हिंदू धर्म में भगवान शिव देवो के देव महादेव कहलाते हैं और शायद इसीलिए भगवान शिव के इतने ज्यादा भक्त होते हैं। श्रावण मास आते ही शिव भक्त झूम उठते हैं और भगवान शिव की भक्ति में लीन हो जाते हैं। भगवान शिव को जल्दी से प्रसन्न करना बेहद आसान बताया जाता है क्योंकि भगवान शिव सच्चे दिल से की गई पूजा से जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और इसीलिए भगवान शिव आशुतोष के नाम से भी जाने जाते हैं।
आज के इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको बताएंगे श्रावण का महीना भगवान शिव को इतना प्रिय क्यों है ? साथ ही श्रावण मास में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हमें किन किन नियमो का पालन करना चाहिए और किस विधि का प्रयोग करना चाहिए। ऐसे कौन से कार्य है जो हमें श्रावण मास में नहीं करने चाहिए और ऐसे कौन से कार्य है जिन्हें करके हम भगवान शिव को जल्दी प्रसन्न कर सकते हैं तो चलिए जानते हैं।
भगवान शिव की पूजा में जल का महत्व
भगवान शिव को सावन का महीना बेहद प्रिय होता है और इसीलिए श्रावण के महीने में भगवान शिव जी की पूजा करने से हमारी मनोकामना जल्द ही पूरी हो जाती है। कहा जाता है कि भगवान शिव जी को जल बेहद प्रिय होता है शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव खुद ही जल है। पौराणिक कथा अनुसार शिव जी पर जल चढ़ाने का महत्व समुद्र मंथन की कथा से जुड़ा हुआ है।
समुद्र मंथन से उत्पन्न अग्नि के समान विष से इस सम्पूर्ण धरती का नाश हो जाता और इस सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव जी ने विष पान कर लिया। भगवान शिव ही एक ऐसे देव थे जिनके पास उस विष को पीने की शक्ति थी और उस विष को पीने के बाद शिव जी का कंठ पूरी तरह नीला पर गया।
जिसके बाद समस्त देवी देवताओ उस विश्व की उष्णता को शांत करने के लिए और शिव जी को शीतलता प्रदान करने के लिए इसी श्रावण के महीने में उन्हें जल अर्पित किया था। इसीलिए हिंदू धर्म में हर भक्त भगवान शिव की पूजा में जल चढ़ाता है ऐसा करने से भगवान शिव को विष के प्रभाव से राहत मिलती है।
शास्त्र के अनुसार रुद्राभिषेक करने से भगवान शिव बेहद जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। शिव ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर किसी के जन्म कुंडली में किसी प्रकार ग्रह या महादशा चल रहा है तो भगवान शिवजी की उपासना तथा रुद्राभिषेक करने से सारी बाधा दूर होती है और पुण्य फल की प्राप्ति होती हैं। भगवान शिव शंकर को अभिषेक अति प्रिय है अभिषेक को शिव की आराधना और स्तुति में विशेष प्रशस्त माना गया है।
श्रावण मास में कई प्रकार वस्तुओ से रुद्राभिषेक कराने का महत्व बताया जाता है जिसमें जल में दूध मिलाकर भगवान शिव को रुद्राभिषेक किया जाता है। उसी जल में गाय का शुद्ध घी, गन्ने का रस, शहद, दही आदि मिलाकर भगवान शिव के रुद्राभिषेक करने सेे सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैै। शिव पुराण के रूद्र संहिता के अनुसार जो भी भक्त तुलसी दल और कमल के सफेद फूल से भगवान शिव जी की पूजा करते है तो उन्हें मोक्ष प्राप्ति होती हैं।
भगवान शिव को श्रावण मास क्यों होता है प्रिय
