जो श्राद्ध होता है वह श्रद्धा से निकला है। यानी कि जो कर्म श्रद्धा से किए जाते हैं, उसी को श्राद्ध कहा जाता है। यह जो खास श्रद्धा कर्म हम 15 दिनों के पितृपक्ष में करते हैं, जिसको हम पितृ श्राद्ध कर्म बोलते हैं वह खास तौर पर हमारे पितरो के लिए यानी हमारे पूर्वजों के लिए होता है। जो अभी संसार को छोड़कर चले गए हैं उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए किए जाते हैं। उनके प्रति श्रद्धा भाव प्रकट करने के लिए इन 15 दिनों में हम कुछ खास कुछ नियम करते हैं। इसी को श्राद्ध कर्म कहा जाता है।
पितृपक्ष का महत्व
हिंदू धर्म में पितृपक्ष का काफी महत्व है। पितृपक्ष के दौरान कोई भी उत्सव करना या कोई भी मंगल कार्य करना वर्जित बताया गया है। यानी कि पितृपक्ष के दौरान कोई भी उत्सव नहीं मनाना चाहिए और ना ही कोई मंगल कार्य की शुरुआत करनी चाहिए। इन दिनों किसी मंगल कार्य के लिए कोई मुहूर्त नहीं मिलता है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं होता कि पितृपक्ष बुरे दिन होते हैं या फिर पितृपक्ष दुखों वाले दिन होते हैं, जब मंगल कार्य या उत्सव का मनाना वर्जित होता है। लेकिन ऐसा भी कोई मतलब नहीं होता कि पितृपक्ष के दिनों में कोई अच्छा काम नहीं हो सके। यह बस एक नियम बनाया गया है ताकि पितृपक्ष के दौरान हम अपने पूर्वजो के साथ संपर्क बना सके। उनके प्रति अपने मन की श्रद्धा को व्यक्त कर सकें। उनको याद करके उनको स्मरण करके एक सूक्ष्म संपर्क बना सके।
पितृपक्ष के दौरान सात्विक व्यंजन और शुद्धिकरण के साथ भोजन ग्रहण करने जैसे कुछ खास नियम होते हैं, जिन्हें हमें मान कर चलना चाहिए। कई बार यह सुनने में आता है कि, पितृपक्ष के दौरान कोई मंगल कार्य नही करना चाहिए, जैसे घर नहीं खरीदना चाहिए या गाड़ी नहीं खरीदनी चाहिए या इन दिनों कोई बड़ा आयोजन नहीं करना चाहिए इत्यादि। इन दिनों नियम को पालन करने का मूल उद्देश्य यही होता है कि, हमे अपने मन को इस जगत से, इस संसार से हटा कर एक सूक्ष्म जगत में लगा सके। अपने मन को उस सूक्ष्म जगत के साथ जोड़ना, जो हमारे पितरो का जगत है, इस पितृपक्ष में सादा जीवन जीने का मूल लक्ष्य होता है। ऐसा माना जाता है कि जब कोई भी आत्मा अपना शरीर त्यागती है तो वह प्रेत जगत में आती है। उसके बाद वैतरणी नदी पार करती है, जिसमें 1 साल लग जाता है और फिर वह आत्मा पित्र जगत में आ जाती है। पित्र जगत जो होता है वह बहुत ही सूक्ष्म जगह होता है।

पित्र पक्ष के इन 15 दिनों में हम सभी को अपने पितरों के साथ जुड़ने का अवसर प्राप्त होता है। हम पूरे साल समाज, व्यक्ति, परिवार और अपने कर्मों में लिप्त होकर, अपने परिवार की सुख शांति की कामना करते रह जाते हैं। लेकिन इन 15 दिनों में हमें अपने पितरों के सूक्ष्म जगत से जुड़ने का अवसर प्राप्त होता है। इन दिनों हमें श्रद्धा और समर्पण के साथ अपने कर्म क्षेत्र से दूर होकर पितरों के जगत से मिलने का अवसर मिलता है।
अपने पितरों के साथ जुड़ने के लिए हमें अपने चेतना अपने मनोभावों को थोड़ा सूक्ष्म बनाना पड़ता है। जो कि सात्विक व्यंजन ग्रहण करने से होता है। इन पितृपक्ष के दिनों में अगर हम अपने सांसारिक गतिविधियों के साथ जुड़ जाते हैं तो हम उस सूक्ष्म जगत के साथ नहीं जुड़ पाते हैं और इसी कारण इन दिनों में अपने संसारी गतिविधियों से दूर रहने की सलाह दी जाती है।
पितृपक्ष में दान और भोजन का महत्व
पितृपक्ष में दान और ब्राह्मणों को भोजन कराने का बहुत महत्व होता है। इन दिनों अगर हम दान या पंडित को भोजन करवाते हैं। तो हमारे पूर्वजों को शांति मिलती है। लोग यह भी मानते हैं कि, इन पितृपक्ष के दिनों में हम जो भी दान करते हैं या भोजन करवाते हैं तो, वह हमारे पितरो को जाकर मिलता है। इससे उन्हें सुख की प्राप्ति होती है।
दान हमेशा सुपात्र को ही करें
जब आपका किया हुआ दान कहीं पर सुख-शांति, संतुष्टि-खुशी ला रहा है या फिर और शुभ कार्य को बढ़ावा दे रहा है या किसी के ज्ञान को बढ़ा रहा है, तो वह अवश्य ही सुपात्र कहलाएगा। दूसरी तरफ अगर ऐसा हो कि, आप जो दान कर रहे हैं वह किसी के लिए हिंसा का कार्य कर रहा हो यानी कि उस दान से लोगो को दुःख, अशांति मिल रही हो, साथ ही वह किसी दुष्कर्म को जन्म दे रहा हो या किसी को उससे हानि हो रही हो, दुख हो रहा हो तो वह बिल्कुल भी दान के लिए सुपात्र नहीं है। किसी ऐसे व्यक्ति को कभी दान नहीं करना चाहिए।
ब्राह्मण की पहचान ऐसी है कि, वह सारे जगत का भला चाहते हैं। वे हमेशा ज्ञान-भक्ति में लिप्त होकर रहते हैं और हमेशा दूसरों के प्रति कल्याण की भावना भी रखते हैं यानी कि पूरे संसार के हितकारी होते हैं। इसीलिए उन्हें पुरोहित भी कहा जाता है। ऐसे में अगर हम ब्राह्मण को दान करते हैं तो वह अवश्य ही सुपात्र होगा। क्योंकि जो हमेशा ध्यान, ज्ञान की प्रवृत्ति में लीन रहते है, जो जगत कल्याण की बातें सोचते हैं, उनको किया गया दान सुपात्र ही माना जाएगा। इसीलिए ब्राह्मणों को दान करना उत्तम बताया गया है क्योंकि ब्राह्मणों में अधिकतम परोपकारी गुण पाए गए हैं और इसी कारण ब्राह्मणों को भोजन कराना नियम बन गया है।
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