दोस्तों! आप सभी को अधिकमास के बारे में तो पता ही होगा। लेकिन शायद आपको यह नहीं पता होगा कि अधिकमास को मलमास कहा जाता है। मान्यता अनुसार यह महीना मलिन होता है। कुछ रोचक तथ्य अधिकमास के साथ जुड़े हुए हैं, जिनके बारे में आज हम बात करेंगे।
हर साल पितृ पक्ष के समाप्त होने के अगले दिन से ही नवरात्रि का व्रत आरंभ हो जाता है जो 9 दिनों तक चलता है। पितृ अमावस्या के अगले दिन ही नवरात्रि के लिए कलश स्थापना की जाती है, लेकिन इस बार श्राद्ध पक्ष समाप्त होते ही अधिक मास लग जाएगा। अधिक मास लगने से नवरात्र और पितृ पक्ष के बीच 1 महीने का अंतर आएगा। आश्विन मास में अधिकमास लगना और 1 महीने के अंतर पर दुर्गा पूजा आरंभ होना ऐसा संजोग लगभग 165 साल के बाद आया है।
अधिक मास को मलमास क्यों कहा जाता है
हिंदू धर्म में अधिकमास के दौरान सभी पवित्र कर्म करना वर्जित होता है। माना जाता है कि यह महीना अतिरिक्त होने के कारण मलीन होता है। इसीलिए इस महीने के दौरान हिंदू धर्म के विशिष्ट व्यक्तिगत संस्कार जैसे नामकरण, यज्ञोपवीत, विवाह और अन्य सामान्य धार्मिक संस्कार जैसे गृह प्रवेश, नई बहू का घर में स्वागत नहीं किया जाता है। मलिन मानने के कारण ही इस महीने का नाम मलमास पर गया। लेकिन बाद में भगवान विष्णु ने इस महीने को अपना नाम देकर इसको कलंक मुक्त किया।
अधिकमास का नाम पुरुषोत्तम मास क्यों पड़ा
अधिकमास के अधिपति माने जाते हैं भगवान विष्णु। भगवान विष्णु का ही नाम है पुरुषोत्तम और इसीलिए अधिक मास को पुरुषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है। इस विषय में एक बहुत रोचक कथा पढ़ने को मिलती है। माना जाता है कि भारतीय मनीषियों ने अपनी गणना पद्धति से हर चंद्रमास के लिए एक देवता निर्धारित किए थे और अधिक मास सूर्य और चंद्रमा के बीच संतुलन बनाने के लिए प्रकट हुआ तो इस अतिरिक्त मास का अधिपति बनने के लिए कोई देवता तैयार नहीं हुए। इसी कारण इस बारे में ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से अनुरोध किया कि वही इस माह का भार अपने ऊपर ले। फिर भगवान विष्णु ने इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और मलमास के साथ पुरुषोत्तम मास के रूप में भगवान विष्णु का नाम जुड़ गया। आइए जानते हैं, अब कुछ कार्यों के बारे में जो अधिकमास में नहीं किया जाता।

अधिकमास में वर्जित कार्य
कोई भी प्रयोजन, जैसे कि कोई भी व्रत का आरम्भ करना या फिर किसी व्रत का उद्यापन करना इस मास में वर्जित होता है। इनके अलावा नवविवाहिता वधू का प्रवेश वर्जित होता है, विवाह, मुंडन या फिर पहले नहीं देखे हुए किसी देवतीर्थ का निरीक्षण करना भी वर्जित होता है। सन्यास लेना, प्रथम यात्रा करना, चतुर्मास्य व्रत का प्रथम आरंभ करना, कर्णवेध करना, अष्टका श्राद्ध करना, गो दान करना, वेदव्रत करना, देव प्रतिष्ठा करना, मंत्र दीक्षा इत्यादि पाठ करना, सौम्या करना, महा दान करना इत्यादि अधिक मास के समय में वर्जित माना गया है। अब जानते हैं, कुछ ऐसे कार्यों के बारे में जो हम अधिकमास के समय में कर सकते हैं।
अधिकमास में करने योग्य कार्य
नित्य उपयोग की चीजें जो होती है, जैसे कि कपड़े खरीदना या पहनना, आभूषण खरीदना, घर खरीदना, मकान या घर खरीदना, घर की चीजें जैसे टीवी, फ्रिज, कूलर, AC खरीदना या फिर किसी प्रकार के वाहन इत्यादि जैसी वस्तुएं खरीदने पर कोई मनाही नहीं है। आप अधिक मास के समय में यह सब खरीद सकते हैं। इसके अलावा कपिल षष्टी ग्रहण संबंधी श्राद्ध दान, पुत्र जन्म के कृत्य और पितृ मरण के श्राद्ध तथा गर्भाधान पुंसवन और सीमन्त जैसे संस्कार भी इस माह में किए जा सकते हैं। माना जाता है कि अधिक मास में पूरे समय विष्णु मंत्रों का जाप काफी लाभकारी होता है। ऐसा कहा जाता है कि अधिक मास में विष्णु मंत्र का जाप करने वाले जातको को भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। आमतौर पर अधिक मास में हिंदू श्रद्धालु व्रत, उपवास, पूजा-पाठ, ध्यान, कीर्तन, भजन इत्यादि करते हैं। पुराने सिद्धांतों को अगर देखा जाए तो उन सिद्धांतों के अनुसार इस माह के दौरान यज्ञ, हवन के अलावा श्रीमद्भागवत, श्री भागवत पुराण, श्री विष्णु पुराण इत्यादि का श्रवण पाठ करना विशेष लाभकारी होता है।
ऐसा माना जाता है कि अधिक मास के दौरान किए गए धार्मिक कार्यों का किसी अन्य महीने में किए गए धार्मिक कार्य, जैसे पूजा पाठ इत्यादि से 10 गुना अधिक फल मिलता है और यही वजह है कि श्रद्धालु अपनी पूरी श्रद्धा, शक्ति व सामर्थ्य के साथ ही इस महीने में भगवान को प्रसन्न करने में लग जाते हैं और अपना परलोक सुधारना चाहते हैं। हर साल पितृ पक्ष के समाप्त होने के अगले दिन से ही नवरात्रि का व्रत आरंभ हो जाता है जो 9 दिनों तक चलता है।
पितृ अमावस्या के अगले दिन ही नवरात्रि के लिए कलश स्थापना की जाती है। लेकिन इस बार श्राद्ध पक्ष समाप्त होते ही अधिक मास लग जाएगा। अधिक मास लगने से नवरात्र और पितृ पक्ष के बीच 1 महीने का अंतर आ जाएगा। आश्विन मास में अधिक मास लगना और 1 महीने के अंतर पर दुर्गा पूजा आरंभ होना। ऐसा योग लगभग 165 साल के बाद आया है। ज्योतिष का मानना है कि करीब 160, 65 साल के बाद लिप ईयर और अधिक मास दोनों ही एक साथ लग रहे हैं।
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