हिंदू धर्म में पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व होता है। इस दिन भगवान विष्णु के सत्यनारायण रूप की पूजा होती है और उमा महेश्वर व्रत रखा जाता है। भाद्र मास की पूर्णिमा से ही पितृपक्ष की भी शुरुआत हो जाती है यानि कि आज पूर्णिमा तिथि है और आज से 21 सितंबर से पितृपक्ष तिथि शुरू होकर 6 अक्टूबरअमावस्या श्राद्ध या सर्वपितृ अमावस्या तक रहेगी जो कि 16 दिनों तक लगातार चलेगी। इस दिन चंद्रमा अपने 16 कलाओ से परिपूर्ण होते हैं इसीलिए इस दिन व्रत रखकर चंद्रमा की पूजा और उपासना की जाती है। तो चलिए जानते हैं भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि पर मनाए जाने वाले पूर्णिमा व्रत की पूजा विधि, और व्रतके महत्व से जुड़ी सभी जानकारी
भाद्रपद पूर्णिमा व्रत पूजा विधि
इस दिन सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदी या कुंड में स्नान करना चाहिए उसके बाद विधिवत भगवान सत्यनारायण जी की पूजा करना चाहिए। विधिवत भगवान सत्यनारायण जी को फल, फूल, प्रसाद, जल अर्पित करके पूजा करनी चाहिए। और पूजन के बाद भगवान सत्यनारायण की कथा जरूर सुननी चाहिए। ध्यान रखें इस पूजा में तुलसी का सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है इसीलिए प्रसाद और पंचामृत तुलसी के पत्तो के साथ ही भगवान सत्यनारायण को अर्पित करना करें। मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि के दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा करने से सारे दुख कष्ट दूर हो जाते हैं और जीवन सुख-समृद्धि से भर जाती है। इसके अलावा आज के दिन किसी जरूरतमंद व्यक्ति को या फिर ब्राह्मण को दान देना भी बेहद शुभ माना जाता है।
भाद्रपद पूर्णिमा मुहुर्त
भाद्रपद पूर्णिमा तिथि 20 सितंबर सोमवार यानि आज सुबह 5 बजकर 28 मिनट से आरंभ हो चुकी है जिसका समापन कल 21 सितंबर मंगलवार सुबह 5 बजकर 24 मिनट पर होगा।
भाद्रपद पूर्णिमा में सत्यनारायण पूजन का महत्व
दरअसल ज्योतिष के अनुसार सनातन सत्य रूपी विष्णु भगवान भगवान विष्णु कलयुग में अलग-अलग रूप में आकर लोगो में मनवांछित फल देते हैं। धरती पर लोगो के कल्याण के लिए भगवान श्री हरि ने सत्यनारायण का रूप दिया था इनकी पूजा करने से घर में सुख, समृद्धि और शांति आती है। यह पूजा कुंवारी कन्या व लड़को के लिए शीघ्र विवाह और सुखद वैवाहिक जीवन पाने के लिए भी लाभकारी माना जाता है विवाह से पहले और बाद में भी सत्यनारायण जी की पूजा शुभ फलदाई होता है। सनातन हिंदू धर्म में कई पूर्णिमा तिथि होती है और इन पूर्णिमा तिथियो में भाद्रपद पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व होता है। इस दिन भगवान चंद्र देव की भी पूजा आराधना की जाती है कहा जाता है कि इस दिन चंद्रमा की पूजा करने से सभी मनोकामना पूर्ण होती है।
इस दिन पितृपक्ष या श्राद्ध की शुरुआत हो जाती है जिस कारण यह पूर्णिमा और शुभ माना जाता है। भाद्रपद पूर्णिमा तिथि को नाना पक्ष का श्राद्ध भी किया जा सकता है। पितरो की आत्मा की शांति के लिए समर्पित पितृपक्ष का आरंभ आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से होती है जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है। जिनके पितरो का श्राद्ध पूर्णिमा तिथि को होती है वे अपने पितरो की आत्मा की शांति के लिए इस दिन श्राद्ध, पिंडदान, तर्पण आदि कर्म करते हैं। पूर्णिमा तिथि के दिन सत्यनारायण भगवान जी की कथा सुनने का विशेष महत्व होता है। कहा जाता है कि अगर इस दिन पूजा आराधना करके भगवान सत्यनारायण की कथा सुने तो विशेष पुण्य प्राप्ति होती है और सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाते हैं।
भाद्रपद पूर्णिमा सत्यनारायण व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार महर्षि दुर्वासा भगवान शंकर जी के दर्शन करके लौट रहे थे और तभी रास्ते में उनको भगवान विष्णु से भेंट हुई। महर्षि दुर्वासा ने भगवान शंकर जी के द्वारा दी गई विल्वपत्र की माला भगवान विष्णु को दे दी लेकिन भगवान विष्णु ने उस माला को खुद ना पहनकर गरुड़ के गले में डाल दिया। जीससे महर्षि दुर्वासा क्रोधित हो गए और तुरंत भगवान विष्णु जी को श्राप दे दिया। महर्षि दुर्वासा ने भगवान विष्णु को उनके प्रिय लक्ष्मी जी को उनसे दूर होने की श्राप दे दी, साथ ही उन्होंने क्षीरसागर छिन जाएगा, शेषनाग भी सहायता नहीं कर सकेंगे ऐसा श्राप दिया। जिसके बाद विष्णु जी ने महर्षि दुर्वासा को प्रणाम करके इस श्राप से खुद को मुक्त कराने के लिए उनसे उपाय पूछा। इस पर महर्षि दुर्वासा ने भगवान विष्णु को कहा कि उमा महेश्वर का व्रत करो तभी तुम्हें मुक्ति मिलेगी।तब भगवान विष्णु ने यह व्रत किया था जिसके बाद उन्हें महर्षि दुर्वासा के दिए श्राप के प्रभाव से मुक्ति मिली और माता लक्ष्मी जी के साथ भगवान विष्णु को उनकी समस्त शक्तियां पुनः प्राप्त हुई।