हिंदू धर्म का विश्वप्रसिद्ध और खास करके बिहारी समाज का लोक पर्व छठ महापर्व की तैयारियां दीपावली के शुभ त्यौहार के साथ ही शुरू हो जाती है। साल 202 छठ महापर्व की शुरुआत हो चुकी है तो चलिए जानते हैं इस साल 2021 में छठ महापर्व की शुभ तिथि से जुड़ी सभी महत्त्वपूर्ण जानकारी के बारे में। साथ ही छठ पर्व के लोकप्रिय पारंपरिक गीतो के बारे में जो हर भारतीय के लिए अनमोल होने के साथ उनके दिल से जुड़ा हुआ हैै।
यहां तक कि परदेश में रहने वाले लोग भी छठ पूजा के इस अवसर पर अपने घर ना पहुंच पाने पर इन पारंपरिक लोक गीतो को सुनकर छठ महापर्व को याद करते हैं। यह छठ महापर्व मुख्य तौर पर बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में भारी मात्रा में मनाया जाता है। हम कह सकते हैं कि वहा पर हर घर में यह पर्व होता है लेकिन इन इलाको के लोग देश भर में जहां भी रहते हैं वहां भी छठ उत्सव भारी मात्रा में होता है।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि से छठ महापर्व की शुरुआत हो जाती है यह महापर्व 4 दिनों तक मनाया जाता है। इस छठ महापर्व के दौरान महिलाए लगभग 36 घंटे का व्रत रखके भगवान सूर्य और उनकी बहन छठी माता की पूजा करती है इस व्रत को करने वाले सभी व्रतधारी को परवैतीन कहा जाता है। यह व्रत बहुत कठोर होता है चार दिवसीय इस व्रत में व्रती को लगातार उपवास रहना होता है। इस पर्व में व्रती के साथ पूरा परिवार आस-पड़ोस के लोग सूर्य देव को अर्घ देने का दृश्य देखने के लिए जाते हैं। इस दिन सभी परवैतीन सूर्यदेव को अर्घ्य देने के लिए नदी या तालाब के किनारे एकत्रित होकर सामूहिक रूप से पुजन कार्य को संपन्न करते हैं।
छठ पूजा 2021 शुभ तिथि
छठ महापर्व एक भारी पर्व होता है जिसमें पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी पर नहाए खाए के रूप में मनाया जाता है। उसके बाद खरना होता है और सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है तो चलिए जानते हैं छठ महापर्व 2021 शुभ तिथि के बारे में।
8 November 2021
8 नवंबर यानी 7 नवंबर सोमवार के दिन नहाए खाए से ही छठ पूजा की शुरुआत हो जाएगी।
9 November 2021
9 नवंबर मंगलवार को खरना की तिथि रहेगी।
10 November 2021
10 नवंबर बुधवार को छठ महापर्व के प्रथम अर्घ की तिथि रहेगी इस दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा।
11 November 2021
11 नवंबर गुरुवार के दिन छठ महापर्व का पिछला अर्घ्य होगा इसमे डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत धारी पारण करेगी।
4 दिनो तक चलने वाले छठ महापर्व की महिमा का बखान जितना किया जाए वह कम है छठ के पारंपरिक लोकगीतो का भी इस पर्व कार्तिक मास में सुनने पर आंखों से आंसू निकल आते हैं। इस पर्व के दौरान घरो में छठी मैया के गीत गूंजते हैं लगभग भोजपुरी समाज में सभी गायक छठ महापर्व के दौरान दिल छूने वाले हिट गाने बनाते हैं और यह खूब सुने जाते हैं। तो चलिए जानते हैं छठ महापर्व के कुछ पौराणिक पारंपरिक गीतो के बारे में जो हर हिंदू जाति के दिल से जुड़ा है।
इस महापर्व में यह गीत काफी महत्वपूर्ण होते हैं महिलाएं एक साथ होकर रात भर इन पारंपरिक गानो को गाते हैं और इन मंगलमय गीतों की ध्वनि से पूरा वातावरण शुद्ध और भक्ति से गूंज उठता है। इन गीतो की पारंपरिक धुन इतनी मधुर होती है की जिसे भोजपुरी बोली समझ में ना भी आए तो भी वह गीत दिल छू लेता है और यही कारण है कि इन पारंपरिक गीतो के धुन हर छठ गाने में उपयोग होता है।

लोकप्रिय भोजपुरी समाज के लोकप्रिय सिंगर पवन सिंह ने छठी मैया के ऐसे पारंपरिक गाने गाए हैं जो छठ पर्व पर बेहद ज्यादा सुने जाते हैं उनका “जोड़े जोड़े फलवा सुरुज देव” छठ गीत छठ महापर्व पर बहुत ही सुना जाता है।
अनुराधा पौडवाल की आवाज में छठ महापर्व का पारंपरिक लोक गीत “उग हो सूरज देव भेल भिनुसारवा अरघ केर बेरवा” काशी यह गीत सुबह के समय समय का बखान करता है जब व्रतधारी भगवान सूर्य से अपनी लाली दिखाने की गुजारिश करते हैं और सुबह का अर्ग देते हैं।
छठ महापर्व का एक पारंपरिक गीत “कांचे ही बांस के बहंगिया” काफी बेहद दिलचस्प है इस गाने से पूरा माहौल भक्तिमय हो जाता है इस गाने के द्वारा भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के लिए घाट पर जाते हुए भगवान सूर्य और छठ पूजा का बखान किया जाता है।
“केलवा के पात पर उगे लन सुरुज मल” यह भोजपुरी पारंपरिक गीत छठ महापर्व का पारंपरिक गीत है जिसमें भगवान सूर्य के महिमा का बखान किया जाता है।
