Wednesday, November 29, 2023
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भिन्न भिन्न जगहों में भिन्न भिन्न तरीको से मनाया जाता है जन्माष्टमी! जनिए पूजन की सही विधि

भिन्न भिन्न जगहों में भिन्न भिन्न तरीको से मनाया जाता है जन्माष्टमी! जनिए पूजन की सही विधि

भिन्न भिन्न जगहों में भिन्न भिन्न तरीको से मनाया जाता है जन्माष्टमी! जनिए पूजन की सही विधि
भिन्न भिन्न जगहों में भिन्न भिन्न तरीको से मनाया जाता है जन्माष्टमी! जनिए पूजन की सही विधि

जन्माष्टमी क्यों मनाते हैं

जन्माष्टमी यानी श्री कृष्ण जी का जन्म उत्सव, जिस दिन नारायण के आठवें अवतार श्री कृष्ण जी का जन्म हुआ था। पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार आज भी पूरी दुनिया में लोग इस बात को मानते है कि भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण ने पापियों का नाश करके इस दुनिया को पापमुक्त किया था। भगवान श्री कृष्ण देवकी और वासुदेव के पुत्र थे। लेकिन उनको यशोदा और नंद जी ने पाल-पोस कर बड़ा किया था, जिस कारण वे यशोदा के पुत्र कहलाते हैं। भगवान श्री कृष्ण के मामा ,मथुरा के राजा कंश थे, जिन्होंने बहुत पाप किया था। धर्मग्रंथों के अनुसार, भगवान ने आकाशवाणी करके मथुरा के राजा को पहले ही चुनौती दे दी थी कि, उनकी बहन देवकी की आठवीं संतान ही कंश का वध करेगी। इसीलिए उन्होंने अपनी बहन और बहनोई को कारागार में डाल दिया था। 

भगवान श्री कृष्ण के जन्म से पहले देवकी को सात संतान प्राप्त हुए थे, लेकिन कंश ने अपने मौत के डर से उन सातों संतानो को मार दिया था। और जब देवकी के आठवीं संतान के रूप में भगवान विष्णु के अवतार कृष्ण का जन्म हुआ, तब भगवान विष्णु ने वासुदेव को दर्शन देकर यह आदेश दिया कि वे श्री कृष्ण को तुरंत गोकुल ले जाए और वहा यशोदा माता और नंद बाबा के घर छोड़ आए। जहां पर वह अपने मामा कंस से सुरक्षित हो जाएंगे उसी समय भगवान ने कारागार का ताला भी खोल दिया। फिर वासुदेव ने अपने सिर पर एक टोकरी में भगवान श्रीकृष्ण को रखकर, गोकुल की तरफ चल दिये और श्री कृष्ण को माता यशोदा और नंद बाबा के देख रेख में छोड़ आए। उसी दिन पूरे गोकुल में धूमधाम से भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया गया और आज भी पूरी दुनिया में लोग भगवान श्री कृष्ण का जन्म उत्सव मनाते हैं। 

भिन्न भिन्न जगहों में भिन्न भिन्न तरीको से मनाया जाता है जन्माष्टमी! जनिए पूजन की सही विधि

जन्माष्टमी मनाने के विभिन्न तरीके

श्रीमद् भागवत के प्रमाण को मानकर स्मार्त सम्प्रदाय को मानने वाले चंद्रोदय व्यापिनी अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र में जन्माष्टमी का त्योहार मनाते हैं। और वैष्णव सम्प्रदाय वाले उदयकाल व्यापिनी अष्टमी एवं उदयकाल रोहिणी नक्षत्र में जन्माष्टमी का त्योहार मनाते हैं। 

विभिन्न जगहों पर, विभिन्न तरीकों के नियमो और रंग-रूप के साथ जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। कहीं-कहीं इस त्यौहार के दिन होली खेली जाती है तो कहीं पर कई प्रकार के फूल, श्रृंगार और सुगंध इत्यादि से उत्सव मनाया जाता है, कहीं पर दही हांडी फोड़ी जाती है और कहीं कही भगवान श्री कृष्ण के जन्म के पावन त्यौहार को छवि और अभिनय करके दिखाया जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण के मंदिर के साथ-साथ अन्य मंदिरों में भी, इस त्योहार को मनाते हुए मंदिरों को सजाया जाता है। श्री कृष्ण के भक्त इस दिन व्रत और उपवास करके भगवान श्री कृष्ण की आराधना करते हैं। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती है, बाल रूपी भगवान श्री कृष्ण को झूला झुलाया जाता है और  साथ ही बाल-गोपाल रासलीला का आयोजन करके उसे दिखाया जाता है। 