पौराणिक मान्यता अनुसार इस सृष्टि के आरंभ से ही त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश इस सम्पूर्ण सृष्टि की रक्षा करते आ रहे हैं। लेकिन श्रावण मास प्रारंभ होने से ठीक पहले विष्णु जी देव शयनी एकादशी पर योग निद्रा में चले जाते हैं और सृष्टि के पालन की सारी जिम्मेदारी भगवान शिव पर आ जाती हैं। ऐसे में सावन मास प्रारंभ होते ही भगवान शिव जागृत हो जाते हैं और माता पार्वती के साथ पृथ्वी लोक पर भ्रमण करने निकल पड़ते हैं। इसीलिए श्रावण का महीना भगवान शिव और माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए खास माना जाता है। क्योंकि इस समय भगवान शिव धरती पर आते हैं और समस्त भक्तो के दुख सुख को सुनते हैं। ऐसे में अगर भगवान शिव को प्रसन्न करके कुछ मांगा जाए तो भगवान शिव अपने भक्तो को निराश नहीं करते।
एक और प्रचलित कथा के अनुसार कहा जाता है कि श्रावण महीने में भगवान शिव जी ने समुद्र मंथन से निकले हुए विष को पीकर इस सृष्टि की रक्षा की थी। इसीलिए इस महीने को भगवान शिव जी का प्रिय महीना माना जाता है और ये महीना शिव जी की पूजा के लिए शुभ होता है। भगवान शिव को श्रावण मास प्रिय होने के पीछे एक और वजह भी बताई जाती है। कहा जाता है कि श्रावण मास में सबसे ज्यादा वर्षा होती है और अधिक वर्षा शिव जी को बेहद प्रिय होता है। क्योंकि वर्षा होने से विष से प्रभावित हुए भगवान शिव को ठंडक प्राप्त होता है इसीलिए भी भगवान शिव को श्रावण महीना प्रिया बताया जाता है।

माता पार्वती से जुड़ी एक कथा अनुसार कहा जाता है कि इस श्रावण के महीने में देवी सती ने उनके पिता दक्ष के घर योग शक्ति से अपना शरीर त्यागने से पूर्व शिव जी को हर जन्म में अपने पति के रूप में पाने का प्रण लिया था। इसीलिए उन्होंने अपने दूसरे जन्म में पार्वती के रूप में भगवान शिव जी की पूजा की और सावन के महीने में कठोर तप किया जिससे उन्हें शिव जी की पत्नी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और तभी से यह महीना शिव जी का प्रिय महीना माना गया है। इसीलिए कहा जाता है कि सावन मास से प्रारंभ करके सोलह सोमवार का व्रत करने से कन्याओ को सुंदर पति और पुरषो को सर्वगुण संपन्न पत्निया मिलती है।
भगवान शिव को अवश्य चढ़ाएं बेलपत्र
भगवान शिव जी के तीन नेत्र होते हैं और इन तीन नेत्रो का प्रतीक होता है बेलपत्र तीन पत्तो वाले बेलपत्र शिव जी को बेहद प्रिय होता है। भगवान शिव जी की पूजा में अभिषेक और बेलपत्र का प्रथम स्थान होता है ऋषियो ने बताया है कि भगवान शिव को एक बेलपत्र अर्पित करने का मतलब एक करोड़ कन्याओ के कन्यादान का फल मिलना होता है।
क्यों है भगवान शिव को भांग धतूरा प्रिय
धतूरा भगवान शिव जी को धतूरा बेहद प्रिया होता है इसके पीछे पुराणो में धार्मिक कारण बताया गया है। साथ ही सब वैज्ञानिक आधार भी बताया जाता है भगवान शिव जी को कैलाश पर्वत पर विराजमान रहते हैं और यहां अत्यंत ठंड पड़ती है जहां पर आहार औषधि की जरूरत होती है जो कि शरीर को ऊष्मा प्रदान कर सके। वैज्ञानिक दृष्टि से कहा जाता है कि धतूरा सीमित मात्रा में लिया जाए तो औषधि का काम करता है और शरीर को अंदर से गर्म रखता है।
तो वही धार्मिक दृष्टि से इसका कारण देवी भागवत पुराण में बताया गया है इस पुराण के अनुसार भगवान शिव जी जब सागर मंथन से निकले विष को पी लिए थे तो वह व्याकुल होने लगे। उस समय भांग, धतूरा, बेल पत्र आदि जैसे कड़वे औषधियो से शिवजी की व्याकुलता को दूर की गई थी। इसीलिए भगवान शिव जी को भांग धतूरा प्रिय हो गया और शिवलिंग पर भांग धतूरा बेल पत्र आदि चढ़ाया जाने लगा।
* भांग
