हिंदू धर्म में गणेश चतुर्थी पर्व का विशेष महत्व होता है। जो कि भाद्रपस मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। सभी देवों में प्रथम आराध्य देव श्रीगणेश की पूजा करने और उन्हें प्रसन्न करने का यह त्योहार इस साल 2021 में 10 सितंबर से शुरू हो रहा है। इस दिन भगवान गणेश विराजेंगे और 19 सितंबर को उन्हें विदा किया जाएगा। तो चलिए आज हम जानते हैं गणेश चतुर्थी त्योहार के इतिहास, महत्व, पूजा विधि से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारी के बारे में।
ज्योतिषियों के अनुसार भगवान श्री गणेश की कृपा होने पर उनके भक्तो को सुख शांति और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। मान्यता के अनुसार भगवान श्री गणेश के पूजा के दिन यानि गणेश चतुर्थी को काले और नीले रंग के वस्त्र धारण नहीं करनी चाहिए इस दिन लाल या पीले वस्त्र धारण करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
हिंदुओ का महत्वपूर्ण 10 दिवसीय महोत्सव गणेश चतुर्थी का जश्न 10 सितंबर से शुरू होगा। यह त्योहार कर्नाटक, उड़ीसाा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश में काफी धूमधाम से मनाया जाएगा ओर इस महोत्सव का समापन 19 सितंबर को होगा। हिंदू कैलेंडर के अनुसार यह त्यौहार ज्ञान और समृद्धि के देवता भगवान गणेश के जन्म का प्रतीक होता है जो भाद्रपद महीने में आता हैै और इंग्लिश कैलेंडर के अनुसार य सितंबर महीने में पड़ता है।
जिस प्रकार हम भगवान श्रीगणेश को लंबोदर, गजानन, मंगलकर्ता, विघ्नहर्ता, बप्पा जैसे कई नामों से जानते हैं और उनकी कई रूपों में पूजा करते हैं उसी प्रकार गणेश चतुर्थी को भी विनायक चतुर्थी, कलंक चतुर्थी और डण्डा चतुर्थी आदि नामो से भी जाना जाता है। दस दिनो तक चलने वाले इस त्यौहार पर गणेश जी की मूर्ति घर में स्थापित की जाती है और पूरे 10 दिन विधि-विधान से भगवान श्री गणेश की पूजा होती है।
हिंदू धर्म में भगवान श्रीगणेश को प्रथम पूज्य देवता के रूप में पूजा जाता है। यानी कि किसी भी शुभ काम या किसी भी पूजा को करने से पहले भगवान श्री गणेश की पूजा होती है। भगवान श्री गणेश विघ्नहर्ता माने जाते हैं मान्यता है कि किसी भी काम को करने से पहले विघ्नहर्ता की पूजा करने से भगवान श्री गणेश सभी विघ्नो को हर लेते हैं और बिना किसी रूकावट के सभी काम पूरे हो जाते हैं और इसीलिए भगवान गणेश सुख, समृद्धि और वैभव के प्रतीक माने जाते हैं। कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति भगवान श्री गणेश की विधिवत पूजा करता है भगवान गणेश उसके सभी दुखो को हर लेते हैं।
गणेश चतुर्थी 202 शुभ मुहूर्त
गणेश चतुर्थी पूजन का शुभ मुहर्त दोपहर 12 बजकर 17 मिनिट से शुरू होकर रात 10 बजे तक रहेगी।
गणेश चतुर्थी पूजा विधि
