Tuesday, September 26, 2023
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The Myth Around 20 l k

So how is everybody, i would really like to start today with a story (and its in hindi) but anyhow’s, here it goes …

एक बार एक गांव में बड़ी महामारी फैली. पूरे गांव को लंबे समय तक के लिए बंद कर दिया गया. केवट की नाव घाट पर बंध गई. कुम्‍हार का चाक चलते चलते रुक गया. क्‍या पंडित का पत्रा, क्‍या बनिया की दुकान, क्‍या बढ़ई का वसूला और क्‍या लुहार की धोंकनी, सब बंद हो गए. सब लोग बड़े घबराए. गांव के दबंग जमींदार ने सबको ढांढस बंधाया. सबको समझाया कि महामारी चार दिन की विपदा है. विपदा क्‍या है, यह तो संयम और सादगी का यज्ञ है. काम धंधे की भागम-भाग से शांति के कुछ दिन हासिल करने का सुनहरा काल है. जमींदार के भक्‍तों ने जल्‍द ही गांव में इसकी मुनादी पिटवा दी. गांव वालों ने भी कहा जमींदार साहब सही कह रहे हैं.

लेकिन जल्‍द ही लोगों के घर चूल्‍हे बुझने लगे. फिर लोग दाने-दाने को मोहताज होने लगे. कई लोग भीख मांगने को मजबूर हो गए. जमींदार साहब ने कहा कि यही समय पड़ोसी और गरीब की मदद करने का है. यह दरिद्र नारायण की सेवा का पर्व है. लोग कुछ मन से और कुछ लोक मर्यादा से मदद करने लगे. उन्‍होंने सोचा कि चार दिन की बात है, मदद कर देते हैं. लेकिन मामला लंबा खिंच गया. मदद करने वालों की खुद की अंटी में दाम कम पड़ने लगे. जब घर में ही खाने को न हो, तो दान कौन करे. हालात विकट हो गए.

सब जमींदार की तरफ आशा भरी निगाहों से देखने लगे. जमींदार साहब यह बात जानते थे. लेकिन उनकी खुद की हालत खराब थी. सब काम धंधे बंद होने से न तो उन्‍हें चौथ मिल रहा था और न लगान. ऊपर से जो कर्ज उनकी जमींदारी ने बाहर से ले रखे थे, उनका ब्‍याज तो उन्‍हें चुकाना ही था. लेकिन जमींदार साहब यह बात गांव वालों को बताते तो फिर उनकी चौधराहट का क्‍या होता. इसलिए उन्‍होंने कहा कि अगले सोमवार को वह पूरे गांव के लिए आर्थिक सहायता की घोषणा करेंगे. इतनी बड़ी घोषणा करेंगे, जितनी उनकी पूरी जमींदारी की आमदनी भी नहीं है. लोगों को लगा कि उनकी सूखती धान पर अब पानी पड़ने ही वाला है.

सोमवार आया. जमींदार साहब घोषणा शुरू करते उसके पहले उनके कारकुन ने आकर जमींदार साहब की तारीफ में कसीदे पढ़े. उन्‍हें सतयुग के राजा दलीप, द्वापर के दानवीर कर्ण और कलयुग के भामाशाह के साथ तौला. अब जमींदार साहब ने घोषणा की: वह जो गांव के बाहर पड़ती जमीन पड़ी है, उस पर अगले साल गांव वाले खेती करें और खूब अनाज उपजाएं, चाहें तो नकदी फसलें भी लगाएं. उन्‍हें विदेशों को बेचें और लाखों रुपये कमाएं. मेरी ओर से लाखों रुपये की यह भेंट स्‍वीकार करें. फिर उन्‍होंने कहा कि गांव के चार साहूकारों के पास खूब पैसा है, जाओ जाकर जितना उधार लेना है, ले लो. यह मेरी ओर से आप लोगों को दूसरी सौगात है.

