नारली पूर्णिमा भारत के पश्चिम तटीय क्षेत्रो में खास करके हिंदुओ द्वारा मनाया प्रमुख तौर पर मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व होता है। पूर्णिमा या हिंदू कैलेंडर में श्रावण महीने में इस पूर्णिमा को मनाया जाता है और इसीलिए इसे श्रावण पूर्णिमा भी कहा जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह त्यौहार जुलाई अगस्त के महीने के बीच आता है। महाराष्ट्र और इसके आसपास के क्षेत्र में यह त्योहार बेहद ज्यादा जोश और उत्साह के साथ मनाई जाती है।
मछुआर समुदाय के लोग समुद्र में नौकायन के दौरान होने वाले घटनाओ से बचने के लिए इस त्योहार को मनाते हैं। “नारली” शब्द नारियल से बना है और “पूर्णिमा” के दिन पूर्णिमा का प्रतीक होता है। इसीलिए इस दिन को नारियल पूर्णिमा भी कहा जाता है। देश के अन्य क्षेत्रो में नारली पूर्णिमा का त्योहार अन्य त्योहारो जैसे कि श्रावणी पूर्णिमा, रक्षाबंधन और कजरी पूर्णिमा के साथ मेल खाता है। भले ही परंपराए और संस्कृति अभिन्न हो लेकिन महत्व वैसे ही रह जाता है।
नारली पूर्णिमा पर किए जाने वाले अनुष्ठान
नारली पूर्णिमा के दिन हिंदू भक्तगण भगवान वरुण की पूजा करते हैं इस अवसर पर समुद्र के देवताको नारियल चढ़ाया जाता है। मान्यता है कि श्रावण पूर्णिमा पर पूजा अनुष्ठान करते हुए भगवान को प्रसन्न करने से समुद्र देवता समुद्र के सभी खतरो से उनकी रक्षा करते हैं। उपनयन और यगोपवित अनुष्ठान सबसे व्यापक रूप से पालन किए जाने वाले अनुष्ठानो में से एक है।
पूर्णिमा तिथि 2021
नारली पूर्णिमा साल 2021 में 22 अगस्त रविवार के दिन है पूर्णिमा तिथि प्रारंभ होगी 21 अगस्त शाम 7:00 बजे और पूर्णिमा तिथि समाप्त होगी 22 अगस्त शाम 5:30 बजे।
कैसे मनाया जाता है यह त्योहार
श्रावण का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है। नारली पूर्णिमा के अवसर पर भक्त लोग भगवान शिव जी की भी पूजा करते हैं। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि नारियल के तीन आंखों वाले भगवान शिव का चित्र है। महाराष्ट्र राज्य में ब्राह्मण जो श्रवणी उपक्रम करते हैं इस दिन वह अनाज का सेवन न करके उपवास रखते हैं वह दिनभर केवल नारियल खाकर फलाहार व्रत रखते हैंं।

नारली पूर्णिमा पर प्रकृति मां के प्रति कृतज्ञता और सम्मान के भाव के रूप में लोग तट के किनारे नारियल के पेड़ भी लगाते है। पूजा की रस्में पूरी करने के बाद मछुआरे अपनी अलंकृत नाव में समुद्र में जाते हैं। एक छोटी यात्रा करने के बाद वह किनारे पर लौट आते हैं और पुरा दिन उत्सव में बिताते हैं नृत्य और गायन इस त्योहार का मुख्य आकर्षण होता है।
नारली पूर्णिमा का प्रतीक
नारली पूर्णिमा का यह त्यौहार मानसून के अंत का और मछली पकड़ने के मौसम की शुरुआत का प्रतीक होता है। यानि कि यह मछुआरो के बीच मछली पकड़ने और जल व्यापार की शुरुआत होती है। इस दिन मछुआरे ज्यादा से ज्यादा मछली काटने का आशीर्वाद मांगते हैं नारली पूर्णिमा का त्यौहार आने वाले साल का सूचक होता है जो सुखानंद और धन से भरा रहे।
लोग समुद्र में नारियल चढ़ाते हैं और भगवान से प्रार्थना करते हैं कि इस दिन के बाद हवा की ताकत और अन्य परिवर्तन मछली पकड़ने के पक्ष में रहे। यह भी माना जाता है कि भगवान मछुुवारो को कई प्रकार के दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओ से रक्षा करते हैं।
यह पूर्णिमा महाराष्ट्र, गोवा और गुजरात में बेहद महत्व रखता है यह त्योहार धार्मिक रूप से नमक उत्पादन, मछली पकड़ने या समुद्र से संबंधित किसी अन्य गतिविधि में शामिल लोगो द्वारा मनाए जाते हैं। यह त्योहार भगवान से प्रार्थना करते हैं इस दिन मछुआरे उपवास, व्रत रखकर भगवान शिव सात समुद्र को मानसून के बारे में समुद्र को शांत करने को कहते हैं।