मृत्यु एक ऐसा सच है जिसे चाह कर भी झूठलाया नहीं जा सकता। जो इंसान इस दुनिया में पैदा हुआ है उसका एक समय बाद मरना तय है और इस धरती पर जिंदगी से जुड़ा यह सबसे बड़ा सत्य है। इंसान के मरने के बाद व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार नया जन्म मिलता है। कभी-कभी हम यह बात सोचने लगते हैं कि इंसान के मरने के बाद इंसान के शरीर में मौजूद आत्मा का क्या होता है। यह आत्मा धरती पर कितने दिन रहती हैं, क्या यह आत्मा हमें मरने के बाद देख सकती है ? इस सब के बारे में हमारे पुराणो में विस्तार से लिखा गया है। तो आइए जानते हैं क्या लिखा है गरुड़ पुराण में जो कि भारत के 18 प्राचीन महाकाव्य में से एक है जिसमें मृत्यु और आत्मा के बारे में सभी जानकारी दी गई है।
एक व्यक्ति की मृत्यु कई चरणो में होती है जब किसी भी इंसान का अंतिम समय करीब आ जाता है तो उसकी पूरी जिंदगी एक पल में उसके सामने आ जाती है यह बिल्कुल इंसान को किसी वीडियो रिकॉर्डिंग की तरह दिखाई देती है। जब कोई इंसान मरने वाला होता है तो उसकी सारी इंद्रियां धीरे धीरे काम करना बंद कर देती है।
ऐसे समय में इंसान अपने मुंह से कुछ भी नहीं बोल पाता ऐसा कहा जाता है कि मरने वाले इंसान को यमलोग से दो यमदूत लेने आते हैं जो अपनी जिंदगी का अंतिम समय बिता रहे इंसान को कुछ दिन पहले से ही नजर आने लगते हैं। जिन लोगो ने अपने जीवन में अच्छे कर्म कीए होते हैं उन्हें तो अपने प्राण त्यागने में कोई दिक्कत महसूस नहीं होती, वहीं जिन लोगो ने अपने जीवन में बुरे कर्म किए हैं उन्हें प्राण त्यागने में काफी कष्ट होता है।
गरुड़ पुराण के अनुसार बताया गया है कि मृत्यु के बाद आत्मा को यमदूत केवल 24 घंटों के लिए यमलोग ले जाते हैं और इन 24 घंटों के दौरान आत्मा को उसके द्वारा किए गए सभी पाप और पुण्य दिखाए जाते हैं। इसके बाद उस आत्मा को फिर वहीं पर छोड़ दिया जाता है जहां उसने अपने प्राणो को त्याग दिया था और अगले 13 दिन तक मृतक की आत्मा वहीं रहती है, और जब उस आत्मा का इस धरती पर 13 दिन बीत जाते हैं तो उसे वापस ले जाया जाता है।

ऐसा कहा जाता है कि कर्मो के हिसाब से एक आत्मा को चारलोक में एक जगह भेजा जाता है। जिसमें पहला होता है ब्रह्मलोक, दूसरा होता है देवलोक, तीसरा है पितृलोग और चौथा होता है नर्कलोग सबसे पहले बात करें ब्रह्मलोक की तो इसमें वह पुण्य आत्मा पहुंचती है जिसने योग और तप करके मोक्ष प्राप्त किया हैै। दूसरा है देवलोक यहां वह आत्मा पहुंचती है जिसे कुछ समय यहां रहने के बाद उसे फिर से मनुष्य योनि में जन्म लेना होता हैै।
तो वही पितृलोक में वह आत्मा पहुंचती है जो अपने पितरों के साथ समय बिताकर फिर से मानव जीवन में जन्म लेने वाली होती है। नरक लोक में सिर्फ पापि या बूरी आत्मा ही पहुंचती है। यह सभी आत्माएं यहां कुछ समय रहने के बाद अपने अपने कर्मों के हिसाब से अलग-अलग योनि में जन्म लेती है।
कौन जाता है नर्क में
ज्ञानी से ज्ञानी आस्तिक से आस्तिक और बुद्धिमान से बुद्धिमान व्यक्ति को भी नरक का सामना करना पड़ सकता है। क्योंकि ज्ञान और विचार से यह तय नहीं होता कि आप कैसे हैं किसी भी धर्म, देवता और पितरो व पूर्वजो का अपमान करने वाले, तामसिक भोजन करने वाले पापी और बुरे व्यक्तियो को नरक में भेजा जाता है। इसीलिए कहा जाता है कि हमें किसी का बुरा नहीं करना चाहिए और ना ही किसी का दिल दुखाना चाहिए।
