सुप्रीम कोर्ट ने विवाहित और अविवाहित सभी महिलाओ को गर्भपात का अधिकार दे दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी महिला की वैवाहिक स्थिति को उसे अनचाहे गर्भ गिराने के अधिकार से वंचित नहीं कर सकती। सुप्रीम कोर्ट ने 25 साल की एक सिंगल युवती की अर्जी पर सुनवाई करते हुए यह फैसला लिया है। जिसके तहत अब अविवाहित महिलाओ को भी गर्भावस्था के 24 सप्ताह में कानून के तहत गर्भपात कराने का अधिकार होगा। चाहे महिला विवाहित हो या अविवाहित सभी वर्ग की महिला जो अनचाहे गर्भ को रखना नहीं चाहती वो अपना गर्भपात करवाने का अधिकार रखती है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी महिला की वैवाहिक स्थिति को देखते हुए अनचाहे गर्भ को गिराने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। इस फैसले में कोर्ट ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एमटीपी एक्ट के तहत 24 सप्ताह में गर्भपात का अधिकार सभी को होगा इस अधिकार में महिला के विवाहित या अविवाहित होने से कोई फर्क नहीं पड़ता।
साल 2021 के संशोधन में पति की जगह पार्टनर शब्द का उपयोग किया था। अदालत ने अभी नोट किया कि साल 2021 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट में किए गए संशोधन में अविवाहित महिला को भी शामिल करने के लिए पति के बजाय पार्टनर शब्द का उपयोग किया गया था।अदालत ने कहा कि संसदीय की मंशा वैवाहिक संबंधो से उत्पन्न होने वाले स्थितियो के लाभ को सीमित करना नहीं है। दरअसल यह एक विधवा या तलाकशुदा महिला को 20 से 24 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति है।
यह ऐतिहासिक फैसला करते हुए कोर्ट ने कहा कि उक्त कानून के नियम 3B के दायरे में एकल महिलाओ को शामिल करना अनुचित है। यह संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत सभी के समानता के मूल अधिकार का उल्लंघन है विवाहित और एकल महिलाओं को गर्भपात से रोकना और से केवल विवाहित महिलाओं को ही अनुमति देना संविधान में दिए गए नागरिकों के मूलभूत अधिकारो का हनन है।

क्यों किया कोर्ट ने यह फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने महिला अधिकारो की दिशा में इस फैसले को 25 वर्षीय एक अविवाहित युवती की याचिका पर सुनाया है। दरअसल इस युवती ने कोर्ट से 24 सप्ताह के गर्भ को गिराने की इजाजत मांगी थी लेकिन उस समय दिल्ली हाईकोर्ट ने उसे इसकी इजाजत नहीं दी थी। लेकिन बाद में कोर्ट ने युवती की याचिका को फिर से सुनवाई करने का फैसला लिया। फैसले के अनुसार यह तय किया गया कि विवाह एक महिलाएं भी अपने अनचाहे गर्भ को गिरा सकती है। लेकिन पहले मेडिकल बोर्ड को यह प्रमाणित करना होगा कि गर्भपात करने से महिला के जीवन को कोई खतरा नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता महिला गर्भधारण के कारण परेशानियो का सामना कर रही है जो कि कानून के खिलाफ है। दरअसल यह युवती सहमति से किए गए सेक्स के बाद गर्भवती हो गई थी उसने शीर्ष कोर्ट से गर्भपात की इजाजत देने की गुहार लगाते हुए कहा था कि वह पांच भाई-बहनो में सबसे बड़ी है। उसके माता-पिता की किसान है उसके पास अपनी आजीविका चलाने का कोई इंतजाम नहीं है इसीलिए वह बच्चे का पालन पोषण करने में असमर्थ होगी। लेकिन उस समय दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश में युवती को उसके गर्भ को समाप्त करने की इजाजत देने से इनकार कर दिया था।
कोर्ट ने उस समय यह फैसला इसीलिए सुनाया क्योंकि उस महिला का गर्भ धारण सहमति से बनाए गए संबंध की कारण से था। इस महिला ने अपने असफल रिश्ते का हवाला देते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, महिला ने बताया कि उसके साथी ने उसे अंतिम समय में छोड़ दिया। उसके वकील ने यह तर्क दिया कि मानसिक व सामाजिक कई बाधाओ जैसे सामाजिक कलंक ने महिला के गर्भावस्था को समाप्त करने के उद्देश्य से अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर किया।
इस फैसले को लेकर कोर्ट ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी अधिनियम साल 1971 के तहत कानून महिलाओ के प्रजनन अधिकार और शारीरिक अखंडता को मान्यता देता है। और महिलाओ को अवांछित गर्भावस्था से पीड़ित होने की अनुमति देना संसद की मनसा का उल्लंघन होगा। कानून ने यह फैसला इसलिए लिया क्योंकि विवाहित और अविवाहित महिला के बीच के अंतर का कानून में दिए गए स्पष्टीकरण से कोई संबंध नहीं है। संसद का इरादा केवल वैवाहिक संबंधो तक अधिनियम के लाभो को सीमित करना नहीं है।

कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि चाहे महिला विवाहित हो या अविवाहित किसी भी महिला से उसके गर्भ को रखने या खतम करने के छेत्र में उस महिला को फैसला लेने के अधिकार से वंचित रखना उसकी गरिमा को कुचलने जैसा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी साल 2021 में जो बदलाव किया गया है, उसके तहत एक्ट में महिला और उसके पार्टनर शब्द का उपयोग हुआ है। वहां पार्टनर शब्द का उपयोग है ना कि पति शब्द का ऐसे में वह महिलाए जो अपने पार्टनर के साथ होने वाले असफल संबंध या किसी धोखे का शिकार होने के कारण गर्भपात करवाना चाहती है वह महिलाए भी इस दायरे में आती हैं और उन्हे गर्भपात करवाने का पुरा अधिकार है।
गर्भपात को लेकर विवाहित महिला के लिए कोर्ट का फैसला
सर्वोच्च अदालत ने गर्भपात को लेकर कहा कि अविवाहित और विवाहित महिलाओ के बीच भेदभाद नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला चाहे विवाहित हो या अविवाहित सभी को सुरक्षित गर्भपात कराने का पुरा अधिकार होना चाहिए और इस क्षेत्र में वह फैसला लेने का पूरा अधिकार रखती है। चलिए जानते किन परिस्थितियो में गर्भधारण होने के बाद महिलाए 24 सप्ताह तक गर्भपात कराने का अधिकार रखती है।
* बलात्कार या यौन अनाचार के कारण गर्भावस्था
* नाबालिग अवस्था में ही गर्भावस्था होना
* विधवा और तलाकशुदा महिला का गर्भावस्था होना
* शारीरिक रूप से दिव्यांग महिलाए
* मानसिक रूप से बीमार महिलाए
* बच्चे के पैदा होने के बाद किसी भी प्रकार से शारीरिक या मानसिक रूप से दिव्यांग होने की संभावना होना।
* भूल या आपातकालीन स्थितियों में गर्भाधारण करने वाली महिलाएं
* गर्भावस्था के दौरान महिला पर खतरा वाली स्थिति में
तो वहीं विवाहित महिलाओ के क्षेत्र में गर्भपात को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाए गए फैसले में कहा गया कि पति द्वारा किए जाने वाले दुष्कर्म, ‘मैरिटल रेप’ यानी ‘वैवाहिक बलात्कार’ के क्षेत्र में भी 24 सप्ताह की तय सीमा में पत्नी गर्भपात करा सकती हैं। यह अधिकार उन महिलाओ को बहुत राहत देगा जो अनचाहे गर्भ को रखने के लिए विवश है। MTP अधिनियम की व्याख्या करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उक्त कानून में वैवाहिक बलात्कार मैरिटल रेप को भी शामिल माना जाना चाहिए। अदालत ने अपने फैसले में MTP अधिनियम की व्याख्या करते हुए यह व्यवस्था दी है।

कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक जीवन में पति के ज़बरन शारीरिक संबंध बनाने के कारण से हुई गर्भावस्था भी एमटीपी एक्ट यानी मेडिकल टर्मिनेशन प्रेग्नेंसी क़ानून के दायरे में आती है। भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के दायरे में वैवाहिक बलात्कार अभी नहीं है और सुप्रीम कोर्ट के दुसरे टेबल पर यह मामला अभी लंबित है। लेकिन कोर्ट के इस फैसले से भविष्य में मैरिटल रेप को लेकर को जो भी फैसला होगा उसे अभी से मजबूती मिल रही है। कई दशको से गर्भपात देश-विदेश में महिलाओ के लिए संघर्ष का मुद्दा रहा है।
विकसित देश हो या विकासशील, अबॉर्शन को लेकर हर जगह वाद-विवाद की एक जैसी ही मानसिकता होती है। हाल ही में, अमेरिका में गर्भपात को लेकर हुए फ़ैसले को रूढ़िवादी और महिलाओ के अधिकार के ख़िलाफ़ माना गया। वहीं अब भारत की सर्वोच्च अदालत ने सभी महिलाओ को सुरक्षित और क़ानूनी गर्भपात को हर एक महिला का अधिकार बताते हुए इसका दायरा बढ़ाया है। जिसके अनुसार अब गर्भपात के नियम के दायरे से अविवाहित महिलाओ को बाहर रखना असंवैधानिक है। इसलिए अविवाहित महिलाए भी 24 हफ़्ते तक की गर्भावस्था को ख़त्म करवाने का पूर्ण रूप से अधिकार रखती है।
अबॉर्शन करवाना एक महिला का मूलभूत अधिकार है जो हर नारीवादी आंदोलन की एक प्रमुख मांग रही है। अनचाहा असुरक्षित अबॉर्शन व गर्भधारण ये दोनो ही महिलाओ के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता आया है। पितृसत्तात्मक समाज में जहां महिलाओ का अपने शरीर और प्रजनन पर कोई अधिकार नहीं है ऐसे में अनचाहा गर्भ महिलाओ के लिए शोषण का एक ज़रिया बन चुका है। समाजिक राजनीतिक जैसे किसी भी प्रक्रिया में प्रभावी रूप से भाग लेने में पूरी तरह से सक्षम होने के लिए महिलाओ के पास अपने शरीर पर पूर्ण नियंत्रण होना अनिवार्य है फिर चाहे कोई महिला विवाहित हो या अविवाहित।