इन दो घोषणाओं के बाद लोग एक दूसरे की तरफ देखने लगे कि यह क्‍या बात हुई. जमींदार साहब तो मुफत का चंदन, घिस मेरे नंदन, जैसी बातें कर रहे हैं. हमारे लिए कुछ कहेंगे या नहीं. खुसर-फुसर शुरू हो पाती, इससे पहले ही जमींदार साहब ने कहा: बहुत से लोग घर में राशन न होने और भूखे रखने की शिकायत कर रहे हैं. उन्‍हें चिंता की जरूरत नहीं है, उनके लिए तो मैंने महामारी के शुरू में ही राशन दे दिया था. उनके पास तो खाने की कमी हो ही नहीं सकती. लोगों ने अपने भूखे पेट की तरफ देखा और सोचा कि जो हम खा चुके हैं, क्‍या उसे दुबारा खा सकते हैं.

जमींदार साहब ने आगे घोषणा की कि जिन कुम्‍हारों का चाक नहीं चल रहा है, जिन पंडित जी का पत्रा नहीं खुल पा रहा है, जिस लुहार की धोंकनी नहीं चल रही और जिस केवट की नाव घाट पर लंबे समय से बंधी है, वे बिलकुल परेशान न हों. पत्रा बनाने वाली, धोंकनी बनाने वाली और नाव बनाने वाली कंपनियां भी बड़े साहूकारों से कर्ज ले सकती हैं और इन चीजों का निर्माण शुरू कर सकती हैं. हम आपदा को अवसर में बदलने के लिए तैयार हैं. यही ग्राम निर्माण का समय है. केवट और पंडित जी एक दूसरे को देखकर सोचने लगे कि कंपनियों को कर्ज मिलने से हमारा काम कैसे शुरू हो जाएगा.

जमींदार साहब ने आगे कहा: हम चौथ और लगान वसूली में कोई कमी तो नहीं कर रहे, लेकिन लोग चाहें तो दो महीने की मोहलत ले सकते हैं. यह हमारी ओर से एक और आर्थिक उपहार है.

इससे पहले कि गांव वाले कुछ सवाल करते, सभा में जोर का जयकारा होने लगा. जमींदार साहब के कारिंदों ने जमींदार साहब की जय और ग्राम माता की जय के नारे गुंजार कर दिए. चारों तरफ खबर फैल गई कि गांव में ज्ञात इतिहास की सबसे बड़ी आर्थिक सहायता पहुंच चुकी है. यह हल्‍ला तब तक चलता रहा, जब तक कि हर आदमी को यह नहीं लगने लगा कि उसके अलावा सभी को मदद मिल गई है. उसे लगा कि वही अभागा है जो मदद से वंचित है. जमींदार साहब की नीयत तो अच्‍छी है. जब सबको दिया तो उसे क्‍यों नहीं देंगे. अब उसकी किस्‍मत ही फूटी है तो जमींदार साहब क्‍या करें. उसने भी जमींदार साहब का जयकारा लगाया.

बस गांव के दो बुजुर्ग थे जो कब्र में पांव लटकाए यह तमाशा देख रहे थे. वे कुछ कहना तो चाह रहे थे, लेकिन इस डर से कि कहीं जमींदार के कारिंदे उन्‍हें ग्राम द्रोह के आरोप में जेल में न डलवा दें, इसलिए चुप ही बने रहे. इसके अलावा उन्‍हें उन्‍मादी भीड़ की लिंचिंग का भी डर था. इसलिए उन्‍होंने एक लोटा पानी पिया और जोर की डकार ली.

well, this was the story and pls STRICTLY NOTE THAT THIS HAS NOTHING TO DO WITH CURRENT SITUATION OR THE PRESENT GOVERNMENT.

some people are trying to guess to how many zeros are there in 20 lakhs corers and i am sorry to say that you were not thought math’s till this level and its out of syllabus and so put this question aside and focus ahead on other things.