भाद्र अष्टमी के शुभ अवसर पर भगवान श्री कृष्ण के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालुगण मथुरा पधारते हैं। जन्माष्टमी के दिन, मथुरा के मंदिरों को खास तौर पर सजाया जाता है। इनमें बहुत सारी रंग बिरंगी लाइटे और रंग बिरंगे फूल होते है। केवल देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी लोग जन्माष्टमी के त्यौहार पर पहुंचते हैं। इस दिन भगवान कृष्ण के विग्रह पर हल्दी, दूध, दही, घी, तेल, गुलाब जल, मक्खन, केसर, कपूर इत्यादि चढ़ाया जाता है। इसके अलावा भक्तगण, एक दूसरे पर दूध, घी, गुलाब जल, चंदन इत्यादि का छिड़काव करके भगवान जन्म का आनंद मनाते है। 

पुराणों के अनुसार माना जाता है कि जन्माष्टमी व्रत या पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है और यह पूजा सनातन धर्म वालो के लिए अनिवार्य है। इस दिन उपवास रखा जाता है तथा कृष्ण जी के विभिन्न आरती, भजन, कीर्तन करके भगवान श्री कृष्ण का जन्मदिन मनाया जाता है। 

भगवान श्री कृष्ण के व्रत की विधि

जन्माष्टमी के पावन पर्व के दिन अगर आप चाहें तो अंधेरी सुबह में यानी जो भोर का समय होता है, उस समय थोड़ा सा आहार ग्रहण कर सकते हैं। इसके बाद सुबह उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्नान किया जाता है और जन्माष्टमी व्रत का संकल्प लिया जाता है। उसके बाद गंगा जल या दूध से भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति या चित्र को स्नान कराकर पालने में स्थापित किया जाता है और नए वस्त्र धारण कराए जाते हैं। फिर, 16 उपचारों के साथ भगवान श्री कृष्ण का पूजन करके, उन्हें झूला झुलाया जाता है। बालगोपाल स्वरूप कृष्ण के पूजन के साथ साथ भगवान श्री कृष्ण को जन्म देने वाले माता-पिता देवकी और वासुदेव और तथा श्री कृष्ण को बड़ा करने वाले यशोदा और नंद जी भी पूजा की जाती है। उनके साथ साथ बलदेव, जो श्री कृष्ण के भाई स्वरूप हैं उनकी भी पूजा होती है। फिर माता लक्ष्मी जी की भी पूजा की जाती है। 

इस व्रत के दिन निराहार रहा जाता है। लेकिन अगर आप से नहीं हो पाता तो आप फल, दूध इत्यादि का सेवन कर सकते हैं। पूजा करने के लिए सिर्फ श्रद्धा की जरूरत होती है। जिस दिन आप व्रत करेंगे उस दिन मध्यरात्रि में और पूरे दिन भगवान श्री कृष्ण को ध्यान में रखें। दूसरे दिन पारण करके व्रत का समापन किया जाता है। 

भिन्न भिन्न जगहों में भिन्न भिन्न तरीको से मनाया जाता है जन्माष्टमी! जनिए पूजन की सही विधि
भिन्न भिन्न जगहों में भिन्न भिन्न तरीको से मनाया जाता है जन्माष्टमी! जनिए पूजन की सही विधि

आशा करती हु, यह आर्टिकल आपको पसंद आया होगा और आपने इसको Share भी किया होगा।  भगवान श्री कृष्ण मेरेे पाठकों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करें  और आप सभी के जीवन में ढेर सारी खुशियों का आगमन हो। जय श्री कृष्णा।

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Jhuma Ray
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नमस्कार! मेरा नाम Jhuma Ray है। Writting मेरी Hobby या शौक नही, बल्कि मेरा जुनून है । नए नए विषयों पर Research करना और बेहतर से बेहतर जानकारियां निकालकर, उन्हों शब्दों से सजाना मुझे पसंद है। कृपया, आप लोग मेरे Articles को पढ़े और कोई भी सवाल या सुझाव हो तो निसंकोच मुझसे संपर्क करें। मैं अपने Readers के साथ एक खास रिश्ता बनाना चाहती हूँ। आशा है, आप लोग इसमें मेरा पूरा साथ देंगे।
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