जन्माष्टमी के उत्सव पर कैसे सजाये घर और उससे जुड़े सारे रीति रिवाज़ : आईये जाने प्रभु श्रीकृष्ण की सम्पूर्ण कथा
जन्माष्टमी हिन्दू समुदाय का प्रमुख उत्सव है जिसे बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। भारत के लगभग हर राज्य में इस त्यौहार को परिवार संग लोग मनाते है। कहा जाता है , श्रीकृष्ण जी का जन्म पापी कंश का विनाश करने के लिए हुआ था। जन्माष्टमी के उत्सव में नन्हे बच्चो को मुरलीधर श्रीकृष्ण के जैसे सजाया जाता है। श्रीकृष्ण जी बचपन में बड़े नटखट रहे और उनका यह नटखट रूप पूरे मथुरा में सबको पसंद था और आज भी लोग उन्हें पसंद करते है। पृथ्वी से बुराई को मिटाने के लिए भगवान् श्रीकृष्ण का जन्म हुया था।

आखिरकार रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ और उस वक़्त शून्यकाल था , किसी भी मानव ने ऐसे वक़्त में पहले जन्म नहीं लिया था। जैसे ही श्रीकृष्ण का जन्म हुआ ,वैसे वासुदेव जी ने श्रीकृष्ण को गोकुल में यशोदा और नन्द बाबा का पास ले जाने का आदेश दिया और कंश को बताया गया की देवकी के अटवा बच्चा एक कन्या स्थान है। श्रीकृष्ण जी को यशोदा मैया ने प्यार और दुलार से बड़ा किया। मुरली मनोहर ने महाभारत में एक अहम भूमिका निभायी थी। वे न केवल अर्जुन जी के सारथी बने बल्कि अर्जुन जी को अनमोल उपदेश भी दिए। भगवद गीता के सारे उपदेश श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिए थे। कान्हा जी के लगभग एक सौ आठ नाम है। श्रीकृष्ण भगवान् जी के जन्मोत्सव को मनाने के लिए जन्माष्टमी का उत्सव मनाया जाता है।
श्रीकृष्ण की महिमा ( छोटी सी कहानी )
आज हम आपको जन्माष्टमी के इस ख़ुशी के उत्सव में एक कहानी सुनाने जा रहे है। एक बार एक कसबे में नंदिनी और उसका परिवार रहता था। नंदिनी एक अच्छी बहु और पत्नी थी। नंदिनी के पति किशोर भी एक जिम्मेदार इंसान था। नंदिनी के परिवार में उसकी सास , ननद रहती थी। सात वर्ष बीतने के बाद भी नंदिनी की गोद नहीं भरी। वह एक कर्तव्यपरायण स्त्री थी और गाँव में हर किसी की मदद करती थी। वह एक पाठशाला में पढ़ाती थी और रोज़ सुबह कान्हा जी की पूजा करती। उसकी सास और ननद बच्चा ना होने के कारण ताने कस्ती थी , लेकिन नंदिनी चुपचाप सहती और उसके आँखों में आंसू आ जाते थे। उसने भगवान् के समक्ष आपने दुःख ब्यान किये और वह हर जन्माष्टमी पर व्रत रखती थी। उसने आनेवाली जन्माष्टमी में निर्जल उपवास किया। उसने एक दिन के बाद भी खाना नहीं खाया और किशोर चिंतित परेशान हो गया। उसने नंदिनी को जिद छोड़ने के लिए कहा। नंदिनी कुछ देर बाद बेहोश हो गयी। उसके सपने में कान्हा जी आये और बोले सब समय पर छोड़ दो , सब ठीक हो जाएगा। भगवान् श्रीकृष्ण के दर्शन पाकर उसने अन्न जल ग्रहण किया। कुछ महीने पश्चात नंदिनी ने माँ बनने का शुभ समाचार दिया। नंदिनी ने प्यारी सी बेटी को जन्म दिया और मन ही मन कान्हा जी को धन्यवाद दिया और कान्हा जी ने अपने भक्त नंदिनी को निराश नहीं किया।
महिलाएँ ऐसे सजाती है कान्हा जी की मूर्ति को
जन्माष्टमी के दिन मंदिरो को खूब सजाया जाता है। सभी घरो में श्रीकृष्ण की सुन्दर झाँकियाँ तैयार की जाती है। श्रीकृष्ण की मूर्ति को विशेषकर महिलाएँ सुन्दर तरीके से घरो में सजाती है। महिलाएँ श्रीकृष्ण के लिए नए डिज़ाइन किये हुए कपड़े और पगड़ी खरीदते है और श्रीकृष्ण की मूर्ति को नहलाकर नए कपड़े पहनाते है। श्रीकृष्ण के झूले को खूबसूरत फूलों से सजाया जाता है। श्रीकृष्ण की मूर्ति को दूध , गंगाजल से नहलाया जाता है और चन्दन का टिका लगाया जाता है । उसके बाद श्रीकृष्ण को झूले पर बिठाया जाता है।
भारत के विभिन्न राज्यों में अलग अलग तरीके से लोग इस महोत्सव को मनाते है। इस दिन बच्चे , महिलाएँ और व्यस्क लोग सभी जन्माष्टमी पर व्रत रखते है। मंदिरो और घरो में कान्हा जी के भजन गाये जाते है। जन्माष्टमी के कुछ दिन पहले से ही बाजार सज जाते है। श्रीकृष्ण भगवान् की छोटी बड़ी मूर्तियाँ दुकानों में सज जाती है। अगर घर में छोटा बच्चा है , तब महिलाएँ बिलकुल उन्हें श्रीकृष्ण जी की तरह उनका साज श्रृंगार करती है। इस दिन लोग उपवास रखते है और कहा जाता है व्रत करने से मनोकामना पूरी होती है। इस दिन लोग दान करते है ताकि उनके जीवन से परेशानी दूर हो जाए। कहीं कहीं रात ठीक बारह बजे कान्हा जी की आरती होती है और लोगो में प्रसाद बांटा जाता है।

