हिंदू धर्म में श्राद्धकर्म का बहुत महत्व है। खासतौर पर जब पितृपक्ष आता है, उन दिनों हर परिवार को बहुत मानकर चलना होता है। अपने पितरों को प्रसन्न करना बहुत बड़ी बात होती है। आज के इस पोस्ट पर हम श्राद्धकर्म से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों को जानेंगे।
श्राद्ध क्यों किया जाता है
जब भी कोई आत्मा, मानव शरीर में आती है, उसके साथ कुछ ऋण भी आ जाते हैं। किसी भी मनुष्य का जन्म होते ही 3 ऋण उसे सबसे पहले मिल जाते हैं। वैसे तो व्यक्ति के बड़े होते होते कई सारे ऋण हम सभी पर चढ़ जाते हैं और किसी न किसी बहाने हम उन ऋणो को उतारते भी रहते हैं। लेकिन यह बताया जाता है कि, तीन ऋण ऐसे होते हैं जिनका भुगतान कभी नहीं किया जा सकता है। उन तीनों में से जो पहला ऋण होता है वह होता है देव ऋण। हमारे ऊपर प्रकृति का जो ऋण होता है, वह होता है देव ऋण। प्रकृति हमें जीने के लिए रोशनी, जल, हवा, धरा, इत्यादि सब प्रदान करती है, इसीलिए सब लोगों पर प्रकृति का ऋण रह जाता है
दूसरा जो ऋण होता है वह होता है ऋषि ऋण। हम जीवन निर्वाह के लिए जो ज्ञान प्राप्त करते हैं उसका ऋण भी हमे चुकाना होता है। यानी हमारे जीवन में कुछ ना कुछ अच्छा करने के लिए हमें किसी ना किसी के ज्ञान की आवश्यकता होती है, और जहां से भी, जिस भी साधन से हमे वह ज्ञान प्राप्त होता है वह ऋषि का होता है। यानी कि जो ज्ञान जिसके माध्यम से हम तक पहुंचा है, जो सहयोगी है हमें ज्ञान प्राप्त कराने में, वह हमारा ऋषि होता है।
और जो तीसरा ऋण है वह होता है पितृ ऋण यानी हमारे पिता-माता का ऋण और उनके भी जो पूर्वज है उनका भी ऋण। क्योंकि हमें जो यह शरीर प्राप्त हुआ है उनका प्रयोग कर ही हम सांसारिक और आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करते हैं। जितने भी संसाधन हमें प्राप्त हुए होते हैं, वह हमें हमारे माता-पिता हमारे पूर्वजों के द्वारा ही मिले हुए होते हैं। चाहे वह ज्ञान, बुद्धि या शरीर कुछ भी क्यों ना हो, सब ऋण होता है और इसे ही हम पितृ ऋण कहते हैं। इन ऋणों का भुगतान कभी नहीं किया जा सकता है। ऐसे में पित्र पक्ष के जो 15 दिन के नियम होते हैं, यह केवल एक श्रद्धा और कृतज्ञता होता है, उन्हें बताने के लिए कि आपने जो हमारे लिए किया है उसके लिए हम बहुत आभारी हैं। उसके लिए हम एक छोटा सा नियम कर रहें हैं। इसे आप हमारी भक्ति, श्रद्धा समझकर स्वीकार करें।

क्या श्राद्ध करना जरूरी होता है
यह सवाल हर किसी के मन में होता हैं या कभी आ जाता है कि क्या श्राद्ध करना जरूरी है। हम सब कभी ना कभी बच्चे थे और स्कूल में जब भी कोई पेरेंट्स मीटिंग होती थी तो हमारे माता-पिता वहां मौजूद रहते थे। लेकिन अगर किसी कारणवश वे मौजूद नहीं हो पाते थे तो हमें कितना बुरा महसूस होता था। उसी तरह पितृपक्ष के समय में भी हमारे पूर्वज इस धरती पर हमसे मिलने हमें आशीर्वाद देने आते हैं और अगर ऐसे में हम उनका आवाहन ना करें। उनके लिए थोड़ा सा समय ना निकाले तो आप खुद सोचिए उनको कैसा महसूस होगा।