चतुर्थी के दिन प्राता काल जल्दी उठकर स्नान आदि करके गणपति जी के व्रत करने का संकल्प लें। इसके बाद लाल कपड़े के ऊपर गंगाजल छिड़ककर गणपति की मूर्ति या फिर चित्र रखेंं और भगवान गणेश का आह्वान करें। गणपति जी को रोली से तिलक जरूर करें तिलक करने के बाद गणेश जी के सामने अखंड दीप जलाकर दाई तरफ रखे। और कलश की स्थापना करें कलश में आम के पत्ते डाले और नारियल पर कलावा बांधकर कलश स्थापना को पूरा करें। कलश स्थापना करने के बाद बप्पा को फूल माला, अक्षत, दूर्वा, सिंदूर, रोली, जनेऊ आदि अर्पित करने के बाद उन्हें पंचमेवा और मोदक का भोग लगाकर मंत्रोच्चार से उनका पूजन करने के बाद गणेश चालीसा का पाठ करें और अंत में आरती जरूर करें।
सम्पूर्ण विधि से करें गणेश जी की स्थापना

- कहा जाता है कि जिस घर में भी भगवान श्री गणेश की मूर्ति स्थापित होती है उस घर में कभी किसी प्रकार का क्लेश नहीं होता। और हमेशा वह घर खुशियों से भरा रहता है वास्तु के अनुसार घर में गणपति बप्पा की मूर्ति स्थापित करने से पहले कई तरह की सावधानियां बरतनी चाहिए।
- गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करने से पहले कुछ बातो का ध्यान रखना जरुर होता है। जैसे कि भगवान के दोनों पैर जमीन को स्पर्श करना चाहिए कहा जाता है कि ऐसा होने से सफलता कि प्राप्ति होती है। यह भी मान्यता है कि घर में सुख समृद्धि लाने के लिए बैठे हुए गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करना उत्तम होता है। साथ ही गणेश जी की ऐसी प्रतिमा स्थापित करें जिसमें उनकी सूंड बायीं तरफ झुकी हुई हो।
- कभी भी घर में केवल एक ही गणेश जी की प्रतिमा रखना शुभ होता है।
- गणपती बप्पा की स्थापना दक्षिण दिशा में नहीं करना चाहिए।
- घर में क्रिस्टल के गणेश जी की स्थापना करने से सभी प्रकार के वास्तु दोष नष्ट हो जाते हैं।
- दो या उससे ज्यादा गणेश जी रखें ऐसा करने पर उनकी पत्नी रिद्धि-सिद्धि नाराज होती है।
- गणेश जी को घर के उत्तर पूर्वी कोने में स्थापित करना बेहद शुभ माना जाता है।
- जब भी आप गणेश जी की मूर्ति लेने जाएं, तो वही मूर्ति लाएं जिनमें मोदक और गणेश जी का वाहन चूहा भी उनके साथ हो।
- गणेश जी की मूर्ति का मुख कभी भी दरवाजे की ओर नहीं रखना चाहिए क्योंकि कहा जाता है कि भगवान गणेश जी के मुख की ओर सौभाग्य, सिद्धि और सुख विराजमान होता है।
विघ्नो को हरने वाले गणपति को शिव और पार्वती जी का पुत्र माना जाता है, जो वेदों में उल्लिखित अनादि-अनंत देवता हैं। वेदों में उनकी वंदना ‘नमो गणेभ्यो गणपति’ के उच्चारण से की गई है। लेकिन पौराणिक मान्यता के अनुसार गणेश जी के जन्म को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। शिव पुराण के कथा अनुसार कहा जाता है कि गणेश जी का जन्म पार्वती जी के उबटन से हुआ था और फिर शिव जी से अनजाने में हुए युद्ध के कारण उनका शीष गज का हुआ। गणेश जी को लेकर यह कथा सबसे प्रचलित कथा है।
वहीं स्कंद पुराण के अनुसार कहा जाता है कि गणेश जी का जन्म राजस्थान स्थित पर्वत से हुआ है। इसके स्कंद अर्बुद खंड में कथा है कि माता पार्वती को शिव जी से मिले पुत्र प्राप्ति के वरदान के बाद अर्बुद पर्वत, जो अब का माउंट आबू है, वहीं पर भगवान श्री गणेश जी का अवतरण हुआ था।