Tuesday, September 26, 2023
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कौन हैं छठी मईया, कैसे हुई थी छठ महापर्व की शुरूआत और क्या है इस पर्व का महत्त्व

छठ महापर्व एक ऐसा पर्व है, जिसमें देवी देवता के साथ प्रकृति की पूजा होती है। जिनमें गंगा मैया, धरती मा में उत्पन्न होने वाले सभी प्रकार के साग सब्जीया, फल, मेवे और छठ का महाप्रसाद ठेकुआ बनता है। इस प्राकृतिक पूजा में सूर्य देव, गंगा मईया, धरती मईया के साथ बांस के बने डाला और कलशुप होते हैं और इन सबका महत्त्व भोजपुरी समाज में छठ करने वाले लोग ही भली भांति जानते हैं।

बिहार के लोगो बिहारी समाज में छठ महापर्व केवल एक बार भी नहीं हो रहे यह बिहारी लोगो का इमोशन होता है। इन लोगो से इस महापर्व की भावनाए इस कदर जुड़ी रहती है कि वह पूरे साल इंतजार करते हैं बिहारी परिवार में शादी करके पहली बार आती है। तब पहली बार छठ करने की बात करती है तो उस नई बहू का अदा काफी ज्यादा ऊपर उठ जाता है घर के सभी लोग उसके सर पर बैठा लेते हैं, क्योंकि वह छठ महापर्व जैसे कठिन पर्व को करना चाहते हैं।

दुनिया उठते हुए सूरज को सलाम करती है कोई सेल्यूट द राइजिंग सन अंग्रेज भी कहां करते थे ब्रिटिश राज्य में सूरज कभी अंत नहीं होता, एक कव्वाली भी है जिसमें गाया जाता है कि चढ़ता सूरज धीरे-धीरे ढलता है ढल जाएगा। ऐसे में ऐसा लगता है जैसे कि सूरज का ढलना कोई बूरा प्रतीक हो, कोई गलत बात हो, कोई खराब बात हो हालाकि ये सब यूरोप और अरब के देशो में मानते होंगे।

लेकिन हम भारतवासी ऐसा नहीं मानते, हम डूबते हुए सूरज को भी पूजते हैं हमारे लिए और हमारे लिए पश्चिम में अस्त होता सूर्य उतना ही स्रधेय है, जितना कि पूरब में उदय होता हुआ सूर्य और डूबते सूर्य के प्रति उनका भाव नहीं बदलता। क्योंकि सूर्य भगवान देवता है और दिशा बदल देने से भगवान के प्रति हमारा भाव और श्रद्धा नहीं बदल जाता। बड़ी बात है सूर्य भगवान का सूर्य होना, तेजो राशे जगत्पते होना, सृष्टि और जीवन का आधार होना। 

कौन हैं छठी मईया, कैसे हुई थी छठ महापर्व की शुरूआत और क्या है इस पर्व का महत्त्व

हर साल दीपावली के छठवें दिन छठ महापर्व की शुरुआत हो जाती है। यानी कार्तिक शुक्ल पक्ष की छठवीं तिथि को छठ महापर्व का प्रथम अर्ग दिया जाता है और इस दिन करोड़ो भारतवासी सूर्य देवता के अस्त रूप के आगे नतमस्तक होकर उन्हें अर्ग प्रदान करते हैं। अगले ही दिन उगते हुए सूर्य के आगे हमेशा इस पृथ्वी को उजागर बनाए रखने की कामना से अर्ग देकर पूजा का समापन करते हैं।

छठ महापर्व के गीतो के आगे बड़े से बड़े संगीतकारों के द्वारा बनाया गया संगीत फीका पड़ जाता है जब छठ पूजा के गीत गूंजते हैं तब सभी लोगों का मन और तन दोनों पूरी तरह पवित्र हो जाता है और पूजा की भावनाओ से जुड़ जाता है।

कौन हैं छठी मैया

छठी मैया कौन है इसे लेकर कई धारणाए हैं पुराणो में नवरात्रि के छठवें दिन पूजी जाने वाली मां कात्यायनी को छठी मैया बताया गया है। सनातन धर्म में उन्हें ब्रह्मा देव की मानस पुत्री माना गया है मानस पुत्री का मतलब होता है जिसके जन्म में शरीर की कोई भूमिका न हो सिर्फ मन के मिलन से उत्पन्न हुई कन्या को मानस कन्या कहा जाता है।

छठ महापर्व को पहली बार किसने किया था और यह पर्व कब शुरू हुई थी इस बात को ठीक ठीक कहा तो नहीं जा सकता, लेकिन एक बात जरूर कही जाती है कि इस पर्व को सबसे पहले महाभारत के समय में द्रोपती ने किया। 