भगवान शिव जी हमेशा ध्यान मग्न रहते हैं भांग ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है इससे भगवान शिव जी हमेशा ध्यान मग्न रहते हैं। इस धरती के कल्याण के लिए भगवान शिव जी ने समुद्र मंथन से उत्पन्न हुए विष को अपने गले से उतार लिया। भगवान शिव जी को औषधि स्वरूप भांग दी गई और भगवान शिव ने हर कड़वाहट, नकारात्मकता को आत्मसात कर पीते गए इसीलिए भांग भी उन्हें प्रिय हो गया। भगवान शिव इस बात के लिए भी जाने जाते हैं कि संसार में फैली हर एक बुराई और हर एक नकारात्मक चीज को वह अपने भीतर ग्रहण कर लेते हैं और इस संसार को अपने भक्तो को हर एक विष और नकारात्मक प्रभाव से बचाते हैं।
* चंदन
चंदन का संबंध शीतलता से है भगवान शिव के मस्तक पर चंदन का त्रिपुंड लगाया जाता है। चंदन का प्रयोग अक्सर हवन में भी किया जाता है इसकी खुशबू से वातावरण खिल जाता है। कहा जाता है कि भगवान शिव जी को चंदन चढ़ाया जाता है इससे व्यक्ति को समाज में मान सम्मान मिलता है और यश की वृद्धि होती है।
* अक्षत
चावल को अक्षत कहा जाता है अक्षत का मतलब होता है जो टूटा हुआ ना हो और इसका रंग सफेद होता है भगवान शिव जी की पूजा में अक्षत का उपयोग अनिवार्य होता है। किसी भी पूजा के समय गुलाल, हल्दी, अबीर, कुमकुम अर्पित करने के बाद अक्षत भी चढ़ाया जाता है शिवजी की पूजा भी अक्षत के बिना अधूरी मानी जाती है। यहां तक की अगर किसी पूजा में आवश्यक कोई भी सामग्री उपलब्ध हो तो उसके बदले अक्षत चढ़ाने से भी पूजा संपन्न हो जाती है।

* भस्म
भगवान शिव जी को भस्म चढ़ाया जाता है सभी देवो में भगवान शिव एक ऐसे देव हैं जिन्हें ऐसे अनोखी चीज चढ़ाई जाती है, जो किसी भी देवी या देवता को नहीं चढ़ता जिसमें भस्म भी एक महत्वपूर्ण सामग्री होती है। भस्म पवित्रता को दर्शाता है वह पवित्रता जिसे भगवान शिव जी ने एक मृत व्यक्ति की जली हुई चिता से खोजा हैै।
उस पवित्रता को और उस भस्म को भगवान शिव अपने तन पर लगाकर सम्मान देते हैं। कहा जाता है कि शरीर पर भस्म लगाकर भगवान शिव जी खुद को मृत आत्मा से जोड़ते हैं। उनके अनुसार मरने के बाद मृत व्यक्ति को जलाने के पश्चात बची हुई राख में उनके जीवन का कोई काम शेष नहीं रहता। ना उसका दुख, ना उसका सुख, ना उसकी कोई बुराई और ना ही उसकी कोई अच्छाई बस्ती है। इसीलिए वह राख इतना पवित्र हो जाता है कि उसमें किसी प्रकार का गुण और अवगुण नहीं होता, ऐसे राख को भगवान शिव अपने तन पर लगाकर सम्मानित करते हैं।
एक कथा के अनुसार यह भी कहा जाता है कि जब भगवान शिव जी की पत्नी सती माता ने खुद को अग्नि के हवाले कर दिया। तब भगवान शिव जी ने क्रोधित होकर भस्म को अपनी पत्नी की आखिरी निशानी मानते हुए उसे अपने पूरे बदन पर लपेट लिया ताकि सती माता भस्म के कणो के जरिए हमेशा उनके साथ रह सके।
* रुद्राक्ष की उत्पति जाने कैसे हुई
भगवान शिव जी के सभी भक्त रुद्राक्ष पहनते हैं, क्योंकि भगवान शिव जी ने रुद्राक्ष उत्पत्ति की कथा माता पार्वती से कही है। एक समय भगवान शिव जी ने 1 हजार वर्ष तक समाधि लगाई, समाधि पूर्ण होने के बाद जब उनका मन बाहरी जगत में आया
तब जगत के कल्याण की कामना रखने वाले भगवान शिव ने अपनी आंखे बंद की और उनकी आंखो से जल के बिंदु इस धरती पर गिरे। उस जल के बिंदु से ही भक्तो के हित के लिए धरती पर रुद्राक्ष के वृक्ष की उत्पत्ति हुई और उन वृक्षो पर जो फल लगे वही रुद्राक्ष बने इसीलिए भगवान शिव जी के भक्त रुद्राक्ष धारण करते हैं।