पितृपक्ष के दौरान जब हम अपने पितरों को श्रद्धा ज्ञापन करने के लिए कुछ दान कर रहे हैं तो हमें यह पता होना चाहिए कि, उन्हें केवल दान-पूण से ही संपन्नता व संतुष्टि नहीं मिलेगी। पितरों की प्रसन्नता और संतुष्टि हमारी प्रसन्नता और संतुष्टि में ही है। ऐसे में हम जब शांति से रहते हैं, संतुष्टि और प्रसन्नता से रहते हैं, ध्यान-ज्ञान में होते हैं तो इससे हमारे पितरो को भी संपन्नता मिलती हैं। तो ऐसे में पितृ पक्ष के इन 15 दिनों में जब हम चाहते हैं कि हमारे पितरो को प्रसन्नता हो, तो उनके लिए हम ध्यान करना चाहिए, प्रणायाम करना चाहिए, अच्छे अच्छे और हितकारी कार्यो में मन लगाना चाहिए ताकि हमारे पितरो को शांति व संपन्नता की प्राप्ति हो सके। इन 15 दिनों में हमें हमारे मन, आत्मा सब को प्रसन्न, शांत और साफ रखना चाहिए और इसीलिए इस दौरान सात्विक आहार ग्रहण करने का नियम बनाया गया है। जब हम सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं और अपना व्यवहार शांत और साफ रखते हैं, भजन-ध्यान करते हैं तो यह सारे कर्म हमारे पितरों को शांति, संतुष्टि, व प्रसन्नता देती है और जिससे हमारे पितृ हमें आशीर्वाद देते हैं। इसीलिए इन 15 दिनों में हमें लहसुन प्याज इत्यादि जैसे और भी कई सारे व्यंजन, जो हमारे तमोगुण को बढ़ाती है, का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए। मांस, मछली, अंडा इत्यादि का सेवन करना, मदिरापान करना पितृपक्ष में वर्जित बताया गया है।
दूसरी तरफ जो हमारे सतगुण को बढ़ाती है, उन सब चीजों को ग्रहण करने को कहा गया है। इसके अलावा, जो चीज हमारे पितरों को पसंद थी, वह भी दान करने का नियम बनाया गया है। यह परंपरा है कि हम अपने पितरों के पसंदीदा जो भी आहार बनाए, वो हमेशा सात्विक होना अनिवार्य होता है।
बेटिया भी कर सकती हैं श्राद्ध
पुत्र और पुत्री दोनों ही समान होती है और यह वैदिक काल से माना जाता है। जो भी श्राद्ध कर्म पुत्र कर सकते हैं, पुत्रियां भी वह श्राद्ध कर्म कर सकती हैं। पुत्र हो या पुत्री दोनों से ही पितरो को प्रसन्नता मिलती है। इस बात में कोई विवाद नहीं है कि पुत्र और पुत्री दोनों ही श्राद्ध कर सकते हैं। पुत्र और पुत्री दोनों ही एक समान होते हैं।

क्या सभी पूर्वजों का श्राद्ध एक साथ किया जा सकता है
हर एक पितरों के लिए एक एक खास दिन होता है। जिस तिथि पर, जिसकी मृत्यु होती है, उसी दिन उस व्यक्ति के लिए कोई खास आयोजन किया जाता है। लेकिन अगर किसी कारणवश हम उनके पुण्यतिथि पर उनका पिंडदान या अपने पूर्वज के लिए तर्पण नहीं कर पाते हैं। तो ऐसे में एक सबसे अच्छा दिन होता है, जिस दिन हम अपने पूर्वजों के लिए तर्पण कर सकते हैं। ऐसे में सबसे खास दिन होता है महालय अमावस्या या सर्वपितृ अमावस्या का दिन। यह दिन पितृपक्ष का आखिरी दिन होता है। ईस दिन हम अपने पितरो को एक साथ याद कर सकते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकतें हैं।
कोरोन काल में कैसे करे श्राद्ध
पित्र पक्ष में दान, पिंडदान, तर्पण, ब्राह्मण भोजन का बहुत ही महत्व होता है। लेकिन अगर किसी कारणवश हम यह ना कर पाए, जैसे आजकल तो चारों और कोरोनावायरस से लोग परेशान हैं। ऐसे में अगर पंडित भोजन संभव ना हो पाए, फिर भी हमें कम से कम पिंडदान और तर्पण तो अवश्य ही करने चाहिए। ऐसे में अगर हम चाहे तो फल, वस्त्र और दक्षिणा का दान कर सकते हैं। ऐसा करने से भी पितरो को प्रसन्नता और संतुष्टि मिलती है।
अपने पितरों को कैसे प्रसन्न कर सकते हैं
माना जाता है कि, हम जब भी कोई पुण्य का काम करते हैं, जैसे ध्यान, प्राणायाम, दान पूण, या किसी भी प्रकार का कल्याणमयी कार्य या फिर किसी की सेवा करते हैं, तो इन सब पुण्य कर्मों का जो सबसे पहला भाग होता है वह हमारे पितरों को जाता है। और इन सभी कार्यों से हमारे पितरो को प्रसन्नता मिलती है। अगर आप समाज कल्याण के कार्य से जुड़े हैं या कोई आध्यात्मिक कार्य करते हैं तो ऐसे में हमारे पितरो को बहुत संतुष्टि प्राप्त होती है। वह हमें बहुत आशीर्वाद देते हैं। साथ ही अगर हम अपने पारिवारिक जीवन की जिम्मेदारी, जैसे अपने मां-बाप, अपने बच्चों का पालन पोषण ठीक से करते हैं, सारी जिम्मेदारी का पालन ठीक से करते हैं, तो भी हमारे पितरों को बहुत प्रसन्नता मिलती है। इन सारे कर्मों के अलावा साल के जो पितृपक्ष वाले 15 दिन होते हैं, उसमें अगर हम नियत रूप से श्राद्ध नहीं भी कर पाए तो कम से कम हमें थोड़ा सा समय निकालकर अपने पितरों के लिए तर्पण अवश्य करना चाहिए। उनको याद करके कुछ दान पूर्ण करना चाहिए। थोड़े समय के लिए अगर उनको याद करते हैं उनकी याद में दान पूर्ण करते हैं। तो भी हमारे पितरो को बहुत प्रसन्नता मिलती है। और हमारे पितरों को प्रसन्नता होने पर ही उनके आशीर्वाद के फलस्वरुप हमारे परिवार की सुख शांति समृद्धि की प्राप्ति होती हैं।
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