अयोध्या राम मंदिर ,उसका इतिहास और वर्षो से चला आ रहा विवाद : जानिये इससे जुड़े सारी जानकारी
विवादित अयोध्या मंदिर पर विवाद चार सौ सालों से चला आ रहा है। वर्तमान में 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा मंदिर बनाने का फैसला सुनाया गया और कहा गया कि इस पर हिन्दू समाज का अधिकार है और राम मंदिर बनाने का निर्देश दिया गया। इस मंदिर के निर्माण से जुड़े लोगो को वर्षो तक कोर्ट में संघर्ष करना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट का फैसला जस्टिस अशोक भूषण से सुनाया था। अयोध्या को अवध भी कहा जाता है। यह दक्षिण मध्यम उत्तरप्रदेश राज्य में स्थित है। आखिरकार राम मंदिर बनाने का संकल्प पूर्ण हुआ और सुप्रीम कोर्ट ने इसमें स्वीकृति दी। अयोध्या में एक सुन्दर और भव्य राम मंदिर के निर्माण के लिए लगभग तीन सौ करोड़ रूपए का लागत लगेगा।

अयोध्या राजा दशरथ के घर प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ था। अयोध्या नगरी की सुंदरता और पवित्रता को बयान करना नामुमकिन है। यह अलौकिक और पावन जगह है जो लाखों श्रद्धालु को अपनी तरफ खींच लाती है।
आईये आज हम जानते है , राम मंदिर का इतिहास और उसके कुछ ज़रूरी तथ्य , कि क्यों यह इतने विवादों में घिरा।

अयोध्या में सबसे पहला विवाद तब शुरू हुआ जब सन 1949 को ईश्वर रामचंद्र की मूर्तियाँ मस्जिद के अंदर पायी गयी थी। 1992 को बीजेपी और शिवसेना सहित दूसरे हिन्दू संगठनों ने उस ढांचे को तबाह कर दिया। यह विवाद चार सौ साल पूर्व शुरू हुयी थी , जब मस्जिद की संरचना हुयी। हिन्दुओं की यह मान्यता थी , यह जमीन भगवन श्री रामचंद्र जी का है , और वहां पहले से एक मंदिर था। परन्तु 1528 ईस्वी में बाबर वहां एक हफ्ते के लिए रुके थे और उन्होंने मंदिर को नुकसान पहुँचाया और उसके जगह मस्जिद की स्थापना की थी। जिसे बाबर मस्जिद कहा जाने लगा।
सन 1853 से 1949 तक इस जगह को लेकर तनातनी बनी रही। ब्रिटिश शासन ने वहां पर बाड़ का निर्माण कर दिया। मुसलमान ढाँचे के अंदर जाते थे और हिन्दू धर्म के लोग बाहर से भगवान की पूजा करते थे। दरअसल असली मुद्दा तब शुरू हुआ जब मंदिर के अंदर से मूर्तियाँ पायी गयी। तब मुस्लिम समुदाय के लोगो ने कहा कि यह किसी की साज़िश है और किसी ने बाहर से आकर मूर्ति वहां रख दी है। यूपी सरकार ने मूर्तियों को वहां से हटाने का निर्देश दिया। फिर वहां ने जिला मजिस्ट्रेट ने हिन्दू मुस्लिम में झगड़ेहोने के डर और आशंका के कारण , वहां उसे ढांचे को बंद करने में समझदारी समझ ली। हिन्दू समाज इसे भगवान राम का जन्म स्थल समझते आये है।
विश्व हिन्दू परिषद ने एक कमेटी का गठन साल 1984 में किया। इस कमेटी का उद्देश्य यह था कि उस विवादित स्थान को राम मंदिर का रूप दे सके। वर्ष 1986 में हिन्दू समाज को वहां पूजा अर्चना करने की अनुमति दी गयी। सन 1992 में बीजेपी और शिवसेना सहित हिन्दू संगठनों ने मिलकर उस ढांचे को तोड़ दिया। सारे देश में हिन्दू मुस्लिम समुदाय के बीच घमासान दंगे हुए जिसमे तक़रीबन दो हज़ार लोगो ने अपनी जान गँवाई।
