क्या आप जानते हैं कि व्यक्ति का जीवन किसी उत्सव से कम नहीं है हिंदू धर्म के अनुसार जीवन एक उत्सव ही तो है। जिसमें सुख-दुख, हंसी, खुशी सब शामिल है जिस प्रकार हम बचपन से पढ़ते आ रहें हैं कि जीवन एक रंगमंच है जो हमारे हिंदू धर्म भी हमें पूरी तरह से बताता है। बहुत से लोग जीवन को एक संघर्ष मानते हैं जबकि हिंदू धर्म के अनुसार जीवन एक उत्सव से कम नहीं। संघर्ष तो खुद ही सामने आते रहते हैं अगर सामने वाला व्यक्ति अपने जीवन को संघर्षपूर्ण बना ले तो लेकिन जीवन को सफल बनाना ही जीवन जीने की कला का हिस्सा है।
भजन, नृत्य, गीत, संगीत और कला इत्यादि का उल्लेख धर्म में इसीलिए मिलता है क्योंकि जीवन एक उत्सव है। जबकि कुछ धर्मो में संगीत, नृत्य और कला पर रोक है ऐसा इसलिए क्योंकि कुछ धर्मो के अनुसार इससे समाज बिगार का शिकार हो जाता है। लेकिन हिंदू धर्म मानता है कि जीवन ही प्रभु है जीवन की खोज करें जीवन को सुंदर से सुंदर बनाए। इसमें सत्यता, खुशियां, सुंदरता, शुभता, प्रेम, उत्सव, सकारात्मकता और ऐश्वर्या को भर दें।
उल्लास और आनंद में ही ही धर्म छिपा है
हिंदू धर्म के अनुसार उल्लास और आनंद ही धर्म है।इसमें कभी भी और किसी के लिए भी शोक मनाने की बात नहीं कही गई है। और यही कारण है कि हिंदू धर्म में भगवान श्री राम और कृष्ण जी के जन्म दिवस को तो बेहद उल्लास पूर्वक मनाया जाता है लेकिन उनके शरीर त्याग की तिथि की कहीं जिक्र नहीं मिलता है।
क्योंकि हिंदू धर्म यह कहता है कि भगवान राम और कृष्ण ने भले ही शरीर त्याग दिए लेकिन वह सदा हमारे बीच उसी रूप में मौजूद है। जिसे हम भक्ति भाव से महसूस कर सकते हैं यानी कि हिंदू धर्म में शोक का कहीं भी स्थान नहीं है।
हिंदू धर्म के अनुसार खुशी बांटना ही धर्म है
हिंदू धर्म में आए दिन मनाए जाने वाले विभिन्न त्योहार जीवन में खुशीया भरने और एक दूसरे को खुशी बांटने का पर्व है जिससे हर किसी को खुशी मिलती हैै। जहां हर कोई अपने दुखों को भूलकर खुशी मनाता है एक दूसरे से मनमुटाव को भूल जाते हैं क्योंंकि धर्म भी यही कहता है।
हिंदू धर्म के अनुसार ईश्वर ने मनुष्य को ही खुलकर हंसने उत्सव मनाने मनोरंजन करने खुशी बांटने खुशी लेने और खेलने की योग्यता दी है। यही कारण है कि हिंदू धर्म के सभी त्योहारो में सामंजस्य बिठाते हुए समावेश किया जाता है। उत्सव से जीवन में सकारात्मकता, मिलनसारीता और अनुभवो का विस्तार होता है।
हिंदू धर्म में होली जहां रंगो का त्योहार है, वही दीपावली प्रकाश से भरा त्योहार है नवरात्रि में जहां व्रत रखने को महत्व दिया जाता है तो वही गणेश उत्सव में अच्छे-अच्छे पकवान खाने को मिलते हैं। इसके अलावा हिंदू धर्म में प्रकृति में परिवर्तन के अनुसार भी उत्सव मनाया जाता है। जैसे कि पर मकर संक्रांति पर सूर्य उत्तरायण होता है जब उत्सव मनाने के समय की शुरुआत हो जाती है। और सूर्य जब दक्षिणायन होता है तब व्रतो के समय की शुरुआत हो जाती हैै। इसके अलावा शरद, बसंत, शीत, हेमंत, ग्रीष्म, वर्षा और शिशिर इन सभी ऋतुयो में उत्सव मनाया जाता है।
हिंदू धर्म के अनुसार गरीबी में जीना पाप क्यों है
हिंदू धर्म में अध्यात्म और सन्यास के साथ ही धन अर्जन को भी महत्व दिया जाता है। ऐसा नहीं कि आप अध्यात्म के लिए घर बार छोड़कर सन्यासी बन जाए लेकिन हिंदू धर्म यह कहता है कि हर एक काम का एक समय निर्धारित होता है। युवावस्था में आप देवी लक्ष्मी और कुबेर जी को प्रसन्न करे ताकि धर्म पूर्वक खूब धन कमाए क्योंकि गरीबी में जीना भी पाप के समान है। जब व्यक्ति अभाव में होता है तो वह पाप करने के लिए मजबूर हो जाता है इसीलिए गरीबी में जीने को पाप कहा गया है। लेकिन युवावस्था के ढलते ही मोह माया को त्याग करके अध्यात्म और सन्यास की राह पर चलना ही मनुष्य का कर्म और धर्म होता है।