कई जगह पर जन्माष्टमी की दही हांडी उत्सव भी बड़े चाव से मनाया जाता है। कहा जाता है कि बाल गोपाल को माखन खाने का बहुत शौक था। बहुत सारे लोग एक समूह में आते है और एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के कंधे पर चढ़कर दही हांडी को तोड़ते है। महिलाएँ इस उत्सव पर बाजार से श्रीकृष्ण जी के खूबसूरत स्टिकेर्स लगाते है। महिलाएँ जन्माष्टमी के दिन घर को अलग अलग थीम के अनुसार सजाती है।
जन्माष्टमी के दिन स्वादिष्ट प्रसाद , जैसे लड्डू , रसगुल्ले और पकवान बनाये जाते है। श्रीकृष्ण जी को विभिन्न प्रकार के सोने के आभूषण , मुकुट और डिज़ाइनर ज्वेलरी पहनाते है , जिससे कान्हा जी बेहद सुन्दर लगते है। श्रीकृष्ण जी को खूबसूरत मुकुट और गले का हर , कड़े पहनाये जाते है।
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श्रीकृष्ण जी की मूर्ति को गुलाब के फूलों और विभिन्न गेंदे इत्यादि आकर्षक फूलों से सजाया जाता है। श्रीकृष्ण की सखी राधा की मूर्ति को भी सुन्दर तरीके से सजाया जाता है। श्रीकृष्ण जी के कपड़ो का रंग राधा जी के कपड़ो का रंग बिलकुल एक ही जैसा होता है। राधे कृष्ण जी को सदियों से पूजा जा रहा है। दोनों ही एक दूसरे के बैगर अधूरे है। महिलाएँ श्रीकृष्ण जी को मोर पंखो से भी सजाते है। बहुत सारे परिवार जो विदेश में रहते है , वह श्रीकृष्ण जी को स्वेटर और सर्दी के कपड़े पहनाते है। ज़्यादातर लोग श्रीकृष्ण जी को लाल पीले रंग के वस्त्र पहनाते है। श्रीकृष्ण जी के सिंहांसन को खूबसूरती से सजाया जाता है। बाजार में आपको विभिन्न प्रकार के सिंघासन मिल जाएंगे। । श्रीकृष्ण भगवान् की मूर्ति के ठीक पीछे आप आकर्षक और रंग -बिरंगे परदे लगा सकते है। श्रीकृष्ण भगवान् को चमेली के फूल बेहद प्रिय थे , इसलिए आप चमेली के फूलों से सजा सकते है और श्रीकृष्ण के माला के रूप में उसका उपयोग कर सकते है।

महिलाएँ श्रीकृष्ण जी को सुन्दर मालाएँ पहनाती है जिससे कान्हा जी की खूबसूरती और अधिक निखर उठती है। श्रीकृष्ण जी के झूले को आकर्षक रूप से सजाया जाता है , जिसे लोग देखते ही मोहित हो जाते है। बहुत से घरो में महिलाएँ श्रीकृष्ण जी के कपड़े खुद खरीदती है और स्टोन , लेस इत्यादि की डिजाइनिंग करती है। हिन्दू रीति -रिवाज़ो के अनुसार लाल पीले रंग को लगभग हर उत्सव में शुभ माना जाता है। श्रीकृष्ण और यशोदा मैय्या जी की मूर्ति को एक साथ रखा जाता है , जो की निश्चित तौर पर गोकुल की याद दिलाता है।
निष्कर्ष
हमे उम्मीद है , जन्माष्टमी का पर्व जो इस बार ग्यारह अगस्त को है , बड़े धूम धाम से आप अपने परिवार के लोगो के साथ मनाएँगे। क्यों कि लॉकडाउन चल रहा है , आप घर पर ही सुरक्षित तरीके से यह उत्सव मनाये और सारे पकवान , मिठाईयाँ इत्यादि घर पर बनाये। श्रीकृष्ण जी की पूजा सभी के जिन्दगी से अन्धकार दूर कर दे और लोगो के जीवन में खुशियाँ भर दे। हमारी तरफ से जन्माष्टमी की डेढ़ सारी शुभकामनायें।
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