वर्ष 2002 में हिन्दू संगठनों को ले जा रही एक ट्रेन में आग लगा दी गयी जिसकी वजह से साठ लोगो की मृत्यु हो गयी। इसकी वजह से दंगे बुरी तरह से भड़के जिससे जान माल का भयावह नुकसान हुआ। वर्ष 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्णय पर अंकुश लगा दिया। 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने समुदाय को कोर्ट के बाहर समझौता करना का निर्णय सुनाया। बीजेपी के कुछ नेताओं पर गुनाह के आरोप को फिर से शुरू करने के लिए कहा गया। २ अगस्त 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने पैनल का समाधान निकालने में असफल रहा। छह अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में इस विवादित मामले की सुनवाई का आगाज़ हुआ। 16 अक्टूबर को अयोध्या राम मंदिर मामले में सुनवाई समाप्त हुयी और निर्णय को बिलकुल सुरक्षित रखा गया।
सुप्रीम कोर्ट ने लम्बे समय से चल रहे अयोध्या भूमि विवाद राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में अपना फैसला पढ़ा है। इस फैसले में, अदालत ने राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या भूमि विवाद मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया, जिसके दूरगामी प्रभाव हो सकते है।
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि परिसर की पूरी जमीन, यानी 2.77 एकड़ की विवादित भूमि राम लल्ला विराजमान की है। सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि हिंदुओं ने बाहरी आंगन पर अपना विशेष अधिकार भली भाँती सिद्ध किया है, लेकिन मुस्लिम पक्ष और समुदाय आंतरिक आंगन पर अपना विशिष्ट अधिकार साबित करने में विफल रहा है।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह तय करना मुश्किल है कि हिंदुओं की आस्था वैध थी या नहीं। हिन्दू समुदाय की यह धारणा की भगवान राम का जन्म केंद्रीय गुंबद के तहत हुआ था, यह वास्तविक रूप से सिद्ध हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बाबरी मस्जिद मुग़ल मिलिट्री कमांडर मीर बाक़ी द्वारा बनाया गया था , जिसे बनाने का निर्देश बाबर ने दिया था। बाबरी मस्जिद किसी वीरान भूमि में नहीं बनवाया गया था। उस पर एक गैर मुस्लिम ढांचा था , जिसे गिराकर बाबरी मस्जिद का निर्माण हुआ था। देश के सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि उत्तर भारत में अयोध्या के विवादित पवित्र स्थल को हिंदुओं को दिया जाना चाहिए जो वहां पर मंदिर बनवाना चाहते हैं।
अयोध्या मामले में फाइनल निर्णय सुप्रीम कोर्ट द्वारा नौ नवंबर 2019 में लिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने विवादित जमीन की 2.77 crore को उस ट्रस्ट को कर दिया जो राम जन्मभूमि पर मंदिर बनाना चाहते है। मस्जिद बनाने के उद्देश्य से सुन्नी वक्फ बोर्ड को सुप्रीम कोर्ट ने दूसरी जगह पर 5 एकड़ जमीन देने का भी आदेश दिया।
निष्कर्ष
यह बहुत शुभ घड़ी है कि अयोध्या राम मंदिर का निर्माण होने के पथ पर है। अयोध्यावासियों के लिए यह कोई उत्सव से कम नहीं है। आपको बता दे अयोध्या में भूमि पूजन पाँच अगस्त को होगा और भारत के प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी इसमें हिस्सा लेंगे। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने यह एलान किया है कि राम मंदिर के दो सौ फ़ीट नीचे टाइम कैप्सूल रखा जाएगा। इसका उद्देश्य है कि वर्षो और दशकों के बाद कोई राम मंदिर के इस ऐतिहासिक विषय के बारे में जानने की इच्छा रखता है तो अवश्य टाइम कैप्सूल के द्वारा जान सकता है। इस विशेष उपाय के माध्यम से मंदिर के इतिहास के बारें में लोग जानेगे और किसी भी प्रकार का कोई भी विवाद ना हो क्यों कि इस जमीन में मंदिर की स्थापना के लिए वर्षो से लड़ाई लड़ी जा रही है। पाँच अगस्त २०२० को मोदी जी के हाथों से आधारशिला के रूप में पाँच शिलाएं राखी जायेगी और वे शिलाओं का पूजन भी करेंगे।