आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होने वाले नवरात्रि पर्व में माता भगवती का व्रत रखके जागरण कर सभी भक्त लोग माता रानी से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। भारत में भी खास करके उत्तर भारत में तो नवरात्रि की रौनक और पूजा पंडाल बहुत ही मनमोहक होती है। नवरात्रि के दौरान 9 दिनों तक माता रानी के नौ रूपो की पूजा होती है और इस पूजा को करने से हमारी सभी मंगल कामनाए पूर्ण होती हैंं। तो आइए जानते हैं माता रानी के नौ रूपो के बारे में और कौन कौन से है माता के नौ रूप।
शैलपुत्री
नवरात्रि के प्रथम दिन माता शैलपुत्री का पूजन होता है। पर्वतराज हिमालय के घर देवी मां ने पुत्री के रूप में जन्म लिया था इसी कारण इनका नाम शैलपुत्री हुआ। मां शैलपुत्री प्रकृति की प्रतीक मानी जाती हैं प्रत्येक क्षेत्र में सर्वोच्च शिखर सफलता प्रदान करने वाली है होती है देवी के दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल रहता है। मां शैलपुत्री का वाहन वृषभ यानी की बैल होता है मां के इस रूप को खासकर के सफेद रंग की वस्तु चढ़ाई जाती है।

इस दिन माता रानी को लाल और सफेद पुष्प चढ़ाए जाते हैं और दूध से बनी मिठाई के भोग लगाए जाते हैं। मां शैलपुत्री की पूजा करने से रोग व्याधि दूर होते हैं और दरिद्रता मिटती है। मां शैलपुत्री की पूजा करके “या देवी सर्वभूतेषु प्रकृति रूपेण संस्थिता नमस्तस्ए नमस्तस्ए नमस्तस्ए नमो नमः” मंत्र का जाप जरूर करना चाहिए।
ब्रह्मचारिणी
नवरात्रि के दूसरे दिन माता रानी के दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है। ब्रह्म का अर्थ होता है जिसका कोई अंत नहीं आने की ब्रह्मचारिणी ब्रह्मा स्वरूपा चेतना का स्वरूप माता ब्रह्मचारिणी नवरात्रि के दूसरे दिन पूजी जाती हैं। नारद मुनि के कहने पर इस देवी ने शिवजी को पति रूप में पाने के लिए भरपूर तपस्या किया था जो भी भक्त ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा करते हैं वह असीमित शक्तियो को प्राप्त करने वाले होते हैं। मां ब्रह्मचारिणी के एक हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में जप की माला रहती है।

देवी दुर्गा का यह स्वरूप संघर्ष से विचलित हुए बिना अपने मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने वाली होती है। मां ब्रह्मचारिणी को कमल और गुड़हल के पुष्प अर्पित करने चाहिए और चीनी, मिश्री, पंचामृत आदि का भोग लगाना चाहिए इससे देवी प्रसन्न होकर दीर्घायु और सौभाग्य का वरदान देती है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने के बाद “या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता नमस्तस्ए नमस्तस्ए नमस्तस्ए नमो नमः मंत्र का जाप करना चाहिए।
चंद्रघंटा
मां दुर्गा का पहला शैलपुत्री और दूसरा ब्रह्मचारिणी स्वरूप भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए है, जब माता भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त कर लेती हैं तब वह आदिशक्ति के रूप में प्रकट होती है और चंद्रघंटा बन जाती हैं। नवरात्री के तीसरे दिन मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप चंद्रघंटा की पूजा होती है। देवी भागवत पुराण के अनुसार, मां दुर्गा का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी होता है। मां चंद्रघंटा के मस्तक पर घण्टे के आकार का अर्धचंद्र होता है इसीलिए देवी का नाम चंद्रघण्टा पड़ा है। मां दुर्गा की यह शक्ति तृतीय चक्र पर विराज कर ब्रह्माण्ड से सब कुछ संतुलित करती है और महाआकर्षण प्रदान करती है।

