Tuesday, June 6, 2023
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गणेश चतुर्थी के बारे में सब कुछ। कैसे हुआ गणपति बप्पा का जन्म

आज के ईस पोस्ट में, मैं आपको गणेश चतुर्थी के बारे में बताऊंगी। गणेश चतुर्थी के बारे में सब कुछ जानने के लिए इस आर्टिकल को पूरा पढ़िए।

गणेश चतुर्थी के बारे में सब कुछ। कैसे हुआ गणपति बप्पा का जन्म 

गणेश चतुर्थी 2020 शुभ मुहूर्त

इस साल गणेश चतुर्थी का त्योहार 22 अगस्त 2020 को मनाया जाएगा। 21 अगस्त को रात 11 बजकर 2 मिनट से चतुर्थी तिथि प्रारंभ हो जाएगी और 22 अगस्त शाम 7 बजकर 57 मिनट यह तिथि समाप्त हो जाएगी। गणेश पूजा का मुहूर्त 22 अगस्त सुबह 11 बजकर 6 से दोपहर 1 बजकर 42 मिनट तक रहेगी। वर्जित चंद्र दर्शन का समय 22 अगस्त रात 9:02 से 9:23 बजे तक रहेगा। 

गणेश चतुर्थी पर पूजा करने के लिए आवश्यक सामग्री

गणेश चतुर्थी का व्रत करने के लिए काफी सारी सामग्रियों की जरूरत पड़ती है। जैसे दूध, दही, घी, पंचामृत, चीनी, हल्दी, रोली, सिंदूर, वस्त्र, फल, फूल, दूर्वा, अक्षत, चंदन, जनेऊ, नारियल, पान, सुपारी, धूप, दीप, अगरबत्ती तथा भोग लगाने के लिए विभिन्न प्रकार के प्रसाद इत्यादि।

गणेश चतुर्थी के बारे में सब कुछ। कैसे हुआ गणपति बप्पा का जन्म 

गणेश चतुर्थी पर मूर्ति स्थापना विधि

गणेश चतुर्थी के अवसर पर अगर आप भगवान गणेश की मूर्ति को अपने घर में स्थापित करना चाह रहे हैं तो सबसे पहले स्नानादि से निवृत्त होकर साफ वस्त्र धारण करें। फिर, जहां आप भगवान श्री गणेश जी को स्थापित करेंगे, उस जगह को भी साफ करके हरे रंग का साफ वस्त्र बिछाए। उसके बाद जहां भगवान श्री गणेश जी की मूर्ति को स्थापित करेंगे, वहां अक्षत गिरा दें और मूर्ति की स्थापना करें। भगवान श्री गणेश जी की प्रतिमा पर गंगाजल का छिड़काव करें। आपको भगवान श्री गणेश जी की प्रतिमा को जनेऊ धारण कराना होगा। मूर्ति स्थापित करने के बाद कलश में अक्षत डालकर कलश की स्थापना करें। कलश पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाए और कलश के ऊपर आम के पत्ते को सजाए, आम का पत्ता पांच या सात पत्तेदार होना चाहिए। उसके बाद नारियल पर कलावा बांधकर कलश के ऊपर रख दें। इस तरह से आप पहले भगवान श्री गणेश की प्रतिमा को स्थापित करें और उसके बाद कलश की स्थापना करे। 

गणेश चतुर्थी पूजा विधि  

कलश की स्थापना करने के बाद भगवान श्री गणेश जी को रोली का तिलक लगाएं, और अखंड दीपक जलाएं। वह अखंड दीप भगवान श्री गणेश के विसर्जन होने के दिन तक जलाके ही रखें। इसके बाद भगवान श्री गणेश जी के प्रतिमा के सामने फल-फूल, मोदक, लड्डू जितना भी आपसे हो सकता है, उन सब चीजों का भोग लगाएं , और “ॐ गणेशाये नमः” या “ॐ गण: गणपतए नमः” मंत्र का जाप करते रहें। ध्यान रहे कि जितने दिन भगवान आपके घर में स्थापित रहेंगे। पूरे 11 दिन आपको हर शाम भगवान श्री गणेश जी के चालीसा का पाठ करना चाहिए और पाठ करने के बाद आरती करनी चाहिए। 

इस चतुर्थी पर मूर्ति स्थापना करते वक्त, यह गलतियां ना करें 

ध्यान रखे कि कभी भी गणपति बप्पा के मूर्ति की स्थापना हमेशा पूर्व दिशा और उत्तर-पूर्व दिशा में ही करें। भूलकर भी भगवान श्री गणेश जी की स्थापना दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम दिशा में नहीं करना चाहिए। उसके अलावा भी आप जहां गणेश जी की स्थापना करेंगे, वहां अगर गणेश जी की और भी मूर्ति या चित्र है, तो उसे हटा दें। क्योंकि एक साथ दो गणेश जी की दो मूर्ति नहीं रखनी चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार यह  माना जाता है कि ऐसा करने से ऊर्जा का टकराव होता है।

और ऐसे में यह पूजा में अपशगुण माना जाता है। साथ ही, जब भी आप भगवान श्री गणेश जी की मूर्ति की स्थापना करें तो उनका मुंह दरवाजे की ओर नहीं होना चाहिए। 

