आज की दुनिया में कम लोगो को ही देश के इतिहास के बारे में पता होता है, क्योंकि आज कल की दुनिया में लोग सिर्फ अपने आप के लिए ही मरते हैं और अपने फायदे की जानकारी लेने से मतलब रखते हैं। लेकिन हमें उन इतिहास के बारे में कभी नहीं भूलना चाहिए जो आज हम आजाद होने के बाद भूल गए हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि हम किस बारे में बात कर रहे हैं।
दरअसल आज हम आपको ब्रिटिश भारत के इतिहास का काला अध्याय जलियांवाला बाग हत्याकांड के बारे में जानकारी देने वाले हैं। शायद अब आप सोचेंगे कि इसमें कौन सी खास बात है, दरअसल इसमें खास बात यह है कि 13 अप्रैल के दिन ही यह घटना साल 1919 में घटी थी और आने वाले 13 अप्रैल को इसके 102 साल हो रहें हैं। इसके अलावा jallianwala bagh massacre day (1919) की घटना इसीलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि आज किसी प्रकार इंटरव्यू हो या स्कूल की परीक्षा कहीं ना कहीं इस घटना से जुड़े सवाल पूछ लिए जाते हैं। ऐसे में हमने सोचा कि हम आपको इस ऐतिहासिक घटना के बारे में भी जानकारी दे देते हैं। ताकि अगर आप इस घटना से अवगत नहीं है तो आपको भी जानकारी मिल जाए।
जलियांवाला बाग के 102 साल
जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड 13 अप्रैल के दिन 102 साल पहले साल 1919 में हुआ था जहां रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा का आयोजन हुवा था। भारत के इतिहास में कुछ ऐसी तारीख है जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता। 13 अप्रैल साल 1919 का दिन उन तारीखो में से है जो ब्रिटिशो के अमानवीय चेहरे को सामने लाता है। एक ब्रिटिश अख़बार ने इस घटना को आधुनिक इतिहास का सबसे अधिक खून-खराबे वाला नरसंहार कहा।

13 अप्रैल, 1919 को अंग्रेज अफसर जनरल डायर ने अमृतसर के जलियांवाला बाग में मौजूद भीड़ में अंधाधुंध गोलि चलवा दी। इस हत्याकांड में सैंकड़ों लोग मारे गए, जबकि हजारो घायल हुवे। जिस दिन यह घटना घटी उस दिन बैसाखी था। इसी हत्याकांड के बाद ब्रिटिश हुकूमत के अंत की शुरुआत हुई, जीसके बाद देश को ऊधम सिंह जैसा क्रांतिकारी मिला और भगत सिंह के साथ कई युवाओं के दिल में देशभक्ति की लहर उठी।
जालियाँवाला बाग हत्याकांड
दरअसल जालियाँवाला बाग हत्याकांड साल 1919 में बैसाखी के दिन 13 अप्रैल को भारत के पंजाब स्थित अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर के पास जलियाँवाला बाग में हुआ था। अमृतसर के जलियांवाला बाग में कुछ नेता भाषण देने वाले थे। उस समय शहर में कर्फ्यू का माहौल था जो तरफ से लगा हुआ था। लेकिन फिर भी इसमें सैकड़ों ऐसे लोग थे जो बैसाखी के मौके पर परिवार के साथ मेला देखने और शहर घूमने आए थे। और वहां होने वाली सभा की खबर सुनकर सभी नेता के भाषण सुनने जा पहुंचे। उस सभा में जब नेता अपनी भाषण दे रहे थे तब ब्रिगेडियर जनरल रेजीनाल्ड डायर 90 ब्रिटिश सैनिको के साथ उस सभा में जा पहुंचा। उन सब के हांथो में भरी हुई राइफल थी सभा में मौजूद नेताओ ने जब सैनिको को देखा तो वहां पर मौजूद लोगो से शांत बैठने के लिए अनुरोध किया। तभी सैनिको ने बाग को पूरी तरह से घेर लिया और बिना कोई चेतावनी दिए लोगो पर गोलिया बरसाने लगे।
10 मिनट तक उन्होंने कुल 1650 राउंड गोलिया चला दी जलियांवाला बाग में उस समय मकानो के पीछे एक खाली मैदान था जो वहां तक जाने हैं और वहां से बाहर आने के लिए केवल एक रास्ता था जब गोली चल रही थी तो जान बचाकर भागने का कोई रास्ता नहीं था चारो तरफ मकान थे। कुछ लोग जान बचाने के लिए मैदान में रहने वाले कुएं में कूद गंए लेकिन देखते देखते वह कुंवा भी लाशो से भर गया। उस समय घटि इस घटना में चले गोलियो के निशान अभी भी जलियांवाला बाग़ में देखे जा सकते है। जिसे कि अब राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया गया है। यह नरसंहार पूर्व-नियोजित था और जनरल डायर ने गर्व के साथ घोषित भी किया कि उसने यह सब सबक सिखाने के लिए किया था। और उसे अपने इस घृणित काम पर कोई शर्मिंदगी भी नहीं थी।
