14 अप्रैल का दिन भारत के पहले कानून मंत्री और संविधान के रचिता डॉ. भीमराव आंबेडकर के जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं।हर साल की तरह इस साल भी संविधान निर्माता बाबा साहब भीम राव आंबेडकर की जयंती पर सार्वजनिक अवकाश रहेगा। इस विषय में केंद्र सरकार ने नोटिफिकेशन जारी किया है की 14 अप्रैल 2021 के दिन पुरे देशभर में सार्वजनिक अवकाश रहेगा। पिछले साल इस अवकाश का एलान आठ अप्रैल को किया गया था।

वैसे तो बाबा साहब डॉ. भीम राव आंबेडकर के जन्मदिन पर सार्वजनिक अवकाश घोषित करने की शुरुआत मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद साल 2015 से ही किया है। हालांकि इसका ऐलान वह हर साल एक स्पेशल आर्डर के द्वारा करते हैं। इस बार एक सप्ताह पहले अवकाश के एलान को भी बंगाल चुनाव से जोड़ा जा रहा है।
बाबा साहब की जयंती पर कार्मिक मंत्रालय के सार्वजनिक अवकाश के फैसले की जानकारी सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने ट्वीट करके दी। साथ ही देश के सत्ता में बाबा साहब के किए गए योगदान को भी सराहा। हर साल 14 अप्रैल के दिन आंबेडकर जयंती के रूप में मनाई जाती है। डॉ. भीम राव आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल साल 1891 को मध्य प्रदेश के महू में हुआ था और उनका मूल नाम था भीमराव।
अंबेडकर की 130वीं जयंती
भारत सरकार ने साल 2016 में बड़े पैमाने पर देश और पूरी दुनिया में आंबेडकर की 125 वी जयंती मनाई गई। इस दिन को सभी भारतीय राज्यो में सार्वजनिक अवकाश के रूप में घोषित किया गया। पिछले साल कुल 102 देशो ने आंबेडकर जयंती मनाई थी। इसी वर्ष पहली बार संयुक्त राष्ट्र ने भी आंबेडकर की 125 वीं जयंती मनाई जिसमें 156 देश के प्रतिनिधियो ने भाग लिया था। संयुक्त राष्ट्र ने अपने 70 साल के इतिहास में पहली बार किसी भारतीय व्यक्ति का जन्मदिवस मनाया है। 14 अप्रैल साल 2021 को अंबेडकर की 130वीं जयंती मनाई जाएगी।
डॉ भीमराव आंबेडकर के माता पिता
भीम राव आंबेडकर के पिता रामजी वल्द मालोजी सकपाल महू में मेजर सूबेदार के पद पर तैनात थे। और उनके मां का नाम भीमाबाई सकपाल था आंबेडकर का परिवार एक मराठी परिवार था और वो मूल रूप से महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के आंबडवेकर गांव के रहने वाले थे। आंबेडकर के पिता कबीर पंथी थे। महार जाति के होने के कारण बचपन से ही उनके साथ भेदभाव होता था। प्रारंभिक शिक्षा लेने में भी उन्हें कठिनाई का सामना करना पड़ा। लेकिन इन सबके बावजूद भी आंबेडकर ने न केवल उच्च शिक्षा हासिल की बल्कि, स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री बने। और भारतीय संविधान का निर्माण किया।

भारतिय संविधान में डॉ भीमराव आंबेडकर
29 अगस्त साल 1947 को उन्हें भारतिय संविधान के मसौदा समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। संविधान का फाइनल ड्राफ्ट तैयार करने में आंबेडकर को 2 साल 11 महीने और 17 दिन का समय लगा। बाबा साहेब ने साल 1952 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन वो हार गए। साल 1952 में उन्हें राज्य सभा के लिए नियुक्त किया गया और जब तक वह जीवित थे वे इस सदन के सदस्य बने रहे। डॉक्टर भीमराव आंबेडकर की लिखी आखिरी किताब का नाम ‘द बुद्ध एंड हिज़ धम्म’ था। इस किताब को पूरा करने के तीन दिन बाद 6 दिसंबर साल 1956 को दिल्ली में आंबेडकर का निधन हो गया।
