ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) एक वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर भूख को मापता है। इस सूचकांक को वेल्टहुंगरहिल्फ़ा (WHH) और कंसर्न वर्ल्डवाइड द्वारा संयुक्त रूप से प्रकाशित किया जाता है। वर्तमान GHI के अनुमानो के आधारो पर सूचकांक में कहा गया कि दुनिया भर में साल 2030 तक भूख के निम्न स्तर को प्राप्त नहीं करेगी।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स क्या है
हर साल ग्लोबल हंगर इंडेक्स ताजा आंकड़ो के साथ जारी किया जाता है। इस सूचकांक के द्वारा दुनिया भर में भूख के खिलाफ चल रहे अभियान की उपलब्धियो और खामियो को दिखाया जाता है। इस सर्वे की शुरुआत “इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट” ने की थी। जर्मन स्वयंसेवी संस्था वेल्ट हंगर लाईफ ने इसे सबसे पहले साल 2006 में जारी किया था। इस इंडेक्स में जिस देश का स्कोर सबसे ज्यादा होता है वहां भूख की समस्या ज्यादा होने का संकेत मिलता है और जिनका इसको कम होता है उन देशो की स्थिति बेहतर मानी जाती है। इसके आकलन के चार प्रमुख पैमाने होते हैं कुपोषण, शिशुओ में भयंकर कुपोषण, बच्चो के विकास में बाधा और बाल मृत्यु दर।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स जारी
साल 2021 का ग्लोबल हंगर इंडेक्स जारी कर दिया गया है इस बार भारत की स्थिति और भी चिंताजनक देखने को मिली और पिछले साल जहां भारत 94 स्थान पर थी आज इस बर यह फिसल कर हमारा देश से 101 वे स्थान पर चला गया। वहीं ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत के पड़ोसी देशों की बात करें तो नेपाल 76 वें स्थान पर है और बांग्लादेश भी 76 वें स्थान पर है, वहीं म्यानमार 71 वें स्थान परऔर पकिस्तान 92 स्थान पर है। रिपोर्ट में इन देशों में भी भुखमरी की स्थिति को चिंताजनक बताया है।लेकिन यह कहा जा सकता है कि भारत के मुकाबले अपने नागरिकों की भूख मिटाने में यह देश भारत से काफी बेहतर हैै।
विश्वगुरु बनने की राह पर अग्रसर हुआ हमारा भारत देश वैश्विक भूख सूचकांक यानि ग्लोबल हंगर इंडेक्स साल 2021 में 116 देशो की सूची में सबसे पिछड़ा हुआ 101 वें स्थान पर आ गया है। इससे पहले साल 2020 में भारत जहां 94 स्थान पर था वह अब सातवें पायदान से और पिछड़ गया। हालांकि पिछले साल 2020 में इस सूची में 107 देश थे लेकिन इस साल इस सूची में 116 देश हुए थे शामिल।
नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान भारत से आगे जारी हुए इस सूची में पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से भी हमारा देश भारत पिछड़ गया है। भूख और कुपोषण पर नजर रखने वाले संगठन ग्लोबल हंगर इंडेक्स की वेबसाइट पर जारी हुए रिपोर्ट में कहा गया कि सूची में 5 से भी कम GHI स्कोर के साथ चीन, ब्राजील और कुवैत के साथ ही 18 देश शीर्ष स्थान पर बने हैं। इस रिपोर्ट को आयरलैंड की सहायता एजेंसी कन्सर्न वर्ल्ड वाइड और जर्मनी के संगठन वर्ल्ड हंगर हिल्फ ने मिलकर तैयार की है।
दरअसल GHI स्कोर 4 संकेत तो पर आधारित होता है, अल्पपोषण, चाइल्ड वेस्टिंग यानि 5 साल से कम उम्र के बच्चे जिनका वजन उनकी ऊंचाई के हिसाब से कम हो, यह तिब्र कुपोषण को जताता है। चाइल्ड स्टंटिंग यानि 5 साल से कम उम्र के बच्चे जिनकी उम्र के हिसाब से लंबाई कम हो, जो काफी लंबे समय से कुपोषण को दर्शाता है और बाल मृत्यु दर यानि 5 साल से कम उम्र के बच्चे जिनकी मृत्यु हो जाती है।
पिछले साल से भारत की स्थिति पीछे
पिछले साल 2020 में इस सूची में 107 देश शामिल थे और भारत 94 स्थान पर आया था और अब इस सूची में जहां 116 देश शामिल हुए हैं तो भारत 101 वें स्थान पर आया है। भारत का GHI स्कोर साल 2000 में 38.8 था, जो कि साल 2012 से साल 2021 में 28.8 से 27.5 के बीच रहा है। रिपोर्ट की मानें तो साल 2021 में आशावादी होना मुश्किल हो गया है क्योंकि अब भूख बढ़ाने वाली ताकतें अच्छे इरादो और ऊंचे लक्ष्य के ऊपर हावी हो रही है।

