22 मई को पूरी दुनिया में अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाया जाता है। सबसे पहले यह दिवस साल 1993 में मनाया गया था जिसके बाद साल 2001 से पूरी दुनिया में हर साल 22 मई के दिन यह दिवस मनाया जाता रहा है। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य यही है कि लोगो को जैव विविधता के प्रति जागरूक किया जाए। वर्तमान समय में इसका महत्व काफी बढ़ गया है क्योंकि विशेष तोर पर कोरोना महामारी को देखते हुए ऑक्सीजन की कमी के कारण लोगो का ध्यान पर्यावरण के संरक्षण की ओर बढ़ा है। इस दिवस को हर साल अलग-अलग थीम के साथ मनाया जाता है। इस साल 2021 में इस दिवस का थीम राखा गया था We re part of the solution # ForNature .
अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस की शुरुआत
सबसे पहले इस दिवस को मनाने की पहल 90 के दशक में की गई थी, जब संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में साल 1992 में ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में “पृथ्वी सम्मेलन” का आयोजन किया गया था। इस सम्मेलन में पर्यावरण संरक्षण पर विशेष जोर दिया गया जीसके बाद से लगातार साल 2000 तक 29 दिसंबर को के दिन यह दिवस मनाया जाता था लेकिन साल 2001 से हर साल 22 मई के दिन इस दिवस को मनाया जाने लगा।
20 दिसंबर साल 2000 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा एक प्रस्ताव पारित करके इस दिवस को मनाने की शुरुआत की गई थी। इस प्रस्ताव पर 193 देशो द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे दरअसल साल 1992 के 22 मई को नैरोबी एक्ट में जैव विविधता पर अभिसमय के पाठ को स्वीकार किया गया था। और इसीलिए इस दिवस को मनाने के लिए 22 मई का दिन निर्धारित किया गया।
जैव विविधता का महत्व
वर्तमान समय में जैव विविधता पर ध्यान देने की बेहद जरूरत है। क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग के कारण पर्यावरण में खास बदलाव हुए हैं इसके लिए पर्यावरण के संरक्षण पर काफी जोर दिया जा रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार आने वाले समय में पौधो और जानवरो के प्रजातियो में से 25 प्रतिशत विलुप्त अवस्था में है। इसके लिए IPBES ने पर्यावरण संरक्षण की सलाह भी दी है और साथ ही पर्यावरण संतुलन के लिए जानवरो का संरक्षण करना भी बेहद जरूरी है जिसके लिए संयुक्त राष्ट्र प्रयास में लगी हुई है। पूरी दुनिया में पर्यावरण संरक्षण के लिए कई योजनाएं भी चल रही है।
प्राकृतिक और पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने में जैव विविधता के महत्व को देखते हुए जैव विविधता दिवस को अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया था। साल 1992 के 29 दिसंबर को हुए जैव विविधता सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया था, लेकिन कई देशो द्वारा व्यावहारिक कठिनाइया जाहिर करने के कारण इस आए को 29 दिसंबर के बजाए 22 मई को मनाने का निर्णय लिया गया। हमें एक ऐसे पर्यावरण का निर्माण करना है जो जैव विविधता में समृद्ध, टिकाऊ और आर्थिक गतिविधियो के लिए हमें अवसर प्रदान कर सके। जैव विविधता के कमी होने के कारण प्राकृतिक आपदा जैसे कि सूखा, बाढ़ और तूफान आने का खतरा और ज्यादा बढ़ जाता है।
यानी कि हमारे लिए जैव विविधता का संरक्षण बहुत जरूरी है लाखो विशिष्ट जैविक की कई प्रजातियो के रूप में पृथ्वी पर जीवन उपस्थित है और हमारा यह जीवन प्रकृति का एक अनुपम उपहार है। यानी कि पेड़ पौधे, कई प्रकार के जीव जंतु, हवा, मिट्टी, पानी, महासागर पठार, पहाड़, पर्वत, समुद्र, नदिया यह सभी प्रकृति की देन है और हमे इन सबका संरक्षण करना चाहिए। क्योंकि यही हमारे अस्तित्व और विकास में काम आती है इसीलिए हमें खासतौर पर वनो की सुरक्षा करनी चाहिए।
क्यों मनाया जाता है अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस
जैव विविधता का मतलब जीव धारियो की विविधता से होती है। जो कि दुनिया भर के हर क्षेत्र हर एक देश और हर महाद्वीप पर होती है। विभिन्न प्रकार के पशु, पक्षी और वनस्पति एक-दूसरे की जरूरतो को पूरा करते हैं। जैव विविधता की समृद्धि ही धरती को रहने और धरती पर जीवन यापन करने के योग्य बनाती है। लेकिन निरंतर बढ़ता हुआ प्रदूषण वातावरण पर इतना खतरनाक प्रभाव डाल रहा है कि जीव जंतुओ और वनस्पतियो की अनेक प्रजातिया धीरे-धीरे लुप्त भी हो रही है। पृथ्वी पर मौजूद जंतुओ और पौधो के बीच संतुलन बनाए रखने के साथ जैव विविधता के मुद्दो के बारे में लोगो में जागरूकता और समझ बढ़ाने के लिए हर साल 22 मई के दिन अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाया जाता है।
जैव विविधता से मतलब जीव धारियो की विविधता से हाेती है जो कि पूरी दुनिया में हर क्षेत्र, हर देश और हर एक महाद्वीप पर होती है। भारत में जीव जंतुओ की प्रजातियो पर मंडराते हुए खतरो की बात करें तो जैव विविधता पर साल 2018 के दिसंबर महीने में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में पेश की गई राष्ट्रीय रिपोर्ट से यह पता चला था कि अंतरराष्ट्रीय “रेट लिस्ट” की गंभीर रूप से लुप्तप्राय और संकटग्रस्त श्रेणीयो में भारतीय जीव प्रजातियो की सूचि सालो से बढ़ रही है।

“प्रदूषण मुक्त सांसे” नामक पुस्तक में बनाया गया है की इस सुची में शामिल प्रजातियो की संख्या में वृद्धि जैव विविधता और वन्य आवासो पर गंभीर तनाव का संकेत है। इस पुस्तक के अनुसार साल 2009 में पेश की गई चौथी राष्ट्रीय रिपोर्ट में उस समय “इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर” की विभिन्न श्रेणियो में गंभीर रूप से लुप्तप्राय और संकट में रहने वाले श्रेणियों में भारत की 413 प्रजातियो के नाम शामिल थे। लेकिन साल 2014 में पेश की गई पांचवी राष्ट्रीय रिपोर्ट में इन प्रजातियो की संख्या संख्याओं का आंकड़ा बढ़कर 646 और छठी राष्ट्रीय रिपोर्ट में 683 हो गया।
देश में इस समय 9 सौ से भी ज्यादा दुर्लभ प्रजातिया खतरे में बताई जा रही है। यही नहीं विश्व धरोहर को गंवाने वाले देशो की सूची में दुनिया भर में चीन के बाद भारत का सातवां स्थान है। भारत के समुद्री पारिस्थितिकीय तंत्र करीब 20444 जीव प्रजातियो के समुदाय की मेजबानी करता है। जिनमें से 1180 प्रजातियो को संकटग्रस्त और तत्काल संगठन के संरक्षण के लिए सूचीबद्ध किया। अगर देश में प्रमुख रूप से लुप्त होती है जीव जंतु और प्रजातियो की बात करें तो कश्मीर में पाए जाने वाले हंगलू की संख्या केवल 2 सौ के आसपास रह गई है जिनमें से करीब 110 दाचीगाम नेशनल पार्क में स्थित है।
इसी तरह आम तौर पर दलदली क्षेत्रो में पाई जाने वाली बारहसिंगा हिरण की प्रजाति अब मध्य भारत के कुछ वनो तक ही सीमित रह गई है। साल 1987 के बाद से मालाबार गंधबिलाव भी नहीं देखा गया है। हालांकि यह माना जाता है कि वर्तमान इनकी संख्या पश्चिमी घाट में 200 के करीब ही बची है। दक्षिण अंडमान के माउंट हैरियट में पाया जाने वाला दुनिया का सबसे छोटा स्तनपाई सफेद दांत वाला छछूंदर लुप्त होने के कगार पर है एशियाई शेर भी गुजरात के गीर वनो तक ही सीमित है।
कुछ समय पहले उत्तराखंड से भी एक अलग चौकाने वाली रिपोर्ट सामने आई थी जिसमें पता चला कि उत्तराखंड की नदियो और अन्य जल स्रोतो में मिलने वाले कई मछलियो की करीब 258 प्रजातियो का अस्तित्व खतरे में है और इसका प्रमुख कारण नदियो के आसपास अवैध खनन के कारण परिस्थितिकी तंत्र का बिगड़ना है। जिसका यहां मिलने वाले मछलियो के तमाम प्रजातियो पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। जीन नदियो में प्राय 50 से 100 किलो तक वजनी महाशीर जैसी मछलियां बहुतायत मात्रा में मिलती थी। वहीं अब 5 से 10 किलो बड़ी मछलियां ढूंढना भी मुश्किल हो रहा है।
दरअसल इन क्षेत्रो में लगातार हो रहे निर्माण कार्य, अवैध खनन, भूस्खलन और गलत तरीको से शिकार के कारण मछलियो के भोजन के स्रोत और उनके पलने बढ़ने की परिस्थितियां बेहद प्रभावित हुई है। विशेषज्ञो के अनुसार ऐसे क्षेत्रो में मछलियो के छिपने और जनन की परिस्थितियां प्रतिकूल होती जा रही है जिसका सीधा प्रभाव मछलियो के इन तमाम प्रजातियो के अस्तित्व पर पड़ रहा है। भूस्खलन के कारण नदियो में गाद की मात्रा बहुत बढ़ गई है, जो मछलियो के छिपने और उनके खाने की जगहो को बर्बाद कर रही है। इसके अलावा नदियो में जमा होते कचरे के कारण मछलियो के भोजन भी खत्म हो रहा है।
हर साल देश में बड़ी संख्या बाघ मर रहे हैं, कई बार ट्रेनो से टकराकर हाथियो की भी मौत हो रही है और कुछ वन्यजीवो को तो वन्य तस्कर मार डालते हैं। कभी गांव और शहरो में बाघ घुस आता है तो कभी तेंदुआ जिस कारण कई दिनों तक दहशत का माहौल बना रहता है। आज वन्य जीव और मनुष्यो का टकराव लगातार बढ़ता जा रहा है। वन्यजीवो की सीमा पार कर बाघ, तेंदुए जैसे वन्यजीव बेघर होकर भोजन की तलाश में शहरो में आ रहे हैं और यह सब विकास परियोजनाओ के कारण वन क्षेत्रो के घटने और वन्यजीवो के आश्रय स्थलो में बढ़ती मानवीय घुसपैठ का परिणाम है।
आज वन्यजीव तथा मनुष्य का टकराव लगातार देखी जाती है क्योंकि वन्य प्राणी अभयारण्यो की सीमा पार करके बेघर होकर भोजन की तलाश में शहरो और गांवो में दिखते हैं और मनुष्य अपनी जान बचाने के लिए इनको मार देते हैं। जीवो की बात छोड़ भी दें तो फूलों में की पाई जाने वाली 15 हजार प्रजातियो में से डेढ़ हजार प्रजातिया विलुप्त होने के कगार पर है। “इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर” के तहत भारत में पौधो की करीब 45 हजार प्रजातिया पाई जाती है और इनमें से भी 1336 प्रजातियो पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। पृथ्वी पर पेड़ो की संख्या घटने से अनेक जानवरो और पक्षियो से उनके आशियाने छीन रहे हैं जिससे उनका जीवन भी संकट में पड़ रहा है।
पर्यावरण विशेषज्ञो का कहना है कि अगर इस ओर जल्दी से ध्यान नहीं दिया जाए तो आने वाले समय में स्थिति बेहद खतरनाक हो जाएगी। धरती से पेड़ पौधे और जीव जंतुओ की कई प्रजातियां विलुप्त भी हो जाएगी धरती पर मानव के विकास, सुविधाओ और जरूरतो को देखते हुए उनके पूर्ति के लिए विकास भले ही जरूरी है। लेकिन हमें यह तय करना होगा कि विकास के इस दौर में पर्यावरण और जीव-जंतुओ के लिए खतरा उत्पन्न ना हो। अगर विकास के नाम पर वनो की बड़े पैमाने पर कटाई के साथ जीव जंतु और पशु पक्षियो से उनके आवास छीने जाते हैं और यह प्रजातिया धीरे-धीरे लुप्त होते हैं। तो हमे आने वाले समय में उससे होने वाले समस्याओ व खतरो का सामना करने और परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना पड़ेगा।
बढ़ती आबादी और तेजी से जंगलो की कटाई इससे यह पता चल रहा है कि आज मनुष्य बेहद स्वार्थी हो गया है। आज मनुष्य प्रकृति के उन साधनो व स्रोतो को भूल चुका है जिसके बिना धरती पर व्यक्ति का जीवन असंभव है। पृथ्वी पर जैव विविधता को बनाए रखने के लिए सबसे जरूरी और महत्वपूर्ण है कि हम धरती की पर्यावरण संबंधित स्थिति के तालमेल को बनाए रखें। हम इस बात को कभी भी अनदेखा नहीं कर सकते कि अगर इस धरती पर से प्रकृति, जीव जंतु, पशु पक्षी और यहां तक की अगर छोटे-मोटे किट पतंगो कि प्रजाति भी खत्म हो जाएगी तो धीरे-धीरे इस धरती पर मनुष्य का जीवन बेहद कठिन हो जाएगा। धीरे-धीरे लोगो की जिंदगी कठिन होने के साथ मनुष्य इस दुनिया को छोड़ने के कगार पर होंगे।
इसीलिए हम सभी को प्रकृति, जीव-जंतु, पेड़-पौधे हर किसी के जीवन की रक्षा करनी चाहिए। जितना हो सके प्रकृति के पशु पक्षियों से दोस्ती बनानी चाहिए, पौधे लगाना चाहिए ताकि हम खुश और स्वस्थ रहने के साथ ही आने वाले समय में इस दुनिया को और हरियाली से भरा हुआ देख सके। लेकिन यह केवल एक या दो व्यक्ति के प्रयास से नहीं होगा, बल्कि दुनिया में हर किसी को ऐसा ही प्रयास करना चाहिए। प्रकृति को दोस्त बनाना चाहिए, प्रकृति के हर एक प्राणी को अपना परिवार मानना चाहिए क्योंकि इस धरती पर जन्म लेने वाले हर व्यक्ति का यही कर्तव्य बनता है। उम्मीद है जैव विविधता के बारे में यह जानकारी आपको अच्छी लगी होगी अगर आपको यह जानकारी अछी लगी तो इस पोस्ट को लाइक करें और ज्यादा से ज्यादा शेयर करके लोगो को जैव विविधता से जुड़ने के लिए प्रेरित करें और प्रकृति के महत्व के बारे में बताएं।