आंबेडकर की मृत्यु के बाद साल 1957 में ‘द बुद्ध एंड हिज़ धम्म’ पुस्तक प्रकाशित हुई।26 नवंबर साल 1949 को डॉ. बी.आर अंबेडकर के द्वारा तैयार संविधान को पारित किया गया। उस समय भारत में डॉ. अंबेडकर के अलावा भारतीय संविधान को तैयार करने के लिए कोई दूसरा विशेषज्ञ नहीं था। और सर्वसम्मति से डॉ. अंबेडकर को ही संविधान सभा की प्रारूपण समिति का अध्यक्ष चुना गया। भीमराव आंबेडकर तीनो गोलमेज सम्मलेन में भाग लेने वाले गैर कांग्रेसी नेता थे। उन्हें भारत में दलित बौद्ध आंदोलन के पीछे होने का भी श्रेय दिया गया।
डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म
डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल साल 1891 में महाराष्ट्र के सैन्य छावनी (जो स्वतंत्रता से पहले महाराष्ट्र में था और अब मध्य प्रदेश में स्थित है) में हुआ था। इस नगर को अब डॉ. आंबेडकर नगर के रूप में भी जाना जाता है। अंबेडकर का जन्म महू में सूबेदार रामजी शकपाल और भीमाबाई के घर हुआ था वे उनके चौदहवीं संतान थे।
डॉ. भीमराव अंबेडकर का व्यक्तित्व
अंबेडकर के व्यक्तित्व में स्मरण शक्ति की प्रखरता,सच्चाई, ईमानदारी, बुद्धिमत्ता, नियमितता, दृढ़ता इन सभी गुणो का मेल था। वह एक योद्धा, नायक, मनीषी, दार्शनिक, विद्वान, वैज्ञानिक, समाजसेवी और धैर्यवान व्यक्तित्व के इंसान थे। वे अनन्य कोटि के नेता थे, उन्होंने अपना पूरा जीवन इस देश के विकास की कामना में न्योछावर कर दिया। उनके व्यक्तित्व का परिचय आप इसी से कर सकते हैं की उन्होंने भारत के 80 फीसदी दलित सामाजिक व आर्थिक तौर से अभिशप्त लोगो को इससे मुक्ति दिलाना ही अपने जीवन का संकल्प बना लिया था।

अंबेडकर ने कहा की वर्गहीन समाज गढ़ने से पहले समाज को जातिविहीन करना होगा। समाजवाद के बिना दलित-मेहनती इंसानो की आर्थिक मुक्ति संभव नहीं है। डॉ. अंबेडकर ने ही पहले आवाज उठाई की, ‘समाज को श्रेणीविहीन और वर्ण विहीन करना होगा, क्योंकि श्रेणी ने इंसान को दरिद्र और वर्ण ने इंसान को दलित बना दिया। जिनके पास कुछ भी नहीं है, वे लोग दरिद्र माने गए और जो लोग कुछ भी नहीं है वे दलित समझे जाते थे। डॉ. अंबेडकरने संघर्ष का आह्वान किया, ‘छीने हुए अधिकार भीख में नहीं मिलते, उन्हें वसूलना पड़ता है।’ उन्होंने ने कहा है, ‘हिन्दुत्व के गौरव को वशिष्ठ जैसे ब्राह्मण, राम जैसे क्षत्रिय, हर्ष जैसे वैश्य और तुकाराम जैसे शूद्र लोगो ने अपनी साधना से जोड़ा है। समाज में अनुसूचित वर्ग को समानता दिलाने के लिए उन्होंने जीवन भर संघर्ष किया।
डॉ. अंबेडकर का लक्ष्य था- ‘सामाजिक असमानता को दूर करके दलितो के मानवाधिकार की प्रतिष्ठा करना। डॉ. अंबेडकर ने गंभीर रूप से सावधान किया था की ’26 जनवरी साल 1950 को हम परस्पर विरोधी जीवन में प्रवेश करने जा रहे हैं। भले ही हमारे राजनीतिक क्षेत्र में समानता रहेगी लेकिन सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में असमानता रहेगी। इसिलीए हमें जल्द से जल्द इस परस्पर विरोधता को दूर करना होगा। नहीं तो जो असमानता के शिकार होंगे, वे इस राजनीतिक गणतंत्र के ढांचे को उड़ा देंगे।
डॉ. भीमराव अंबेडकर की शिक्षा
बचपन से ही आंबेडकर कुशाग्र बुद्धि के थे। स्कूल में उनका उपनाम गांव के नाम के आधार पर आंबडवेकर लिखवाया गया था। लेकिन स्कूल शिक्षक ने आंबडवेकर को आंबेडकर कर दिया उनकी प्रारंभिक शिक्षा दापोली और सतारा में हुई। आंबेडकर ने साल 1907 में बंबई के एलफिन्स्टोन स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की।
भीमराव अंबेडकर एक मेधावी छात्र होने के कारण बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ ने साल 1913 में उन्हें छात्रवृत्ति देकर विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए भेज दिया। हलाकि डॉ. आंबेडकर का बचपन संघर्ष में बीता लेकिन बेहद कठनाईयों के बावजूद भी उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि ली।