क्यों किया जाता है गणेश चतुर्थी पर गणेश जी की पूजा पौराणिक कथा

माना जाता है कि आज से 100 वर्ष पूर्व बाल गंगाधर तिलक ने अंग्रेजो के खिलाफ लड़ने के लिए सारे भारतीयों को एकजुट करने का सोचा और सारे भारतीयों को एकजुट करने के लिए उन्होंने सोचा कि क्यों न  सार्वजनिक तौर पर गणेश चतुर्थी के अवसर पर भारी पूजा का आयोजन किया जाए। उन्होंने सोचा कि ऐसा करने से बहुत लोग एक साथ जुड़ सकते हैं। इसी उद्देश्य से उन्होंने, अंग्रेजो के खिलाफ सारे भारतीयों को एकजुट करने के लिए इस पर्व को भारी आयोजन के साथ सार्वजनिक रुप में मनाया था और तभी से इस पर्व को धीरे-धीरे पूरे भारत में भारी उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा। यह इतिहास के पन्नो से जाना जाता है। अब जानते हैं धार्मिक ग्रंथों के आधार पर।

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार यह कहा जाता है कि श्री वेदव्यास जी महाभारत की पूरी कथा श्री गणेश जी को लगातार 10 दिन तक सुनाएं थे। जिसे भगवान श्री गणेश जी ने अक्षरस लिखा था और जब 10 दिन बाद वेदव्यास जी ने आंखें खोल कर देखा तो उन्होंने देखा कि गणेश जी का तापमान बहुत अधिक बढ़ गया था। इस कारणवस उन्होंने गणेश जी को निकट के कुंड में ले जाकर पानी में ठंडा  किया था और इसीलिए हमेशा गणेश स्थापना करके चतुर्दशी को उनकी मूर्ति को पानी में विसर्जित किया जाता है।

गणेश चतुर्थी के बारे में सब कुछ। कैसे हुआ गणपति बप्पा का जन्म 

भगवान श्री गणेश जन्म कथा

यह माना जाता है कि एक बार माता पार्वती “नंदी”, जी को एक आज्ञा पालन करने के लिए बोली थी और “नंदी” जी गलती से पार्वती माता पार्वती के उस आज्ञा का पालन नहीं कर सके। तब माता पार्वती तो बहुत दुख हुआ और उन्होंने सोचा कि क्यों ना मैं अपने एक ऐसे बालक को जन्म दु, जो मेरी बातों को कभी ना टाल सके। वह हर परिस्थिति में मेरे बचनों की रक्षा करें और मेरी आज्ञा का पालन करें। इसीलिए उन्होंने अपनी उपटन से एक बालक की आकृति बनाई और उसमें प्राण डाल दिया और वही गणेश जी का जन्म हुआ।  उन से बने बालक ने माता पार्वती को माता कहकर संबोधित किया। इतने में माता बहुत भावुक हो गई और उन्होंने गणेश जी को पुत्र कहकर पुकारा।

पार्वती ने अपने पुत्र गणेश को कहा कि  “पुत्र में अंदर स्नान करने जा रही हूं। अगर कोई आए और अंदर जाने को कहे तो किसी को अंदर मत जाने देना। यह मेरी आज्ञा है। पुत्र गणेश ने भी कहा कि “हां माता! आप जाकर विस्तार से स्नान कीजिए। मैं किसी को अंदर नहीं जाने दूंगा”। माता पार्वती इतना कहकर कक्ष के अंदर स्नान करने चली गई। कुछ समय बाद वहां पर भगवान शिव जी का आगमन हुआ और वह अंदर जाने लगे। वे जब अंदर जाने का प्रयास कर रहे थे, तब बालक  गणेश ने शिव जी को रोकने का प्रयास किया। ऐसा करते देख भगवान शिव गणेश जी पर बहुत क्रोधित हो गए और बालक के सिर को काट दिया।

इतने में जब माता  पार्वती को आभास होता है और वे बाहर दौड़ कर आती है तो देखती है कि बालक गणेश जी जमीन पर गिरे हुए हैं। माता पार्वती क्रोधित हो गयी और जोर से रोने लगी। उन्होंने महादेव को कहा 

कि “यह आपने क्या किया। यह मेरा पुत्र था। आपने ऐसा करके मेरे पुत्र के प्रेम को तोड़ दिया है। आप मुझे मेरे बालक को वापस ला कर दीजिए। मैं अपने पुत्र के बिना नहीं रह सकती।”

जब शिवजी को पता चलता है की गणेश अपनी माता की आज्ञा का पालन कर रहे थे, तो उन्हें बहुत दुख होता है और वे अपने दूध भूतों को आज्ञा देते हैं कि वह जंगल में जाएं और जो भी माता अपने संतान को उल्टी ओर सुलाकर, दूसरी ओर मुंह करके सो रही होंगी, उस माता के पुत्र का सिर काट कर ले आए। इतने में शिवजी के दूध भूत जंगल की ओर चल पड़े। ऐसे करके बहुत टाइम बीत गया, पर उन्हें ऐसा कुछ नहीं मिला और जब वे निराश होकर जंगल से लौट रहे थे तो उन्होंने देखा कि एक हथिनी अपने बच्चे के उल्टी और मुंह करके सो रही है। दूत भुत लोग फिर उस हाथी के बच्चे का ही सिर काट कर ले आए और शिव जी ने कोई उपाय ना पाकर, उसी मस्तक को पुत्र गणेश के धड़ से जोड़ दिया। इस तरह से भगवान श्री गणेश जी का दूसरा जन्म हुआ।

गणेश चतुर्थी के बारे में सब कुछ। कैसे हुआ गणपति बप्पा का जन्म 

आशा करते हैं यह जानकारी आपको अच्छी लगी। इस आर्टिकल को पूरा पढ़ने के लिए धन्यवाद।

GR Newsdesk
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