NOW the question arises that what has anybody received from this ? people are raising questions about “what has the labor got ?” what has this sector got ?” but i want to ask “WHAT HAS MIDDLE CLASS GOT ??”

this CONVENT EDUCATED MIDDLE CLASS, the most hard working, working everyday from 9 to 5, pouring all efforts in whatever they do, pay the most taxes, what are they getting ???? THE SITUATION is very hard for them, labours can go back to village and that’s it but this middle CLASS have a certain lifestyle and have a certain standard to maintain and in the current situation its becomeing very very hard for them to cope.

there is a lot being announced for the sme but it has to be inplamented properly. labour laws in some bjp ruled states have been completely relaxed and its a welcoming move and more has to be done.

some people have already started feeling that this situation will get over by 18th BUT BEWARE THIS IS NOT THE END,TODAY AS I AM WRITING more new cases have been found and more are being discovered so its high time to TAKE CARE, AVOID UNNECESSARY TRAVEL, STAY HOME STAY SAFE and CUT DOWN EXPENSES.

Again i would take this opportunity to talk on vocal on local as, i am covering it from past two days,
You can read the articles here{“LOCAL” and Other EMPHASIS POINTS From Updates FROM THE P.M}&{INDIA INC & the road ahead.}

vocal for local is a good thing but as some one pointed out, one has to take care Which product will be treated as Indian or foreign By owner ship Or By place of manufacture ?

ALSO big question i want to RAISE today that ” we all know of aadhar, everyone is having it, but “WHAT IS THE NUMBER OF INDIVIDUAL PAN CARDS & ALSO NO OF ITR FILED THE COUNTRY.” I ask this because i want to propose that : ” EVERYTHING IN THIS COUNTRY SHOULD BE DECIDED AND DISTRIBUTE ON THIS BASIS ONLY.” THATS IT.

and @ last some enlightenment from our beloved social media

(in hindi off course):

मोदी जी का यह पैकेज से वास्तव में गरीबो को ही कुछ मुफ्त में मिलेगा बाकी सब को कुछ छूट, भत्ते, बिना गारंटी कर्ज, निश्चित रोजगार जैसे सरकारी ठेकों में विदेशी कंपनियों को रोक, CAPF कैंटीन में भारतीय उत्पादों की ही उपलब्धता, कुटीर उद्योग को प्रोत्साहन के रूप में मिलेगा। मतलब इस पैकेज को लोगो को प्राप्त करना होगा सरकार उन्हें सीधे कुछ नही देने वाली। सीधे तो केवल जन धन खातों में ही जायगा।

एक समय था जब पश्चिमी देशों को लगता था कि पूर्वी देशो में व्यापार की अपार संभावनाएं हैं। उन्होंने पूर्वी देशो को कमतर आंकते हुए ग्लोब्लाइसशन शब्द का प्रयोग किया और पूर्वी देशो के व्यापार पर कब्जा करने की नीयत से व्यापारिक नीति बदलने पर मजबूर किया। लेकिन उन्हें चीन जैसे धूर्त देश का अंदाज नही था जो विश्व की फैक्ट्री के रूप में स्थापित हो गया। कोरोना वायरस को अपने देश में फैला कर उसने वहां स्थापित फैक्टरियों पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण कर लिया। यह सब तब हुआ जब उसे लगा कि अमरीका के साथ उसका व्यापार युद्ध में वह अधिक समय नही टिक सकता। उसने अपने ही लगभग करोड़ नागरिक की बलि दे कर एक जंग तो जीत ही ली और अब वह सामरिक शक्ति बढ़ाने पर लगा हुआ है। वही दूसरी तरफ जब पश्चिमी देशों को यह आभास हुआ कि उनके व्यापारिक नीति से उनके यहाँ बेरोजगारी बढ़ गई है और इसका उन्हें ही नुकसान हो रहा है तो अब ये सभी देश अब first country का राग अलापने लगे है। इसीलिये अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, फ्रांस और न जाने कितने देश अब अपने देश को प्राथमिकता देते हुए globalisation शब्द की तिलांजलि दे रहे है। इसकी शुरुआत ट्रम्प के आने से और brexit से हुई है।