अंबेडकर ने अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान, मानव विज्ञान, दर्शन और अर्थ नीति की पढ़ाई पूरी की। क्योंकि वहां पर भारतीय समाज का अभिशाप और जन्म से प्राप्त भेदभाव नहीं था। इसलिए उन्होंने अमेरिका में एक नई दुनिया से दर्शन किया। डॉ. अंबेडकर अमेरिका में हुवे एक सेमिनार में ‘भारतीय जाति विभाजन’ पर अपना मशहूर शोध-पत्र पढ़ा, जहां उनके व्यक्तित्व की बहुत प्रशंसा हुई।
आंबेडकर ने अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय से B.A पास किया और बड़ौदा नरेश सयाजी गायकवाड़ से फिर एक बार फेलोशिप पाकर MA में दाखिला कराया। साल 1915 में आंबेडकर ने स्नातकोत्तर(MA) की डिग्री हासिल की। उन्होंने ‘प्राचीन भारत का वाणिज्य’ पर अपना शोध भी लिखा। साल 1927 में कोलंबंनिया यूनिवर्सिटी ने भी उन्हें पीएचडी की उपाधि प्रदान की, जिसमें उनके शोध का विषय था ‘ब्रिटिश भारत में प्रातीय वित्त का विकेन्द्रीकरण’।
डॉ. आंबेडकर 64 विषयो में मास्टर थे, वे 9 प्रकार भाषा जानते थे और उनके पास कुल 32 डिग्रियां थीं। यही नहीं उन्होंने करीब 21 साल तक दुनिया के सभी धर्मो का अध्ययन किया। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में उन्होंने 2 साल 3 महीने में 8 साल की पढ़ाई पूरी की। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से “डॉक्टर ऑफ साइंस” का डॉक्टरेट डिग्री लेने वाले वे दुनिया के पहले और एकमात्र व्यक्ति हैं।
डॉ. भीमराव अंबेडकर की मृत्यु
अंबेडकर मधुमेह के मरीज थे। 6 दिसंबर साल 1956 को नई दिल्ली में सोते समय उनके घर उनकी मृत्यु हो गई।जहां उनका अंतिम संस्कार मुंबई में बौद्ध रीति-रिवाज से किया गया।

तो चलिए अब धर्म, समाज और शिक्षा के बारे में क्या थे डॉ आंबेडकर के विचार।
- डॉ आंबेडकर के अनुसार जीवन लम्बा नहीं महान होना चाहिए।
- पुरूषो के लिए शिक्षा जितना आवशयक है, महिलाओ के लिए भी उतनी ही।
- बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का आखिरी लक्ष्य होना चाहिए।
- कानून और व्यवस्था राजनीतिक शरीर की दवा है, और जब राजनीतिक शरीर बीमार पड़ जाए, तो दवा देनी जरूरी होती है।
- अपने भाग्य पर विश्वास करने से अच्छा है तुम अपनी मजबूती पर विश्वास रखो।
- मैं ऐसे धर्म को मानता हूं जो समानता, स्वतंत्रता और भाई -चारा सीखाता है।
- जो व्यक्ति अपनी मौत को हमेशा याद रखता है वह हमेेशा अच्छे कामो में लगा रहता है।
- समानता केवल एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक सिद्धांत रूप में स्वीकार करना होगा।
- अगर मुझे यह लगे कि संविधान का दुरुपयोग किया जा रहा है, तो सबसे पहले मैं इसे ही जलाऊंगा।
- जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता हासिल नहीं कर लेते, कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देति है वो आपके लिए बेईमानी है।
- इतिहास बताता है कि जहां नैतिकता और अर्थशास्त्र के बीच संघर्ष होता है, वहां हमेशा जीत अर्थशास्त्र की होती है।
डॉ. बी.आर. आंबेडकर का विवाह
डॉ. बी आर आंबेडकर का विवाह 14 साल की उम्र में रमाबाई से हुआ था। हालांकि बीमार होने के बाद केवल 37 साल की उम्र में 27 मई, साल 1935 को रमाबाई आंबेडकर की मृत्यु हो गई। उसके बाद डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने सविता आंबेडकर नाम की एक दूसरी लड़की से विवाह किया। हलाकि सविता अंबेडकर एक ब्राह्मण परिवार की थी लेकिन डॉ आंबेडकर के साथ विवाह के पश्चात वे बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो गईं। और साल 2003 में उनका भी निधन हो गया।
