हिंदू पंचांग की 11वीं तिथि को एकादशी कहा जाता है। एकादशी का तिथि महीने में दो बार आता है, पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद। पूर्णिमा के बाद आने वाले एकादशी को कृष्ण पक्ष का एकादशी और अमावस्या के बाद जो एकादशी आती है, उसे शुक्ल पक्ष का एकादशी कहा जाता है। और इन दोनों प्रकार के एकादशीयो का भारतीय सनातन संप्रदाय में बहुत महत्व होता है। जो एकादशी दशमी के साथ मिली हुई होती है वह वृद्धि एकादशी मानी जाती है। वैष्णवो को योग्य द्वादशी में मिली हुई एकादशी का व्रत करना चाहिए और त्रयोदशी आने से पूर्व व्रत का पारण करना चाहिए। जो लोग फलाहारी व्रत रखते हैं उन्हें गाजर, शलजम, गोभी, पालक, साग, कुलफा इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए। फलों में केला, आम, अंगूर, बादाम, पिस्ता इत्यादि अमृत फलो का ही सेवन करना चाहिए और प्रत्येक वस्तुओ को पहले प्रभु को भोग लगाकर फिर ग्रहण करना चाहिए और द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को मिष्ठान दक्षिणा में देने चाहिए। एकादशी के दिन बिल्कुल भी क्रोध करना नहीं चाहिए और सिर्फ मीठे वचन ही बोलने चाहिए।

दशमी के दिन कुुुछ खास नियम
एकादशी व्रत करने वालों को दशमी के दिन कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है। जो कि अनिवार्य होता है। इस दिन मांस, मछली, प्याज, लहसुन, मसूरी का दाल इत्यादि खाना निषेध होता है। रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्या का पालन करना चाहिए। इस दिन लकड़ी के दातुन नहीं करना चाहिए। नींबू, जामुन या फिर आम के पत्ते को चबाकर उंगली से साफ कर लेने चाहिए। इस दिन वृक्ष से पत्ते तोड़ना भी मना होता है। लेकिन आप पेड़ से गिरे हुए पत्तों का इस्तेमाल कर सकते हैं। उस दिन संभव होने पर पानी से 12 बार कुल्ले करने चाहिए। फिर स्नानादि से निवृत्त होकर मंदिर में जाकर गीता पाठ करें या फिर पुरोहित जी से गीता पाठ का श्रवण जरूर करें। इस दिन प्रभु के सामने वर्णन करना चाहिए कि आज मैं चोर पाखंडी और दुराचारी मनुष्य से बात नहीं करूंगा और ना ही किसी का दिल दुखाऊंगा और रात्रि को जागरण कर कीर्तन करूंगा। फिर “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” इस मंत्र का जाप करें और भगवान विष्णु का को याद करके प्रार्थना करें कि “हे त्रिलोकीनाथ” मेरी लाज आपके हाथ में है और मैंने जो प्रण लिया है उसे पूरा करने का शक्ति मुझे प्रदान करें। इस दिन जितना हो सके उतना दान भी करना चाहिए। लेकिन किसी का दिया हुआ कुछ स्वयं बिल्कुल भी ग्रहण ना करें।
इंदिरा एकादशी आज 13 सितंबर 2020 रविवार के दिन पित्र पक्ष में पड़ने वाली एकादशी है। जिसे इंदिरा एकादशी के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि इंदिरा एकादशी का व्रत रखके भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए और इंदिरा एकादशी व्रत कथा सुननी चाहिए। यह बहुत पुण्य का कार्य होता है। माना जाता है कि इस दिन अगर कोई एकादशी का व्रत रखता है तो, उनके पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि इंदिरा एकादशी व्रत कथा सुनना बहुत जरूरी होता है। वरना एकादशी का व्रत करने से भी कोई फायदा नहीं है क्योंकि बिना कथा सुने व्रत अधूरा रह जाता है। इस दिन चावल से बने किसी भी पदार्थ का सेवन नहीं करना होता है। आश्विन मास में विष्णु पूजा को विशेष महत्वपूर्ण बताया गया है और इसी इसी कारण इस दिन बुराई से दूर रहकर मन को संपूर्ण शांत रखना चाहिए और भगवान विष्णु का स्मरण व उपासना करना चाहिए। ऐसा करने से हमारे पितरो को मुक्ति मिलने के साथ ही हमारी सभी मनोकामनाएं भी पूर्ण होती है। यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है।
इंदिरा एकादशी की तिथि 2020
इंदिरा एकादशी 13 सितंबर रविवार सुबह 4:13 से शुरू हो जाएगा और 14 सितंबर सुबह 3:16 पर इंदिरा एकादशी तिथि समाप्त हो जाएगा।
इंदिरा एकादशी की व्रत कथा
पुराने कथाओं के अनुसार यह माना जाता है कि सतयुग में महिष्मति नाम का एक नगर था। वहां के राजा थे इंद्रसेन। वे एक बहुत प्रतापी राजा थे और अपने प्रजा का पालन पोषण अपनी संतान की भांति ही करते थे। राजा के राज्य में किसी को भी किसी चीज की कमी नहीं थी। इंद्रसेन राजा भगवान विष्णु के परम उपासक व भक्त थे। एक दिन अचानक नारद मुनि राजा इंद्रसेन के पिता का संदेश पहुंचाने सभा में पहुंचे। राजा के पिता ने संदेश दिया था कि पूर्व जन्म में किए हुए किसी भूल के कारण वे अभी तक यमलोक में ही है और यमलोक से मुक्ति के लिए उनके पुत्र को इंदिरा एकादशी का व्रत करना होगा ताकि उन्हें मोक्ष प्राप्ति हो सके। पिता के भेजे हुए संदेश को सुनकर राजा इंद्रसेन ने नारद मुनि से इंदिरा एकादशी व्रत के बारे में पूछा।
तब नारद जी ने कहा कि यह एकादशी आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि में पढ़ती है। एकादशी तिथि से पूर्व दशमी को विधि विधान से पितरों का श्राद्ध करने के बाद एकादशी व्रत का संकल्प करना चाहिए। नारद ने बताया कि द्वादशी के दिन स्नान आदि से निवृत होकर भगवान की पूजा करना चाहिए और ब्राह्मणों को भोजन कराके व्रत तोड़ना चाहिए। नारद मुनि ने आगे बताया कि इस तरह से व्रत रखने से आपके पिता को मोक्ष की प्राप्ति होगी और उन्हें श्री हरि के चरणों में जगह मिल जाएगी। नारद जी के बताएं नियमों के आधार पर इंद्रसेन ने एकादशी का व्रत रखा। जिसके पुण्य से उनके पिता को मोक्ष की प्राप्ति हुई और वह बैकुंठ चले गए। इंदिरा एकादशी के पुण्य प्रभाव से राजा इंद्रसेन को भी मृत्यु के बाद बैकुंठी की प्राप्ति हुई।
आशा करती हूं एकादशी से जुड़ी यह जानकारी आपको पसन्द आयी।