जन्म और मृत्यु का चक्र
हिंदू धर्म में पुनर्जन्म पर विश्वास रखने की बात कही गई है इसका मतलब यह है कि आत्मा जन्म और मृत्यु के निरंतर पुनरावर्तन की प्रक्रिया से गुजरती रहती है अपने पुराने शरीर को छोड़कर नए शरीर को धारण करती है। जन्म और मृत्यु का यह चक्र तब तक चलता रहता है जब तक की आत्मा मोक्ष प्राप्त नहीं कर लेता। मोक्ष प्राप्ति का रास्ता कठिन होता है यह मौत से पहले मर कर देखने की प्रक्रिया होती है।
वेद और उपनिषद के अनुसार शरीर को त्याग करने के बाद भी व्यक्ति के वह सारे कर्म जारी रहेंगे जो वह यहां रहते हुए करते रहता है। अगर मृत्यु के करीब जाते हुए व्यक्ति के वर्तमान जीवन में दुख, चिंता, क्रोध और उत्तेजना जारी रहे, तो अगले जन्म में भी वही प्राप्त होगा क्योंकि यह आदत व्यक्ति का स्वभाव बन जाता है। यानि मनुष्य अपने कर्मों और प्रयासों से देव या दैत्य वर्ग में स्थान प्राप्त करता है। वहां से पतन होने के बाद वह फिर से मनुष्य वर्ग में गिर जाता है और यह क्रम चलते रहता है यही कारण है कि व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार फल भोगना पड़ता है।
परोपकारिता एक महान धार्मिक कार्य है
पुराणो में परोपकार के अनेक रुप है परोपकार का मतलब होता है निस्वार्थ भाव से किसी दूसरे की सहायता करना। अपनी शरण में आए सभी मित्र, शत्रु, देसी परदेसी, बच्चा वृद्ध आदि सभी के दुखो का निवारण करना ही परोपकार की भावना होती है। सभी प्राणियो में सबसे योग्य जीव मनुष्य को बनाया हैै यदि किसी मनुष्य में यह गुण नहीं है तो उसमें और पशु में कोई फर्क नहीं है।
जिसके द्वारा व्यक्ति दूसरो का उपकार करके आत्मिक सुख प्राप्त कर सकता है ईश्वर का प्रिय बन सकता है। जैसे कि प्यासे को पानी पिलाना, घायल को अस्पताल पहुंचाना, वृद्धो की सेवा करना, अंधो को सड़क पार करवाना, गरीबो की मदद करना, भूखे को भोजन कराना, वस्त्रहीनो को वस्त्र बांटना, गौशाला बनवाना, गौ माता की सेवा करना, वृक्ष लगाना, प्रकृति से प्रेम करना इत्यादि।
हिंदू धर्म के अनुसार जीवन जीने की शैली क्या है
हिन्दू धर्म जीवन जीने की एक शैली हैै जिसमें योग, आयुर्वेद और व्रत के नियम को अपनाकर आप हमेशा स्वस्थ और खुश रह सकते हैं। इसमें भोजन, पानी, निद्रा, कर्म, ध्यान, बुद्धि और विचार के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी है जिसे आज विज्ञान भी मानता है। हिन्दू धर्म में संध्यावंदन और ध्यान का बेहद महत्व होता है। कुछ लोग संध्यावंदन के समय पूजन, भजन-कीर्तन, प्रार्थना, यज्ञ और ध्यान करते है लेकिन संध्यावंदन इन सभी से अलग होती है।
ईश्वर एक ही है परमब्रह्म
वेदो के अनुसार ईश्वर एक ही है जो परम सत्य ब्रह्म है उन्हें ही परमेश्वर, परमपिता, परमब्रह्म, परमात्मा के नाम से जाना जाता है। निराकार, निर्विकार, अप्रकट, अजन्मा, अव्यक्त, आदि और अनंत उन्हीं में है। सभी देवी-देवता ऋषि मुनि, पितृ भगवान आदमी का ध्यान और प्रार्थना करते हैं। विद्वानो के अनुसार लगभग 9 हजार वर्षो से हिन्दू धर्म निरंतर है नाम बदला, रूप बदले, परंपराएं बदली, लेकिन ज्ञान नहीं बदले, देव नहीं बदले और ना ही तीर्थ बदले। हमारे पास इस बात का सबूत है कि 8 हजार ईसा पूर्व सिंधु घाटी के लोग हिन्दू ही थे दृविड़ और आर्य एक ही थे।