लाल बहादुर शास्त्री का जन्म उत्तर प्रदेश के मुगलसराय शारदा प्रसाद और राम देवी के घर 2 अक्टूबर 1960 को हुआ था। इनके जन्म के 1 साल भी नहीं हुए तब इनके पिता गुजर गए, यह एक संयोग है कि महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री का जन्म एक ही तारीख को हुआ था और दोनों ने ही इस देश के लिए जो किया वह इस देश वालों के लिए इतिहास बन गया। महात्मा गांधी के आदर्शो ने एक साधारण से बच्चे को संघर्ष की राह पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा दे दिया। आज हम आपको लाल बहादुर शास्त्री की जयंती के अवसर पर उनके बारे में कुछ रोचक बातें बताएंगें।
लाल बहादुर शास्त्री एक बहुत ही गरीब घर से थे। इनके जन्म के बाद इनके पिता की भी मृत्यु हो गई जिसके बाद बचपन में भी अक्सर कई मील दूर नंगे पाव चलकर स्कूल जाते थे। भीषण गर्मी में भी जब सड़क तप जाती थी तब भी वह नंगे पाव चलके कड़क धुप में विद्यालय जाते थे। जब महात्मा गांधी ने भारत में रहने वाली उन राजाओं की निंदा की जो भारत में ब्रिटानी हुकूमत का समर्थन कर रहे थे। तो लाल बहादुर शास्त्री उनसे बहुत प्रभावित हुए और महात्मा गांधी के नक्शे कदम पर चलते हुए उन्होंने केवल 11 साल की उम्र में ही राष्ट्रीय स्तर पर कुछ करने का मन बनाया। केवल 16 वर्ष की आयु में ही उन्होंने असहयोग आंदोलन में भाग लिया। महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण व कुल 7 वर्षों तक ब्रिटिश जेलों में रहे। आजादी के बाद में वे केंद्रीय मंत्री के कई विभागों के मंत्री रहे वह रेल मंत्री, परिवहन और संचार मंत्री, वाणिज्य और उद्योग मंत्री, गृह मंत्री के साथ नेहरू जी के बीमारी के दौरान बिना विभाग के मंत्री बने थे। आज के पोस्ट में हम लाल बहादुरी के साथ हुई कुछ घटनाओं के बारे में बात करेंगे।
मंत्री पद से इस्तीफा
एक समय लाल बहादुर शास्त्री रेल मंत्री थे तब एक दिन दुर्घटना हुई उस घटना से लाल बहादुर शास्त्री को इतना आघात पहुंचा कि उन्होंने अपने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने कहा कि मेरे रेल मंत्री रहते हुए रेल से संबंधित होने वाले किसी भी घटना के लिए मैं जिम्मेदार हूं उस समय देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस घटना पर लाल बहादुर शास्त्री के ईमानदारी और उच्च आदर्शों की काफी तारीफ की। जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि लाल बहादुर शास्त्री का इस्तीफा उन्होंने इसीलिए स्वीकार किया कि इससे संवैधानिक मर्यादा में एक मिसाल कायम होगी ना कि इसलिए क्योंकि जो कुछ भी हुआ है उसके लिए लाल बहादुर शास्त्री जिम्मेदार है। इस दुर्घटना पर लंबे समय तक संसद में भी लंबी बहस चली जिसका जवाब देते हुए शास्त्री ने कहा कि शायद मेरे लंबाई में छोटे होने के कारण लोगों को यह लगता है कि मैं बहुत गंभीर नहीं हो पा रहा हूं। मै शारीरिक रूप से मजबूत नहीं हूं इसका मतलब यह नहीं कि मैं आंतरिक रुप से कमजोर हूं मुझे लगता है कि मैं आंतरिक रूप से इतना कमजोर भी नहीं हूँ।

कर्ज लेकर खरीदी कार
शास्त्री एक बहुत ही गरीब परिवार से थे जिस कारण उनका जीवन संघर्ष से भरा रहा। प्रधानमंत्री बनने तक उनके पास ना ही घर था और ना ही एक गाड़ी थी। जब वे भारत के प्रधानमंत्री बने तो उनके बच्चों ने उन्हें उलाहना कीया कि अब आप भारत के प्रधानमंत्री है कम से कम अब आपके पास एक कार तो होनी चाहिए उस जमाने में फिएट कार केवल ₹12000 में आती थी। उन्होंने अपने सचिव से कहा जरा देखे मेरे बैंक खाते में कितने रुपए हैं सचिव ने बताया कि उनके बैंक अकाउंट में ₹5000 हैं। जब उनके बच्चों को पता चला कि उनके पास पर्याप्त परिमाण में पैसे नहीं है कार खरीदने के लिए तो उन्होंने कहा की कार मत खरीदीए लेकिन शास्त्री ने कहा कि वे बाकी के पैसे बैंक से लोन लेकर जुटा लेंगे। इस तरह उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक से ₹5000 का लोन ले लिया हालांकि एक साल बाद लोन चुकाने से पहले ही लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो गया। जिसके बाद उनकी पत्नी ने 4 साल बाद तक उस लोन को चुकाया। और वह कार आज भी दिल्ली के लाल बहादुर शास्त्री मेमोरियल में रखी हुई है और लोग इसे दूर दूर से देखने आते हैं।