बिहार का एक जिला है भागलपुर महाभारत के काल में इस जिला को अंग जिला के नाम से जाना जाता था और इस देश के जिला के राजा थे सूर्यपुत्र अंगराज कर्ण। अंगराज कर्ण भी छठ महापर्व किया करते थे और सूर्य भगवान को अर्घ देते थे। कर्ण तो सूर्य के ही पुत्र थे इसीलिए उनकी सूर्य उपासना और पिता उपासना और महाभारत के युद्ध के अंत समय में जब अर्जुन के तीर से वेद कर्मा अंगराज कर्ण वीरगति को प्राप्त हुए तब उस दिन आकाश में सूर्य भी रो पड़े थे अपने पुत्र को की मृत्यु को वह सहन नहीं कर पाए।

कौन हैं छठी मईया, कैसे हुई थी छठ महापर्व की शुरूआत और क्या है इस पर्व का महत्त्व

जिस प्रकार अंगराज कर्ण सूर्य देवता के साथ अपने पिता की उपासना करते थे ठीक उसी प्रकार छठ पूजा में और देने वाले सभी भक्त सूर्य देव के साथ अपने पिता को अर्ध देते हैं। इसीलिए छठ पूजा केवल एक पर्व नहीं है या हजारो वर्ष पूर्व में मौन हुए संबंध की पूजा है जो आज भी सभी भक्त निभाते आ रहे हैं। छठ महापर्व के समय दिल्ली, मुंबई जैसे शहरो में रहने वाले सभी उत्तर भारतीय सभी लोग अपने घर की और रुख करते हैं। ऐसा इसीलिए क्योंकि छठ महापर्व साल का एक ऐसा पर्व है जब मिट्टी और सभी के परिवार वाले एक साथ मिलकर उन्हें घर बुलाते हैं। 

इस समय की खुशबू उन्हें अपनेपन का एहसास याद दिलाती है, जब वह अपनो के साथ रहते हैं और छठ महापर्व को मनाते हैं। और एक बार घर पहुंचने के बाद इस चार दिवसीय छठ महापर्व के कार्यक्रम में सभी झूम उठते हैं उन्हें दिवाली के जाने का तो कोई एहसास ही नहीं होता। क्योंकि 4 दिनो के महापर्व के गमगमाहट में उन्हें अपनो के साथ जुड़ी भावनाए और इस महापर्व से जुड़ी भावनाए एक साथ गूंज उठती है।

नहाए खाए

छठ महापर्व का पहला दिन जिसे नहाए खाए कहा जाता है, इस दिन घर में अलग से खुशबू का अहसास होता है। चारों ओर किए गए साफ-सफाई के साथ इस दिन से घर में एक रौनक सी छा जाती हैं और सब के दिलो में पूजा को लेकर पवित्रता आ जाति है। इस दिन से सबका मन पवित्र हो जाता है घर आंगन के साथ इस समय घर के सभी सदस्य का ध्यान सिर्फ साफ-सफाई और पवित्रता पर ही होती हैै।

नहाए खाए के दिन चने के दाल और लौकी का बहुत महत्व होता है इस दिन साफ सफाई के साथ पूजा के बर्तन में नहाए खाए का भोजन बनता है। नहाए खाए के भोजन में लोगलौकी की सब्जी और चने की दाल बना बनाते हैं और घर के सभी लोगो से पहलेव्रत करने वाली को नहा धोकर पवित्र होकर भोजन करना पड़ता हैं।

छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना कहां जाता है इस दिन व्रतधारी एक बूंद पानी भी ग्रहण नहीं करती है। शाम को पूजा के लिए गेंहू के आटे से रोटिया बनाई जाती है उन रोटियों में शुद्ध गाए का घी लपेटा जाता है और गाए के दुध में खीर बनाई जाती है। कहा जाता है कि इसी दिन घर में सबसे पहले छठी मैया को पूजा जाता है और उन्हें पूजा के लिए आमंत्रण दिया जाता है। 

कौन हैं छठी मईया, कैसे हुई थी छठ महापर्व की शुरूआत और क्या है इस पर्व का महत्त्व

इस दिन पूजा करते हुए सब व्रती महिलाए छठी मैया से गुहार लगाती है कि पूजा के दौरान उनसे जो भी भूल चूक हो उन्हें छठी मैया माफ करें। भोलेपन और बेहद आस्था से उन्होंने व्रत रखा है इसीलिए छठी मैया उनके व्रत को पार लगाए और इसी समय से छठी मैया व्रति और उनके परिवार पर सहाय हो जाती हैं। इस समय से सभी काम अपने आप भरपुर ऊर्जा के साथ होने लगते हैं। 