डॉ. बी.आर. आंबेडकर की उपलब्धिया
डॉ. बी.आर. आंबेडकर की दुनिया में सबसे ज्यादा प्रतिमाएं हैं। डॉ. बी.आर. आंबेडकर एकमात्र ऐसे भारतीय हैं जिनकी प्रतिमा लंदन संग्रहालय में कार्ल मार्क्स के साथ लगी हुई है। क्या आप यह जानते हैं कि भारत के तिरंगे पर “अशोक चक्र” को जगह देने का श्रेय डॉ. बी. आर. अम्बेडकर को ही जाता है। उनकी पुस्तक “वेटिंग फॉर ए वीजा” कोलंबिया विश्वविद्यालय में एक पाठ्यपुस्तक है। बाबासाहेब का पहला स्टेच्यु (Statue) उनके जीवित रहने के दौरान ही कोल्हापूर शहर में साल 1950 में बनवाया गया था। दिल्ली में भी 14 अप्रैल साल 1957 को रानी झांसी रोड पर स्थित आंबेडकर भवन में डॉ. भीमराव आंबेडकर की पहली प्रतिमा स्थापित की गई थी।
पूरी दुनिया में, किसी भी नेता के नाम पर सबसे अधिक गाने और किताबो की बात हो तो वह डॉ. बी. आर. अंबेडकर के नाम पर ही लिखी गई हैं। पूरी दुनिया में बुद्ध की जीतनि भी प्रतिमा और चित्र है उन सभी में बुद्ध की आंखें बंद हैं, लेकिन डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने बुद्ध की पहली ऐसी पेंटिंग बनाई, जिसमें बुद्ध की आंखें खुली थीं। साल 1990 में आंबेडकर को मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।

डॉ. भीमराव आंबेडकर को भारत का सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया है। इन्होंने ही हमारे देश को एक सफल लोकतंत्र बनाया और देश वासियो को सबसे बड़ी संपत्ति दी। अंबेडकर के विचार और इनकी कहानी न केवल लोगो के आत्मविश्वास को बढ़ाती है बल्कि उनके मनोबल को और मजबूत करती है।
आंबेडकर के अलावा विश्व में केवल दो ऐसे व्यक्ति हैं संयुक्त राष्ट्र ने जिनकी जयंती मनाई हैं – मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला। आंबेडकर, किंग और मंडेला ये तीनो लोग अपने अपने देश में मानवाधिकार संघर्ष के सबसे बड़े नेता के रुप में जाने जाते हैं। डॉ भीमराव अम्बेडकर को बाबा साहेब के नाम से भी जाना जाता है। अम्बेडकर जी उन सब में से एक है जिन्होंने भारत के संविधान को बनाने में अपना अहम योगदान दिया था।
हर साल आंबेडकर के जन्मदिन पर लाखो अनुयायी उनके जन्मस्थल जैसे महू (मध्य प्रदेश), बौद्ध धम्म दीक्षा स्थल दीक्षाभूमि, नागपुर, उनका समाधी स्थल चैत्य भूमि, मुंबई जैसे कई जगहो पर उन्हें अभिवादन करने लिए इकट्टा होते है। सरकारी दफ्तरो और भारत के बौद्ध विहारो में भी आंबेडकर की जयंती मनाकर उन्हें नमन किया जाता है। और विश्व के 100 से भी ज्यादा देशो में आंबेडकर जयंती मनाई जाती है।
‘समानता दिवस’ और ‘ज्ञान दिवस’
आंबेडकर जयंती को ‘समानता दिवस’ और ‘ज्ञान दिवस’ के रूप में भी मनाया जाता है, क्योंकि उन्होंने जीवन भर समानता के लिए संघर्ष किया था इसीलिए आंबेडकर को समानता और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। विश्व भर में आंबेडकर उनके मानवाधिकार आंदोलन, संविधान निर्माण और प्रकांड विद्वता के लिए जाने जाते हैं और यह दिवस उनके प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है।
दलितो की स्थिति सुधारने के लिए उन्होंने बहुत प्रयास किया और छूआछूत जैसी प्रथायो को खत्म करने में भी उनकी बड़ी भूमिका रही थी। इसलिए उनको बौद्ध गुरु भी माना जाता है। उनके अनुयायियो का मानना है कि उनके गुरु भगवान बुद्ध की प्रकार ही प्रभावी और सदाचारी थे। वे मानते है कि डॉ. आंबेडकर अपने कामो से निर्वाण प्राप्त कर चुके हैं और यही कारण है कि उनकी पुण्यतिथि को एक महापरिनिर्वाण दिवस के तौर पर मानाया जाता है।