शिक्षक का मुंह कर दिया बंद
एक बार की बात है लाल बहादुर शास्त्री साल 1964 में जब प्रधानमंत्री बने तब उनके बेटे अनिल शास्त्री दिल्ली के सेंट कोलंबस स्कूल में पढ़ रहे थे। शास्त्री ने सोचा कि एक अभिभावक के रूप में वह अपने बेटे का रिपोर्ट कार्ड लेने स्वयं स्कूल जाएंगे स्कूल पहुंचने पर स्कूल गेट पर ही वे उतर गए सिक्योरिटी गार्ड ने उनकी गाड़ी को अंदर लाने के लिए कहा तो वे नहीं माने जब वह बेटे की कक्षा में पहुंचे तो शिक्षक रेवेरेंड टाइनन बच्चों को पढ़ा रहे थे। शास्त्री को देख रेवरेंड टाइनन चकित हो गए वह बोले कि सर आपको रिपोर्ट कार्ड लेने आने की क्या जरूरत थी आप किसी को भी भेज देते, शास्त्री ने कहा कि मैं वही कर रहा हूं जो मैं हर साल से करते आया हूं और आगे भी करता रहूंगा तब टाइनन ने कहा कि लेकिन अब आप भारत के प्रधानमंत्री है। लाल बहादुर शास्त्री मुस्कुराते हुए बोले मैं प्रधानमंत्री बनने के बाद भी नहीं बदला लेकिन लगता है की आप बदल गए।
ईमानदारी का एक मिसाल
एक बार की बात है जब लाल बहादुर शास्त्री भारत के प्रधानमंत्री बनने से पहले गृह मंत्री रहे थे । उन्हें दिल्ली से कोलकाता के लिए शाम को हवाई जहाज पकड़ना था और उन्हें कुछ देरी हो गई और भारी ट्रैफिक के कारण ऐसा लगने लगा कि शास्त्री समय पर हवाई अड्डा नहीं पहुंच पाएंगे। फिर पुलिस कमिश्नर ने उनसे कहा कि वह सायरन लगी गाड़ी भेज देंगे ताकि वह शास्त्री के गाड़ी के आगे चलकर ट्रैफिक को खाली कर देंगे। लेकिन देश के गृह मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने यह कहकर मना कर दिया कि ऐसा करने से वहां के आम लोगों को असुविधा होगा।

पूरे देश ने छोर दिया एक वक्त का खाना
1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान देश में खाद्य पदार्थों की कमी हो गई थी।अमेरिका ने भी भारत खाद्यान्न निर्यात रोकने की धमकी दे थी। तब प्रधानमंत्री के रूप में लाल बहादुर शास्त्री ने अपने देशवासियों से अपील की थी कि वह हफ्ते में एक दिन एक वक्त का अन्य का सेवन ना करें। देशवासियों के सामने मिसाल पेश करते हुए शास्त्री ने घोषणा किया कि उनके परिवार में भी कल से एक हफ्ते तक शाम का चूल्हा नहीं जलेगा, उनके इस घोषणा का इस कदर असर हुवा कि उसके बाद कुछ हफ्तों तक अधिकतर होटलों तक में भी इसका पालन किया गया। उन्होंने देशवासियों से 1 दिन का उपवास रखने की अपील करने के साथ ही कृषि उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिए “जय जवान जय किसान” का नारा दिया था।
लाल बहादुर शास्त्री ने कहा था कि हर कार्य की अपनी एक गरिमा है और हर कार्य को अपनी पूरी क्षमता से करने में ही संतोष प्राप्ति होती है। देश की तरक्की के लिए हमें आपस में लड़ने के बजाय गरीबी, बीमारी और अज्ञानता से लड़ना होगा। लाल “जय जवान जय किसान” का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्री ने देश की आजादी में खास योगदान दिया। स्वाधीनता संग्राम कई आंदोलनो में वे शामिल थे। सन 1921 में असहयोग आंदोलन, 1930 में दांडी मार्च और 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन में उनका योगदान उल्लेखनीय है। महात्मा गांधी के समान विचार रखने वाले लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठ पहचान है।
आखिरी में उन्होंने 11 जनवरी 1966 को ताशकंद में अंतिम सांस ली। 10 जनवरी 1966 को ताशकंद में पाकिस्तान के साथ हुए शांति समझौते पर करार होने के 12 घंटे बाद लाल बहादुर शास्त्री की अचानक मृत्यु हो गई।
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