8 मई के दिन पूरी दुनिया में विश्व थैलेसीमिया दिवस मनाया जाता है। जिसका उद्देश्य लोगो को थैलेसीमिया नामक रोग के प्रति जागरूक करना है। हर साल यह दिवस अलग-अलग थीम के साथ मनाया जाता है। आज हम जानेंगे थैलेसीमिया नामक यह बीमारी क्या है, थैलेसीमिया दिवस मनाने का क्या उद्देश्य है और इस बीमारी के लक्षण, बचाव और कारण के बारे में पूरी जानकारी।
विश्व थैलेसीमिया दिवस का उद्देश्य
इस दिवस को मनाने का सबसे बड़ा उद्देश्य यही है कि रक्त से संबंधित इस थैलेसीमिया नामक गंभीर बीमारी के प्रति लोगो को जागरूक किया जा सके। वर्ल्ड थैलेसीमिया डे उन लोगो को प्रोत्साहित करता है जो इस बीमारी से संघर्ष करके जीना चाहते हैं। यह दिन थैलेसीमिया से पीड़ित उन सभी रोगियो और उनके माता-पिता के सम्मान में मनाया जाता है। जिन्होंने अपनी बीमारी से परेशान होकर जीवन की आशा कभी नहीं छोड़ी। साथ ही उन सभी वैज्ञानिको को भी यह दिवस समर्पण है जो कड़ी मेहनत कर रहे हैं। और इस बीमारी के इलाज के लिए बेहतर गुणवत्ता प्रदान करने का प्रयास कर रहे हैं।
थैलेसीमिया का उपचार इसके प्रकार और इस बीमारी के गंभीरता के ऊपर निर्भर करता है। इस रोग में शरीर की हिमोग्लोबिन और लाल रक्त कोशिकाओ की उत्पादन करने की क्षमता भी प्रभावित होती है। इस बीमारी का प्रभाव हल्के से लेकर गंभीर और मरीज के लिए जानलेवा भी साबित हो सकता है। ज्यादातर यह बीमारी दक्षिण एशियाई, अफ़्रीकी पूर्वजो और भूमध्यसागरीय लोगो में आम है।
विश्व थैलेसीमिया दिवस का थीम
यह दिवस वैश्विक स्तर पर हर साल 8 मई के दिन अलग-अलग थीम के साथ मनाया जाता है। पिछले साल 2020 में इस दिवस का थीम रखा गया था -“थैलेसीमिया के लिए एक नए युग की शुरुआत: रोगियो के लिए उपन्यास चिकित्सा को सुलभ और सस्ते बना सस्ता बनाने के वैश्विक प्रयास का समय” (The dawning of a new era of thalassaemia: time for a global effort to make novel therapies accessible and affordable to patient)
और साल 2021 में विश्व थैलेसीमिया दिवस का थीम रखा गया था “Addressing health inequalities across the global thalassaemia community” वैश्विक थैलेसीमिया समुदाय के पार स्वास्थ्य असमानताओ को संबोधित करना।
विश्व थैलेसीमिया दिवस पर क्या होता है
विश्व थैलेसीमिया दिवस के अवसर पर स्कूल, कॉलेज जैसे सार्वजनिक शैक्षणिक संस्थानो में लोगो को इस बीमारी से जुड़े लक्षण, निवारक के उपाय के लिए कई प्रकार गतिविधियां और कार्यक्रमो का आयोजन किया जाता है। साथ ही रोगी और उनके परिवार के सदस्यो को इस बीमारी के बारे में ज्ञान प्राप्त करने के लिए कार्यक्रम में भाग लेने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाता है। इस दिन लोगो में खासतौर पर युवाओ में हीमोग्लोबिनो पैथी, हीमोग्लोबिन विकार और आयरन की कमी के बारे में जानकारी भी फैलाई जाती है और यहां तक कि थैलेसीमिया रोग के बारे में शैक्षिक सामग्री भी लोगो तक और युवाओ के बीच वितरित की जाती है।

हर साल थैलेसीमिया इंटरनेशनल फेडरेशन (TIF) एक गैर-लाभकारी और गैर सरकारी रोगी संचालित संगठन है। जो कई देशो में संबंधित सदस्यो के साथ उत्सव के आयोजन में सक्रिय तौर पर शामिल होते हैं। यही नहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन और अन्य स्वास्थ्य निकाय भी थैलेसीमिया रोग से पीड़ित रोगियो के मूल अधिकारो पर ध्यान केंद्रित करते हैं। इस दिन लोगो को जागरूक करने के लिए इस बीमारी से संबंधित विभिन्न प्रकार के पोस्टर और बैनर तैयार किए जाते हैं। इस बीमारी से जुड़े स्वास्थ्य संबंधी विषयो पर वाद विवाद, रोगी के जीवन की गुणवत्ता के और थैलेसीमिया जैसे रोग के बारे में चर्चा आदि जैसी गतिविधियो का आयोजन होता है।
थैलेसीमिया क्या है
दरअसल थैलेसीमिया एक अनुवांशिक बीमारी है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी से चलती रहती है। इस रोग में लाल रक्त कोशिकाओ (RBC) की संख्या काफी तेजी से गिर जाती है। साथ ही लाल रक्त कोशिकाओ के नए सेल्स शरीर में नहीं बन पाते, जिस कारण रोगी के शरीर में खून की कमी होने लगती है। जिस कारण व्यक्ति खून की कमी के कारण कई अलग-अलग बीमारियो के चपेट में आने लगता है।