मांग आय के, आय उत्पादन के, और उत्पादन मांग के बढ़ने से ही बढ़ सकता है। उत्पादन बढ़ने से पूर्ति बढ़ाने का प्रयास स्वाभाविक है। बढी मांग के पीछे उपभोक्ताओं के अपने जीवन स्तर और संतुष्टि को बढ़ाने का लालच होता है। चूंकी उपभोक्ता का अंतिम उद्देश्य अपनी कुल संतुष्टि को अधिकतम करना होता है वह स्वदेशी और चाइनीज में अंतर के स्थान पर सस्ता और बढ़िया ही चुनता है, वैश्वीकरण के सफल होने का सबसे महत्वपूर्ण आधार है, और इसी कारण सस्ता और बढ़िया वाला सिद्धांत ही भविष्य में भी टिका रहेगा। सनद रहे कि सस्ता और बढ़िया की परिभाषा उपभोक्ता ही तय करता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के 70 वर्ष बाद भी स्वदेशी आंदोलन और प्रत्येक वर्ष चलाए जाने वाले एंटी चाइनीस कैंपेन का हश्र हमारे सामने है, और यही मेरे तर्क सबसे बड़ा प्रमाण है। चूंकि कोरोना, विश्वयुद्ध, न्यूक्लियर थ्रेट, टेक्नोलॉजी जैसी आज की सबसे प्रमुख वैश्विक समस्याओं का समाधान सिर्फ और सिर्फ ग्लोबल कोऑपरेशन में निहित है, इसलिए ग्लोबलाइजेशन का भविष्य निसंदेह उज्जवल है।

विज्ञापन, इंफ्रास्ट्रक्चर, ई-कॉमर्स इत्यादि मांग और सप्लाई चेन को बल प्रदान कर अर्थव्यवस्था के संपूर्ण चक्र को संवर्धित करता है। करोना संकट मे अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से मांग और पूर्ति दोनों का एक साथ ही सत्यानाश हुआ है। यह अभूतपूर्व है। स्पष्ट है, इसका कारण लॉकडाउन की विवशताएं है। सबसे पहली चुनौती तो इस लाकडाउन को व्यवस्थित करने से है, अर्थात जान और जहान दोनों को सुरक्षित रखते हुए आर्थिक गतिविधियां प्रारंभ हो। उद्योग धंधों और उनके संगठनों से सलाह मशवरा कर रेगुलेशन और नीतियां तैयार करना ही प्रथम मार्ग है ताकि सरकारी रेगुलेशन और नीतियां क्रियान्वित हो जाय। विश्व के सभी सर्वाधिक प्रभावित देश ऐसा ही कर रहे हैं। इस प्रकार अर्थव्यवस्था का पहिया धीरे धीरे चला कर, पहले जान और जहान को सुरक्षित करते हुए 1 से 2 महीने में, बदली परिस्थितियों में, मांग और पूर्ति के संरक्षण का प्रयास संभव हो पाएगा। ऐसा मेरा विचार है।

क्या सरकार में बैठे किसी नेता ने प्रोडक्ट्स का भारतीय या विदेशी में वर्गीकरण किया है। प्रधानमन्त्री से ये आशा नही की जा सकती कि वे मेड इन चीन उत्पादों का खुले मंच से बहिष्कार की अपील करे। वर्तमान चीनी वायरस से भारत पर हुए हमले और इसके बाद चीन की सीमाओं पर दादागिरी से प्रधानमंत्री ने भारतीय वस्तुओ के उपयोग पर बल दिया। लोकल ग्लोबल शब्दो का प्रयोग भी काफी कुछ स्पष्ट कर देता है।

नियम और बेकार के कानूनों से अब तक बंधी हुई प्रतोभाओ के कारण तकनीक के क्षेत्र में विदेशो से आयत मजबूरी है लेकिन आयात पर निर्भरता कम करने का संदेश भी काफी हद तक स्पष्ट है।

*** end of enlightenment ****

well, what it is, it is, and we can say with confindence that :

“this too shall pass” but BEWARE AND TAKE CARE.

till then “STAY HOME, STAY SAFE”

& do you remember your homework ?

‘GO ****** GO” ‘GO ****** GO” if you can fill in the blanks, then keep chanting, otherwise, only god may help u.

{Peace & Faith}

note : my views are my views, and if the shoe fits your head, you are welcome to wear it.

Milte hai … happy reading

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