चंद्रघण्टा माता की उपासना करने से भक्त अपने सभी सांसारिक कष्टो से मुक्ति पा लेता है। चंद्रघंटा माता के 10 हाथ होते हैं जिनमें वह कमल के फूल, त्रिशूल, कमंडल, गधा, तलवार, धनुष और बाण लिए रहती है। माता का यह रूप आभूषणो से सुशोभित रहता है और गले में सफेद फूल की माला रहती है। माता के इस स्वरूप का वाहन बाघ होता है माता का घंटा भक्तों को संसारी कष्टों से मुक्ति दिलाने वाला होता है, माता के इस रुप की पूजा करने से हमारा मन नियंत्रण में रहता है। नवरात्रि के के तीसरे दिन चंद्रघंटा की पूजा करने के बाद माता को दूध से बने पदार्थों का भोग लगाना चाहिए और इनकी साधना का मंत्र है “ॐ देवी चंद्रघंटाय नमः”
कुष्मांडा
देवी दुर्गा के नौ रूपो में छठ्ठा रूप होता है कुष्मांडा। कुष्मांडायानि “कु” का अर्थ होता है छोटा “ऊष्मा” का अर्थ होता है ऊर्जा और “अंंडा” ब्रह्मांड यानि ब्रह्माडिय गोला का प्रतीक होता है। हिंदू धर्म के अनुसार जब ब्रह्मांड में अंधकार छा गया था तब देवी माता ने अपनी मंद मुस्कान से पूरे विश्व में उजाला किया। तभी से माता को कुष्मांडा कहा जाता है माना जाता है कि इस देवी का निवास सूर्यलोक में भी है क्योंकि इस लोक में निवास करने की क्षमता केवल इन्हीं के पास है। मां कुष्मांडा के आठ भुजाएं हैं जिनमें सात भुजाओ में वह कमल के फूल, अमृत, कलश आदि लिए रहती है। नवरात्रि के चौथे दिन कुष्मांडा मां की पूजाकरनी चाहिए इनकी पूजा का मंत्र है “या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता नमस्तस्ए नमस्तस्ए नमस्तस्ए नमो नमः” ।
स्कंदमाता
नवरात्रि के पांचवे दिन देवी स्कंदमाता का पूजन होता है। देवी शक्ति के साथ जब इस ब्रह्मांड में व्याप्त शिव तत्व का मिलन होता है तब स्कन्द का जन्म होता है और स्कन्द की माता होने के कारण इनका नाम स्कंदमाता है। स्कंदमाता के छह भुजाए है जिसमें ऊपर के दाहिनी भुजा में स्कंदमाता अपने बाल रूप स्कंध को पकड़े रहती है। नीचे वाली दोनों भुजाओ में माता कमल के पुष्प लिए रहती है और इनका वाहन सिंह है। कहा जाता है कि माता का ध्यान करने से सुख शांति आती है देेवी मां के इस रुप को ज्ञान का प्रतीक माना जाता हैै। इस दिन माता की पूजा करने के बाद केले का भोग लगाना चाहिए उनकी पूजा का मंत्र है “या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता नमस्तस्ए नमस्तस्ए नमस्तस्ए नमो नमः”।