यानी कि थैलेसीमिया माता-पिता से अनुवांशिक के तौर पर विरासत में मिलने मिलने वाली बीमारी है। यह बीमारी इसीलिए और खतरनाक बन जाती है क्योंकि इस बीमारी का पता लगाकर इससे बचा नहीं जा सकता। बच्चे के जन्म लेने के 3 महीने बाद ही इस बीमारी का पता चलता है।
इस बीमारी के शिकार होने पर रोगी को बार-बार बाहरी खून की आवश्यकता होती है। क्योंकि ऐसी स्थिति में इस बीमारी के होने पर रोगी के शरीर में खून की भारी कमी होने लगती है। खून की कमी होने के कारण शरीर में हीमोग्लोबिन नहीं बन पाता और बार-बार खून चढ़ाने के कारण मरीज के शरीर में अतिरिक्त लोह तत्व भी जमा होने लगते हैं। जो ह्रदय में पहुंचकर रोगी के लिए बहुत खतरनाक यानी कि उनके लिए प्राण घातक साबित हो सकति है।
थैलेसीमिया के प्रकार
थैलेसीमिया नामक यह बीमारी एक प्रकार का रक्त रोग है जो दो प्रकार का होता है। अगर पैदा होने वाले बच्चे के माता-पिता दोनो के जींस में माइनर थैलेसीमिया होता है, तो बच्चे में मेजर थैलेसीमिया हो सकता है और यह बच्चे के लिए काफी घातक साबित हो सकता है। और अगर माता-पिता दोनो में से किसी एक को ही माइनर थैलेसीमिया होता है तो बच्चे को किसी प्रकार खतरा नहीं होता। लेकिन जरूरी है कि विवाह करने से पूर्व पुरुष और महिला दोनो ही अपनी जांच कराकर ही रिश्ते में बंधे। ताकि आने वाले दिनों में उनका संतान भी स्वस्थ पैदा होकर स्वस्थ जीवन जीए।
थैलेसीमिया के लक्षण
थैलेसीमिया बीमारी के लक्षण की बात करें, तो इस बीमारी के होने पर छाती में दर्द, सांस लेने में तकलीफ, थकान, बार बार बीमार होना, सर्दी, जुकाम, खांसी, सिरदर्द जैसी परेशानियो का बार-बार करना परता है। साथ ही कुछ दिनों के बाद बाद ही शरीर कमजोरी महसूस होना, उदास रहना, उम्र के अनुसार शारीरिक विकास ना हो पाना, शरीर में पीलापन बना रहना, दांत बाहर की ओर निकल जाना, विभिन्न प्रकार के संक्रमण होना, चेहरे का सूखना ऐसी कई शिकायत होती है।
थैलेसीमिया से बचाव
थैलेसीमिया एक आनुवांशिक विकार है जीसका मतलब यह नहीं है कि पहले से ही इसके बचाव संभव नहीं है। दरअसल इसके बचाव के लिए स्त्री पुरुष को विवाह से पहले उनकी खून की जांच कराना चाहिए। गर्भावस्था के दौरान महिलाओ को समय पर दवाइ लेना, जितने भी टेस्ट हो उन सभी को करवाकर जरूरी जांच का ध्यान रखना चाहिए।
थैलेसीमिया रोग से बचाव के लिए रोगी को पर्याप्त मात्रा में विटामिंस और आयरन युक्त चीजो को खाना चाहिए। कई बार तो ऐसे में रोगी के रक्त को भी बदल दिया जाता है सर्जरी करके पित्ताशय की थैली को हटा दिया जाता है। इस बीमारी में रोगी को संतुलित आहार लेना चाहिए, नियमित रूप से एक्सरसाइज, योग इत्यादि करना चाहिए।
सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल दस हजार से भी ज्यादा बच्चे जन्म से ही थैलेसीमिया नामक बीमारी के शिकार रहते हैं और यह आंकड़े पूरे विश्व में सबसे ज्यादा है। वही अगर पूरे विश्व की बात की जाए तो पूरी दुनिया में लगभग एक लाख बच्चे जन्म से ही थैलेसीमिया नामक बीमारी के साथ जन्म लेते हैं यह अनुवांशिक के कारण होता है। अगर किसी बच्चे को थैलेसीमिया की शिकायत होती है तो उसे पूरी जिंदगी इसका उपचार करना पड़ता है।
थैलेसीमिया का इलाज
थैलेसीमिया से पीड़ित रोगी के इलाज में बहुत ही ज्यादा खून और दवाइयो की आवश्यकता पड़ती है। जिस कारण सभी लोग इसका इलाज भी नहीं करवा पाते और फिर उन्हें अपने बच्चे की 12 से 15 वर्ष की आयु में ही मौत देखनी पड़ सकती है। और सही तरह से इलाज भी किए जाए तो 25 साल से ज्यादा आयु तक बच्चे की जीने की उम्मीद नहीं होती। जैसे जैसे बच्चे की उम्र बढ़ती जाती है खून की आवश्यकता और ज्यादा बढ़ती है। यानी कि सही समय पर ध्यान रखकर बीमारी की पहचान करना उचित होता है माता-पिता दोनो को बीमारी की जांच करके ही संबंध बनाना उचित होता है।
अस्थि मज्जा ट्रांसप्लांटेशन एक प्रकार का ऑपरेशन होता है, जो इस बीमारी में काफी फायदेमंद होता है लेकिन इसका खर्च बहुत ज्यादा होता है। देश भर में थैलेसीमिया, हीमोफीलिया, सिकलथेल, सिकलसेल आदि से पीड़ित ज्यादातर गरीब बच्चे 8 से 10 साल से ज्यादा जीवित भी नहीं पाते हैं। आगे चलकर किसी भी बच्चे और माँ बाप की ऐसी हालत ना हो इस कारण माता-पिता को विवाह से पहले अपनी अपनी ब्लड जांच जरूर करानी चाहिए।