रिपोर्ट के अनुसार चाइल्ड वेस्टिंग में भारत की हिस्सेदारी साल 1998 से साल 2002 के बीच 17.1 प्रतिशत से बढ़कर साल 2016 से साल 2020 के बीच 17.3 प्रतिशत हो गई। इसमें कहा जा सकता है कि भारत सबसे ज्यादा चाइल्ड वेस्टिंग वाला देश है। जहां कोविड 19 महामारी और इसके कारण लगाए गए प्रतिबंधो से लोग बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं।
भारत सरकार ने इस रिपोर्ट का किया विरोध
इस बार के जारी हुए रिपोर्ट के अनुसार भारत की चौंकाने वाली स्थिति सामने आई। भारत की स्थिति केवल 15 देशो से अच्छी है जिनमें नाइजीरिया, अफगानिस्तान, कांगो से भारत आगे हैं। लेकिन भारत सरकार ने इस इंडेक्स को तैयार करने के पैमाने पर आपत्ति जताई है और विरोध किया है। भारत सरकार ने कहा है कि इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए जो गणना की गई है जो फार्मूला बनाया गया है वह सही नहीं है।
भारत सरकार का कहना है कि भुखमरी का पता लगाने के लिए वजन और हाइट जैसे आंकड़ों की जरूरत पड़ती है। लेकिन इस इंडेक्स ने भुखमरी का पता लगाने के लिए उन आंकड़ों का उपयोग किया है जो कि जनसंख्या से जुड़े हैं। यानी कि इस इंडेक्स ने भुखमरी के इंडेक्स को बनाने के लिए वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग नहीं किया है।
भारत सरकार की कल्याण योजना
ग्लोबल हंगर इंडेक्स में कहा गया है कि इस रिपोर्ट में भारत की स्थिति बेहद खराब है लेकिन कोविड-19 के बाद से यह स्थिति और भी खराब हो गई है। लेकिन यह कहना भी गलत है कि कोविड 19 के दौरान भारत सरकार ने देश के लोगो के खान-पान के प्रति ध्यान नहीं दिया। लॉकडाउन के दौरान भारत सरकार ने “प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना” के तहत भारत के 80 करोड़ लोगो को हर महीने 5 किलो मुफ़ अनाज दिया गया और यह योजना आज भी जारी है।
इस योजना पर अब तक 2 लाख 27 हज़र करोड रुपए खर्च भी हो चुके हैं। जो भारत के रक्षा बजट का 65 प्रतिशत है साथ ही लॉकडाउन के दौरन 20 करोड़ महिलाओ को 3 महीने तक हर महीने ₹500 की आर्थिक मदद भी दी गई थी। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने इस रिपोर्ट का विरोध करते हुए कहा “कि कोविड-19 के दौरान पूरी आबादी की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कराने के लिए बड़े बड़े पैमाने पर सरकार द्वारा जो प्रयास किए गए हैं, उन्हें इस रिपोर्ट में पूरी तरह से अनदेखा कर दीया गया है जिस पर सत्यापन योग्य डाटा उपलब्ध है।

भारत सरकार का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र के द्वारा जारी हुए एक रिपोर्ट में ही भारत के 27 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर आए हैं और 1990 के मुकाबले भारत में गरीबो की संख्या आधी रह गई। लेकिन वही पश्चिमी देशो की बात करें तो गैर सरकारी संस्थाओ को यह सब दिखाई नहीं देता और वे जब भी भारत के मामले में कोई रिपोर्ट तैयार करते हैं तो उसमें भारत की स्थिति को अक्सर बेहद खराब दिखाया जाता है।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने कहा –
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने भी इस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह चौंकाने वाला है कि वैश्विक भूख रिपोर्ट साल 2021 में कुपोषित आबादी के अनुपात पर FAO के अनुमान के आधार पर भारत के रैंक को कम कर दिया। मंत्रालय ने कहा कि इस रिपोर्ट के प्रकाशन एजेंसियों, कन्सर्न वर्ल्ड वाइड और वेल्ट हंगरहिल्फ ने इस रिपोर्ट को जारी करने से पहले जो उचित मेहनत करनी चाहिए वो नहीं की है।
मंत्रालय ने यह दावा किया है कि FAO के द्वारा उपयोग की जाने वाली सभी कार्यप्रणाली अवैज्ञानिक है। उन्होंने केवल 4 प्रश्न के एक जनमत सर्वेक्षण के परिणामों पर अपना मूल्यांकन करके रिपोर्ट जारी कर दिया है। इस अवधि के दौरान प्रति व्यक्ति खाद्यान्न की उपलब्धता जैसे अल्पपोषण के मापने के लिए कोई वैज्ञानिक पद्धति नहीं अपनाई गई है। अल्पपोषण के स्तर को वैज्ञानिक तौर पर मापने के लिए जो वजन और ऊंचाई पद्धति की आवश्यकता होती है उसका उपयोग नहीं किया गया है।