दोस्तो ज्यादातर लोग यह बात नहीं जानते की नवजात शिशु और ऋषि-मुनियो को उनकी मृत्यु के बाद जलाने के बदले दफनाया क्यो जाता है। गरुड़ पुराण में वर्णित कथा के अनुसार कहा जाता है कि पक्षी गरुड जब भगवान विष्णु से पूछते हैं यह बात पूछते हैं तब भगवान विष्णु हमसे कहते हैं की अगर किसी स्त्री का गर्भपात हो जाए या 2 साल के किसी बच्चे की मृत्यु हो जाए तो उसे जलाने के बदले जमीन में गड्ढा खोद कर दफना दिया जाता है और इससे अधिक उम्र के व्यक्ति की मृत्यु होने पर ही जलाना चाहिए। आज के इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको बताएंगे कि कितने उम्र के बालक बालिकाओ को हिंदू धर्म में के अनुसार दफनाने का वर्णन किया गया है।
गरुड़ पुराण के अनुसार कहा जाता है कि जब कोई बच्चा जन्म लेता है तो 2 साल तक वह दुनियादारी मोह माया से बंधा होता है ऐसी स्थिति में उसके शरीर में मौजूद आत्मा को किसी से मोह नहीं होता। ऐसे में अगर कोई 2 वर्ष से कम उम्र का बच्चा मृत्यु को प्राप्त हो जाता है तो उस बच्चे के शरीर को मिट्टी में दफना दिया जाता है इस तरह दफनाने से आत्मा शरीर का त्याग कर देता है और पुनः उस शरीर में प्रवेश करने का प्रयास नहीं करता।
लेकिन इसके विपरित जैसे-जैसे मनुष्य बड़ा होते जाता है उसमें मोह माया दुनियादारी की समझ बड़ने लगती है। जिस कारण वह मृत्यु के बाद भी उस शरीर में मौजूद आत्मा फिर से उस शरीर में जानेे का प्रयास करता हैै। क्योंकि व्यक्ति की मृत्यु के बाद उस व्यक्ति की आत्मा तब तक उस शरीर में प्रवेश करने का प्रयास करता है जब तक उस शरीर को जला न दिया जाए।

मृत्यु के बाद जब शरीर को जला दिया जाता है तो वह अग्नि द्वारा मुक्त हो जाता है जिसके बाद उस आत्मा को किसी के साथ कोई लगाव नहीं रहता। गरुड़ पुराण के अनुसार अग्नि संस्कार यानी कि दाह संस्कार शरीर से आत्मा के अलगाव का ही एक रूप होता है।
दरअसल हिंदू धर्म में अग्नि को ही प्रवेश द्वार माना गया है मृत्यु के बाद अगर शव को जलाया जाता है तभी वह आध्यात्मिक दुनिया में प्रवेश कर पाता है।लेकिन ऐसे बच्चे जिन्होंने ज्यादा जीवन नहीं देखा है उनकी आत्मा को अपने शरीर से कोई लगाव नहीं रहता। जिस कारण बच्चे की आत्मा शरीर छोड़ने के बाद अपने शरीर को छोड़ने में आसानी से सक्षम हो पाते हैं, इसीलिए उनकी मृत्यु हो जाने पर शव को जलाने के बदले दफनाने का विधान है।
इसके अलावा अगर बात करें संत पुरुष और भिक्षुओ की तो इन्हें भी जलाने के बदले दफनाने का विधान है। ऐसा कहा जाता है कि संत महापुरुष अपने तप और ध्यान के कठोर तपस्या और आध्यात्मिक शक्ति से अपने मन और इंद्रियो को नियंत्रित कर लेते हैं। उन्हें मोह माया काम क्रोध लोभ आदि जैसे किसी भी प्रवृति से लगाव नहीं होता।
ऐसे में जब मनुष्य की मृत्यु होती है तब शरीर में मौजूद आत्मा को शरीर से कोई लगाव नहीं रहता और वह बिना किसी बाधा के बैकुंठ धाम चले जाते हैं। इसके अलावा गरुण पुराण में भगवान विष्णु ने बताया है कि जब किसी बच्चे की मृत्यु हो जाए तो उसकी आत्मा की शांति के लिए क्या करना चाहिए।

भगवान विष्णु ने बताया है कि जब किसी शिशु की मृत्यु हो जाती है तो उस बच्चे के आत्मा की शांति के लिए दूध का दान करना चाहिए। ऐसा करने से बच्चे की आत्मा को शांति मिलती है या फिर जितने महीने के बाद वह बच्चा मृत्यु को प्राप्त होता है यानि मरने वाले शिशु की उम्र जितने महीने की हो उतने बच्चों को अपने हाथो से दूध पिलाना चाहिए।
क्योंकि बच्चे की मृत्यु के बाद उनका श्राद्ध नहीं किया जाता है किसी भी बच्चे का विधि विधान से श्राद्ध तभी किया जा सकता है जब बच्चे का चूड़ाकरण संस्कार यानी कि मुंडन हो गया हो या फिर उसका उपनयन संस्कार हो गया हो। भगवान विष्णु कहते हैं कि मृत्यु को प्राप्त होने वाले बच्चे के माता-पिता को हो सके तो वस्त्र दान करने चाहिए। जितने हो सके उतना दान करने से बच्चे की आत्मा को शांति मिलती है और मृत्यु को प्राप्त हुए बच्चे को जल्दी ही एक नया शरीर प्राप्त हो जाता है।
इसके आलावा भगवान विष्णु जी ने कहा है कि बच्चे की मृत्यु के बाद बच्चो को जहां दफनाया जाता है उस जगह को साफ सुथरा करके रखना चाहिए। उस जगह को गोबर और गंगाजल की मदद से हमेशा पवित्र करते रहना चाहिए और उस जगह पर एक तुलसी का पौधा भी लगाना चाहिए। मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु ऐसा कहते हैं कि जहां तुलसी का पौधा होता है वहां मैं स्वयं निवास करता हूं और ऐसे मे मृत आत्मा को जल्दी ही मुक्ति मिल जाती हैं।