यादातर दंपत्ति के संतानों में अनुवांशिक विकार यानी कि मानसिक विकलांगता, कोई गंभीर रोग जैसे अपंगता इत्यादि जन्मजात से ही पाए जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार इन कारणों से समान गोत्र विवाह पर रोक लगाया गया था।

गोत्र संवहन क्या है

गोत्र का संवहन! मतलब उत्तराधिकार पुत्री को एक पिता प्रेषित ना कर सके, इसीलिए विवाह से पूर्व ही कन्यादान कराया जाता है और गोत्र मुक्त कन्या का परिग्रहन कर भावी वर अपने कुल गोत्र में उस कन्या को स्थान देता है। यही कारण है कि पहले विधवा विवाह स्वीकार्य नहीं किया जाता था। क्योंकि कुल गोत्र प्रदान करने वाला पति का तो मृत्यु हो चुका होता है।

इसीलिए कुंडली मिलान के वक्त वैधव्य पर खास ध्यान दिया जाता है और मांगलिक कन्या होने से ज्यादा सावधानी बरती जाती है।

अगर पुत्र होता है तो 95% पिता और 5% माता का सम्मिलन होता है। और अगर पुत्री होती है, तो 50% पिता और 50% माता का सम्मिलन होता है। अगर फिर पुत्री की पुत्री हुई, तो वह डीएनए 50% का 50% ही रह जाएगा। उसके बाद यदि उसकी भी पुत्री हुई तो उस 25% का भी 50% डीएनए रह जाएगा। इस तरह से सातवीं पीढ़ी में भी पुत्री के जन्म में परसेंटेज घटकर 1% से भी कम लगभग 0.75% रह जाएगा।

यानी कि एक पति-पत्नी का ही डीएनए सातवीं पीढ़ी तक बार बार जन्म लेता रहेगा और यही है सात जन्मों का साथ।

लेकिन जब पुत्र होता है तो आनुवंशिकी में पुत्र का गुणसूत्र पिता के गुणसूत्रों का 95% गुणों को ग्रहण करता है और माता की 5% डीएनए ग्रहण करता है। यह क्रम अनवरत चलता रहता है जिस कारण पति और पत्नी के गुणों युक्त डीएनए बार बार जन्म लेते रहते हैं। यानि की यह जन्म जन्मांतर का साथ हो जाता है।

और इसीलिए पित्तर जन्म जन्म तक अपने अंश को आशीर्वाद देते रहते हैं। और हम भी अमूर्त रूप से उनके प्रति श्रद्धा भाव रखकर आशीर्वाद लेते रहते हैं। यही सोच हमें जन्मो तक स्वार्थी होने से बचाती है और संतानों की उन्नति के लिए समर्पित होने को प्रेरित करती हैं।
कन्यादान का अर्थ

अगर माता पिता कन्यादान करते हैं तो इसका यह अर्थ बिल्कुल भी नहीं होता है कि वे कन्या को कोई वस्तु समझते हैं। बल्कि इस दान का विधान निमित्त किया गया है कि दूसरे कुल की कुलवधू बनने के लिए और कुल की कुलधात्री बनने के लिए उसे गोत्र मुक्त होना चाहिए। लेकिन वह डीएनए मुक्त नहीं हो सकती क्योंकि डीएनए भौतिक शरीर में बने रहेंगे। इसीलिए माता का रिश्ता बना रहता है।

यानी की जब एक लड़की द्वारा पिता का गोत्र का त्याग किया जाता है तभी वह भावी वर को वचन देती है कि उसके कुल की मर्यादा का हमेशा पालन करेगी। एक कन्या विवाह के बाद कुल वंश के लिए रजदान करती है और मातृत्व को प्राप्त करती है। यही वजह है कि विवाहित हर स्त्री माता समान पूजनीय होती है। और यह रजदान भी कन्यादान के तरह ही उत्तम दान होता है जो पति को किया जाता है। कहना गलत नहीं होगा, यह सूचिता अन्य किसी सभ्यता में दृश्य ही नहीं है।

जानिये नरेंद्र मोदी के 20 साल के सफर के बारे मे

Jhuma Ray
Jhuma Ray
नमस्कार! मेरा नाम Jhuma Ray है। Writting मेरी Hobby या शौक नही, बल्कि मेरा जुनून है । नए नए विषयों पर Research करना और बेहतर से बेहतर जानकारियां निकालकर, उन्हों शब्दों से सजाना मुझे पसंद है। कृपया, आप लोग मेरे Articles को पढ़े और कोई भी सवाल या सुझाव हो तो निसंकोच मुझसे संपर्क करें। मैं अपने Readers के साथ एक खास रिश्ता बनाना चाहती हूँ। आशा है, आप लोग इसमें मेरा पूरा साथ देंगे।
RELATED ARTICLES

Leave a Reply

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments

error: Content is protected !!
%d bloggers like this: