Tuesday, September 26, 2023
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क्या इस स्वतंत्रता दिवस, ध्वजारोहण के लिए लालकिला से बेहतर भी कोई विकल्प है

यह सवाल हर किसी के मन में आता है कि, आखिर लालकिले पर ही भारतीय ध्वज को क्यों फहराया जाता है। कुछ सालों से ही नहीं, बल्कि जब से हमारा देश आजाद हुआ, तभी से यह परंपरा चलती आ रही है। अब  आप लोग जरूर सोच रहे होंगे कि इसकी वजह क्या है, यह परंपरा क्यों शुरू हुई। तो चलिए जानते हैं कि आखिर लाल किले पर ही तिरंगे को क्यों लहराया जाता है। क्या इस खास और शुभ कार्य के लिए कोई और भी उचित विकल्प हो सकता था।

लाल किला और ध्वजारोहण! इतिहास के पन्नो से……….

दरअसल 15 अगस्त 1947 के दिन जब देश आजाद हुआ था, उस समय भारत के पहले प्रधानमंत्री बने थे जवाहरलाल नेहरू। उन्होंने दिल्ली के लाल किला स्थित लाहौरी गेट के ऊपर देश के भारतीय ध्वज को फहराया था। जवाहरलाल नेहरु जी 1947 से लेकर 1964 तक भारत के प्रधानमंत्री के पद पर रहे। इस दौरान उन्होंने हर स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर भारत के लाल किले पर भारत का तिरंगा लहराया। उन्होंने लाल किले पर 17 बार ध्वजारोहण किया। उस समय से लेकर अभी तक हर साल प्रत्येक स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले पर ही तिरंगा लहराता आ रहा है। लाल किले के प्राचीर से ही प्रधानमंत्री देश के नाम संबोधित करतें हैं। लेकिन हर किसी के मन में यह सवाल आ ही जाता है कि आखिर क्यों हर साल लाल किले को ही चुना जाता है, आजादी का जश्न मनाने के लिए। तो जवाब में हम यही कहेंगे, इसकी कोई खास लिखित वजह नहीं है, ना ही कोई संविधान या कानूनी प्रावधान है। यह बस एक परंपरा है। जो देश आजाद होने के समय से ही हमारे हिंदुस्तान की पहचान बन चुका है। और यह परंपरा करीब 73 सालों से हमारे देश में ऐसे ही चली आ रही है। 

मुगल बादशाह शाहजहां ने 1638 से 1649 के दौरान लाल किले का निर्मान कराया था। यह किला दिल्ली में यमुना नदी के किनारे बना हुआ है। जिस समय यह किला बना था उसी समय से यह केंद्र के तौर पर स्थापित हो गया। पहले भी जब आक्रमणकारियों ने दिल्ली समेत पूरे उत्तर भारत पर हमला किया था तो लाल किला उनके मुख्य निशाने पर रहा। अगर 1857 की बात करे तो उसके पहले जो स्वतंत्रता संग्राम हुआ था उसका केंद्र भी कहीं ना कहीं लाल किला ही था। जब अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों का नेतृत्व कर रहे आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को गिरफ्तार करके म्यानमार भेज दिया था, उस समय अंग्रेजों ने लाल किले को भी बहुत नुकसान पहुंचाया था। 

1943 में, जब सुभाष चंद्र बोस जी ने “दिल्ली चलो” का नारा दिया था, तब भी उस नारा का कहीं ना कहीं केंद्र लाल किला ही था। उस समय दिल्ली में स्थित लाल किले से बेहतर कोई इमारत नहीं थी और आखिरी में जब हमारा देश आजाद हुआ तो 15 अगस्त 1947 को लाल किले की प्राचीर से हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु जी ने देश को संबोधित किया और भारतीय ध्वज को फहराया। हम यह भी कह सकते हैं कि उस समय हमारे देश में लाल किले से विशाल और प्राचीन प्रतीकात्मक कोई दूसरी महत्वपूर्ण इमारत नहीं थी, या प्रशासन के नजरों में नही आई। इन सब के अलावा क्या आप लोग जानते है कि लाल किला को यूनिस्को(UNISCO) ने वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया है।

यह परंपरा, देश आजाद होने के समय से ही हमारे हिंदुस्तान की पहचान बन चुकी है और यह परंपरा करीब 73 सालों से हमारे देश में ऐसे ही चली आ रही है। इस बार भी 15 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 73 सालों से जारी इस परंपरा के अनुरूप स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले पर तिरंगा फहराएंगे और राष्ट्र को संबोधित करेंगे। 

अब मुख्य बिंदु यह है कि हर साल “ध्वज आरोहण” के लिए “लालकिला” ही क्यों ???

क्या कोई और विकल्प हो सकता था —-

दिल्ली हमारे भारतवर्ष की राजधानी है और दिल्ली में स्थित, लाल किला एक ऐतिहासिक और पौराणिक इमारत है। भारतवर्ष के स्वतंत्र होने में लाल किला का महवपूर्ण योगदान है, यह इमारत एक प्रमाण समान है। भारतीय तिरंगा, भारत देश का गर्व है और लालकिला जैसी हर वह ईमारत, जो हमारे भारत की पहचान है, हमारे लिए अनमोल है। हम किसी भी परंपरा का अपमान नहीं करते। लाल किला हमारे देश की पहचान है जो कि हमेशा से थी और आगे भी रहेगी।

लेकिन क्या आपको नही लगता कि लाल किला, मुख्य रूप से मुगल साम्राज्य का प्रतीक है, जिसे ब्रिटिशों ने कब्जा कर लिया था। शायद आप लोगों को पता होगा अंतिम मुगल सम्राट “बहादुर शाह जफर द्वितीय” रंगून जाने से पहले अपने आखरी दिनों में “लालकिला” मेंही रह रहे थे। 1857 के विद्रोह में भी उन्होंने बढ़ चढ़कर हिस्सेदारी निभाई थी, बल्कि यह लड़ाई उन्ही के नेतृत्व में लड़ी गयी थी। लेकिन गौर करने वाली बात है कि, इस लड़ाई का नेतृत्व करने के पीछे उनका व्यक्तिगत स्वार्थ छिपा था। वे, देशवासियों की रक्षा खातिर नहीं, अपितु अपने औधे और हुकूमत की रक्षा के लिए आम जनता को ढाल बनाकर विद्रोह में उतरे थे। इसमें कोई शक नहीं कि भारत देश, मुगलों के काल में भी गुलाम ही था, फिर एक मुगल सम्राट क्या हिंदुओ की रक्षा करता। 

“लालकिला” बेशक हिंदुस्तान का गर्व है, लेकिन यह सत्य भी अटल है कि, यह मुगल सम्राट द्वारा निर्मित एक ऐसी इमारत है, जिसके कोणें कोणें में मुगलो की क्रूरता और पक्षपात की कहानी लिखी हुई है। भले ही देश आजाद हो चुका हो, लाल किला पर हमारा संपूर्ण अधिकार स्थापित हो गया हो लेकिन फिर भी आप लोगो को नहीं लगता कि, ध्वजारोहण के लिए किसी ऐसी जगह का चुनाव करना चाहिए जिसका जिक्र, भारतीय इतिहास के खुशनुमा पन्नों में हो, जिसके साथ हमारे बुजुर्गों के साथ-साथ कई पीढ़ियों की अच्छी यादें जुड़ी हुई हो और जिसके साथ भविष्य की आशाएं, उमंगे जुड़ी हुई हो। 

राष्ट्रपति भवन, इंडिया गेट या किसी प्रसिद्ध मंदिर का चयन क्या सही नहीं रहेगा, इस शुभ कार्य के लिए ? राष्ट्रपति भवन हमारे देश का सबसे सुरक्षित और आदर्श जगह है। आजतक, कितने ही ऐसे कार्य होंगे जो इस भवन में संपन्न किए गए है। ऐसे में ध्वजारोहण के लिए राष्ट्रपति भवन से बेहतर शायद ही कोई दूसरा विकल्प हो।

बात करें इंडिया गेट की तो उसे भी एक अंग्रेज ने ही बनाया था। लेकिन इंडिया गेट के साथ अंग्रेजों या मुगलों की एक्टिविटी उतनी नहीं जुड़ी है, जितनी लाल किला के साथ जुड़ी है। इंडिया गेट, हिंदुस्तानियों के जख्मों को उतना नही कुरेदती। इसके अलावा, इंडिया गेट के नाम में ही इंडिया है। इसी कारण इंडिया गेट भी एक बेहतर विकल्प है ध्वजारोहण के लिए। 

मंदिर का जिक्र कर रहे हैं तो हमारे मुसलमान दोस्त, इसे हमारी पक्षपाती दृष्टिकोण समझ सकते हैं। लेकिन भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और भारत का हिस्सा होने के नाते हम पक्षपाती दृष्टिकोण में यकीन नहीं रखते। मंदिर का जिक्र हमने इसलिए किया क्योंकि 2020 का सबसे अहम मुद्दा रहा है अयोध्या राम मंदिर। इस मंदिर के साथ करोड़ों भारतीयों की आशा और उम्मीद जुड़ी हुई है। हिन्दू समाज में, इस मंदिर के निर्माण से भगवान राम के पुनरागमन के आशाएं जागृत होने लगी है। जनता को अब लगने लगा है कि शायद फिर से रामराज्य की स्थापना होगी और सभी को पता है कि राम राज्य में जात-पात और धर्म को लेकर कोई प्रतिबद्धता नहीं थी। इस समय भी अगर रामराज्य स्थापित होता है, तो उसमें धर्म को बीच में नहीं लाया जाएगा और हर धर्म को समान अधिकार, समान सुविधाएं मिलेगी।

इस तरह से सभी धर्म के लोगों को अयोध्या राम मंदिर को एक नई आशा के रूप में देखना चाहिए, अपनी खुशियों की चाबी रूप में देखना चाहिए। ना की हिंदू धर्म की जीत मुसलमानों की हार मानते हुए मन में क्रोध, विद्रोह को जगह देनी चाहिए। अयोध्या राम मंदिर का भूमि पूजन 5 अगस्त को ही संपन्न हुआ है। ऐसे में भगवान राम का आशीर्वाद वैसे ही अयोध्या को मिल चुका है और ध्वजारोहण का शुभ कार्य भी अगर अयोध्या राम मंदिर में कर दिया जाता (कम से कम 2020 के स्वतंत्रता दिवस के लिए) तो हमारा विश्वास है कि, पूरे देशवासी को भगवान राम का आशीर्वाद प्राप्त होता। यह एक राष्ट्रीय हित का विषय है। राम मंदिर पर हर एक हिंदुस्तानी का समान अधिकार है और राम मंदिर में ध्वजारोहण होना हर एक हिंदुस्तानी के लिए उमंग, खुशी और गर्व की बात है। हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी देश की छवि सुधारने में लगातार लगे हुए हैं, दिन रात मेहनत कर रहे हैं। ऐसे में उनको, इन छोटी-छोटी बातों की तरफ भी ध्यान आकर्षित करना चाहिए। कहना गलत नहीं होगा कि, 2020 में भारत को अपनी छवि को सुधारने की जरूरत है।

आप लोगों को क्या लगता है? अपनी राय मुझे कमेंट करके जरूर बताएं, और हमने जो भी राय दी है, अगर आप भी उससे सहमत हैं तो हमारे पोस्ट को लाइक करिये और कमेंट करिये। हम सब इस देश के नागरिक हैं और हमें हमारे देश के हर एक, उस परंपरा का सम्मान करना चाहिए जो पुराने जमाने से चली आ रही है। लेकिन समय के साथ कुछ नए बदलाव भी जरूरी होते हैं, जो एक नई दिशा दिखा सके, नई उम्मीद जगा सकें। 

आशा करती हु, आप मेरे तर्क से सहमत हैं और यह पोस्ट आप लोगो को अच्छी लगी। जय हिंद, जय भारत। मेरी और मेरी टीम की ओर से आप लोगों को स्वतंत्रता दिवस की बहुत सारी शुभकामनाएं।

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