इस समय सभी लोगो में एक अलग ही जोश और जुनून आ जाता है, क्योंकि इस व्रत में श्रद्धा रखने वालो के लिए और कुछ भी महत्त्व नहीं रखता। सच्चे भक्ति भाव के आलावा इस पर्व में ना ही किसी पुरोहित को बूलाना होता है, ना कोई यज्ञ कराना होता है, ना ही कोई मंत्र जाप करना पड़ता है और ना ही दान दक्षिणा देना होता है। छठ महापर्व में बनने वाले ठेकुआ प्रसाद की तुलना दुनिया का कोई भी व्यंजन नहीं कर सकता।

छठ पूजा के दिनो में इन गीतो को सुनने मात्र से मन भक्तिमय हो जाता है और इन गानो के साथ भावनाए भी जुड़ जाती है। इन भक्ति गीतो को एक बार सुनने के बाद सभी लोग छठ पूजा के महिमा को समझने लगते हैं। भोजपुरी, मैथिली, मगही, अंगिका आदि लोक भाषा में प्रचलित छठ पूजा के गीत ही इस पूजा के महामंत्र होते हैं, छठ पूजा के दिन इन गीतो की शक्ति किसी भी वैदिक मंत्र से कम नहीं होती। छठ के ऐसे भक्ति गीत जो नास्तिक को भी आस्तिक बनादे तो चलिए जानते हैं कुछ ऐसे पारम्परिक गीतो के बारे में। 

छठ महापर्व के कुछ पारंपरिक गीत

छठ पूजा के पारंपरिक गीत “उग हो सूरज देव” अनुराधा पौडवाल, देवी, कल्पना जैसे कई सिंगरो द्वारा गाया गया है यह गीत सुनने मात्र से मन भक्तिमयी हो जाता है। पूजा की शुरुआत होने के एक महीना पहले से ही यह गीत पूजा करने वालो के घरो में गूंजने लगता है।

“कांचे ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाए” यह गाना भी अनुराधा पौडवाल, देवी और कल्पना के द्वारा मधुर स्वर में गाए गए हैं। इसके अलावा “जोड़े जोड़े नारियल”, “सवा लाख के सारी भींजे”, ” कोपि कोपी बोलेली छठ मां”, “आव हो आदित देव” ये सभी छठ पूजा के पारंपरिक गीत हैं।

“केलवा के पात पर उगेलन सूरजमल झाके झुके” यह गीत सूर्य भगवान को प्रसन्न करने के लिए गाया जाता है। जिसका मतलब यह है कि केले के पेड़ के पत्ते के पीछे सूर्यदेव उगते हैं कभी दीखते हैं और कभी छूप जाते हैं, ये पारंपरिक गीत पूजा के समय व्रती द्वारा गाया जाता है।

भोजपूरी जगत के महान गायक पवन सिंह के भक्ति गीतो को सुनने के बाद आप इन गीतो को बार बार सुनने से रोक ही नहीं सकते। सूर्य देव और छठी मईया के लिए इन्होने कई भक्तिमुग्ध गीत गाए हैं जिनमें “केलवा के पतवा पे न्योता पेठवनी”, “पेन्हले महादेव पियारिया” जैसे भक्ति गीत प्रसिद्ध है।

पवन सिंह के छठ गीतो में “जल्दी उगी आज आदित गोसाईं”, ” रउवा से इहे हंथजोरिया नू हो”, “भूखल पियासल घटिया आइल बानी हो” “गोदिया में होइहें बालकवा”, “दिहीं दर्शन सूरज को गोसैया” ” बदरी चीर के बहरी आईं देव” आदि सभी भक्ति गीत पूजा के दिनों में सुनने में बहुत सुहावने लगते हैं।

इन सभी भक्तिमयी गीतो को गाकर छठ महापर्व में सूर्य देव और छठी मैया को प्रसन्न किया जाता है। यह गाने इतने पवित्र और मधुर होते हैं कि भक्ति भाव के कारण आंखो में आंसू आ जाते हैं। जिन लोगो को यह भाषाए समझ में नहीं भी आती है वह लोग भी इन गीतो की भक्ति भाव को समझ जाते हैं और सुनने के लिए आग्रही हो जाते हैं।

Jhuma Ray
Jhuma Ray
नमस्कार! मेरा नाम Jhuma Ray है। Writting मेरी Hobby या शौक नही, बल्कि मेरा जुनून है । नए नए विषयों पर Research करना और बेहतर से बेहतर जानकारियां निकालकर, उन्हों शब्दों से सजाना मुझे पसंद है। कृपया, आप लोग मेरे Articles को पढ़े और कोई भी सवाल या सुझाव हो तो निसंकोच मुझसे संपर्क करें। मैं अपने Readers के साथ एक खास रिश्ता बनाना चाहती हूँ। आशा है, आप लोग इसमें मेरा पूरा साथ देंगे।
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