“नारियलवा जे फरेला घवध से ओह पर सुगा मेड़राए” यह छठ महापर्व का सबसे ज्यादा सुना जाने वाला गीत है। हर छठ परवैतिन छठ पर्व के दौरान इस गीत को गाकर सुर्य देव को प्रसन्न करते हैं।
“भोरवे में नदिया नहाईला आदित मनाईला हो” यह अनुराधा पौडवाल का छठ गीत है जिसमें गीत गाकर सुर्य देव से अपने दुख को बयान करके संतान मांगने का वर्णन किया गया है।
प्रभु श्री राम और माता सीता ने की थी सूर्य देव की उपासना
छठ महापर्व से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि इस महापर्व को भगवान श्री राम और सीता माता ने किया था। मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि माता सीता ने भी सूर्य देवता की उपासना की थी इस कथा के अनुसार भगवान श्री राम और माता सीता जब 14 वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या वापस लौट कर आए तो माता सीता ने यह पर्व किया था और भगवान सुर्य को अर्घ्य दीया था।
दरअसल भगवान श्रीराम सूर्यवंशी थे और उनके कुल देवता भगवान सूर्य थे। कथा के अनुसार जब भगवान श्री राम ने रावण का वध करके अयोध्या लौटने लगे तो पहले उन्होंने सरयू नदी के तट पर अपने कुलदेवता सूर्य की उपासना करने का निश्चय किया और इसीलिए इस व्रत में डूबते सूर्य की पूजा की जाती है। फिर अपने राजा राम द्वारा यह पूजा करने के बाद संपूर्ण अयोध्या की प्रजा भी इसे करना आरंभ कर दिया तभी से छठ पूजा का प्रचलन हो चला।
सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी सूर्य देव की उपासना
और एक पारंपरिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि इस छठ महापर्व की शुरुआत सबसे पहले महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा करके इस पर्व की शुरुआत की थी। सुर्य पुत्र कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे वह प्रतिदिन घंटो भर कमर तक पानी में खड़ा होकर सूर्य को अर्घ देते थे और सूर्य की कृपा से ही वह महान धनुर्धर योद्धा बने।
द्रोपती ने भी की थी सूर्य देव की पूजा
एक और कथा के अनुसार कहा जाता है कि जब पांडव पुत्र जुए में अपना सारा राजपाट हार गए तब द्रौपदी ने मन्नत मांगी थी और मन्नत पूरी होने पर द्रोपति ने यह छठ पर्व किया था तभी से छठ महापर्व के इस परंपरा की शुरुआत हो गई और इसीलिए इस व्रत को मन्नत का पर्व भी कहा जाता है।
लोक परंपरा के अनुसार सूर्य देव और छठी मैया का संबंध भाई बहन का है इसीलिए छठ पूजा के अवसर पर सूर्य देव और छठी मईया की आराधना फलदाई मानी जाती है। दरअसल छठ पर्व प्रकृति का त्यौहार तो होता ही है साथ ही यह मन्नतो का भी त्यौहार है। क्योंकि कहा जाता है कि इस पर्व को ध्यान करके अगर कोई मन्नत मांग दी जाए तो वह मनोकामना जल्द ही पूरी हो जाती है और तब छठ व्रत करके मनोकामना पूर्ण होने का आभार व्यक्त किया जाता है।
इनके बिना छठ महापर्व अधूरा माना जाता है
छठ महापर्व में बांस की टोकरी का खास महत्व बताया जाता है । दरअसल बांस को अध्यात्म की दृष्टि से शुद्ध माना जाता है जिस कारण बांस की टोकरी में सूर्यदेव को अर्घ्य देना शुभ माना जाता है। और विश्वप्रसिद्ध ठेकुए का प्रसाद तो सबसे महत्वपूर्ण होता है, गुड़ और आटे से बने हुए प्रसाद के बिना छठ महापर्व अधूरा माना जाता है।
छठ महापर्व में होता है इन फलो का खास महत्व
- छठ महापर्व में फल सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। जिसमें नींबू यानी की डाब नींबू जो आकार में थोड़ा बड़ा होता है और इसके छिलके काफी मोटे होते हैं, इसका रंग पीला होता है और इसे एक पवित्र फल माना जाता है।
- छठ महापर्व में दूसरा महत्त्वपूर्ण फल होता है केला इस पूजा में पके केले के साथ ही कच्चे केले का भी उपयोग होता है इससे पवित्रता बरकरार रहती है।
- तीसरा फल होता है गन्ना, गन्ना को समृद्धि का प्रतीक माना जाता है जिस कारण यह छठ महापर्व में काफी महत्वपूर्ण होता है छठ महा पर्व में इसे चढ़ना शुभ माना जाता है।
- चौथे फल के रूप में सुपारी आता है सुपारी हर एक पूजा में महत्वपूर्ण होता है और इस पर्व में तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।
- और एक पवित्र फल होता है सिंघाड़ा इस फल को रोग नाशक माना जाता है जो कि पानी में ही फलता है और इसलिए इसे पवित्र फल में शामिल किया जाता है यही कारण है कि छठी मैया के प्रसाद के रूप में इसका उपयोग किया जाता है।