हज़ारो लोग मारे गए
जलियांवाला बाग के पट्टिका पर लिखा हुआ है कि 120 लाशें तो केवल कुएं से ही मिली है। उस समय शहर में कर्फ्यू लगने के कारण घायलो का इलाज भी नहीं हुआ जिस कारण वे तड़प तड़प कर वहीं दम तोड़ दिएं। अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदो की सूची है जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदो की सूची मौजूद है। ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगो के घायल होने और 379 लोगो के शहीद होने की बात स्वीकार की है। जिनमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और एक केवल डेढ़ महीने का बच्चा था। आंकड़ों के अनुसार एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए और दो हज़ार से ज्यादा लोग घायल हुए।
जब ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर मुख्यालय वापस पहुँचा वहां उसने अपने वरिष्ठ अधिकारियो को यह टेलीग्राम किया कि भारतीयो की एक फ़ौज ने हमला किया था जिससे बचने के लिए उसे गोलिया चलानी पड़ी। ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर मायकल ओ डायर ने इसके जवाब में ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर को टेलीग्राम किया कि तुमने बिल्कुल सही कदम उठाया है। मैं तुम्हारे निर्णय को अनुमोदित करता हूँ। फिर ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर मायकल ओ डायर ने अमृतसर और अन्य क्षेत्रो में मार्शल लॉ लगाने की माँग की जिसे वायसरॉय लॉर्ड चेम्सफ़ोर्ड नें स्वीकृत कर दिया।

सरदार उधम सिंह जलियांवाला हत्याकांड घटना के दौरान सरदार उधम सिंह वहीं थे। और इस घटना के प्रतिघात में एक क्रांतिकारी रूप में सरदार उधम सिंह ने 13 मार्च साल 1940 में लंदन के कैक्सटन हॉल में इस घटना के समय ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर मायकल ओ ड्वायर को गोली से मार मारकर ह्त्या कर डाला। क्योंकि जलियांवाला हत्याकांड घटना के दौरान वह पंजाब का लेफ्टिनेंट गवर्नर था। जिसके परिणामस्वरूप 31 जुलाई साल 1940 को उन्हें फांसी दे दी गई। इस हत्याकांड ने केवल 12 साल के भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला। इसकी सूचना मिलते ही भगत सिंह अपने स्कूल से 12 मील पैदल चलकर जालियावाला बाग पहुंचे थे।
उस घटना ने भारतीय लोगो में गुस्सा भर दिया जिसे दबाने के लिए सरकार को पुनः बर्बरता का सहारा लेना पड़ा। पंजाब के लोगो पर अत्याचार किए जाने लगे कोड़े बरसाए गए, अख़बारो पर भी प्रतिबन्ध लगा दिए और उनके संपादको को जेल में डाल दिए या उन्हें निर्वासित कर दिया गया। एक आतंक का साम्राज्य , उस समय भी चारों तरफ ऐसा माहौल था जैसा कि साल 1857 में विद्रोह के दमन के दौरान पैदा हुई परिस्थिति थी। उस समय रविन्द्रनाथ टैगोर ने भी अंग्रेजो द्वारा उन्हें दी गई नाईटहुड की उपाधि वापस कर दी। ये नरसंहार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।
जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक
संसद ने जलियांवाला बाग को एक अधिनियम “जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक अधिनियम,1951” पारित करके इसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया था। इस स्मारक का प्रबंधन जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक न्यास (JBNMT) करता है। यदि किसी एक घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे ज्यादा प्रभाव डाला था तो वह घटना यह हत्याकाण्ड ही था। जिसके बाद ब्रिटिश शासन के विरुद्ध भारतीयो में गुस्सा उमर पड़ा इसीलिए कहते हैं कि यह घटना ही भारत में ब्रिटिश शासन के अंत की शुरुआत बनी। साल 1997 में महारानी एलिज़ाबेथ ने मृतकों के स्मारक पर श्रद्धांजलि दी थी । साल 2013 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन भी इस स्मारक पर आए थे विजिटर्स बुक में उन्होंनें लिखा कि “ब्रिटिश इतिहास की यह एक शर्मनाक घटना थी।