गरुड़ पुराण में हमें ऐसे कई रहस्यो के बारे में पढ़ने को मिलता है जिन्हें जानकर कोई भी व्यक्ति अपने जीवन की गति को सुधार सकता है। गरुड़ पुराण के अनुसार आज हम जानेंगे कि मृत्यु के बाद जीवात्मा कितने दिनो तक घर में रहती है। आज के इस पोस्ट में हम इस बारे में जानेंगेे कि हमारे धर्म शास्त्र क्या कहते हैं और हमारे शास्त्रो में क्या क्या वर्णित है। गरुड़ पुराण वैष्णव संप्रदाय से संबंधित है और इस पुराण के अधिष्ठाता देव सृष्टि के पालन कर्ता भगवान विष्णु है।
गरुड़ पुराण के अनुसार कहा जाता है कि मृत्यु के बाद जब यमदूत व्यक्ति की आत्मा को ले जाते हैं। तब 24 घंटे तक उस व्यक्ति को उसके जीवन में किए गए सभी पुण्य कर्म और पाप कर्म को दिखाए जाते हैं और फिर 24 घंटे बाद उस व्यक्ति के आत्मा को फिर से उसी घर में रख दिया जाता है जहां उसकी मृत्यु हुई थी। 13 दिन तक वह आत्मा वहीं अपने परिवार के बीच रहती है। मोह व वासना से भरी वह जीवात्मा बार-बार अपने देह में प्रवेश करने का प्रयास तो बहुत करती है, लेकिन यम के द्वारा बंधे होने के कारण वह आत्मा कुछ भी करने में असमर्थ हो जाती है।

वह आत्मा अपने परिवार रिश्तेदार व मित्रो को उसकी मृत्यु का शोक मनाते देखती है। और आत्मा उन्हें चुप कराने का प्रयास भी करती है लेकिन उस आत्मा की उपस्थिति का ज्ञान किसी को नहीं होता। फिर वह अपने सामने स्वयं के मृत शरीर को देखती है और भूख प्यास से जोर-जोर से विलाप करते हुए रोने लगती है। इसके साथ-साथ गरुड़ पुराण में यह भी बताया गया है कि मनुष्य पुण्य कर्म तो करता है लेकिन उनके पुण्यो की संख्या उसके द्वारा किए गए पापो से कम होती है अर्थात मनुष्य पुण्य की अपेक्षा पाप अधिक करता है।
इसके समाधान स्वरूप मृत्यु के पश्चात पिंड दान करना आवश्यक बताया गया है। 10 दिनो तक जीवात्मा के उद्देश्य से मृतको के द्वारा पिंड दान दिए जाते हैं। अगर मृतक को पिंडदान नहीं किया गया तो जीवात्मा अनंत काल तक भटकती रहती है और हजारो सालो तक कष्ट भोगने के बाद अगला जन्म लेती है। प्रतिदिन दिए जाने वाले पिंड के चार भाग हो जाते हैं उसके 2 भाग से मृतक का शरीर बनता है। तीसरे भाग को यमदूत ले जाते हैं और चौथा भाग मृतक को खाने के लिए दिया जाता है। 9 दिन बाद प्रेत आत्मा पुनः शरीर में युक्त हो जाता है और शरीर बन जाने पर आत्मा को अत्यधिक भूख लगती है