यह हमारा एक फर्ज होता है जो हमें पूरा करना होता है। पित्र पक्ष में अपने पितरों के लिए श्रद्धा रखना, ध्यान करना कोई अनिवार्य तो नहीं है लेकिन यह एक नैतिक जिम्मेदारी होती है, फर्ज होता है उन पूर्वजों के लिए जिन्होंने हमें जिंदगी जीने के लिए यह शरीर, ज्ञान, बुद्धि और शक्ति दी है। यह उनके प्रति हमारी एक छोटी सी जिम्मेदारी होती है कि पितृपक्ष के दिनों में हम उनके लिए थोड़ा दान पूर्ण करें। ऐसा कहा जाता है कि हम पितृपक्ष के दौरान जो दान पूर्ण करते हैं वही हमारे पितरो के पूरे 1 साल का भोजन होता है। हमारे द्वारा की गई पिंड दान से ही पितृलोक में हमारे पितरों की आध्यात्मिक उन्नति होती है। माना जाता है कि, इन दिनों हम अगर ब्राह्मणों को भोजन करवाते हैं। दान पूर्ण करते हैं तो वह एक तरह से यज्ञ में दी गया आहुति के समान होता है, जो हमारे पूर्वजों को संतुष्टि दिलाता है। जिससे हमारे पूर्वजों की आगे की यात्रा सहज होती है। ऐसा करना अनिवार्य तो नहीं है लेकिन हम सभी की एक नैतिक जिम्मेदारी जरूर है।
कुल कितने श्राद्ध होते हैं
यमस्मृति और मत्स्य पुराण के अनुसार श्राद्ध पांच प्रकार के होते हैं। पहला जो श्राद्ध होता है, वह नित्य श्राद्ध कर्म होता है। जिसमें, हम साधारण दिनों में हर रोज साधारण रूप से अपने पितरों को याद करते हैं। हम रोज जैसे भगवान की पूजा करते हैं, उनको याद करते हैं, उसी समय पर हम अपने पूर्वजों को भी याद करके उनको श्रद्धा अर्पण करते हैं। वही नित्य श्राद्ध कर्म होता है।
दूसरा जो प्रकार है वह होता है नैमित्तिक श्राद्ध कर्म । यह खासकर उस दिन होता है जिस दिन हमारे पित्र चले जाते हैं। उनके मृत्यु के दिन यानी जिस दिन उन्हें परलोक प्राप्ति होती है, उस दिन हर साल उनके पुण्यतिथि पर श्राद्ध के रूप में मनाया जाता है। वही नैमित्तिक श्राद्ध कर्म होता है।
तीसरा जो श्राद्ध कर्म होता है वह काम्य श्राद्ध कर्म कहलाता है। काम्य श्राद्ध कर्म में हम अपनी कोई इच्छा की पूर्ति के लिए अपने पूर्वजों को याद करते हैं। उनका आवाहन करते हुए अपनी इच्छा को पूर्ति करने के लिए हम अपने पूर्वजों से प्रार्थना करते हैं। यानि अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए जो श्राद्ध किया जाता है वही काम्य श्राद्ध कर्म होता है।
चौथा जो श्राद्ध कर्म होता है, वो होता वृद्धि श्राद्ध या नंदी श्राद्ध। यह उत्सव के समय मनाया जाता है। जैसे विवाह या कोई बड़ी पूजा या कोई बड़ी खुशी के अवसर पर इस श्राद्ध को किया जाता है। ख़ुशी के समय में अपने पूर्वजों को याद कर उनका आवाहन करके आशीर्वाद लिया जाता है। यही होता है वृद्धि श्राद्ध या नंदी श्राद्ध कर्म
फिर सबसे अंत में जो है वह पार्वण श्राद्ध होता है। जो श्राद्ध पित्र पक्ष के उन 15 दिनों में मनाया जाता है, उसे ही पार्वण श्राद्ध कहते हैं। यह सबसे महत्वपूर्ण होता है इस श्राद्ध कर्म में सामूहिक रूप से अपने पूर्वजों को याद किया जाता है। उनके प्रति श्रद्धा समर्पण की जाती है।
आशा करती हु, श्राद्ध कर्म से जुड़ी यह जानकारी आपको पसंद आई होगी और आपने इस पोस्ट को एक लाइक जरुर किया होगा।