कात्यायनी
नवरात्रि के छठे दिन माता कात्यायनी की पूजा होती है कात्यायन ऋषि के वंश में जन्म लेने के कारण माता का नाम कात्यायनी पड़ा। देवी मां का यह रूप दिव्य, गुप्त रहस्यमयी और शुद्धता की प्रतीक मानी जाती है मां कात्यायनी माता की पूजा करने से नकारात्मकता दूर होती है और सकारात्मकता आती है। चारभुजा वाली देवी के इस रूप का वर्ण सुनहरा चमकीला आभूषणो से सजा होता है। कात्यायनी देवी का वाहन सिंह होता है और इनके एक हाथ में तलवार रहता है। कागजों से माता की पूजा करने वाले भक्तों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन कात्यायनी माता की उपासना करके शहद का भोग लगाना चाहिए। ऐसा करने से जीवन में खुशहाली आती है कात्यायनी देवी के पूजा का मंत्र है “या देवी सर्वभूतेषु स्मृति रूपेण संस्थिता नमस्तस्ए नमस्तस्ए नमस्तस्ए नमो नमः”।
कालरात्रि
माता रानी का सातवां रूप कालरात्रि का है कालरात्रि यानि काली मां वैसे तो कालरात्रि मां का देखने में डरावनी लगती है लेकिन माता का यह रूप भय से मुक्ति दिलाने वाला होता है। नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना करनी चाहिए उनकी पूजा करने से प्रतिकूल ग्रहो द्वारा उत्पन्न दुष्प्रभाव और बाधा नष्ट हो जाती हैं। माता का यह रूप भयावह होता है लेकिन भयावह रूप के पीछे दयालु और शुभ फलदाई होती है। ये देवी काल पर भी विजय प्राप्त करने वाली होती है मां कालरात्रि का वर्ण घोर अंधकार की भांति काला होता है। इनके बाल घुंगरालू और लंबे होते हैं तथा यह माता अत्यंत तेजस्वी तीन नेत्र वाली होती हैं।

मां कालरात्रि माता के तन का ऊपरी भाग लाल रक्त वस्त्र से और नीचे का भाग चमड़े से ढका होता है। कालरात्रि माता के एक हाथ में वज्र होता है तथा और एक हाथ में चंद्रहास होता है। माता रानी के इस रूप का सातवें दिन उपासना करनी चाहिए इस दिन माता की पूजा करने से सभी बाधाओ से मुक्ति मिलती है और इनकी पूजा का मंत्र है “ॐ ऐं हींग क्लींग चामुंडायै विच्चे नमः”।
महागौरी
नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा होती है। मान्यता के अनुसार पार्वती माता ने जब भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया तो उनका देख काला पड़ गया और प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। भगवान शिव ने अपनी जटा से निकलती पवित्र गंगा की जल धारा माता पर अर्पित करके माता का रंग गोरा कर दिया। महागौरी का वर्ण श्वेत और उनका वाहन श्वेत वृषभ है माता रानी का आठवां स्वरूप बहुत ही शांत होता है। सभी सुहागिनो के लिए इस दिन का बहुत महत्व होता है क्योंकि माता रानी का यह रूप सुहागिनो को सुहाग देने वाला होता है। इनको भोग में नारियल चढ़ाना चाहिए महागौरी माता के पूजा का मंत्र है “सर्व मांगल मांगल्य शिवे सर्वार्थ साधिके, शरण्य त्रिअम्बीके गौरी नारायणी नमोस्तुते”।
सिद्धिदात्री
नवरात्रि का अंतिम और आखिरी दिन सिद्धिदात्री माता की पूजा होती है यह देवी माता का नौवा रूप है। पुराणो में बताया जाता है कि भगवान शिव को भी अपनी सिद्धिया प्राप्त करने के लिए सिद्धिदात्री यानी माता के इस स्वरूप की पूजा करनी पड़ी थी तभी उन्हें सिद्धियां प्राप्त हुई। सिद्धिदात्री माता के कारण ही अर्धनारीश्वर का जन्म हुआ, इनका वाहन सिंह है और ये देवी चतुर्भुज होती है। देवी के ऊपर वाले हाथ में गदा, नीचे वाले हाथ में चक्र रहता है, बाएं ऊपर हाथ में पुष्प और नीचे के हाथ में शंख होता है। नवमी के दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा उपासना करके कन्या पूजन किया जाता है और नव दुर्गा की उपासना की जाती है। ऐसा करने से देवी सबसे ज्यादा प्रसन्न होती है इनकी पूजा करके हलवा, पूरी, चना, खीर आदि का भोग लगाना चाहिए। इनकी पूजा का मंत्र है “ओम महालक्ष्मी विद्महे, विष्णु प्रियाए धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात” और “या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता नमस्तस्ए नमस्तस्ए नमस्तस्ए नमो नमः”।