गरुड़ पुराण के अनुसार 10 दिन तक दिए जाने वाले पिंड दान में विधि मंत्र, आवाहन और आशीर्वाद का प्रयोग नहीं होता। केवल नाम तथा गोत्र से पिंड दान दिया जाता है मृतक का दाह संस्कार हो जाने के पश्चात पुनः शरीर उत्पन्न होता है। व्यक्ति के जल जाने पर पिंडदान द्वारा उसे एक हाथ लंबा शरीर प्राप्त होता है। जिसके द्वारा वह प्राणी यमलोक के मार्ग में अपने शुभ अशुभ कर्मो को भोगता है।
पहले दिन जो पिंड दान दिया जाता है उससे मूर्धा दूसरे दिन के पिंड दान से ग्रीवा और स्कंध बनते हैं। तीसरे दिन के पिंडदान से हृदय चौथे दिन के पिंड दान से पृष्ठ भाग उत्पन्न होता है। पांचवे दिन के पिंडदान से आप उत्पन्न होता है छठे दिन के पिंड दान से कटी प्रदेश सातवें दिन की पिंडदान से पूरे भाग आठवें दिन के पिंडदान से नौवें दिन के पिंड दान से ताल्लुक अबे और दसवें दिन के पिंड दान से सुधा की उत्पत्ति होती है।
जीवात्मा शरीर प्राप्त करने के पश्चात भूख से पीड़ित होकर घर के द्वार पर रहता है। दसवें दिन जो पिंडदान होता है उसमें मृतक का प्रिय भोजन बना कर देना चाहिए क्योंकि शरीर निर्माण हो जाने पर मृतक को अत्यधिक भूख लगती है। प्रिय भोज्य पदार्थ के अतिरिक्त अन्य किसी भोजन का पिंड दान देने से उस आत्मा की भूख दूर नहीं होती। 11वें और 12वें दिन प्रेत भोजन करता है मरे हुए स्त्री पुरुष दोनों के लिए प्रेत शब्द का उच्चारण करना चाहिए। उन दिनो अन्न या वस्त्र जो कुछ भी दिया जाता है उसको प्रेत शब्द के द्वारा देना चाहिए, क्योंकि वह मृतक के लिए आनंददायक होता है।
13 दिन शरीर धारण करके भूख प्यास से पीड़ित प्रेत को वहां पर लाया जाता है और यहां से उसके यमलोक की यात्रा आरंभ होती है। मनुष्य अपने अच्छे या बुरे कर्मो के कारण ही मृत्यु के पश्चात होने वाली घटनाओ को भोगता है। जो व्यक्ति जितना पापी होगा उसका अंतिम मार्ग उतना ही कठिन होता है और वह जितना पुण्य कारी, निष्पत्ति और भगवत प्रेमी होगा उसकी स्वर्ग की यात्रा उतनी ही सरल व सुखदायक होगी। इसलिए हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि कर्मो का फल जीते जी ही नहीं अपितु मृत्यु के पश्चात भी भोगना होगा।

गोदान और वैतरणी नदी का संबंध
हमारे मृत्यु के बाद जब यमदूत हमें वैतरणी नदी पार करने के लिए ले जाती है तब वहां पर कई सारे मल्लाह आते हैं और कहते हैं कि कई प्रकार की मछलियो और मगरमच्छो से परिपूर्ण इस नदी को हम आराम से पार करवाएंगे। लेकिन अगर तुम्हारे द्वारा उस मृत्युलोक में गोदान कराया गया होगा तभी तुम इस नाव से पार जा सकोगे। मनुष्य का अंत समय आने पर वैतरणी नदी गोदान की हितकारी होती है। अगर महा वैतरणी नदी को पार करना है तो विद्वान पंडित या धर्मी ब्राह्मण को गौ दान करना चाहिए।
गोदान पापी के समस्त पापो को कम करके उसे सुख पूर्वक विष्णु लोक ले जाता है। वहीं जो लोग गोदान नहीं किए हैं तो वह लोग उसी वैतरणी में जाकर डूबते और बचते रहते हैं। इसी बीच उन पर कई जानलेवा खतरनाक जानवरो व मछलियो द्वारा डराया और कष्ट पहुंचाया जाता है। जो आत्मा जितना ज्यादा पापी होता है वह उस वैतरणी में उतना ही ज्यादा कष्ट भोगता है और अपने किए गए पाप के अनुसार आत्मा को उसी कष्टदाई वैतरणी नदी में रहना पड़ता है।
इस पोस्ट के माध्यम से गरुड़ पुराण के इन बातो को बताने का उद्देश्य यही है कि व्यक्ति उनके ज्ञान में वृद्धि करे व धर्म के प्रति अपनी जिज्ञासा को बढ़ाए।