एक आत्मा 17 दिन तक यात्रा करने के पश्चात 18 वे दिन यम पुरी पहुंचती है गरुड़ पुराण में यम पुरी के रास्ते को वैतरणी नदी के नाम से बताया गया है यह नदी खून और जहर से बना होता है जिसे हर किसी को पार करना पड़ता है। जो लोग धरती पर गो दान करते हैं वह आसानी से इस नदी को पार कर जाते हैं लेकिन जो ऐसा नहीं करते उन्हें इस नदी में डूबना पड़ता है और बार-बार यमदूत उसे निकालने की कोशिश करते हैं जो बहुत कष्टदायक होता है। कहा जाता है गो दान करना बहुत पुण्यदाई होता है गाय दान करने से बुरे कर्मो का मिलने वाला फल थोड़ा कम हो जाता है, जिससे इंसान की मृत्यु थोड़ी आसान हो जाती है।
इसके बाद मरने वाला व्यक्ति यमलोग पहुंचता है जहां उसके कर्मो का हिसाब होता है और आत्मा को नया शरीर मिलने तक मृत्यु लोक में भटकने के लिए छोड़ दिया जाता है। आपको यह जानकर काफी हैरानी होगी कि गरुड़ पुराण भगवान विष्णु और गरुड़ के बीच बातचीत की एक लिखित किताब हैै। जब कभी भी किसी इंसान की मृत्यु होती है तो गरुड़ पुराण में बताए गए मंत्रो का जाप किया जाता है। इसमें बताया गया है की मृत्यु चाहे कैसा भी हो उसका प्रोसेस 6 महीने पहले ही शुरू हो जाता है और ऐसा भी कहा जाता है कि 6 महीने पहले होने वाली मृत्यु को टाला जा सकता है।

लेकिन मृत्यु से अंतिम 3 दिन पहले सिर्फ देवता या फिर मनुष्य के अच्छे कर्म ही उस मृत्यू को टाल सकते हैं। पुराणो में यह भी लिखा गया है कि मौत का एहसास इंसान को 6 महीने पहले ही एक बार जरूर आता है। हिंदू शास्त्रो के अनुसार जन्म मृत्यु एक ऐसा चक्कर है जो अनवरत चलता रहता है। पुराणो का ज्ञान रखने वाले ज्ञानियो ने बताया कि ग्रंथो में काल और अकाल मृत्यु के बारे में बताया गया है कि काल मृत्यु का मतलब है कि जब शरीर अपनी आयु पूरी कर लेता है और अकाल मृत्यु का मतलब है कि किसी बीमारी, दुर्घटना, हत्या या आत्महत्या से मर जाना।पुराणो की माने तो 8400000 योनियों में भटकने के बाद हमें मनुष्य के रूप में जन्म मिलता है।
वेदो में बताया गया है कि शरीर छोड़ने के बाद जिन लोगो ने तप और ध्यान किया है वह लोग ब्रह्मलोक में चले जाते हैं। कुछ सत्कर्म करने वाले लोग स्वर्ग चले जाते हैं और यह पुण्य आत्मा ही देव बन जाती है। राक्षसी कर्म करने वाली कुछ आत्माए प्रेत योनि में लंबे समय तक भटकती रहती है। यमपुरी पहुंचने के बाद आत्मा पुषपोदका नाम की एक और नदी के पास पहुंच जाती है जिसका जल साफ होता है। जहां कमल के फूल खिले रहते हैं और मृतको के परिजनो द्वारा किए गए पिंडदान और तर्पण का भोजन भी करने को मिलता है जिसमें आत्मा को तृप्ति मिलती है।
यमलोग के चार द्वार बताए गए हैं इन चार मुख्य द्वारो में दक्षिण के द्वार से पाप और बुरे कर्म करने वाली आत्माओ का प्रवेश होता है। पश्चिम द्वार से ऐसी आत्माओ को प्रवेश होता है जीन्होंने धरती पर रह कर दान पुण्य किया हो या फिर धर्म की रक्षा की हो और तीर्थो में प्राण त्यागे हो। उत्तर के द्वार से वही आत्मा प्रवेश करती है जिसने जीवन में माता-पिता की खूब सेवा कीया हो हमेशा सत्य बोला हो और हमेशा मन वचन और अपने कर्मो से अहिंसक रहा हो। वहीं पूर्व के द्वार से उस आत्मा का प्रवेश होता है जो योगी या ऋषी हो जीसे स्वर्ग का द्वार भी कहा जाता है। और इसीलिए हमारे घर के बड़े-बूड़े आपको हमेशा अच्छे कर्म करने की सलाह देते हैं क्योंकि अच्छे कर्म वाले लोग मोक्ष को प्राप्त करते हैं।